सोमवार, 3 मई 2021

भारत और बांग्लादेश के रिश्तों का नया अध्याय की शुरूआत

-डा. स्वर्ण सिंह, प्रोफेसर जेएनयूू गत सप्ताह बांग्लादेश की स्वतंत्रता की 50वीं वर्षगाँठ के उत्सव के समापन समारोह को लेकर भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की दो दिवसीय यात्रा ऐतिहासिक रही। यह प्रधानमंत्री मोदी की कोविड-19 सर्वव्यापी महामारी के चलते पहली विदेश यात्रा थी और इसमें दोनो देशों में व्यापार, तकनीक, प्राकृतिक वापदायों, खेल और युवाओं को लेकर कुल पाँच संधियों पर हस्ताक्षर हुए। दोनो राजनेतायों ने सभी प्रकार के आतंक से लड़ने और शांति बनाए रखने प्रतिवधता दोहरायी और कई नयी परियोजनाओं का उद्घाटन भी किया जिसमें भारत-बांग्लादेश सीमा पर तीन नई हाट और ढाका से भारत के जलपायदुड्डी के बीच ‘मितली इक्स्प्रेस’ रेल सेवा शुरू करना था। पहले से ही ढाका-कोलकाता ‘मैत्री रेल’ और खुलना-कोलकाता ‘बंधन रेल’ दोनो देशों में यातायात का सफल परीक्षण रही हैं। प्रधान मंत्री मोदी ने भारत की और से 109 आधुनिक रोगी वाहन, 1.2 करोड़ वेक्सिन खुराक भेंट के रूप में दिए और आशुगंज में 1971 के बांग्लादेश के स्वतंत्रता संग्राम में भारतीय शहीदों के स्मारक और रविंद्र भवन कूठीवरी के विकास की नींव भी रखी और लड़कियों के लिए एक स्कूल और इश्वरिपूर के जेशोरेश्वरी काली मंदिर में कम्यूनिटी हॉल बनाने का प्रस्ताव किया। हालांकि मोदी की यात्रा से पहले दक्षिण एशियाई देशों के चार और राष्ट्र अध्यक्षों ने भी इस उत्सव में शिरकत की, लेकिन बांग्लादेश की आजादी में भूमिका को लेकर कृ और खासकर भारत-बांग्लादेश के गहरे ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, सामाजिक और भाषा को लेकर गहन रिश्तों के चलते कृ भारत का बंगलादेश के स्वतंत्रता संग्राम और तबसे इन पिछले ५० वर्षों के इतिहास में योगदान और भी अहम हो जाता है। आज के संदर्भ में देखें तो भारत दक्षिण एशिया की सबसे बड़ी आर्थिक व्यवस्था और बांग्लादेश की सबसे समृद्ध व तेज गति से बढ़ती अर्थव्यवस्था के चलते इनका आपसी तालमेल बढ़ना स्वाभाविक है। बांग्लादेश को आज विकास का उदाहरण माना जाता है। वह अपनी स्वतंत्रता के 50वें उत्सव में यह दर्शाता है कि बांग्लादेश के लिए राजनेताओं का पाकिस्तान से अलग होने का निर्णय कितना सटीक और ठीक था। आज ज्यादातर मापदंडो में पाकिस्तान से बांग्लादेश बहुत आगे निकल चुका है। खासकर जब पाकिस्तान आतंक और भारी कर्ज से जूझ रहा हैं तो बांग्लादेश अपने महिलाओं को रोजगार मुहाय्या करने, बड़े पायमाने पर कपड़ों के निर्यात करने, और गरीबी से लोगों को उबारने के लिए पूरे विश्व को अपनी सफलता का अहसास कर चुका है। बांग्लादेश की यह कामयाबी और भी आकर्षित करती है, जब हम उसके 1971 के स्वतंत्रता संग्राम में वहां के लाखों लोगों की शहादत, 1975 में शेख मुजीबुर्रहमान के साथ साथ सैकड़ो राजनेताओं की सेना द्वारा हत्या और उसके बाद कई सालों तक सैन्य शासन और फिर यहां के लोगों को लगातार प्राकृतिक आपदाओं को झेलते देखते हैं। यह सब इस ५०वीं वर्षगाँठ को बहुत गौरतलब बना देता है। दूसरी ओर कोरोना सर्वव्यापी महामारी में भारत मैं विश्व के 60 फीसदी वैक्सीन का उत्पादन कर ‘फार्मसी ओफ द वर्ल्ड’ बनकर उभरा हैं और पूरे विश्व को इस चुनौती से लड़ने में सहायक सिद्ध हो रह है। इसका सीधा फायदा बांग्लादेश को मिल भी रहा है। इसलिए बांग्लादेश आज भारत का बहुत अच्छा आर्थिक हिस्सेदार हो सकता हैं।। यह शायद अकेला पड़ोसी देश है यहाँ प्रधान मंत्री शेख हसीना की अगवाई में सामाजिक और राजनैतिक स्थिरता के साथ साथ बांग्लादेश ने अपनी विदेश नीति में भी संतुलन बनाये रखा है। इसलिए आपसी हिस्सेदारी से बंगलादेश आज भारत का की ‘पहले पडोस’, ‘एक्ट ईस्ट’ और ‘हिंद प्रशांत’ की नितीयों में भी मूल्यावान साझेदार साबित हो सकता हैं। याद रहे कि दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन, यानी सार्क कृ जिसकी शुरुआत बांग्लादेश ने की थी कृ पिछले पांच साल से निष्क्रिय है। 2015 में हुए इसके काठमांडू शिखर सम्मेलन के बाद इसका कोई शिखर सम्मेलन नहीं हो पाया। इन पाँच सालों मैं क्षेत्रिये समीकरण बनाए रखने मैं एक दूसरा क्षेत्रिये संगठन जो उभर कर सामने आया हैं वो सात देशों का बंगाल की खाड़ी का बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग संगठन, यानि बिम्सटेक, है। बिमसटेक का सचिवालय भी ढाका, बांग्लादेश में है। खासबात यह है कि इस संगठन में दक्षिण और दक्षिण पूर्व ऐसा के बांग्लादेश, भूटान, भारत, म्यांमार, नेपाल, श्रीलंका तथा थाईलैंड शामिल है। यानी बिमसटेक एक तो दक्षिण और दक्षिणपूर्व क्षेत्रों को जोड़ता हैं और फिर भारत के लिए ‘सार्क’ की तरह इसमें चीन व पाकिस्तान नहीं है। जिस तरह से भारत की कवायद में यह बिमसटेक प्लेटफार्म मजबूत होता जा रहा है तो यह भी भारत-बांग्लारदेश का आपसी तालमेल को बनाए रखने को और भी महत्वपूर्ण बना देता है। हालांकि भारत और बांग्लादेश के बीच कुछ जटिल मुद्दे भी है, जिन पर सहमति बनाना जरुरी है। इनमें तीस्ता नदी जल बंटवारा प्रधान मंत्री मोदी की 2015 यात्रा से लंबित है। इसके बाद व्यापार और निवेश को लेकर ‘व्यापक आर्थिक हिस्सेदारी’ पर संधि की वातचीत भी 2018 से चल रही है। इसके चलते, भारत और बांग्लादेश के बीच द्विपक्षीय व्यापार, जो पिछले एक दशक में लगातार बढ़कर 2018 तक ११ अरब डॉलर तक पहुँच गया था, उसमें पिछले दो सालों में गिरावट आयी है। इसमें गत वर्ष में आयी गिरावट का कारण कोरोना महामारी भी रहा। इसके अलावा यह आपसी व्यापार पूरी तरह से एकतरफा हो चुका है और उसमें संतुलन लाकर ही उसे आगे बढ़ाया जा सकता हैं। इसलिए बांग्लादेश आज भारत से उसके सब निर्यात पर शून्य टेरिफ चाहता है और वह सभी ‘नॉन -टेरिफ’ नियंत्रणो को समाप्त करने की भी माँग करता हैं। महामारी के चलते भारत ने जो पड़ोसी देशों से आवागमन और निवेश पर खास अंकुश लगाए थे वह उनको हटाने की माँग करता है। ई-वीजा की माँग करता हैं। तीस्ता नदी के जल प्रवाह में दिसम्बर-मार्च में 50 फीसदी हिस्से का दावा करता है जबकि यह नदी सिक्किम और पश्चिम बंगाल से हो कर गुजरती है और वहाँ इसके पानी कि खपत होती है। इसके अलावा बंगलादेश की माँगो को मान में जाहिर हैं कि भारत को अपनी कुशल श्रमशक्ति, छोटे और लघु उद्योगों और दूसरे राष्ट्रहितों को ध्यान में रखना होगा। आज भारत-बांग्लादेश के राजनेताओं में बढ़ते तालमेल, दोनो की आपस में और अपने क्षेत्र और विश्व मैं बढ़ती हुई साख के साथ साथ अपने जमीन पर सड़क, रेल, वायु और जल मार्गों में लगातार बढ़ती संयोगिकता से यह उम्मीद बनती है कि दोनो सरकारें अपने लोगों की बढ़ती हुई क्षमता, उद्यमिता, और उत्साह को सही दर्शन और दिशा निर्देशन देने में कामयाब होंगे। -----(ओ.पी. पाल से बातचीत पर आधारित)--- 02Apr-2021

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