एक जमाना था जब लोग अपने घरों के बाहर लिखते थे-अतिथि देवो भव: फिर शुरू किया-शुभ लाभ और बाद में लिखा जाने लगा-यूं आर वेलकम अब शुरू हो गया-......से सावधान!
बुधवार, 26 मई 2021
आजकल: चुनावी नतीजों का राष्ट्रीय राजनीति पर नहीं पड़ेगा असर
------डा. संजय कुमार----
देश में पश्चिम बंगाल समेत पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजों ने देश के क्षेत्रीय राजनीतिक दलों के लिए भविष्य की राष्ट्रीय राजनीति में नई उम्मीद जगी है। लेकिन इन राज्यों के इन चुनावी नतीजों का राष्ट्रीय राजनीति पर कोई भी सीधा असर पड़ने वाला नहीं है। इसकी मुख्य वजह यही है कि विधानसभा चुनाव राज्य और स्थानीय स्तर के मुद्दों पर लड़ा जाता है और क्षेत्रीय दलों का प्रभाव अपने अपने राज्यों तक ही सीमित है, जिनमें राष्ट्रीय नेतृत्व का अभाव है। दूसरा बड़ा कारण यह भी है कि देश का राजनीतिक इतिहास इस बात का गवाह है कि तीसरा मोर्चा खड़ा करने के नाम पर विपक्षी दलों का एकजुट होने की दूर तक संभावनाएं नजर नहीं आती। यह इसलिए भी मुश्किल डगर है कि क्षेत्रीय दलों की एकजुटता में राष्ट्रीय स्तर के नेतृत्व को लेकर आम सहमति नहीं बन पाती है, क्योंसभी क्षत्रपों में अपने दलों का नेतृत्व कर रहे सभी नेता राष्ट्रीय नेतृत्व की अपेक्षा रखते हैं। इसके विपरीत यदि एक या दो राज्यों में कांग्रेस का बेहतर प्रदर्शन और उसकी जीत सामने आती तो राष्ट्रीय स्तर की राजनीति में परिवर्तन की उम्मीद की जा सकती थी, लेकिन इन चुनावों में कांग्रेस का खराब प्रदर्शन मनोबल गिरता नजर आ रहा है। इसलिए पांचों राज्यों के चुनावी नतीजों के बाद विपक्षी दलों की राष्ट्रीय राजनीति में टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी को पीएम मोदी का विकल्प बनाने की उम्मीदों को जगाने वाली व्यापक रूप से चर्चा इसलिए बेमाने है, क्योंकि देश का नेतृत्व करने के लिए कार्यकर्ताओं की एक मजबूत टीम का होना जरूरी है। यदि ममता बनर्जी की ही बात की जाए तो वह बंगाल में तो मजबूत और लोकप्रिय है, लेकिन बंगाल से ही लगे हुए राज्य झारखंड और बिहार में ममता की कोई लोकप्रियता नहीं है।
वैसे भी राष्ट्रीय स्तर की राजनीति संख्याबल के आधार पर आंकी जाती है, जिसमें किसी भी क्षेत्रीय दल की संख्या 30-40 तक भी नहीं है, जबकि कम से कम 70-80 होनी चाहिए। इसलिए राज्यों में सत्ता संभाल रहे किसी भी क्षेत्रीय दल की लोकसभा में 20-22 से ज्यादा नहीं है। प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस पीएम मोदी का विकल्प बन सकती थी, लेकिन उसका राज्य विधानसभा चुनाव में लगातार प्रदर्शन खराब हो रहा है। राष्ट्रीय स्तर की राजनीति पर इन चुनावी नतीजों का असर इसलिए भी पड़ने वाला है कि यदि पश्चिम बंगाल के चुनाव नतीजों की बात की जाए तो उसमें भाजपा ने जो अपेक्षा की थी, उसकी तुलना में उसका प्रदर्शन खराब रहा। इसके बावजूद भाजपा का जो प्रदर्शन रहा उसमें उसने 2016 में तीन सीटों को बढ़ाकर 77 तक प्रमुख विपक्षी दल का दर्जा हासिल कर लिया। यही नहीं बंगाल के इस प्रदर्शन के सहारे भाजपा राज्यसभा में भी मजबूत होगी। जबकि तृणमूल कांग्रेस का नेतृत्व ममता बनर्जी कर रही थी, जिनका असर अपने राज्य तक ही सीमित है। टीएमसी के बेहतर प्रदर्शन के सहारे यह कहना कि वे राष्ट्रीय नेतृत्व करके पीएम मोदी को भविष्य में चुनौती देंगी, ऐसा कतई संभव नहीं है। इसी प्रकार तमिलनाडु, केरल, पुडूचेरी में जो दल बहुमत में आए उनका अपने राज्य में प्रभाव रहा। असम में चूंकि पहले से ही भाजपा की सत्ता थी, तो राज्यस्तर के मुद्दों में उसे ही दोबारा बहुमत मिला है। इसलिए राष्ट्रीय राजनीति में विपक्षी दलों को केवल पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के नतीजों को आधार बनाकर गैर भाजपा गठबंधन की उम्मीद करने का कोई औचित्य नहीं है।
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राष्ट्रीय दलों के सामने चुनौती---
पांच राज्यों के चुनावी नतीजों ने खासतौर से पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और केरल को लेकर नई राजनीतिक तस्वीर पेश की है, जो क्षेत्रीय दलों की भाषा, कार्यकलाप और ढांचा राष्ट्रीय दरलों के लिए चुनौतीपूर्ण है। इससे आने वाले समय में राष्ट्रीय स्तर पर नया समीकरण बनेगा, जो क्षेत्रीय दलों के लिए नई उम्मीद दर्शाता है। इन चुनावी नतीजों ने उन अटकलों को खारिज कर दिया है, जिसमें कहा जा रहा था कि क्षेत्रीय दलों की राजनीति खत्म हो रही है, लेकिन इन चुनावी नतीजों से ऐसा नहीं लगता, बल्कि राष्ट्रीय दलों के लिए क्षेत्रीय दल चुनौती साबित होंगे। पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल, पुडूचेरी और असम के चुनावों में भाजपा खासकर पश्चिम बंगाल में अपनी पूरी ताकत झोंकने के बावजूद तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी को दूर तक भी नही पछाड़ सकी। भाजपा की इसी रणनीति के फोकस के कारण भविष्य में उसके सामने चुनौती खड़ी हो सकती है। मसलन यदि इस कोरोनाकाल में मोदी सरकार चिकित्सा सुविधाओं की बेहतर व्यवस्था भी कर देती तो भविष्य की राजनीतिक माहौल उसके पक्ष में जा सकता था। लेकिन इसके विपरीत ऐसा लग रहा है कि राष्ट्रीय राजनीति में भविष्य यह रणनीति उसके विरोध में जाती नजर आ रही है। इसलिए तमाम विपक्षी दलों को ताकत मिली है, जो राष्ट्रीय स्तरी की राजनीति का नया समीकरण का सबब बनेगी। राज्यों में ऐसे चुनावी नतीजों से क्षेत्रीय दलों के ताकतवर होने से इंकार नहीं किया जा सकता, तो भाजपा के सामने नई चुनौती खड़ा होना स्वाभाविक है।
-प्रो. विवेक कुमार, जेएनयू
-(ओ.पी.पाल से बातचीत पर आधारित)
09May-2021
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