सोमवार, 3 मई 2021

आजकल: विनिवेश का रणनीतिक फैसल उचित नहीं

--अश्वनी महाजन, राष्ट्रीय सह-संयोजक, स्वदेशी जागरण मंच----------- देश में जब से निजीकरण का दौर शुरु हुआ है जब से माना जा रहा है कि आर्थिक सुधरों में विनिवेश एक पक्ष है। स्वदेशी जागरण मंच सरकार के विनिवेश और निजीकरण का विरोधी नहीं है, लेकिन विनिवेश को लक्षित करने का सरकार ने जो खाका तैयार किया है उसका तरीका सही नहीं है, बल्कि इसके बजाए इक्विटी के रूप में विनिवेश को कमाई का जरिया बनाया जाना चाहिए। आमतौर पर विनिवेश में 26 या 51 फीसद हिस्सा सरकारी कंपनी के पास रखा जाता है और शेष रणनीतिक भागीदार को हस्तांतरित कर दिया जाता है। हालांकि सरकार ने निर्णय लिया है कि वह कई सार्वजनिक उपक्रमों में अपनी हिस्सेदारी को 51 प्रतिशत से कम करेगी। भारत में वर्ष 2004 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के समय विनिवेश का सफर शुरू हुआ था। इसके बाद दस साल यूपीए शासन काल में विनिवेश थमी सी रही। इसके बाद वर्ष 2014 में भाजपा की अगुवाई में मोदी सरकार ने माना कि कारोबार चलाना सरकार का काम नहीं है के साथ ही विनिवेश के इस सफर को आगे बढ़ाना शुरू किया। इसी विनिवेश नीति के तहत मोदी सरकार ने वित्त वर्ष 2021-22 के लिए बजट में विनिवेश के जरिए 1.75 लाख करोड़ रुपये की कमाई का लक्ष्य रखा है। इसके लिए सैद्धांतिक रूप से आगे बढ़ना जरुरी है और मूलत: व्यवसाय निजी हाथों में लाने के लिए निजी उद्यमशिलता बढ़े। यह हमारा मानना है कि यदि सरकारी कर्मचारियों या अधिकारियों में कोई इंसेटिव नहीं होता और वह व्यवसाय को विस्तार नहीं दे सकते। मसलन विनिवेश लक्षित होने के बजाय शेयर यानि इक्विटी के आधार पर आगे बढ़ाया जाना चाहिए, जिससे व्यवसाय का विकास भी होगा और प्रेरणा भी मिलेगी। हालांकि सरकार की सैद्धांतिक सोच पर हमें कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन पब्लिक सेक्टर एक प्रमुख विषय है जिसकी वास्तविक्ता को स्वीकार करते हुए पब्लिक सेक्टर में भारी विनिवेश हो। लेकिन यदि किसी संस्थान को बेचते हैं तो ब्यूरोक्रेट का अधिकार नहीं होना चाहिए। जब जनता विनिवेश करेगी तो अच्छे दामों पर बेचने की नीति होनी चाहिए। सरकार के विनिवेश को लक्षित करने का तरीका सही नहीं है। स्वदेशी जागरण मंच का मानना है कि इस तरीके पर सरकार पर सवाल खड़े हो सकते हैं और अटल सरकार के समय में भी संतूर होटल को लेकर इस प्रकार का बखेडा हो चुका है। मौजूदा सरकार सैद्धांतिक रूप से विनिवेश के लिए सही कदम उठा रही हो, लेकिन वह रणनीतिक नहीं होना चाहिए। शेयर यानि इक्विटी के रूप में विनिवेश को हम इसलिए सही मान रहे हैं कि यदि शेयर मार्केट में बेचते हैं तो शेयर किसी के भी हाथ में हो, लेकिन अपने देश के लोगों में शेयर लेकर बांटने से कोई अंतर नहीं होगा। माना कि संस्थान की सहेत सही नहीं है और सरकार उसे बचने की बात करती है तो उसमें सरकारी नियंत्रण नहीं होना चाहिए, बल्कि शेयर के दाम बढ़ने पर उसे बेचा जा सकता है। हालांकि सारे शेयर बेचना भी उचित नहीं है। इसलिए विनिवेश को लक्षित करने और बजट घाटे का सौदा बनाने के बजाए दीर्घकालीन नीति के तहत होना जरूरी है। बजट के दौरान ही सरकारी सेक्टर की जीवन बीमा कंपनी एलआईसी का आईपीओ लाने का भी ऐलान किया गया है। इसके अलावा सरकार ने बीपीसीएल, एयर इंडिया, शिपिंग कॉरपोरेशन ऑफ़ इंडिया, कंटेनर कॉरपोरेशन, आईडीबीआई बैंक, बीईएमएल जैसी कंपनियों में स्ट्रैटेजिक डिसइनवेस्टमेंट को भी 2021-22 के दौरान पूरा कर लेने पर जोर दिया गया है। सरकार इस रणनीतिक विनिवेश के पहले चरण में भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड और शिपिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया सहित पाँच पीएसयू के कुछ भाग की बिक्री करने की योजना है। इसके अलावा सरकार की देश में बेकार पड़ी सरकारी संपत्तियों को बेचकर 2.5 लाख करोड़ रुपये जुटाने की योजना पर भी काम कर रही है, जिसमें सरकार का मानना है कि जनता के पैसे का सदोपयोग हो। सरकार का एयर इंडिया के विनिवेश का फैसला भी उचित नहीं है, सभी ने देखा है कि कोविड-19 के दौरान खाड़ी देशों में फंसे भारतीयों को स्वदेश लाने में एयर इंडिया ने अपनी अहम भूमिका निभाई है। सरकार निजीकरण और विनिवेश की नीति के जरिए देश की अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए बेहतर कदम उठा रही है, लेकिन देश में कई निजी क्षेत्र के उद्यम बेहतर काम कर सकते है बेशर्ते उन पर सरकारी अंकुश न हो। इसलिए हर उद्यम या संस्थान केा उद्यमशिलता की प्राथमिकता होना जरुरी है। -----(ओ.पी. पाल से बातचीत पर आधारित)---- 04Apr-2021

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