बुधवार, 5 मई 2021

आजकल: सामाजिक आर्थिक मुद्दों पर फोकस से होगा नक्सलवाद का समाधान

सामाजिक आर्थिक मुद्दों पर फोकस से होगा नक्सलवाद का समाधान -सुभाष गताडे, वरिष्ठ पत्रकार---------- छत्तीसगढ़ के बीजापुर में नक्सलवादियों के साथ मुठभेड़ में सुरक्षाबलों के 22 जवानों की मौत के बाद बीजापुर से लेकर रायपुर तक ही नहीं, बल्कि दिल्ली के रायसीना हिल तक कई प्रकार के सवाल हवा में तैरना स्वाभाविक है। शायद पिछले नक्सली हमले से अभी तक कोई सबक नहीं लिया गया है। इस नक्सली हमले में सरकार की रणनीतिक चूक है या नहीं? यह तो सरकार ही जानती है। लेकिन इस हमले को लेकर जिस प्रकार की खबरे सामने आई हैं उसमें सरकार की ओर से निश्चत रूप से चूक है। यदि यह महत्वपूर्ण चूक है तो इससे पहले भी नक्सली हमलों में जवानों को शहीद होना पड़ा है, जिनके लिए जिम्मेदारी कौन लेगा। सवाल ऐसे भी उठ रहे हैं कि क्या यह रणनीतिक चूक थी या इसे खुफ़िया तंत्र की असफलता माना जाना चाहिये? क्या जवानों में आपसी तालमेल की कमी थी, जिसके कारण अत्याधुनिक हथियारों से लेस दो हज़ार जवान, सैकड़ो की संख्या में नक्सलवादियों का मुकाबला नहीं कर पाये? यह भी जानकारी सामने आई है कि इस बार जब पहली बार सुरक्षाबल नक्सलियों के इलाके में घुसे तो बीजापुर के बासागुड़ा रोड पर जगरगुंडा-तर्रेम का रास्ता राज्य बनने के पहले से बंद थे, जहां से वापस लौटते समय नक्सलियों के झुंडों ने सुरक्षाबलों को तीन तरफ से घेरकर हमला किया। नक्लवादियों के नेटवर्क का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि माओवादियों ने पहले से ही आसपास के जंगल में अपनी हमले के लिए अपनी रणनीति बना ली थी और पूरे गांव को भी खाली करवा लिया था, जिसके बाद योजनाबद्ध तरीके से सुरक्षाबलों के दलों को निशाना बनाया गया। इसका मतलब साफ है कि नक्सलवादियों के खिलाफ बनाई गई सरकार की रणनीति से कहीं ज्यादा नक्सलियों का खुफिया तंत्र हमेशा की तरह मजबूत नजर आया। हालांकि अलग-अलग स्तर पर इन सारे सवालों के अलग-अलग जवाब हो सकते हैं। वहीं इनका सच क्या है, इसे समझ पाना अभी इतना आसान नहीं है। फिर भी फौरीतौर पर यदि जिम्मेदारी की बात करें तो नक्सलवाद के खिलाफ चलाए जा रहे अभियान में जुटे सुरक्षा बल केंद्रीय गृहमंत्रालय के अधीन है, जिसे इस रणनीतिक चूक के साथ जिम्मेदारी स्वीकार करनी चाहिए। एक उदाहरण के लिए यूपीए शासनकाल में राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में श्रंखलाबद्ध बम धमाकों के दौरान तत्कालीन केंद्रीय गृहमंत्री शिवराज पाटिल को घटनास्थल के दौरे करने के घटना पर उठे सवालों के बाद अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। वहीं एक रेल हादसे की जिम्मेदारी लेते हुए तत्कालीन रेल मंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने अपने पद से इस्तीफा दिया था। इसके अलावा भी देश में नैतिक जिम्मेदारी स्वीकारने की कई मिसालें है। इसलिए बीजापुर की घटना के लिए भी जिम्मेदारी स्वीकारते हुए मुखिया का इस्तीफा होना चाहिए? नक्सली आगे क्यों बढ़ रहे हैं, उसका कारण भी सरकार को तलाशने की जरुरत है, लेकिन 50 साल के इस नक्सल आंदोलन का समाधान करने के लिए सरकार कानून और व्यवस्था यानि कानूनों का सहारा ले रही है, जबकि इस आंदोलन की जड़ों तक पहुंचकर उससे समाधान के रास्ते अपनाने की जरुरत है। हालांकि वर्ष 2011-12 के दौरान तत्कालीन केंद्र सरकार कमेटियां बनाई थी, जिसका मकसद नक्सलवाद क्यों बढ़ रहा है और इसकी मूल जड़ों मे क्या है जैसे तथ्यों का पता लगाकर उनका समाधान करना था, लेकिन लोगों हकों को छीना जाना है, खासकर छत्तीसगढ़ जैसे नक्सल प्रभावित राज्य में ग्राम सभा की भूमि लेने के लिए ग्राम पंचायत की सहमति न लेने जैसे जबरस्त असंतोष के पीछे नक्सलवाद है। इसलिए सरकार को चाहिए की कानून व्यवस्था के बजाए सामाजिक और आर्थिक पड़ताल करके उसके समाधान के रास्ते अपनाए, जहां नक्सल की मूल जड़े हैं। देश में हिंसा की घटनाओं को प्रमुखता या हाईलाइट करना कहीं तक भी उचित नहीं है, लेकिन हिंसा किसी भी तरह की हो और उसे हाईलाइट करने पर हम यह भूल जाते हैं कि सामाजिक और आर्थिक पड़ताल में ही समस्या का समाधान संभव है, लेकिन हम ऐसे समाधान के लिए कतई भी गंभीर नहीं हैं। सरकार की जिम्मेदारी है कि सामाजिक और आर्थिक स्तर पर गलत राह पकड़ने वालों को सही राह पर लाया जाए। -(ओ.पी. पाल से बातचीत पर आधारित) ------------------------------------------------------ लोगों की बुनियादी जरुरतों से खत्म होगा नक्सलवाद -शारदा प्रसाद, पूर्व पुलिस महानिदेशक, असम------------- नक्सलवाद की समस्या के समाधान के लिए हमें उन पहलुओं को चिन्हित करना होगा, जो नक्सलवाद की जड़ो को खाद पानी देने में अहम भूमिका रही है। नक्सलवाद के खिलाफ अभियान चलाना एक कानून व्यवस्था का हिस्सा हो सकता है, लेकिन इसके लिए नक्सलवाद की समस्या से निपटने के लिए उनकी विचारधारा में बचे स्थानीय लोगों की मूलभूत जरुरतों की पहचान करके उन्हें विश्वास में लेने की जरुरत है। जल, जंगल और जमीन के बेसिक नारे के साथ शुरू हए नक्सल आंदोलन ने अपनी प्रकृति और उद्देश्य दोनों में महत्त्वपूर्ण रूप से बदलाव किया है। ऐसे में जहां एक ओर इस समस्या की वजह आर्थिक और सामाजिक विषमता है, वहीं दूसरी ओर इसे अब एक राजनीतिक समस्या भी समझा जाने लगा है। इस आंदोलन का यह नारा अपील करता है, कि पुलिस के अभियान से पहले स्थानीय लोगों के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़कें और स्थानीय स्तर पर रोजगार उपलब्ध हो सके। इसलिए जमीन के मामले में उनके हक मिले, वहीं किसी भी परियोजना में सरकार स्थानीय लोगों को ही रोजगार दे और उसके लिए ठेके की प्रक्रिया में भी स्थानीय लोगों को तरजीह दें, तो कहीं हद तक उनकी विचारधाराओं में बदलाव आएगा। इस प्रकार की रणनीति से सरकार गांग के लोगों की जरुरतों को पूरा कर सकेंगी और सरकार के प्रति उनका विश्वास बढ़ेगा। असम में इसी प्रकार की रणनीति बनाकर उल्फा की समस्या का समाधान किया गया है, जहां अब उल्फा का कोई नामलेवा भी नहीं है। यदि देश में रेड कॉरिडोर पर ग्रीन कॉरिडोर बिछाना है तो लोगों की बुनियादी जरुरतों को चिन्हित करके उनका समाधान करने की प्राथमिकता होनी चाहिए। ---------------------- सामाजिक बदलाव की जरुरत प्रशांत दीक्षित, विशेषज्ञ----- छत्तीसगढ़ के बीजापुर में हुई नक्सली हमले ने इस बात की पुष्टि की है कि नक्सलवाद के खात्मे के लिए जारी सरकार के प्रयास पूरे नहीं है। मसलन या तो ऐसी घटनाओं को दबा दिया जाता है या फिर नक्सलवाद हटाने के लिए रणनीतिक योजनाओं का कार्यान्वयन समुचित रूप से नहीं हो रहा है। सरकार को यदि नक्सलवाद की समस्या से निपटना है तो उसके लिए पुलिस बल के अभियान से ज्यादा सामाजिक व्यवस्था में बदलाव के लिए प्राथमिकता देना होगा। खासतौर पर छत्तीसगढ़ से लगे बिहार, झारखंड, ओडिशा व महाराष्ट्र की पहाड़ियों से जुड़ी सीमाओं पर नक्सलवाद की जड़ पनपती है, जहां कमजोर तबके के लोगों का हकों के बहाने नक्सलवाद को समर्थन मिल रहा है। यही कारण है पिछले साढ़े तीन दशक से ज्यादा समय से भारत सरकार के नक्सलवाद के खिलाफ तमाम प्रयासों का वह असर नहीं डाल पा रहे हैं जिसकी जरुरत है। ऐसे में मेरा दृष्टिकोण है कि सरकार अपने संदेशों को आम लोगों तक पहुंचाए। नक्सलवाद आज भी मोआवादी प्रभावित इलाकों के विकास में रोड़ा बना हुआ है। हालांकि पिछले दिनों में भारत सरकार की कुछ योजनाओं के कारण नक्सलवाद का अस्तित्व कम होता नजर आ रहा है, लेकिन ताजा घटना को देखते हुए सरकार के लिए यह जरुरी है कि वह नक्सलवाद के खिलाफ अपने अभियान में सुरक्षा बलों तथा सामाजिक बदलाव यानि दोनों पक्षों को शामिल करें। इसका कारण है कि नक्सलवाद ने उद्योगों से काफी धन वसूली करके अपनी आर्थिक ताकत बढ़ाई हुई है और नक्सली गरीब तबके को हर कदम पर मदद कर उनका समर्थन हासिल कर रहे है और सरकार के लिए इस नेटवर्क को तोड़े बिना इस समस्या का समाधान करना संभव नहीं होगा। ---(ओ.पी. पाल से बातचीत पर आधारित)--- 11Apr-2021

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें