सोमवार, 3 मई 2021

चौपाल: हरियाणावी होली की परंपरा में में मिठास विलुप्त: मलिक

----आधुनिकता के प्रभाव ने खत्म की भाईचारे की भावनाएं ओ.पी. पाल---- होली केवल रंगों का त्योहार ही नहीं है, बल्कि सामाजिक सद्भावना और भाईचारे का पर्व है। सदियों ने नए साल का आगाज होने से पहले फागुन महीना शुरू होते ही गीतों के माध्यम से देवी-देवताओं का सुमिरन का दौर शुरू हो जाता था। बुजुर्ग, युवा व बच्चे एक अपनी संस्कृति और पंरपरा के अनुसार बिना किसी भेदभाव के होली के लिए मिलकर सहयोग करते थे। लेकिन आज इस आधुनिक और भौतिकवाद युग ने पुरानी परंपरा और संस्कृति के साथ मनाए जाने वाले होली पर्व की इन परंपराओं और रिती रिवाज को गुजरे जमाने के इतिहास में बंद कर दिया। हरियाणा के कलाकार रघुवेन्द्र मलिक ने होली के रंगो के बदरंग होने का कारण हरियाणवी संस्कृति भाईचारे की भावनाएं विलुप्त होना बताया। हरिभूमि संवाददाता से विशेष बातचीत के दौरान मलिक ने आज के जमाने की होलिका दहन और होली रंग में बुजुर्ग, महिलाएं और बच्चे अपने नेक रिश्तों के अनुसार होली का रंग लगाकर परंपराओं को निभाते थे और प्राकृतिक रंगों में अबीर-गुलाल लगाकर एक दूसरे को होली पर्व की बधाई देते थे। युवा और बच्चें इस पर्व पर बुजुर्गों के पैरों पर अबीर लगाकर आशीर्वाद लेते थे और एक-दूसरे को अबीर-गुलाल लगाकर पर्व की बधाई भी देते थे। उस वक्त लोगों के बीच आपसी भाईचारा दिखता था, लेकिन आज के दौर में होली पर्व पर लोग आपसी दुश्मनी का बदला लेने में जुटे हैं। जिसके कारण सभ्य लोग घर से बाहर भी निकलना नहीं चाहते हैं। और लोगों के बीच आपसी भाईचारा समाप्त होता दिख रहा है। कहने का तात्पर्य है कि आज फूहड़ गीत लोगों के सामने परोसे जा रहे हैं। इससे मारपीट और अपराधिक घटनाएं बढ़ने की वजह से सभ्य परिवार के लोग होली खेलने से परहेज करने लगे हैं। ---------होली के गीतों में भी मिठास लुप्त---------- इस आधुनिक युग में होली पर्व मनाने की हरियाणवी संस्कृति और परंपरा के साथ हरियाणवी होली गीतों का स्वरुप भी बदल रहा है। मसलन आज के दौर में फिल्मी गीतों पर आधारित बोल सुनाई देते हैं। जबकि हरियाणा में होली के त्योहार मनाने के लिए बुजुर्ग, युवा व बच्चों के साथ महिलाएं भी एक साथ पुरानी संस्कृति में समाए रहते थे और देवी-देवताओं पर आधारित होली गीत गाए जाते थे। हालांकि कुछ ग्रामीण इलाकों में आज भी परंपरागत गीत की धुन सुनाई पड़ती है। होली के गीतों के बारे में मलिक का कहना है कि हरियाणवी होली गीत 'गजबण होली खेलण आई' के बोल की आज धुन भी बदल गई है और वीडियों में तब्दील हो गया है एसे ही कई सारे गीत हैं जो होली के मौके पर भी हरियाणवी भाषा और लोकगीत के बदले सुर में सुनाई देते हैं। -------------------------- रघुवेन्द्र मलिक का संक्षिप्त परिचय ----बदलते परिवेश में पुरानी---- रोहतक निवासी रघुवेन्द्र मलिक वर्ष 1988 से हरियाणवी संस्कृति और परंपराओं जुड़ी पौराणिक वस्तुओं का देशभर के विभिन्न राज्यों से संकलन करते आ रहे हैं। उनका मकसद हरियाणवी संस्कृति को बचाए रखना है। हालांकि इससे पहले 1970 से ही उन्होने थियेटर और 1979 से नाटक और उसके बाद फिल्मों में अभिनय करना शुरू किया। सबसे पहले श्याम बेनेगल के साथ फिल्म में अभिनेता के रूप में काम शुरू किया,जिसके बाद हरियाणवी भाषा, संस्कृति, परंपरा, सामाजिक रीति रिवाज को प्रोत्साहन देने वाली दर्जनों फिल्मों में प्रमुख अभिनेता के रूप में भूमिका निभाई है। ------------------------------------- हुडदंग में बदल गई होली की मस्ती-----मीनू हुड्डा, कलाकार ------------ होली का नाम आते ही रंगों में सराबोर होकर मस्ती में ढोल नगाड़ों की धुन पर थिरकते हुए लोगों का एक परिदृश्य बनता है। गुजिया की मिठास लिए हुए, मर्यादाओं को सहेजे हुए, सब प्रकार की दुर्भावनाओं से इतर मन से जुड़े सम्बंध त्योहार की आभा में चार चाँद लगा देते हैं। लेकिन बदलते वक्त के साथ ये परिदृश्य भी काफी हद तक बदल गया है। आज होली के नाम पर नशे में धुत्त होकर युवा गलियों में हुड दंग मचाते फिरते हैं। ग्रामीण परिवेश में भी लोग होली के मौके को खुन्दक निकालने का जरिया बना लेते हैं। रंगों की जगह कीचड़ या गोबर का प्रयोग करते हैं। लेकिन ये इच्छित बदलाव नहीं हैं और निसंदेह इन्हें समाज और संस्कृति के लिए हितकारी नहीं कहा जा सकता। त्योहार का असल मजा तब है जब भीतर पनपी हुई दुर्भावनाओं का दहन कर मूल सच्चाई से खुद को अवगत कराया जाए और सौहार्द पूर्ण तरीके से जीवन जिया जाए। 29Mar-2021

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