गुरुवार, 28 अगस्त 2014

टूटने के कगार पर रालोद-कांग्रेस की दोस्ती!

उपचुनाव में रालोद ने ठुकराया कांग्रेस का प्रस्ताव
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
लोकसभा के चुनाव में करारी पराजय के बाद पहले ही राष्ट्रीय राजनीति में अपना वजूद गंवा चुकी राष्ट्रीय लोकदल की समाजवादी पार्टी के साथ बढ़ती नजदीकियों के चलते कांग्रेस के साथ गठबंधन नहीं भा रहा है, जिसका नतीजा है कि बिजनौर विधानसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव में इस गठजोड़ के तहत कांग्रेस अपना प्रत्याशी खड़ा करना चाहती थी, जिसे रालोद ने ठुकरा दिया है। दोनों दलों के बीच बढ़ती इस सियासी तल्खी से संकेत मिलने लगे हैं कि अब रालोद-कांग्रेस गठबंधन टूटना तय है। यही कारण है कि उपचुनाव में बिजनौर सीट पर रालोद व कांग्रेस के प्रत्याशी आमने सामने होंगे। राजनीति के जानकारों का मानना है कि रालोद की उत्तर प्रदेश की सियासत में अब सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी के साथ नजदीकियां बढ़ने की चर्चाएं हैं और संभावना है कि रालोद का गठबंधन अब सपा से होने जा रहा है?
उत्तर प्रदेश की दस विधानसभा सीटों पर 13 सितंबर को चुनाव होने हैं, जिसमें भाजपा विधायक भारतेंदु के लोकसभा सदस्य निर्वाचित होने के बाद रिक्त हुई बिजनौर विधानसभा सीट पर उप चुनाव में कांग्रेस ने अपना प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारने के लिए रालोद को प्रस्ताव दिया था, लेकिन रालोद ने कांग्रेस के इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया है, जिसके कारण कांग्रेस ने अपने बलबूते पर इस सीट पर अपना दावा ठोककर चुनाव मैदान मे होगी। रालोद व कांग्रेस की इस सियासी लड़ाई में ऐसी संभावनाएं भी बताई जा रही है कि इस सीट पर रालोद प्रत्याशी के मुकाबले समाजवादी पार्टी चुनाव मैदान में नहीं होगी, बल्कि रालोद का समर्थन करेगी। ऐसी स्थिति में रालोद-कांग्रेस गठबंधन को लेकर कांग्रेस पार्टी किसी भी वक्त इस गठबंधन को तोड़ने का ऐलान कर सकती है। कांग्रेस के सूत्रों की माने तो रालोद अब प्रदेश में सत्तारुढ़ समाजवादी पार्टी से बातचीत करके गठजोड़ की फिराक में है, ताकि रालोद प्रमुख चौधरी अजित सिंह स्वयं राज्यसभा में जा सकें और उनके पुत्र जयंत चौधरी को यूपी की अखिलेश सरकार में जगह मिल सके। इस सियासी लाभ को हासिल करने के लिए रालोद ने कांग्रेस के प्रस्ताव को ठुकराया है। गौरतलब है कि वर्ष 2012 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में रालोद व कांग्रेस ने मिलकर हिस्सा लिया था, जिसमें रालोद को दस सीटें मिली थी। उधर रालोद के सूत्रों का कहना है कि बिजनौर विधानसभा सीट पर उसका दावा इसलिए भी पुख्ता है कि बिजनौर संसदीय सीट 15वीं व चौदहवीं लोकसभा में रालोद के पास ही रही है, इसलिए कांग्रेस के प्रत्याशी को यह सीट देने का कोई औचित्य नहीं बनता। सियासत की इस जंग के बीच रालोद-कांग्रेस गठबंधन टूटना तय है और रालोद-सपा गठबंधन के नए अवतार में आने की ज्यादा संभावनाएं बनी हुई हैं।
एक तीर से दो निशाने
रालोद-सपा के गठबंधन की संभावनाओं में रालोद एक तीर से दो निशाने साधने की तैयारी में है। एक तो यह कि कांग्रेस के साथ गठबंधन करके यूपीए का हिस्सा बनने के बाद अजित सिंह को भले ही कैबिनेट में रहने का लाभ मिल गया हो, लेकिन राजनीतिक रूप से रालोद को नुकसान ही झेलना पड़ा है। लोकसभा चुनाव में रालोद-कांग्रेस का गठबंधन में रालोद का राष्ट्रीय वजूद खत्म होना इसकी पुष्टि भी कर चुका है। अब सियासी जमीन वापिस लाने के लिए रालोद के सामने सपा जैसे दल का साथ जरूरी है। सपा के साथ रहने से रालोद में शामिल हो चुके अमर सिंह की मुलायम के साथ वापसी भी तय हो सकती है, जिसकी भूमिका अमर सिंह स्वयं पिछले दिनो मुलायम सिंह यादव और शिवपाल यादव से मुलाकात करके कर चुके हैं। वहीं से रालोद-सपा की दोस्ती की पटकथा भी लिखी मानी जा रही है, जिसको अंतिम रूप मिलना शेष है।
बिहार की तर्ज पर सपा

बिहार के उप चुनाव के नतीजों के बाद उत्तर प्रदेश की सत्तारूढ़ सपा यूपी के उपचुनाव में भी उसी तरह के गठजोड़ का फार्मूला अपनाकर भाजपा को रोकने की जुगत में है, जिस प्रकार बिहार में जदयू व राजद ने मिलकर सियासी लाभ लिया है। इसलिए पश्चिमी उत्तर प्रदेश में रालोद की सियासी जमीन कुछ मजबूत है, जिसके लिए सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव भी रालोद के साथ उपचुनाव में बिहार जैसे नतीजों की उम्मीद लगाए बैठे हैं। यह भी तय माना जा रहा है कि बिजनौर सीट पर सपा अपना प्रत्याशी न उतारकर रालोद का समर्थन करेगी।
28Aug-2014

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