गुरुवार, 14 अगस्त 2014

न्यायिक नियुक्ति विधेयक पर लगी मुहर

राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग के गठन का एक पड़ाव पार
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
मोदी सरकार द्वारा न्यायिक सुधार के लिए की गई कवायद के तहत लोकसभा में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग विधेयक 2014 पारित हो गया है। अब सरकार इस लक्ष्य से दो कदम दूर है, जो राज्यसभा में पारित होने के बाद राष्टÑपति की अंतिम मुहर लगते ही हासिल कर लिया जाएगा और न्यायपालिका में जजों की नियुक्ति और अन्य प्रक्रियाओं के लिए यह कानून लागू हो जाएगा।
लोकसभा में मंगलवार को पेश किये गये राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग विधेयक 2014 के साथ संविधान के 99वें संशोधन विधेयक पर बुधवार को चर्चा पूरी हुई। राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग विधेयक 2014 को एक सरकारी संशोधन के साथ ध्वनिमत से पारित कर दिया गया। सदन ने इसके साथ ही 99वें संविधान संशोधन विधेयक को शून्य के मुकाबले 367 मतों से मंजूरी दी, जो प्रस्तावित आयोग को संवैधानिक दर्जा देगा। जजों की नियुक्ति से जुड़ा न्यायिक नियुक्ति बिल लोकसभा से पास हो गया है। दो तिहाई बहुमत से ये बिल लोकसभा में पास हुआ है। बिल के पक्ष में 367 वोट पड़े। खास बात रही कि कांग्रेस समेत दूसरे दलों ने भी न्यायिक नियुक्ति बिल का समर्थन किया है।
सरकार की बड़ी उपलब्धि
इससे पूर्व चर्चा का जवाब देते हुए केंद्रीय कानून मंत्री प्रसाद ने विधेयक पर चर्चा शुरू करते हुए कहा कि सरकार न्यायपालिका की स्वतंत्रता की पक्षधर है लेकिन संसद की गरिमा और सर्वोच्चता भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। यह जनता की आकांक्षाओं का प्रतिबिंब है। उन्होंने विधेयक लाने से पहले राजनीतिक दलों न्यायविदों आदि से व्यापक विचार-विमर्श किया। विधेयक न्यायपालिका की स्वायत्तता और गरिमा बरकरार रखते हुए उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति की निष्पक्ष प्रक्रिया लागू करने के लिए है। चर्चा के दौरान खास बात यह रही कि जजों की नियुक्ति में कॉलेजियम प्रणाली के स्थान पर इस नए काननू को लाने के लिए पक्ष हो या विपक्ष सभी ने एक सुर में केंद्र सरकार की तरफदारी की। चर्चा के दौरान सांसद यह कहने से भी नहीं चूके कि न्यायपालिका जब चाहती है तभी राजनीतिज्ञों पर आलोचनात्मक टिप्पणियां करती है। उनके पास भी न्यायपालिका की आलोचना के कई मुद्दे हैं, लेकिन वे न्यायपालिका का सम्मान करते हैं इसलिए टिप्पणी नहीं कर रहे। न्यायपालिका को भी यह बात समझनी चाहिए। हालांकि चर्चा के दौरान कुछ दलों के सदस्यों ने इस विधेयक में थोड़े बहुत बदलाव की सलाह दी, जिसमें कुछ ने हाईकोर्ट में नियुक्ति और स्थानांतरण के लिए अलग से राज्य न्यायिक नियुक्ति आयोग बनाने का सुझाव दिया। ऐसा सुझाव देने में अन्नाद्रमुक के सदस्य प्रमुख रहे। इससे पूर्व लोकसभा में इस न्यायिक नियुक्ति विधेयक पर चर्चा की शुरूआत कांग्रेस सांसद एव पूर्व कानून मंत्री वीरप्पा मोइली ने की थी। जिसमें तृणमूल कांग्रेस के कल्याणजी बनर्जी सपा के धर्मेन्द्र, अन्नाद्रमुक के थंबीदुरई, बीजद के भतृेहरि महताब, लोजपा के राम विलास पासवान के अलावा एनके प्रेमाचन्द्रन, असुद्दीन औवेसी, बी. विनोद कुमार, एसए संपथ, राजेश रंजन, डा. अरुण कुमार, अनुप्रिया पटेल, कौशलेन्द्र कुमार, सीएन जयदेवन, जोयस जार्ज, आर राधाकृष्ण आदि ने हिस्सा लिया और लगभग समूचे सदन ने न्यायिक सुधार की दिशा में सरकार के इस प्रयास का समर्थन किया।
कॉलेजियम के खिलाफ सदन एकजुट
कानून सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने जिस मजबूती से न्यायाधीशों की नियुक्ति की कॉलेजियम व्यवस्था की तरफदारी की थी, उससे भी ज्यादा जोरदार ढंग से इस व्यवस्था को खत्म करने के लिए लोकसभा में आवाज बुलंद की है। सांसदों ने एक सुर में न्यायाधीशों की नियुक्ति व्यवस्था बदलने के राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग विधेयक का समर्थन किया। हालांकि नियुक्ति प्रक्रिया को निष्पक्ष व पारदर्शी बनाने की बात करते हुए कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने यह जरूर कहा कि सरकार न्यायपालिका का बहुत सम्मान करती है और उसका इरादा न्यायपालिका के कार्यक्षेत्र ने दखल देने का नहीं है और न ही सरकार का इस पर न्यायपालिका के साथ कोई टकराव है।
दो दशक के प्रयास को लगे पंख
लोकसभा में चर्चा के जवाब में विधि मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि सरकार चाहती है कि न्यायपालिका का नैतिक सम्मान बढ़े उसकी गरिमा बरकरार रहे। व्यवस्था को बदलने के लिए पिछले 20 सालों से प्रयास हो रहा है। इसके बारे में सात आयोगों ने रिपोर्ट दी और छह कमेटियों की रिपोर्ट आई जिसमें विधि आयोग, प्रशासनिक सुधार आयोग की रिपोर्ट भी शामिल है जिसमें कोलेजियम व्यवस्था बदलने की बात कही गई थी। यहां तक कि कोलेजियम व्यवस्था का आदेश देने वाले न्यायाधीश जेएस वर्मा ने भी बाद में कहा था कि उनके मंतव्य को सही ढंग से नहीं समझा गया और अब इस पर पुनर्विचार की जरूरत है।
14ानह;2014

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