गुरुवार, 21 अगस्त 2014

सियासत की नाव में एक साथ सवार सपा-रालोद?

अजित-मुलायम के बीच दोस्ती की संभावनाएं बढ़ी
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
सोलहवीं लोकसभा के चुनाव में राष्ट्रीय राजनीति के परिदृश्य में अस्तित्व गंवा चुकी राष्ट्रीय लोकदल के प्रमुख चौधरी अजित सिंह ने किसी तरह से संसद तक पहुंचने की जुगत में पाला बदलने और गठबंधन की अपनी नीयती को फिर से हवा दी है, जो समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर एक ही सियासी नाव पर सवारी करने की फिराक में हैं। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि मुलायम सिंह यादव व अजित सिंह की दोस्ती से दोनों दलों को खासकर उत्तर प्रदेश में गंवा चुके सियासी जमीन पर राजनीतिक बिसात बिछाने में मदद मिल सकती है।
सूत्रों के अनुसार सपा और रालोद को एक नाव पर सवारी करने की पटकथा लोकसभा चुनाव में लोकदल में शामिल होकर अपनी किस्मत आजमाने वाले अमर सिंह ने लिखी है, जिन्होंने एक दिन पहले ही लखनऊ में सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव और राज्य में कबिना मंत्री शिवपाल यादव से मुलाकात की थी। हालांकि अमर सिंह की सपा के दिग्गजों से मुलाकात के मायने उनके सपा में वापसी आने की अटकलों के रूप में समझे जा रहे थे, लेकिन इस मुलाकात के पीछे सपा-रालोद को नजदीक लाने की परिणीति उजागर होती नजर आई। राजनीतिक गलियारे में इन चर्चाओं ने जोर पकड़ना शुरू कर दिया है कि राष्ट्रीय राजनीति में अपने अस्तित्व के लिए जोर आजमाइश कर रही रालोद और सपा अपनी सियासी जमीन बचाने के प्रयास में एक दूसरे से हाथ मिलाने की फिराक में हैं। इस दोस्ती के जरिए राजनीति में पाला बदलने में माहिर माने जाने वाले रालोद प्रमुख अजित सिंह को राज्यसभा तक पहुंचने का रास्ता मिलने की संभावनाएं ज्यादा बढ़ जाएंगी, वहीं रालोद का साथ मिलने से यूपी में सत्तारूढ़ सपा को भी आम चुनाव में गंवाएं जनसमर्थन पाने की उम्मीदे निश्चित रूप से महसूस होंगी। विशेषज्ञों की माने तो यदि सपा-रालोद की यह दोस्ती परवान चढ़ती है तो चौधरी अजित सिंह के साथ-साथ अमर सिंह की राज्यसभा में सीट पुख्ता होने की संभावनाएं भी बनी रहेंगी। ऐसी भी चर्चाएं राजनीतिक गलियारों में तैर रही हैं कि सपा-रालोद की इस सियासी दोस्ती में रालोद का सपा के साथ विलय भी हो सकता है, हालांकि रालोद के नजदीकी सूत्रों की माने तो रालोद किसी दल के साथ विलय करने की शर्त नहीं मानेगा। राजनीति में वैसे तो कुछ भी घटनाएं संभव हैं, लेकिन रालोद का विलय करने के लिए कांग्रेस के प्रयास भी विफल रहे थे और यूपी में राजनीतिक लाभ हासिल करने के लिए कांग्रेस को रालोद को यूपीए का हिस्सा बनाना पड़ा था, जिसका हालांकि कांग्रेस को न तो यूपी के वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव और न ही सोलहवीं लोकसभा में सियासी लाभ हासिल हो सका। हां इतना जरूर था कि चौधरी अजित सिंह को यूपीए का हिस्सा बनकर केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह मिल गई थी।
रालोद को फायदा!

हालांकि सपा के साथ गठबंधन या विलय की इन खबरों को रालोद के प्रवक्ता अनिल दूबे ने महज अफवाह करार दिया है, लेकिन राजनीतिक मामलों के जानकारों की माने तो सपा भी अमर सिंह की पार्टी में वापसी चाहते हैं, भले ही वह स्वयं सपा में आए या समूचे रालोद को लेकर सपा के साथ इस दोस्ती को परवान चढ़ाएं। बहरहाल यदि सपा व रालोद की दोस्ती राजनीति की इस कसौटी पर खरी उतरती है तो इसमें रालोद प्रमुख अजित सिंह का राज्यसभा में जाना तय हो जाएगा और उनके साहबजादे जयंत चौधरी यूपी की सपा सरकार में शामिल हो सकते हैं। इस सियासी अटकलों में दोनों दलों को लेकर चल रही चर्चाएं हकीकत में बदलेंगी या नहीं यह तो अभी भविष्य के गर्भ में हैं।
21Aug-2014

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