रविवार, 17 अगस्त 2014

नए कानूनों से होगा बच्चों का संरक्षण

मोदी सरकार ने शुरू की नए कानून बनाने की कवायद
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
देश में सुरक्षा को लेकर चल रही बहस के बीच अब बच्चों को भी संरक्षण देने वाले कानून को गंभीरता से लागू करने की मोदी सरकार ने कवायद शुरू कर दी है। सरकार ने पुराने कानून में आमूलचूल संशोधन करने के लिए सरकार ने नये सख्त कानून का मसौदा भी तैयार कर लिया है, जिसे जल्द ही संसद में पेश किया जा सकता है। संसद में पास होते ही भारत विश्व के उन देशों में शामिल हो जाएगा जहां बच्चों को शारीरिक दंड देने पर प्रतिबंध है।
देश में बच्चों के साथ होने वाले अपराध या हिंसा के लिए पुराने कानून कारगर साबित नहीं हो पा रहे हैं, जिसमें परिजनों, अभिभावकों से ज्यादा स्कूलों में अध्यापकों की बच्चों की निर्मम पिटाई करने के मामले निरंतर बढ़ रहे हैं। सूत्रों के अनुसार सरकार ने जुवेनाइल जस्टिस एक्ट-2000 के स्थान पर नए कानून के रूप में जुवेनाइल जस्टिस (केयर ऐंड प्रोटेक्शन आॅफ चिल्ड्रन) बिल-2014 को संसद में पेश करने की तैयारी कर ली है। इस नए कानून में किये जा रहे प्रावधानों के अनुसार बच्चों के खिलाफ ऐसा व्यवहार करने वालों को भविष्य में पांच साल तक की सजा हो सकती है। इस मामले में हाल ही में केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी ने लोकसभा में भी उठाया और सरकार द्वारा तैयार किये जा रहे मसौदे की जानकारी सदन को दी। सरकार का कहना है कि नए कानूनों को लागू करने का मकसद बच्चों के अधिकारों और संरक्षण को बरकरार रखना है। यह भी बताया गया है कि नए कानूनों को इंटरनैशनल कानूनों के मद्देनजर तैयार किया गया है। गौरतलब है कि विदेशों में अपने अधिकारों के प्रति बच्चे जागरूक हैं और उन कानूनों के तहत वह अपनी सुरक्षा करते आ रहे हैं। सरकार नये कानून के प्रावधानों के तहत बच्चों की पिटाई और रैगिंग जैसी यातनाओं या शारीरिक दंड को अपराध माना गया है। इस मसौदे को पहले केंद्रीय कैबिनेट में भेजकर मंजूरी ली जाएगी और उसके बाद इस विधेयक को संसद में पेश किया जाएगा। कानूनी मसौदे के मुताबिक पहली बार पहली बार इस अपराध के दोषी होने पर जुर्माने के साथ छह महीने और दूसरी बार में तीन से किया जा सकता है। दूसरे बार में तीन से पांच साल की सजा का प्रावधान होगा। नए कानून के प्रावधान के अनुसार यदि शारीरिक दंड देने से बच्चों को कोई मानसिक अवसाद या गंभीर आघात पहुंचता है तो दोषी को सश्रम तीन साल के कारावास और पचास हजार का जुमार्ना भुगतना पड़ेगा। इस सजा को पांच साल के लिए बढ़ाया जा सकता है और जुर्माने की राशि को एक लाख रुपए किया जा सकता है। संसद में यदि यह नया कानून पास हो जाता है तो भारत भी दुनिया के उन चालीस देशों में शामिल हो जाएगा, जहां बच्चों को शारीरिक दंड देना मना है। इस कानून में सरकार शारीरिक दंड शब्द में किसी व्यक्ति की ओर से दी जाने वाले जुबानी प्रताड़ना को भी शामिल किया जा रहा है।
रैंगिंग पर भी लगेगी लगाम
सरकार के नए कानून के प्रावधानों के अनुसार कालेजो व विश्वविद्यालयों या अन्य उच्च शैक्षणिक संस्थानों ने रैंगिंग करने वालों पर भी शिकंजा कसना तय है, जिसके लिए मोदी सरकार ने सख्त कानून पर ही विचार नहीं किया, बल्कि कड़े सजा के प्रावधान के साथ एक नए कानून बनाने के लिए मसौदा तैयार कर लिया है। नए कानून में रैगिंग को भी अपराध मानते हुए कहा गया है कि अगर इससे किसी को मानसिक या शारीरिक चोट पहुंचती है तो दोषी को तीन साल की सजा का प्रावधान किया गया है। रैगिंग के लिए नए प्रावधान में ने केवल छात्रों को बल्कि कॉलेज मैनेजमेंट को भी जवाबदेह बनाया गया है। मसौदे में किये गये प्रावधान के अनुसार शैक्षणिक संस्थानों में रैगिंग करने के दोषियों को भी कम से कम तीन साल की जेल की सजा का प्रावधान किया गया है।
04Aug-2014

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