शनिवार, 23 अगस्त 2014

लोकसभा में विपक्ष के नेता पर फंसे पेंच!

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी से खिली कांग्रेस की बांछे
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
लोकसभा में प्रतिपक्ष नेता के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट की दलील के बाद और पेंच फंसते नजर आने लगे हैं, जिसमें लोकसभा अध्यक्ष नियमों को तोड़ना नहीं चाहती और कांग्रेस इस पद को हासिल करने में ऐडी से चोटी तक के जोर लगा रहा है तो सुप्रीम कोर्ट ने लोकपाल की नियुक्ति से जुड़े एक मामले के बहाने विपक्ष के नेता को लेकर अपनी दलील दी। इसके बाद कांग्रेस की दरअसल कांग्रेस की लोकसभा में विपक्ष के नेता के पद को लेकर अदालत में पहुंची याचिका पर सुनवाई से इंकार कर दिया था, लेकिन शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने लोकपाल की नियुक्ति से जुड़ी एक याचिका की सुनवाई के दौरान लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता को लेकर टिप्पणी करके इस मामले में पेंच फंसा दिया है। इसका कारण है कि लोकसभा अध्यक्ष श्रीमती सुमित्रा महाजन संसदीय नियमों में बंधे होने का हवाला देकर पहले ही नेता विपख बनाने से साफ इंकार करते हुए कहा था कि वह नियमों के दायरे से बाहर नहीं जा सकती। हालांकि लोकसभा अध्यक्ष ने विपक्ष के नेता के लिए किसी दल द्वारा दस प्रतिशत सीटे हासिल करने वाले नियम में संशोधन करने के विकल्प की बात भी कही थी, जिसके लिए संसद में प्रस्ताव पारित होना जरूरी है और इसके लिए उन्होंने एक समिति का गठन करने जैसे प्रस्ताव के भी संकेत दिये थे। सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी कि लोकसभा में नेता विपक्ष का पद लोकतंत्र का एक अहम हिस्सा है, इस बात से लोकसभा अध्यक्ष और केंद्र सरकार भी इत्तेफाक रखती आ रही है, लेकिन संसदीय नियमों के बाहर जाकर किसी दल को यह पद देने पर भी सवाल खड़े होना स्वाभाविक है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने कोई व्यवस्था नहीं दी लेकिन यह टिप्पणी करते हुए यहां तक कहा कि सिर्फ कुछ एक नियम के आधार पर इस पद को दरकिनार भी नहीं किया जा सकता, क्योंकि लोकपाल की नियुक्ति के लिए चयन समिति में नेता विपक्ष को भी शामिल करने का प्रावधान संसद में ही पारित किया जा चुका है। यह भी गौरतलब है कि मोदी सरकार के सामने लोकपाल की नियुक्ति करने की जिम्मेदारी भी है और उसके लिए चयन समिति के नियमों को भी संविधान से अलग नहीं किया जा सकता। हालांकि इससे पहले लोकसभा में विपक्ष के नेता को लेकर अटॉर्नी जनरल की राय ली गई जिसने मावलंकर नियम के मुताबिक नेता विपख के लिए उसके सदन में दस प्रतिशत सांसदों का संख्या बल होना जरूरी है। इस तरह मोदी सरकार के लिए लोकपाल की नियुक्ति के लिए चयन समिति और लोकसभा में प्रतिपक्ष नेता के पद को लेकर फंसे पेंच से बाहर आने के लिए विकल्पों की चुनौतियों से निपटने के लिए बीच का रास्ता तलाशना पड़ सकता है।
मुद्दे पर फिर गरमाई राजनीति
लोकपाल की नियुक्ति से जुड़े मामले के बहाने ही सही, लेकिन सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी से विपक्ष के नेता का पद हासिल करने के लिए मशक् कत करती आ रही कांग्रेस की बांछे जरूर खिली नजर आई। कांग्रेस के नेता राजीव शुक्ला ने कहा कि सरकार को लोकसभा में नेता विपक्ष का दर्जा देने के लिए आगे आकर पहल करनी चाहिए। कांग्रेस प्रवक्ता आनंद शर्मा ने कहा कि उच्चतम न्यायालय की टिप्पणी वास्तव में उस बात की पुष्टि करती है जो कांग्रेस और यूपीए कहती आ रही है। लोकसभा अध्यक्ष का निर्णय कानून की पूरी उपेक्षा है और यह भाजपा नेतृत्व वाली सरकार के पक्षपातपूर्ण एजेंडे से पूरी तरह प्रेरित और रंगा हुआ लगता है। वहीं जदयू प्रमुख शरद यादव ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के सुझाव को जायज ठहराते हुए कहा कि देश भी यही सोच रहा है,लेकिन भाजपा अपने पुराने फैसले पर ही अड़िग है। जबकि भाजपा के प्रवक्ता प्रवक्ता नलिन कोहली ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट जब सरकार से जवाब मांगेगी तो उसका तर्क और नियमों के साथ जवाब दिया जाएगा। भाजपा का कहना है कि विपक्षी दल के पास जरूरी दस फीसदी सीटें नहीं हैं जिसका मतलब है कि एलओपी पद पर दावे के लिए उसके पास 55 सीटें होनी चाहिए। हालांकि लोकसभा की इस परंपरा व नियमों के आधार पर फैसला लेने का अधिकार लोकसभा अध्यक्ष को है।
23Aug-2014

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