बुधवार, 27 अगस्त 2014

धार्मिक स्थलों पर कब थमेगी मौत की भगदड़!

प्रशासनिक इंतजामों को लेकर हमेशा उठते रहे सवाल
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
चित्रकूट में सोमवती अमावस्या पर कामदगिरि पर्वत की परिक्रमा के दौरान बिजली का तार टूटने की अफवाह से मची भगदड़ की मौत में फिर दस श्रद्धालुओं को अपने प्राणों की आहुति देनी पड़ी। देश में धार्मिक स्थलों पर मौत की भगदड़ वाली यह कोई पहली घटना नहीं है, इससे पहले भी दर्जनों घटनाओं में हजारों लोग एक छोटी अफवाह की सुगबुगहाट होने के कारण अपनी जान गंवा चुके हैं। ऐसे में सवाल उठते हैं कि केंद्र और राज्य सरकारें ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए पुख्ता इंतजाम के दावों के साथ एक-दूसरे पर ठींकरा फोडते ही नजर आए हैं, लेकिन धार्मिक स्थलों पर ऐसी दर्दनाक घटनाओं को रोकने के ठोस उपाय तलाशने के नतीजे तक नहीं पहुंचा जा सका है।
देश में धार्मिक पर्वो के दौरान श्रद्धालुओं की उमड़ती भीड़ को नियंत्रित करने के लिए शासन और प्रशासन की व्यवस्थाओं पर भी ऐसी घटनाएं सवालियां निशान खड़ी करती रही हैं। उत्तर प्रदेश तथा मध्य प्रदेश की सीमा पर चित्रकूट में कामदगिरी पर्वत की परिक्रमा करने के लिए सोमवती अमावस्या पर देश के विभिन्न राज्यों से से लाखों श्रद्धालु आते हैं। सूत्रों के अनुसार यहां भी एक छोटी सी अफवाह ही भगड़द का कारण बनी। दरअसल मान्यता है यहां पर्वत की लेटकर परिक्रमा करने वाले का पैर किसी को नहीं छूना चाहिये, इस कारण लेटकर परिक्रमा करने वालों को कई लोग घेरे में लिये हुए होते हैं, लेकिन कामतानाथ द्वितीय मुखारबिंद मंदिर के सामने हवनकुंड में लेटकर परिक्रमा कर रहे एक श्रद्धालु का पैर छू गया और उसने शोर मचाया तो किसी ने बिजली का तार टूटने की बात कही, तो वह हादसे का कारण बना। ऐसी ही स्थिति अभी तक भगदड़ की घटनाओं में हादसे का कारण रही है, जिसे अनेक प्रयासों से भी अभी तक नहीं रोका जा सका है। सवाल इस बात का है कि धार्मिक आस्था के सबसे बड़े देश में केंद्र या राज्य सरकारों ने ऐसे धार्मिक आयोजन के मौके पर हुई पिछली भगदड़ के हादसों से अभी तक सबक क्यों नहीं लिया है। जानकार सूत्रों की माने तो वर्ष 1954 के प्रयाग कुंभ के दौरान मची भगदड़ देश का सबसे बड़ा हादसा था जिसमें 800 से ज्यादा श्रद्धालुओं को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था। सबसे बड़ा सवाल है कि धार्मिक आयोजनो के दौरान होने वाले इन हादसों से देश कब सबक लेगा।
तीन दशक में भगदड़ से हुए प्रमुख हादसे:-
18 जनवरी 2014 को मुंबई में सैयदना के अंतिम दर्शन के लिए उमड़ी भीड़ में भगदड़ में 18 लोग मरे।
13 अक्टूबर 2013 को मध्य प्रदेश के दतिया के रतनगढ़ मंदिर में पुल टूटने की अफवाह से मची भगदड़ 115 मरे।
10 फरवरी 2013 को विश्व प्रसिद्ध कुम्भ मेले के दौरान इलाहाबाद में रेलवे स्टेशन पर मची भगदड़ में 36 लोग मारे गए।
19 नवंबर 2012 को पटना में छठ पूजा के दौरान अदालतगंज घाट पर धक्का-मुक्की के कारण कम से कम 18 लोग मारे गए।
14 जनवरी 2011 को केरल में सबरीमाला मंदिर से लौटते हुए मची भगदड़ में 102 तीर्थयात्री मारे गए।
16 मई 2010 को नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर अफवाह के कारण भगदड़ के कारण एक दर्जन की मौत।
30 सितंबर 2008 को राजस्थान के जोधपुर के प्रसिद्ध महेन्द्रगढ़ किले के अंदर स्थित चामुंडा देवी मंदिर में भगदड़ में 220 लोग मरे।
03 अगस्त 2008 को हिमाचल प्रदेश में पहाड़ी पर बने नंदादेवी मंदिर में भगदड़ में 145 लोग मारे गए।
14 अक्टूबर 2007 को गुजरात के पंचमहल में 12 लोग मरे।
03 अक्टूबर 2007 को उडीसा के पुरी के जगन्नाथ मंदिर में चार लोग मरे।
03 अक्टूबर 2007 को वाराणसी में जतिया पर्व के दौरान मुगलसराय रेलवे स्टेशन भगदड़ मचने से 14 महिला मरी।
25 जनवरी 2005 को महाराष्ट्र के मंधर देवी के मंदिर में मची भगदड़ में 300 से ज्यादा तीर्थयात्री मारे गए।
13 नवंबर 2004 को नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर भगदड़ में कई लोग मरे।
12 अप्रैल 2004 को लखनऊ में लालजी टंडन के जन्मदिन पर साड़ी वितरण समारोह में 21 महिलाएं मरी।
27 अगस्त 2003 को महाराष्ट्र में नासिक कुंभ मेले के दौरान 39 लोगों की मौत हो गई थी।
2001 में मध्य प्रदेश में एक मंदिर में भगदड़ मची जिसमें 13 लोगों की मौत हो गई।
1999 में केरल में एक हिंदू धार्मिक स्थल पर मची भगदड़ में 51 लोग मारे गए।
1989 में हरिद्वार में कुंभ मेले मची भगदड़ से करीब 350 लोग इसमें मारे गए।
1986 में हरिद्वार में मची भगदड़ में 50 लोग मारे गए।
1984 में हरिद्वार में भगदड़ की एक बड़ी घटना में लगभग 200 लोग मरे।
26Aug-2014

भारत में धार्मिक आयोजनों पर भगदड का लंबा इतिहास

विजयादशमी के दिन पटना के गांधी मैदान में मची भगदड़ में तीन दर्जन से ज्यादा लोगों की मौत ने एक बार फिर महत्वपूर्ण व बड़े धार्मिक आयोजनों को लेकर बदइंतजामी व आधी-अधूरी तैयारी का सच उजागर कर दिया.
धार्मिक आयोजनों को लेकर अपार श्रद्धा वाले देश भारत में शायद ही कोई ऐसा साल बितता हो, जब ऐसे  एक-दो बड़े हादसे नहीं होते हों. अफसोस कि पूर्व में देश के अलग-अलग राज्यों में हुए कई हादसों की जांच के लिए गठित जांच रिपोर्टों को भी सरकार ने ठंडे बस्ते में डाल दिया और उस पर विधानसभा के पटल पर या सार्वजनिक बहस होने की स्थिति उत्पन्न नहीं होने दी.
कई बार कुछ राज्यों में पूर्व की ऐसी जांच रिपोर्टें तब दबाव में सार्वजनिक हुईं जब राज्य में एक और हादसा हो गया. ऐसी दुर्घटनाओं का इतिहास यह भी बताता है कि राज्य सरकार द्वारा नियुक्त किये गये जांच आयोग या समिति ने कई बार तो इस मामले में अफसरों व सरकार की कोई जिम्मेवारी भी तय नहीं की. तब, ऐसी घटनाओं के लिए जिम्मेवार कौन है? बहरहाल, हम यहां कुछ ऐसे ही बड़े हादसों के बारे में जानते हैं -
1996 में हरिद्वार में सोमवती अमावस्या के मौके पर दुर्घटना में 30 श्रद्धालुओं की मौत हो गयी. 15 अगस्त 1996 को हर की पौड़ी पर हुई यह दुर्घटना उस समय हुई जब अहले सुबह 20 हजार श्रद्धालु वहां जुट गये थे.
1996 में ही 15 जुलाई को मध्यप्रदेश के उज्जैन में स्थित प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर के दर्शन के लिए उमड़ी भीड़ में 35 लोग उस समय मर गये थे, जब कुछ वीआइपी की पूजा के लिए सारे दरवाजे बंद कर दिये गये थे.  
दुख की बात यह कि वे वीआइपी ऐसे थे, जिन पर उस मंदिर में भीड नियंत्रण की ही जिम्मेवारी थी. मसलन उज्जैन के कमिश्नर पीएस तोमर व मंदिर प्रशासक जेएन महाधिक के पूजा करने के समय ही यह दुर्घटना हुई थी. वे लोग जब मंदिर में पूजा कर रहे थे, तभी कुछ लोग श्रद्धालु फिसल गये, जिस कारण भगदड़ मच गयी और बड़ा हादसा हो गया.
25 जनवरी 2005 को महाराष्ट्र के सतारा जिले के मंधार देवी मंदिर में हुए हादसे 291 लोग मर गये. यह हादसा वहां सीढि़यों पर नारियल फोड़ने से हुई. फिसलन के कारण मची भगदड़ के कारण हुआ था. पौष पूर्णिमा के अवसर पर वहां एक दिन का बड़ा आयोजन होता है, जिसमें लाखों की संख्या में श्रद्धालु जुटते हैं.
तीन अगस्त 2008 में हिमाचल प्रदेश में जमीन धंसने की अफवाह के बाद मची भगदड़ में 146 लोग मारे गये थे. जबकि 150 लोग बुरी तरह घायल हो गये थे. उस दुर्घटना में गौरव कुमार सैनी नामक एक 13 साल के लड़के ने 50-60 लोगों की
जान बचाकर अद्भुत वीरता दिखायी है. उसे वीरता के लिए 2009 में भारत सरकार का सर्वश्रेष्ठ सम्मान भारत अवार्ड मिला था. यहां 1982 में भी ऐसा हादसा हुआ था और उसमें 140 श्रद्धालु मरे थे. इस घटना के बाद वहां की व्यवस्था कड़ी की गयी.
मंदिर में लोगों को सीमित संख्या में प्रवेश देने की व्यवस्था की गयी है. मध्यप्रदेश के दतिया जिले के रतनगढ़ मंदिर में पिछले साल यानी 2013 में नवरात्रि के अवसर पर मची भगदड़ में 115 लोगों की मौत हो गयी थी, जबकि 110 लोग बुरी तरह घायल हो गये थे. यह दुर्घटना भी अफवाह के कारण हुई थी.
दरअसल मंदिर जाने के लिए जिस पुल से गुजरना होता है, उसकी रेलिंग कुछ जगह से टूट गयी थी, जो किसी बड़े हादसे का तत्काल कारण नहीं बन सकती थी. लेकिन लोगों में अफवाह फैल गयी कि पुल ही पूरी तरह से टूट गया है. इसके बाद भगदड़ मच गयी और 115 लोगों को जान गंवानी पड़ी.
2006 में भी इस मंदिर में दर्शन करने आये 47 श्रद्धालु नदी के पानी में बह गये थे. श्रद्धालु दर्शन के लिए मंदिर जा रहे थे, तभी अचानक बिना पूर्व सूचना के मंदिर से लगे सिंध नदी में पानी छोड़ दिया गया था, जिसमें 47 श्रद्धालु बह गये थे. इसकी जांच के लिए बने जांच आयोग की रिपोर्ट सार्वजनिक तभी की गयी, जब फिर पिछले साल दुर्घटना हो गयी.
नवरात्रि के समय ही 30 सितंबर 2008 को जोधपुर के मेहरानगढ़ किले में स्थित चामुंडा देवी के मंदिर में दर्शन करने गये 224 श्रद्धालु भी दुर्घटना में  मारे गये थे और 425 बुरी तरह घायल हो गये थे. नवरात्र के पहले ही दिन देवी के दर्शन के लिए 25 हजार की संख्या में मंदिर परिसर में जमा हो गये थे. आठ हजार श्रद्धालु तो यहां रात से ही जुटे हुए थे.
वहां गेट खुलने के बाद दर्शन आरंभ होने के बाद अचानक बिजली चली गयी और उसके बाद टेंट गिर गया, जिस कारण भगदड़ मच गयी. हालांकि उस समय एक अंगरेजी न्यूज चैनल को कुछ श्रद्धालुओं ने बातचीत में बताया था कि मंदिर परिसर में बम होने की अफवाह के कारण भयभीत लोगों में भगदड मची.
इस मामले में जांच रिपोर्ट 2011 को आ गयी थी. पर, यह पिछले साल जारी हुई. 18 फरवरी 1992 में तमिलनाडु के कुभकोणम में महामहम उत्सव में अन्नाद्रमुक नेता व तत्कालीन मुख्यमंत्री जे जयललिता के आने पर उन्हें देखने के लिए भगदड़ मच गयी, जिसमें 50 श्रद्धालुओं को जान गंवानी पडी, जबकि 74 बुरी तरह घायल हो गये.
10 फरवरी 20013 को इलाहाबाद कुंभ मेले के दौरान इलाहाबाद स्टेशन पर हुए हादसे में 36 लोगों की मौत हो गयी थी, जबकि 39 लोग बुरी तरह घायल हो गये थे. मरने वालों में अधिकतर महिलाएं व बच्चे थे. यह दुर्घटना भी रेलवे पुल की रेलिंग क्षतिग्रस्त होने के बाद उत्पन्न भय से मची भगदड़ के कारण हुई.
इसी तरह हाल के सालों में बिहार आ रहे छठपर्व के श्रद्धालु भी नयी दिल्ली स्टेशन पर अत्यधिक भीड़ व भगदड़ के कारण मारे गये हैं. ऐसे और भी वाकये हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि कैसे इन हादसों को रोका जाये और सरकार व प्रशासन कैसे उनको लेकर अधिक संवेदनशील हों.

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