मंगलवार, 19 अगस्त 2014

हवाई अड्डो की आर्थिक सेहत सुधारना चुनौती!

कार्गो गतिविधियों को बढ़ाने की योजना
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
लगातार आर्थिक तंगी से जूझ रहे भारतीय विमानन क्षेत्र को घाटे से उबारने के लिए हालांकि मोदी सरकार ने ठोस रणनीतियों का खाका तैयार किया है,लेकिन फिलहाल देश के एक नहीं, बल्कि सात दर्जन से ज्यादा हवाई अड्डे घाटा सहने को मजबूर हैं। हालांकि केंद्र सरकार ने विमानन क्षेत्र में एफडीआई लागू करके देश के हवाई अड्डों व विमानन कंपनियों को लाभ के दायरे में लाने की योजना को अंजाम दिया हुआ है।
केंद्र में आई राजग सरकार ने देश के विमानन क्षेत्र की आर्थिक सुधार करने की दिशा में ठोस कदम उठाए हैं, जिसमें मोदी सरकार के आने के बाद सरकार की नीतियों के आधार पर डीजीसीए ने विमानन कंपनियों को सुधार की दिशा में दिशा निर्देश भी जारी किये, इनमें सरकार ने हवाई यात्रियों की सुरक्षा और संरक्षा के साथ-साथ उनकी सुविधाओं को प्राथमिकता पर लिया है। नागर विमानन मंत्रालय के अनुसार राजग सरकार घाटे में चल रहे इन हवाई अड्डों की आर्थिक सेहत सुधारने की योजना पर काम कर रही है, जिसमें इन अड्डों पर कार्गो गतिविधियों को बढ़ाने की योजना तैयार की गई। हवाई यात्रा किराए की दरों में संशोधन के साथ ही ठेका प्रणाली में भी गैर विमानन राजस्व में बढ़ोतरी करने के प्रयासों को तेज कर दिया गया है। सूत्रों के अनुसार सरकार ने यातायात संचालित न होने से नुकसान झेल रहे ऐसे कई हवाई अड्डो के रख-रखाव को बेहतर बनाकर वहां फलाइंग विद्यालयों को प्रचालन की अनुमति देन पर विचार विमर्श शुरू कर दिया है। इस तरह की योजना से सभी अड्डों पर राजस्व अर्जित करके उन्हें आर्थिक तंगी से उबारा जा सकेगा।
अरबों की रकम में दबे एयरपोर्ट
विमानन मंत्रालय के अनुसार फिलहाल देश में राज्यों की राजधानी स्थिति हवाई अड्डो समेत करीब 93 हवाई अड्डे ऐसे हैं जिनका वित्तीय घाटा लगातार बढ़ता जा रहा है। नागर विमानन मंत्रालय के अनुसार पिछले तीन साल में दिल्ली के सफदरजंग हवाई अड्डा 96 करोड़ के घाटे समेत तेरह राज्यों की राजधानी के हवाई अड्डो की आर्थिक सेहत लगातार खराब चल रही है, जिसमें खासकर मध्य प्रदेश में भोपाल 130 करोड़, उत्तर प्रदेश में लखनऊ सौ करोड़, राजस्थान में जयपुर 74 करोड़, कर्नाटक में बेंगलूर में करीब 100 करोड़, बिहार में पटना 75 करोड़, आंध्र प्रदेश में हैदराबाद 80 करोड़, असम में गुवाहाटी सौ करोड़, झारखंड में रांची 75 करोड़, उत्तराखंड़ में देहरादून 85 करोड़, चंडीगढ़ में साढ़े 23.5 करोड़, जम्मू कश्मीर की ग्रीष्मकालीन राजधानी श्रीनगर और शीतकालीन राजधानी जम्मू सौ करोड़ रुपये का घाटा दर्ज किया गया है। इनके अलावा हिमाचल प्रदेश में शिमला, ओडिशा में भुवनेश्वर,छत्तीसगढ़ में रायपुर सहित कई राज्यों की राजधानियों में संचालित हवाई अड्डे पिछले तीन सालों से करोड़ों रुपये का आर्थिक घाटा झेलते आ रहे हैं। इसका कारण यह भी है कि इन हवाई अडडों पर प्रचालन की कमी केकारण भी नुकसान उठाना पड़ रहा है। इसी प्रकार अन्य राज्यों की राजधानी के हवाई अड्डो के अलावा ज्यादातर हवाई अड्डों की आर्थिक हालत खराब है।
विमानन कंपनियां भी बीमार
नागर विमानन मंत्रालय के सूत्रों की माने तो सरकार के उपक्रम के रूप में एयर इंडिया ने घाटे को कम करने का दावा किया है, जिसका वर्ष 2012-13 में 5490.16 करोड़ का घाटा कम होकर वर्ष 2013-14 में 5388.82 करोड़ रुपये दर्ज किया गया है। इसके अलावा वर्ष 2012-13 के दौरान नैसिल 9866.5 करोड़, एलायंस एयर 1729.5 करोड़ के अलावा निजी विमानन कंपनियां जेट लाइट 2468 करोड़, स्पाईस जेट 2798.2 करोड़ रुपये की आर्थिक तंगी झेल रही हैं। इसके अलावा हालांकि पवन हंस लि. ने वित्तीय वर्ष 2011-12 में 10.35 करोड़ रुपये के आर्थिक नुकसान का सामने करने के बावजूद वर्ष 2012-13 में 11.70 करोड़ रुपये का शुद्ध लाभ अर्जित किया है।
19Aug-2014

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