शनिवार, 9 अगस्त 2014

बीमा विधेयक पर बढ़ी सरकार की मुश्किलें!

प्रवर समिति को भेजने की मांग पर अड़ा विपक्ष
ऐनवक्त पर टाली गई सर्वदलीय बैठक
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
केंद्र सरकार उच्च सदन में बीमा विधेयक को कांग्रेस को साथ लेने के प्रयास में है, लेकिन कांग्रेस के साथ विपक्षी दल इस विधेयक को प्रवर समिति को सौंपने की मांग पर अड़िग हैं, इससे इस विधेयक को लेकर सरकार की मुश्किलें बढ़ती जा रही है। यही कारण है कि इस विधेयक पर आमसहमति बनाने के लिए बुधवार को होने वाली सर्वदलीय बैठक को भी टाल दिया गया है।
राज्यसभा में केंद्र सरकार बीमा क्षेत्र में एफडीआई का दायरा बढ़ाने की योजना के तहत संशोधनों के जरिए बीमा विधेयक को पारित कराने के लिए उलझे हुए पेंच को कांग्रेस के साथ मिलकर हल करने के प्रयास में है। लेकिन कांग्रेस और उसके साथ अन्य विपक्षी दल इस विधेयक को प्रवर समिति के हवाले करने की मांग पर अड़िग है इसके लिए नौ दलों ने राज्यसभा के सभापति हामिद अंसारी को पहले ही नोटिस दे रखा है। हालांकि सरकार ने अपने प्रयासों को अभी ढीला नहीं छोड़ा है जिसके लिए कांग्रेस के नेताओं को यह बताने का प्रयास है कि वह वह प्रत्यक्ष विदेशी निवेश यानि एफडीआई सीमा को छोड़कर कोई संशोधन सुझाएं, सरकार उसे उसमें शामिल करने को तैयार है। इसी प्रयास के अधर में लटकने का कारण सर्वदलीय बैठक को स्थगित करना बताया जा रहा है। हालांकि सरकार अन्य छोटे दलों के संपर्क में भी है जो राज्यसभा में सरकार के इस विधेयक को पारित कराने की क्षमता रखते हैं उनमें खासकर बसपा और सपा ऐसे दल है जिनका साथ मिलते ही सरकार को कांग्रेस की जरूरत भी नहीं पड़ेगी, क्योंकि कांग्रेस की सहयोगी पार्टीराकांपा पहले ही इस बिल पर सरकार के पक्ष में आ चुकी है। हालांकि फिलहाल राज्यसभा में अन्नाद्रमुक, सपा व बसपा के भी विरोधी सुर गूंज रहे हैं, जो सरकार की मुश्किलों का सबसे बड़ा सबब हैं। इसलिए सरकार कांग्रेस को समझाने में जुटी हुई है, लेकिन सरकार आम बजट में बीमा क्षेत्र में 49 फीसद एफडीआई की सीमा का ऐलान कर चुकी है जिस पर वह किसी कीमत पर समझौता नहीं करेगी
सरकार के पास विकल्प
बीमा विधेयक को लेकर बने टकराव के बीच सरकार के पास अन्य विकल्प भी हैं। मसलन सरकार प्रवर समिति के लिए राज्यसभा में बने दबाव से निपटने के लिए यदि विधेयक को उच्च सदन से वापस ले और फिर लोकसभा में पेश करे तो जाहिर सी बात है कि लोकसभा में पारित होने के बाद उसकी राह आसान हो जाएगी। संविधान के जानकारों की माने तो फिर कुछ संशोधनों के साथ राज्यसभा में पारित कराना आसान हो सकता है। हालांकि इससे पहले सरकार बीमा विधेयक पारित कराने के लिए संसद का संयुक्त सत्र भी बुलाने के भी संकेत दे चुकी हैं, लेकिन उसमें भी कुछ अनिवार्य शर्ते भी रोड़ा बन सकती हैं। या जा सकता है, मगर उसके लिए कुछ अनिवार्य शर्ते भी हैं। सूत्रों के मुताबिक सरकार फिलहाल ऐसे विकल्प के बारे में नहीं सोच रही है और वह सीधे रास्ते से बीमा विधेयक को पारित कराने के प्रयास में जुटी हुई है।
कांग्रेस में बिखराव?
सूत्रों के मुताबिक राज्यसभा में सबसे बड़े दल और प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस में भी बीमा विधेयक पर विरोधी स्वर सामने आने लगे हैं। कुछ कांग्रेसी सदस्यों का कहना है कि यूपीए शासन काल में भाजपा ने भी भूमि अधिग्रहण विधेयक में संशोधन देकर यूपीए की राह आसान बनाई थी। उसी तर्ज पर कांग्रेस को भी बीमा विधेयक में संशोधन देकर इस बिल का समर्थन करना चाहिए। राकांपा के सुर में सुर मिलाते हुए कुछ कांग्रेस नेता यह भी कह रहे हैं कि यह विधेयक 2008 में कांग्रेसनीत यूपीए सरकार ही लेकर आई थी, इसलिए कांग्रेस को ज्यादा विरोध नहीं करना चाहिए। इस बात को तो स्वयं वित्त मंत्री अरुण जेटली भी कांग्रेस को स्मरण करा रहे हैं।
o7Aug-2014

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