रविवार, 3 अगस्त 2014

वैश्विक संपदा को संभालने में नाकाम रही सरकार!

एक साल में ही फिजूल खर्ची में फूंके करोड़ो रुपये
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
वैश्विक संपदा का प्रबंध करने में नाकाम रही पूर्ववर्ती यूपीए सरकार ने विदेशों में भारतीय दूतावास और मिशनों के लिए भूमि खरीद या भूमि अधिग्रहणकरने में जो शिथिलता बरती है उसके खुलासे के बाद केंद्र में मोदी सरकार सबक लेकर कैग द्वारा की गई सिफारिशों पर गौर करेगी? मसलन कैग द्वारा पिछली सरकार पर वैश्विक संपति के अधिग्रहण, निर्माण या पुनर्विकास जैसी प्रबंधन गतिविधियों में बरती गई खामियों के कारण करोड़ो रुपये का फिजूल खर्ची होने उंगलियां उठाई हैं। इसके लिए विदेश मंत्रालय को जिम्मेदार ठहराया गया है।
भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षा द्वारा संसद में वैश्विक संपदा प्रबंधन पर पेश की गई रिपोर्ट में यह खुलासा किया गया है कि भारत और विदेशों में भारत सरकार के स्वामित्व में आने वाली संपत्तियों के अधिग्रहण एवं अनुरक्षण हेतु विदेश मंत्रालय उत्तरदायी होता है, जो भारत के अलावा विदेशों में 180 मिशनों में संपत्तियों का प्रबंध करता है। वर्ष 20111-12 हेतु संपत्ति प्रबंधन के प्रति पूंजीगत व्यह 358.92 करोड़ था, लेकिन विदेश मंत्रालय ने अपनी जिम्मेदारियों के प्रति कार्य निष्पादन में ऐसी त्रुटियां व विलंब किया है, जिसके कारण विदेशी संपदा के प्रबंधन में विदेशों में भूमि अधिग्रहण या खरीद जैसी गतिविधियां पूरी नहीं हो सकी, जबकि इसके लिए सरकार ने किराए के रूप में करोड़ो रुपये खर्च कर दिये। कैग द्वारा एक दिन पहले शुक्रवार को किये गये खुलासे के अनुसार लोक लेखा समिति को आश्वासन देने के बावजूद विदेश मंत्रालय ने सात मामलों जिनेवा, बर्न, हैमबर्ग, मयुनिख, बिश्केक, स्टॉकहॉम तथा मिलान में भूमि की खरीद व संपत्ति के अधिग्रहण में निर्णय लेने में त्रुटियां की और इतना विलंब किया कि वर्ष 2011-12 के दौरान 7.83 करोड़ रुपये किराए पर ही खर्च हो गया।
निर्माण में विलंब

इसी प्रकार लेखा परीक्षा में दस ऐसे मामलों का खुलासा हुआ, जहां निर्माण में विलंब के कारण 16.36 करोड़ रुपये इस दौरान किराए पर खर्च करने पड़े। मसलन शंघाई, स्पेन पोर्ट, पोर्ट लुई, दार-ए-सलाम, काठमांडु, ताशकंद, क्यीव, ब्रासीलिया, दोहरा तथा निकोसिया जैसे दस स्थानों पर संपत्त्तियों का निर्माण शुरू होना था, लेकिन लगातार इतना विलंब हुआ कि अभी तक यह कार्य नहीं हो सका है। कैग ने इस विलंब के लिए विदेश मंत्रालय को जिम्मेदार ठहराया है। जबकि लोक लेखा समिति ने मंत्रालय से निर्माण पूर्ण गतिविधियों में विलंब से बचने के लिए निर्धारित समय सीमा एवं मॉनिटरिंग तंत्र स्थापित करने का भी अनुरोध किया था।
नवीकरण में अनियमिता
एक अन्य मामले में विदेश मंत्रालय की कमियों व त्रुटियों के कारण इस 2011-12 के दौरान 7.44 करोड़ रुपये किराये के रूप में फिजूल खर्च कर दिये गये। रिपोर्ट के अनुसार सिडनी, हांगकांग, कुआलाललाम्पुर एवं जकार्ता में भारत सरकार के स्वामित्व वाले भारतीय मिशनों में नवीकरण और पुन:विकास कार्य होना था, लेकिन उसमें विलंब ही नहीं अनियमितताएं भी सामने आई हैं। इस मामले पर लोक लेखा समिति भी सवाल खड़े कर चुकी है।
देश में भी करोड़ो फिजूल खर्ची

कैग की रिपोर्ट की माने तो घरेलू निर्माण परियोजनाओें में विदेश मंत्रालय की प्रबंधन दृष्टि त्रुटियांपूर्ण रही। जिसमें जयपुर, अमृतसर, मुंबई, श्रीनगर में क्षेत्रीय पासपोर्ट कार्यालयोें तथा विदेशी सेवा संस्थान दिल्ली के निर्माण संबन्धी अभिलेखों की जांच पड़ताल हुई तो जयपुर का कार्यालय तो 22 साल से निर्माण की बाट जोहता मिला, जबकि श्रीनगर में दिसंबर 2006 में भूमि खरीद के बावजूद निर्माण की शुरूआत नहीं हुई। शेष तीन कार्यालयों का निर्माण भी अधूरा है और वर्ष 2011-12 में 3.98 करोड़ का किराये के रूप में परिहार्य खर्च किया गया है।
03Aug-2014

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