रविवार, 17 अगस्त 2014

मोदी सरकार का अगला एजेंडा चुनाव सुधार!

चुनाव सुधार की कवायद में जुटी मोदी सरकार
न्यायिक सुधार के बाद जगी उम्मीदें 
 
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
केंद्र में सत्ता संभालने के बाद मोदी सरकार ने देश के विकास को प्राथमिकता देने का वादा करके आर्थिक सुधार की दिशा में भ्रष्टाचार जैसी चुनौतियों का सामना करने के प्रति प्रतिबद्धता को अंजाम देना शुरू कर दिया है। न्यायिक सुधार की दिशा में जजों की नियुक्तियों के लिए राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्तियां आयोग का गठन का रास्ता खोलने के बाद राजग सरकार अब चुनाव सुधार करने की कवायद में जुट गई हैं।
राजग सरकार के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 68वें स्वतंत्रता दिवस पर लालकिले के प्राचीर से भी देश में भविष्य के एजेंडे का खाका खींचकर ऐतिहासिक काम करने का देश को संदेश दिया। हाल ही में संसद के बजट सत्र में न्यायपालिका पर उठने वाले सवालों को दूर करने की दिशा में मोदी सरकार ने दो दशक पुराने प्रयासों को लक्ष्य में तब्दील करके राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्तियां आयोग विधेयक पारित किया है, जिसके तहत जजों की निुयक्तियों में कालेजियम प्रणाली खत्म हो जाएगी। उसी प्रकार की पहल राजग सरकार अब चुनावों में धन और बल के प्रयोग को नियंत्रित करने की दिशा में कदम उठाती नजर आ रही है, जिसके लिए भारत निर्वाचन आयोग और कुछ गैर सरकारी संस्थाएं पिछले कई सालों से प्रयासरत हैं। वहीं सुप्रीम कोर्ट भी चुनाव सुधार की दिशा में गंभीर है और पिछले साल कुछ ऐसे निर्णय भी उच्चतम न्यायालय से आए हैं जिनके जरिए कम से कम जघन्य अपराध में लिप्त लोगों को चुनावी प्रक्रिया से दूर किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट के चुनाव आयोग को भी चुनाव सुधार के लिए दिशा निर्देश जारी करने की हिदायतें दी जा चुकी हैं, जिनके आधार पर चुनाव आयोग पूर्ववर्ती सरकार से अनुरोध करके थक चुका था, लेकिन अब केंद्र में राजग सरकार से इस दिशा में चुनाव आयोग के प्रयासों को भी बली मिलने की उम्मीद जगी है।
नया विधेयक लाने की तैयारी
चुनाव सुधारों के लिए विधि आयोग भी अध्ययन कर रहा है जिसकी रिपोर्ट अभी तक सरकार को नहीं सौंपी गई है। मोदी सरकार का प्रयास है कि विधि आयोग की रिपोर्ट में होने वाली सिफारिशों के आधार पर जनप्रतिनिधित्व कानून में व्यापक संशोधन करके एक ऐसा ठोस कानून तैयार किया जाए जिससे राजनीति में अपराधिकरण को दूर किया जा सके और चुनाव सुधार के प्रयासों को भी पंख लगाए जा सकें। यह भी गौरतलब है कि अनेक ऐसे जनप्रतिधि फिलहाल भी सदनों में हैं जिनके खिलाफ जार्जशीत दायर हो चुकी हैं। इससे पहले पिछली सरकार के दौरान तीन सांसदों को अपनी सदस्यता गंवानी भी पड़ी है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को विचाराधीन रखते हुए एक अंतरिम फैसला सुनाया था कि विधायकों-सासंदों पर गंभीर मामलों की सुनवाई की प्रक्रिया एक साल की समयसीमा में पूरी होनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट की ओर से जारी आदेशों पर भी विधि आयोग गौर करते हुए अपनी रिपोर्ट तैयार कर रहा है। मोदी सरकार को विधि आयोग की रिपोर्ट का इंतजार है जिसके बाद वह एक नए एवं ठोस कानून का मसौदा तैयार करके चुनाव सुधार की दिशा में कदम उठाने के लिए प्रतिबद्ध है। सूत्रों के अनुसार विधि आयोग चुनाव सुधार के लिए कई ऐसे पहलुओं का भी अध्ययन कर रहा है जिसमें बार-बार चुनाव कराने से होने वाले खर्च पर भी अंकुश लगाया जा सके।
17Aug-2014 

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