मंगलवार, 27 जुलाई 2021

साक्षात्कार: सामाजिक समरसता की अलख जगाने में साहित्य की अहम भूमिका: बड़गूजर

हरियाणा के लोक कवियों को गुमनामी से बाहर लेकर आए
व्यक्तिगत परिचय
नाम: प्रो. राजेन्द्र बड़गूजर 
जन्म: 20 मई 1971 
जन्म स्थान: गांव मलिकपुर, जिला सोनीपत (हरियाणा)
शिक्षा: एम.ए. (हिन्दी), एम.फिल. (हिन्दी), एमएएमसी, पीजीडीटी, पीएच.डी., डी.लिट. 
सम्प्रति: प्रोफेसर एवं अध्यक्ष हिंदी विभाग, अधिष्ठाता मानविकी एवं भाषा संकाय, महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, मोतीहारी (बिहार) 
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रियाणा में प्रो. राजेन्द्र बड़गूजर साहित्य के क्षेत्र में सामाजिक समानता की अलख जगाने वाले इकलौते साहित्यकार हैं, जिन्होंने हरियाणा की लोक संस्कृति एवं लोक साहित्य के माध्यम से लोक-चेतना जगाने का काम किया है। हरियाणा साहित्य अकादमी ने प्रो. राजेन्द्र बड़गूजर को साहित्य जगत में उत्कृष्ट भूमिका के लिए वर्ष 2019 के दो लाख रुपये के पुरस्कार से सम्मानित किया है। उन्होंने दलित चेतना के लिए साहित्य और हरियाणवी लोक साहित्य पर कुल 31 पुस्तकें लिखी हैं। जिनमें वे हरियाणा के अनेक लोक कवियों को गुमनामी से निकालकर प्रकाश में लेकर आए है। प्रो. राजेन्द्र बड़गूजर ने सन 2011 में ‘महाशय दयाचंद मायना ग्रंथावली’ का सम्पादन किया था, जो हरियाणा ग्रंथ अकादमी से प्रकाशित है। राज्य सरकार ने हाल ही में उनकी देशप्रेम और समाज सुधार की रागणियों को देखते हुए हरियाणा साहित्य अकादमी के पुरस्कारों में महाशय दयाचंद मायना पुरस्कार को भी मान्यता दी है। लोक चेतना जागृत करने के लिए साहित्य के क्षेत्र में की गई समाज सेवा को लेकर हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत में प्रो. राजेन्द्र बड़गूजर ने कई महत्वपूर्ण पहलुओं को साझा किया है। खासकर इस आधुनिक युग में हरियाणा में घुले जातिवाद की मानसिकता को त्यागकर भेदभाव के बजाए योग्यता के आधार पर सामाजिक समानता का संदेश दिया है। 
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प्रख्यात साहित्यकार प्रो. राजेन्द्र बड़गूजर ने हिंदी साहित्य में सामाजिक समता को महत्व देने का प्रयास किया। दरअसल हरियाणा में दलित समाज के खिलाफ घृणा और नफरत की लहर बरसों से देखी जाती रही है। हरियाणा की इसी जमीन से जुड़कर उन्होंने साहित्य लेखन में अपनी एक ऐसी पहचान बनाई है कि सर्वसमाज में दलितों का प्रतिनिधित्व भी सुनिश्चित हुआ है। इस समाजसेवा के कार्यक्षेत्र में बड़गूजर ने राज्य में दलितों की बस्तियों में जाकर दलित बच्चों और युवाओं में शिक्षा की अलख जगाई और उन्हें स्कूलों में दाखिले भी दिलाने का कार्य किया। कैथल में एस.आर.डी. पब्लिक स्कूल के शुभारम्भ में भी प्रो. बडगूजर का विशेष योगदान रहा है। प्रो. बड़गूजर के साहित्य में दलित लेखन, कहानियों और कविताओं को लेकर उन्हें देशभर से चौतरफा साहित्यकारों, कवियों, रचनाकारों और बुद्धिजीवियों, उच्च शिक्षण संस्थाओं से दलित चेतना के कार्य के लिए सराहना मिल रही हैं। 
शोध पत्र लेखन व प्रस्तुतीकरण
साहित्यकार डा. बडगूजर ने 21 पुस्तकों का संपादन किया है, जिसमें हरियाणवी ग्रंथावली, रचनावली और रागनियों की ऐसी पुस्तकें भी शामिल है जिसमें समाज सुधार के लिए हरियाणवी संस्कृति व सभ्यता को वर्णित किया गया है। उनके साहित्य पर अनेक शोधपत्र प्रकाशित हुए हैं। सामाजिक चेतना पर दलित साहित्य का लेखन करने वाले डा. बड़गूजर ने देशभर के लेखकों, कवियों और रचनाकारों व उनकी पुस्तकों पर पीएच.डी. और एम.फिल. उपाधि के लिए किये गये शोध का निर्देशन भी किया है। ‘राजेंद्र बडगूजर के साहित्य में दलित यथार्थ’ विषय पर कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में एम.फिल. पर लघु शोध प्रबंध, ‘कैथल जनपद का हिंदी साहित्य को योगदान’ विषय पर कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में पीएचडी के शोध प्रबंध में इनकी रचनाएं शामिल हुई हैं। इसी प्रकार यूजीसी की अनुदान राशि से सम्पन्न डॉ. संजय जैन द्वारा लिखित शोध ग्रंथ ‘समकालीन कविता के मूल्य चेतना’ में ‘दलित चेतना के प्रतिबद्ध युवा हस्ताक्षर: राजेन्द्र बडगूजर’ उप विषय में ‘मनु का पाप’ कविता संग्रह को शामिल किया गया है। इसी प्रकार मेरठ विश्वविद्यालय में डॉ. सुशील कुमार शीलू द्वारा सम्पन्न शोध प्रबंध ‘हिंदी दलित कविता का आलोचनात्मक अध्ययन’ विषय के तहत इनकी रचनाएं शामिल हुई। यही नहीं साहित्य में दलित लेखन्, कहानी व कविताओं का प्रकाशन विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैँ। प्रो. राजेन्द्र बड़गूजर के साहित्य पर विभिन्न विश्वविद्यालयों में पीएच.डी. तथा एम.फिल. के शोध कार्य सम्पन्न हुए हैं। हरियाणवी लोक सहित्य पर इनके द्वारा सम्पादित पुस्तकों पर नए विमर्शो की शुरूआत हुई है। विशेष रूप से रागणी गायकी के क्षेत्र में छाप के मसले को इन्होने उजागर किया है।
प्रमुख पुस्तकें 
प्रो. राजेन्द्र बड़गूजर की हरियाणवी लोक साहित्य पर सम्पादित 21 प्रमुख पुस्तकों के अलावा तीन कविता संग्रह-‘भीड़ी गलियां तंग मकान’, ‘कुछ मत कह देना!’ तथा ‘मनु का पाप’ शामिल है। जबकि दो कहानी संग्रह – ‘कसक: एक दलित टीस’ और ‘हमारी जमीन हम बोएंगे’ लिखी हैं। उनकी आलोचना पुस्तकों में ‘दलित साहित्य और विचारधारा’, ‘चिन्तन का परिपेक्ष्य और दलित साहित्य’, ‘हिन्दी दलित आत्मकथाओं में बचपन’, ‘हिंदी दलित आत्मकथाएं : एक सांस्कृतिक विश्लेषण’ और ‘दलित चेतना में गुरु रविदास का योगदान’ और ‘छापकटैया’ शामिल हैं।
पुरस्कार और सम्मान
हरियाणा साहित्य अकादमी ने प्रसिद्ध साहित्यकार प्रो. राजेन्द्र बड़गूजर को दो लाख रुपये के सम्मान - 2019 पुरस्कार से सम्मानित करने का फैसला किया। इससे पहले अकादमी द्वारा उनके कविता संकलन ‘भीड़ी गलियां तंग मकान’ के प्रकाशन के लिए दस हजार रुपये की अनुदान राशि और कहानी ‘हमारी जमीन हम बोएंगे’ को प्रतियोगिता में नकद द्वितीय पुरस्कार दिया जा चुका है। प्रो. राजेन्द्र बड़गूजर को भारतीय दलित साहित्य अकादमी दिल्ली द्वारा 2003-04 में डा. अम्बेड़कर फैलोशिप अवार्ड से नवाजा जा चुका है। साहित्य सभा कैथल से वर्ष 2011 में ‘श्री अर्जुन दास मलिक स्मृति साहित्य सम्मान’ के अलावा उन्हें नेहरु युवा केंद्र सोनीपत द्वारा दो बार समाज सेवा के लिए सम्मानित किया जा चुका है। इसके अलावा बजरंग मंडल हरियाणा द्वारा राष्ट्रीय अंधता निवारण कार्य में सम्मानित किया जा चुका है। जबकि विभिन्न संस्थाओं में उन्हें अनेक सम्मान मिल चुके हैं। 12July-2021

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