सोमवार, 26 जुलाई 2021

साक्षात्कार: समाज को जोड़ने में साहित्य की भूमिका अहम: डा. शील कौशिक

सामाजिक परिवेश पर  कहानियों, लघुकथाओं तथा कविताओं से लेखन
 व्यक्तिगत परिचय 
 नाम: डॉ. शील कौशिक 
 जन्म: 19 नवम्बर 1957 
 जन्म स्थान: ओल्ड फरीदाबाद (हरियाणा) शिक्षा: एम.एससी, बी.एड, एम.एच.एम (होम्यो),एलएलबी, विद्यासागर (मानद उपाधि) 
सम्प्रति: मलेरिया अधिकारी, स्वास्थ्य विभाग, हरियाणा(सेवानिवृत्त), अब स्वतंत्र लेखन
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साहित्य के क्षेत्र में सैकड़ो पुरस्कार व सम्मान हासिल कर चुकी महिला साहित्यकार डा. शील कौशिक को हरियाणा साहित्य अकादमी ने वर्ष 2018 के लिए पंडित माधव प्रसाद मिश्र पुरस्कार के लिए चयनित किया है। उनका मानना है कि ऐसे बड़े पुरस्कार साहित्य के जरिए समाज सेवा के लिए नई ऊर्जा देते हैं और इस क्षेत्र के लिए जिम्मेदारी बढ़ाते हैं। साहित्य,भारतीय संस्कृति में समाज सेवा का एक महत्वपूर्ण माध्यम है, जिसके बिना जीवन की राह आसान नहीं होती। इसी प्रगतिवादी व दूरदर्शी सोच के साथ पठन-पाठन में रूचि ने उनका साहित्यकार तक मार्ग प्रशस्त किया। साहित्य के क्षेत्र तक के सफर को उन्होंने ग्रामीण परिवेश की रूढ़िवादिता के बावजूद कैसे मंजिल दी। बचपन से साहित्यकार तक के सफर में अपने अनुभवों और समाज से जुड़े ऐसे पहलुओं पर साहित्यकार डॉ. शील कौशिक ने हरिभूमि संवाददाता के साथ हुई बातचीत के दौरान साझा किये। सामाजिक परिवेश पर आधारित कहानियों, लघुकथाओं तथा कविताओं से लेखन की शुरूआत करने वाली विद्यासागर की मानद उपाधि प्राप्त डा. शील कौशिक को जो ख्याति मिली है, उसकी कल्पना किसी के लिए करना इसलिए मुमकिन नहीं है, वह भी विज्ञान व अंग्रेजी में उच्च शिक्षा लेने के बाद स्वास्थ्य विभाग में एक अधिकारी के लिये। उन्होंने समाज को दिशा देने के मकसद से हर सामाजिक पहलुओं को उकेरने का प्रयास किया है। यहीं नहीं, बल्कि साहित्य को समाज सेवा का माध्यम मानते हुए अपनी रचनाओं, कविताओं और कहानियों के संग्रह में उन्होंने बच्चों से लेकर बुजुर्गो तक को यह समझाने का भी प्रयास किया है कि साहित्य के बिना जीवन अधूरा है। 
डा. शील कौशिक मानती हैं कि आज के इस आधुनिक युग के लगातार होते विस्तार के साथ सामाजिक ताने बाने जिस प्रकार बिखरे हैं। ऐसी सभी परिस्थितियों से उत्पन्न संवेग को उन्होंने अपने लेखन की प्रक्रिया का हिस्सा बनाया। मौजूदा विज्ञान और तकनीकी युग में इस भौतिकवादी प्रवृत्ति के कारण भारतीय संस्कृति एवं समाज में मानवीय मूल्यों का तेजी के साथ ह्रास हुआ है। सामाजिक तानेबाने, रीति-रिवाज, रिश्ते, भाषाशैली, कार्यशैली, परिधान के साथ प्रकृति में तेजी से बदलाव आये हैं। भारतीय संस्कृति एवं समाज को दिशा देने के लिए आज युवा पीढ़ी की अहम भूमिका हो सकती है, लेकिन उन्हें साहित्य के प्रति प्रोत्साहन करने की जरुरत है। साहित्य के क्षेत्र में महिला साहित्यकार डा. शील कौशिक कहती हैं कि उन्होंने एमएससी, बीएड, एलएलबी तथा होम्योपैथी में सर्टिफिकेट कोर्स किया, लेकिन उनके लिए शिक्षा की राह हमेशा मुश्किल रही। ग्रामीण परिवेश में उन दिनों लड़कियों के पढ़ाई को अहमियत नहीं थी। मां को उसका पढ़ना लिखना कतई नहीं भाया, लेकिन पिता का प्रोत्साहन मिलता रहा। वह घर में पत्र पत्रिकाएं लाते थे जिन्हें पढ़ने की रूचि उन्हें साहित्य के मार्ग पर ले गई। घर में मां के चाबुक के सामने 11वीं कक्षा में स्कूल टॉप करने के बावजूद कालेज में दाखिला दिलाने से मना कर दिया गया। जबकि उसकी जिद ने पिता ने आईसी गवर्मेंट महिला कॉलेज, रोहतक में प्री-मेडिकल में दाखिला दिला दिया। इसके बाद फरीदाबाद गवर्मेंट नेहरू कॉलेज में बीएससी पूरी हुई तो फिर मिला घर बैठने के फरमान। लेकिन पिता के कहने पर इंटरव्यू की हां हुई और वह चुन भी ली गई। मसलन उच्च शिक्षा के लिए उसके सामने न जाने कितनी अड़चने आई। किसी तरह एमएससी, बीएड, एमएचएम (होम्यो), एलएलबी तक शिक्षा ग्रहण कर गई। आश्चर्य की बात ये थी, जब वह स्वास्थ्य विभाग, हरियाणा में जीव वैज्ञानिक (राजपत्रित अधिकारी) के रूप में नियुक्त हुई, तो उस समय घर में सबसे ज्यादा खुश और गर्व करने वाली उनकी वही मां थी, जो उसकी पढ़ाई के नाम पर गुस्साई रहती थी। 
 प्रमुख पुस्तकें
डॉ. शील कौशिक की 31 पुस्तकें प्रकाशित हुई है, जिनमें 21 मौलिक कृतियां, 6 संपादित, 3 अनुवाद और एक लेखिका पर पुस्तक शामिल हैं। प्रमुख रूप से कविता संग्रह में नए अहसास के साथ, कचरे के ढेर पर जिंदगी, कविता से पूछो, कब चुप होती है चिड़िया, खिड़की से झांकते ही, मासूम गंगा के सवाल। एक सच यह भी और महक रिश्तों की नामक कहानी संग्रह। उसी पगडंडी पर पांव, कभी भी–कुछ भी और मेरी चुनिन्दा लघुकथाएं प्रमुख है। उन्होंने बचपन के आईने से, धूप का जादू, करें तो क्या करें, माशी की जीत जैसे चार चार हिन्दी बालकहानी संग्रह, बिल्लो रानी-बाल कविता संग्रह, रिमोट वाली गुड़िया-पंजाबी बालकथा के साथ तीन आलोचक ग्रंथ भी लिखे हैं। 
पुरस्कार व सम्मान
हरियाणा साहित्य अकादमी ने हाल ही में डॉ. शील कौशिक को ढ़ाई लाख रुपये के पंडित माधव प्रसाद मिश्र पुरस्कार-2018 से सम्मानित करने का फैसला किया। इससे पहले अकादमी ने डॉ. कौशिक को इससे पहले अकादमी वर्ष 2014 के श्रेष्ठ महिला रचनाकार सम्मान और उनकी लघुकथा पुस्तक ‘कभी भी-कुछ भी’ के लिए वर्ष 2012 के श्रेष्ठ कृति पुरस्कार से सम्मानित कर चुकी है। विश्व हिंदी लेखिका मंच का महादेवी वर्मा शक्ति सम्मान,राष्ट्रीय प्रतिभा सम्मान, राष्ट्रीय गौरव सम्मान, श्रीमती मोगरे स्मृति पुरस्कार, सृजन साहित्य सम्मान, समीक्षा सम्मान, महिला सशक्तिकरण सम्मान के साथ हरियाणा समेत करीब एक दर्जन राज्यों से सैकड़ो सम्मान और पुरस्कार हासिल करने वाली डा. कौशिक को विभिन्न संस्थाओं द्वारा मंचों से कई ऐसे पुरस्कार हासिल कर चुकी है, जिसकी वह साहित्य के क्षेत्र में सेवा के लिए हकदार रही हैं।
 14June-2021

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