मंगलवार, 27 जुलाई 2021

साक्षात्कार: हिंदी से ही संस्कृति व सभ्यता का संरक्षण संभव: डा. रामफल गौड़

नई पीढ़ी को अपनी सामाजिक कविताओं के जरिए प्रेरित करने में जुटे 
व्यक्तिगत परिचय 
 नाम: डॉ. रामफल गौड़ 
 जन्म: एक अप्रैल 1965 
जन्म स्थान: गांव धनौरी, जिला जींद(हरियाणा) 
शिक्षा: एम.ए. (अंग्रेजी, इतिहास), बी.एड. 
 सम्प्रति: हरियाणा शिक्षा विभाग में अंग्रेजी प्रवक्ता 
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रियाणा साहित्य अकादमी द्वारा पंडित लखमीचन्द सम्मान-2019 से नवाजे जाने वाले प्रख्यात साहित्यकार एवं लोकप्रिय कवि डॉ. रामफल गौड़ का मानना है कि इस तकनीकी और आधुनिक युग में समाती जा रही भारतीय संस्कृति, इतिहास और साहित्य के संरक्षण के लिए मां बोली यानि हिंदी को बढ़ावा देने की जरुरत है। इसलिए हिंदी भाषा को पाठ्यक्रमों में अनिवार्य विषय होना चाहिए। वैसे भी इस इंटरनेट के जमाने में सबकुछ हिंदी में समझना बेहद आसान हो गया है। पठन-पाठन और आपसी बोलचाल में यदि मातृभाषा हिंदी का उपयोग होगा, तो इस भौतिकवाद के युग में भी समाज और सभ्यता और खासकर हरियाणवी संस्कृति के विकास में भारतीय संस्कृति और साहित्य जगत की प्रासांगिकता को और भी सुदृढ़ किया जा सकता है। हरियाणवी संस्कृति और समाज को दिशा देने खासकर नई पीढ़ी को अपनी सामाजिक कविताओं के जरिए प्रेरित करने में जुटे डा. रामफल गौड़ ने हरिभूमि संवाददाता से हुई खास बातचीत में ऐसे कई पहलुओं को उजागर किया, जिनमें नई पीढ़ी को साहित्य और इतिहास के प्रति प्रेरित किया जा सके। हरियाणा के जींद जिले के धनौरी गांव में जन्मे साहित्य जगत के कवि डॉ. रामफल गौड़ हरियाणा शिक्षा विभाग के राजकीय सीनियर सेंकेण्डरी स्कूल, नरवाना में अंग्रेजी के प्रवक्ता हैं। जिनकी उच्च शिक्षा भी अंग्रेजी व इतिहास विषय में हुई है। इसके बावजूद भारतीय संस्कृति एवं सामाजिक सभ्यता के संरक्षण के लिए समाज को दिशा देने में हिंदी साहित्य और कविताओं के माध्यम से जुटे हुए हैं। डा. गौड़ को बचपन में अपने ही परिवार के बुजुर्गो से हिंदी साहित्य और कविताओं के लिखने की प्रेरणा मिली। उनका कहना है कि गांव में उनके परिवार में हरिकेश हरियाणवी संस्कृति और मां बोली में ही सांग और लोकगीत व कविताएं गाते रहे हैं। घर में भी मां और अन्य बुजुर्ग कहानियां और कविताएं सुनाते थे। बेशक उनकी उच्च शिक्षा में हिंदी विषय न रहा हो, लेकिन हिंदी यानि अपनी हरियाणवी संस्कृति के प्रति उनका लगाव कम होने के बजाए बढ़ता चला गया और आज वह अंग्रेजी विषय के प्रवक्ता होने के बावजूद हिंदी भाषा में साहित्य के जरिए समाज सेवा कर रहे हैं। आज की नई और युवा पीढ़ी को संदेश के रूप में डा. गौड ने कहा कि वे समाज के हित में साहित्य और इतिहास को अवश्य पढ़े। वहीं अपने शैक्षिक अध्ययन में भले ही अंग्रेजी या अन्य भाषा विषय लें, लेकिन अपनी हिंदी भाषा को अनिवार्य रूप से रखें, तभी वे देश व समाज में अपनी अहम भूमिका निर्वहन कर सकते हैं। 
प्रमुख प्रकाशित पुस्तकें
डॉ. रामफल गौड़ की अब तक प्रकाशित प्रमुख पुस्तकों में भजनमाला, श्रृंगार रस के संग, तारा रानी की कथा और अन्य हरियाणवी भेंटे, सांग वाटिका, सांग सौरभ, रफ्तार जमाने की, दिल का दर्पण और प्रतिदिन शामिल हैं। इनमें सांग वाटिका पुस्तक हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा अनुदान प्राप्त है। इसके अलावा डा. गौड दूरदर्शन और आकाशवाणी पर केई बार काव्य पाठ कर चुके है। काव्य पाठ के लिए उन्हें विभिन्न संस्थाएं काव्य पाठ के लिए उन्हें आमंत्रित करती रही हैं। उनकी जिनकी कविताए और रचनाएं देश के विभिन्न अखबारों में प्रकाशित हुई है।
प्रमुख पुरस्कार व सम्मान
हरियाणा साहित्य अकादमी ने हाल ही में जींद जिले के धनौरी गांव निवासी साहित्यकार डॉ. रामफल गौड़ को दो लाख रुपये के पंडित लखमीचन्द्र पुरस्कार-2019 से सम्मानित करने का निर्णय लिया है। डॉ. गौड़ को इससे पहले दर्जनों पुरस्कार मिल चुके है, जिसमें अखिल भारतीय साहित्य परिषद का अजीत लाल चौपड़ा स्मृति सम्मान, पंडित हरिकेश पटवरी स्मृति सम्मान शामिल हैं। हिंदी साहित्य प्रेरक संस्था जींद द्वारा चन्द्रमती स्मृति साहित्य रत्न सम्मान, साहित्य सभा कैथल से बाबूराम गुप्ता स्मृति सम्मान, साझा साहित्य मंच करनाल से मनोहर सुगम स्मृति सम्मान, जिज्ञासा मंच हिसार से तारादत्त विलक्षण स्मृति सम्मान, जिला बार संघ करनाल से साहित्य पुरस्कार, म्हारी संस्कृति-म्हारा स्वाभिमान संस्था से संस्कृति रत्न सम्मान पा चुके हैं। डा. गौड़ कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के हरियाणवी भाषा समारोह में उपकुलपति और नरवाना उपमंडल प्रशासन द्वारा साहित्यक गतिविधियों के लिए सम्मानित होने के अलावा आरकेएसडी कॉलेज कैथल में विशिष्ट अतिथि सम्मान, मानव मित्रमंडल नरवाना से हरियाणा दिवस पर सम्मान पाने के साथ ग्राम सुधार समिति धनौरा जींद में संरक्षण का सम्मान भी हासिल कर चुके हैं।
प्रसिद्ध कविता
डा. गौड़ की कई ऐसी कविता रही, जो सामाजिक दृष्टि से सुर्खियां बनी है। ऐसी कविताओं में ‘मां की ममता को दर्शाने वाली ‘मां ममता की मूरत हो सै मम्मी सुनो विचार मेरा कड़ै गया मां मेरा बचपन कड़ै गया मां प्यार मेरा..’। नारी की सामाजिक स्थिति पर ‘देवी अबला पां की जूती, मिले खिताब हजार मनै, जिब तै बनी सृष्टि कितने ओटे अत्याचार मनै..’।‘चाल है हर दम नारी, फिर भी जीना से लाचारी जीना से लाचारी..’। ‘माता पिता तो नौकर बणगे, बालक बणे नवाब घणा के, मेज तले समझौता करते देक्खे से इंकलाब घणे। हरियाणवी मिट्टी की महिमा को दर्शाने वाली कविता में ‘माटी मरै, मिले माटी मैं, कितना अजब नजारा सै, बीच मैं माटी, अंत मै माटी, कौन से न्यारा माटी तै...’ शामिल हैं। 
28June-2021

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