ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
केंद्र
सरकार द्वारा मानव तस्करी पर शिकंजा कसने के लिए सख्त कानूनी प्रावधान वाला मानव
तस्करी (रोकथाम, संरक्षण और पुनर्वास) विधेयक अभी तक सियासी चक्रव्यूह में फंसे
होने के कारण राज्यसभा में लंबित है। जबकि दूसरी और खासकर बाल तस्करी के आंकड़ो का
ग्राफ लगातार बढ़ रहा है। मसलन देश में हर घंटे एक या दो बालकों को तस्करी का
शिकार बनाया जा रहा है।
एशियाई
देशों में मानव तस्करी के गढ़ के रूप में कलंकित भारत में मानव तस्करी के गोरखधंधे
पर लगाम कसने के लिए सख्त कानूनों को प्रावधान करते हुए केंद्र सरकार ने संसद के
शीतकालीन सत्र में लोकसभा में मानव तस्करी (रोकथाम, संरक्षण और पुनर्वास)
विधेयक-2018 पारित किया था, जो राज्यसभा में विपक्षी दलों की सियासत के कारण लंबित
है। जबकि मानव तस्करी के बढ़ते ग्राफ में 60 फीसदी बच्चों को शिकार बनाया जा रहा
है। गृह मंत्रालय के बुधवार को राज्यसभा में दिये गये मानव तस्करी के आंकड़े इस
बात की गवाही दे रहे हैं कि देश में एक या दो बच्चों को हर घंटे तस्करी के जाल में
फंसाया जा रहा है। हालांकि गृह मंत्रालय ने नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के 2016
व 2015 के आंकड़े देते हुए ताजा आंकड़ो संकलन से अनभिज्ञता जाहिर की, लेकिन वर्ष
2016 में देश के 29 राज्यों व सात केंद्र शासित प्रदेशों में बाल तस्करी में हो
रही वृद्धि को स्वीकार करते हुए इस बात की पुष्टि की है कि वर्ष 2015 के मुकाबले
2016 में देश में मानव तस्करी के 20 फीसदी से ज्यादा मामले दर्ज किये गये हैं।
मसलन वर्ष 2016 में मानव तस्करी के सामने आए 15,379 मामलों में 9034 मामले बाल
तस्करी के हैं। जिनमें अभी तक इनमें जहां 4123 बालक हैं तो वहीं 4911 बालिकाएं
शामिल हैं।
पश्चिम बंगाल टॉप पर
मंत्रालय
के आंकड़ों के अनुसार बाल तस्करी के मामले में बालक-बालिकाओं के तस्करी के मामलों
में सर्वाधिक 3113 मामले पश्चिम बंगाल के हैं। इसके बाद 2519 मामलों के साथ
राजस्थान दूसरे पायदान पर है। उत्तर प्रदेश में वर्ष 2016 के दर्ज 822 मामलों में
बालकों को तस्करी का शिकार बनाया गया। इसके बाद गुजरात में बाल तस्करी के 485,
केरल में 332, तमिलनाडु में 317 और पंजाब में 206 मामले सामने आए हैं। केंद्र
शासित प्रदेशों में राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली आबादी के हिसाब से सर्वाधिक 190
मामलों के साथ कम नहीं है। मंत्रालय के अनुसार बाल तस्करी के तहत नाबालिकों की
खरीद-फरोख्त, बालिकाओं का आयात और खरीद तथा अनैतिक व्यापार के मामले सामने आए है।
जबकि देश में मानव दुव्र्यापार, अनैतिक व्यपार अधिनियम, बंधुआ एवं बाल श्रम
अधिनियम लागू हैं। इन अधिनियमों को सख्त करने की दिशा में एक विधेयक संसद में
लंबित है।
पश्चिम बंगाल में सबसे खराब स्थिति
सरकारी
आंकड़ों के अनुसार भारत में हर 8 मिनट में एक बच्चा लापता होता है। वर्ष 2011 में देश
में लगभग 35,000 बच्चों की गुमशुदगी दर्ज हुई थी। इसमें से 11,000 से ज्यादा बच्चे
सिर्फ पश्चिम बंगाल से लापता थे। इसके अलावा यह माना जाता है कि कुल मामलों में से
केवल 30 फीसद मामलों में ही रिपार्ट दर्ज की गई और वास्तविक संख्या इससे कहीं अधिक
है। वर्ष 2016 में भी मानव तस्करी के सबसे ज्यादा मामले पश्चिम बंगाल में दर्ज हुए
थे। देश भर में एक साल में कुल 8,132 शिकायतों में से 3,576 केवल इसी राज्य से आईं।
ये वो शिकायतें थीं जो दर्ज हुईं। जानकारों के मुताबिक, इससे कहीं ज्यादा मामले या
तो दर्ज नहीं हुए या लोगों ने दर्ज ही नहीं कराए। ऐसे में वास्तविक आंकड़ा काफी बड़ा
है।
07Feb-2019
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