गुरुवार, 14 फ़रवरी 2019

भारतीय जेलों में कैदियों के बोझ तले 6261 विदेशी कैदी!


रिहाई के इंतजार में 306 विदेशियों को मिली कंसुलर संपर्क की अनुमति
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली। 
देश में जेल आधुनिकीकरण और उनकी क्षमता बढ़ाने जैसी सुधार योजनाओं के बावजूद जेलों पर क्षमता से अधिक कैदियों का बोझ बरकरार है। इन कैदियों के बोझ में 6,161 विदेशी कैदी भी बंद हैं। इनमें से 2353 कैदियों पर दोषसिद्ध हो चुका है, जबकि 3908 विचाराधीन कैदियों को अपनी रिहाई का इंतजार कर रहे हैं। हालांकि विदेशी कैदियों के मामलों के निपटारे की दिशा में केंद्र सरकार ने पिछले दिनों 306 कैदियों को नई दिल्ली में संबन्धित देशों के दूतावासों से कंसुलर संपर्क की इजाजत भी दी है।
केंद्रीय गृह मंत्रालय पहले ही मान चुका है कि देशभर की जेलों में चल रही सुधार और आधुनिकीकरण की योजनाओं के बावजूद विचाराधीन कैदियों की बढ़ती संख्या के कारण कैदियों का बोझ लगातार बढ़ रहा है। गृह मंत्रालय के अनुसार जेलों में बढ़ रहे कैदियों के क्षमता से भी ज्यादा बोझ का कारण अदालतों में लंबित करोड़ो मामले भी हैं। मंत्रालय के अनुसार भारतीय जलों में बंद डेढ़ दर्जन से ज्यादा देशों के 6,161 कैदी विभिन्न राज्यों की जेलों में बंद हैं, जिनमें से ट्रायल के बाद 2353 कैदियों अपराध सिद्ध भी हो चुके हैं। जबकि 3908 विचाराधीन कैदियों के रूप में जेलों में बंद हैं। ऐसे विचाराधीन कैदियों को केंद्र सरकार ने वर्ष 2018 में दिसंबर तक नई दिल्ली स्थित संबन्धित देशों के दूतावासों के अधिकारियों या मिशनों से विचार विमर्श करने की दृष्टि से कंसुलर संपर्क की अनुमति दी है। मंत्रालय के अनुसार भारतीय जेलों में बंद विचाराधीन कैदियों की रिहाई जल्द होने की दिशा में मंत्रालय ने आईपीसी में धारा 436के को शामिल करने की पहल की है, ताकि समीक्षा करके राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण अधिवक्ताओं के माध्यम से निशुल्क कानूनी मदद के बाद दोषमुक्त होने पर उनकी रिहाई सुनिश्चित कर सके। इसके लिए सरकार द्वारा विकसित की गई आईटी सोल्यूशन ई-कारागार की पहल भी की गई है।
बांग्लादेशी कैदियों की भरमार
भारतीय जेलों में बंद विदेशी कैदियों में सर्वाधिक 2579 कैदी बांग्लादेश के विचाराधीन हैं। जबकि इसके बाद 361 नेपाल, 340 नाइजीरिया, 177 अफ्रीका, 113 पाकिस्तान, 41 म्यांमार, 36 श्रीलंका के अलावा बाकी अमेरिका, कनाड़ा, रूस, जापान, चीन, मध्य पूर्वी देश, मालद्वीप, दक्षिण पूर्वी ऐशियन देश, आस्ट्रेलिया और अन्य कई देशों के शामिल हैं।
दोषसिद्ध में भी बांग्लादेशी अव्वल
देश की जेलों में विचाराधीन कैदियों के अलावा 2353 अपराधी घोषित हो चुके विदेशी कैदियों में सर्वाधिक 1453 बांग्लादेशी बंद हैं। जबकि 376 अपराधी म्यांमार, 228 नेपाल, 97 पाकिस्तान, 59 नाइजीरिया, 30 श्रीलंका, 12 दक्षिणी पूर्वी एशियन देश, 18 अफ्रीका, दो-दो अमेरिका, कनाड़ा व रूस के अलावा एक-एक मध्य पूर्वी देश, चीन, जापान के साथ 31 अन्य देशों के कैदी बंद हैं।
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क्षमता से अधिक कैदी
देशभर में करीब 1412 जेलों की क्षमता 380876 है, जिसमें 354808 पुरुष और 26068 महिलाओं की क्षमता हे। लेकिन इसके बावजूद इन जेलों में 433003 कैदी बंद हैं यानि 53127 कैदी क्षमता से ज्यादा जेलों में सलाखों के पीछे हैं। इनमें 50 फीसदी से ज्यादा कैदी उम्र कैद की सजा काट रहे हैं। 
11Feb-2019

संसद में कामकाज पर मुश्किल में सरकार!

आखिर तीन दिनों में कैसे निपटेगा एजेंडे में शामिल काम
सात दिन में संसद में कुछ भी विधायी कार्य पर नहीं लगी मुहर
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।  
संसद के बजट सत्र के अब केवल तीन दिन बाकी हैं।  संसद में विभिन्न मुद्दो पर बरकरार विपक्ष के साथ जारी गतिरोध के चलते सरकार पिछले सात दिन की कार्यवाही में एक भी विधायी कार्य आगे नहीं बढ़ा सकी है।जबकि लोकसभा में पारित राष्ट्रपति अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर राज्यसभा में चर्चा तक नहीं हो पायी, जबकि अंतरिम बजट दोनों सदनों में पारित होना बाकी है। सरकार के एजेंडे में शामिल 46 विधेयक को आगे बढ़ाने की तो इन तीन दिनों में दूर की कोड़ी नजर आ रही है।
राष्ट्रपति के अभिभाषण के साथ 31 जनवरी से शुरू हुए संसद के बजट सत्र में एक फरवरी को अंतरिम बजट पेश किया गया था, जिसकी लोकसभा में चर्चा जारी है। जबकि लोकसभा में पारित राष्ट्रपति अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पारित हो चुका है। उधर राज्यसभा में अभी दोनों पर चर्चा है,लेकिन संविधानविदों का कहना है कि अंतरिम बजट चूंकि लेखानुदान के रूप में पेश किया गया है, जिसे राज्यसभा में बिना चर्चा के पारित किया जा सकता है, लेकिन राज्यसभा में राष्ट्रपति अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर अधूरी चर्चा को संक्षिप्त करने का प्रयास करके उसे पारित कराना जरूरी है। गौरतलब है कि सरकार इस चालू सत्र में लोकसभा और राज्यसभा में लंबित महत्वपूर्ण विधेयकों समेत कुल 46 विधेयकों को पास कराने के मकसद से लेकर आई है, जिनके पारित होने की संभावनाएं क्षीण नजर आ रही हैं। गौर करने वाली बात यह है कि यह सत्र लोकसभा चुनाव से पहले मोदी सरकार के लिए अंतिम सत्र है, जिसके बाद दर्जनों विधेयक स्वत: ही अस्तित्व से बाहर हो जाएंगे।
आज संसद में भारी कामकाज
सोमवार से आठवें दिन दोनों सदनों की कार्यवाही के लिए सरकार भारी कामकाज के साथ आ रही है, लेकिन विपक्ष से जारी तकरार के चलते इस कामकाज का निपटारा करने में सरकार को मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। लोकसभा में सोमवार को जहां अंतरिम बजट की जारी चर्चा पूरी कराई जानी है, वहीं लेखानुदान मांगों और अनुदानों की अनुपूरक मांगों पर चर्चा व मतदान कराना भी कार्यसूची में शामिल है। जबकि विधायी कार्यो में लोकसभा में वित्त मंत्री के रूप में पीयूष गोयल विनियोग (लेखानुदान) विधेयक तीन भागों में पेश करेंगे। दूसरी ओर राज्यसभा में सोमवार को जहां राष्ट्रपति अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा को आगे शुरू किया जाना है, वहीं विधायी कार्यो में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज अनिवासी भारतीय विवाह रजिस्ट्रीकरण विधेयक और आदिवासी मामलों के मंत्री जुएल ओराम संविधान-अनुसूचित जनजातियां आदेश-तीसरा (संशोधन) विधेयक पेश करेंगे। इसके अलावा दोनों सदनों में विभिन्न विभागों पर संसदीय समितियों की रिपोर्ट, महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा जैसे अनेक महत्वपूर्ण कार्य भी कार्यावली में शामिल किये गये हैं।
अध्यादेशों को कानून में बदलने पर संकट
संसद के बजट सत्र में सरकार के एजेंडे में 46 विधेयकों के अलावा शीतकालीन सत्र में लंबित रहे विधेयकों में मुस्लिम महिलाओं (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) अध्यादेश-2019, भारतीय चिकित्सा परिषद (संशोधन) अध्यादेश और कंपनी (संशोधन) अध्यादेश-2019 को विधेयकों में तब्दील कराना भी एक टेढ़ी खीर साबित होता नजर आ रहा है। इसका कारण विभिन्न मुद्दों पर सरकार को घेरने के इरादे से लामबंद विपक्षी दलों के तीखे तेवरों को देखते हुए सरकार के सामने मुश्किलें ज्यादा हैं। ऐसे में संसद में विपक्षी दलों के दोनों सदनों में हंगामा करने के आसार को देखते हुए केंद्र सरकार की संसद में कामकाज को निपटाने की राह में कदम दर कदम कांटे नजर आ रहे हैं।
11Feb-2019

देश में बढ़ते सड़क हादसों का कारण वाहनों की तेज रफ्तार


वैज्ञानिक जांच रिपोर्ट में हुआ हादसों के कारणों का खुलासा
हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली।
'राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा सप्ताह' में सड़क हादसों के आंकड़ो को लेकर किये गये अध्ययन में सामने आया है कि देश में हो रहे सड़क हादसों का बड़ा कारण वाहनों की तेज रफ्तार है। हालांकि इसके अन्य कारणों को भी यहां एक समारेाह में विशेषज्ञों ने सार्वजनिक किया है।
केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्रालय द्वारा आयोजित 'राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा सप्ताह' के तहत सर्वाधिक के तहत यहां अंतर्राष्ट्रीय सड़क महासंघ के 'ट्रॉमा केयर-ए नेशनल मिशन' विषय पर हुई एक सेमिनार में जेनेवा स्थित ग्लोबल रोड सेफ्टी बॉडी और बेहतर और सुरक्षित सड़कों के लिए काम करने वाली इस संस्था ने केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय और विश्व बैंक के एक अध्ययन और शोध की रिपोर्ट को सार्वजनिक किया, जिसमें देश में होने वाले सड़क हादसों के के पीछे के बड़े कारणों में से वाहनों की तेज रफ्तार ज्यादा खतरनाक साबित हो रही है। हालांकि सड़क हादसों में खराब सड़क और यातायात नियमों के उल्लंघन भी इनकी वजहों में शामिल हैं। सेमीनार में अध्ययन व शोध के आंकड़े देते हुए केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्रालय में अतिरक्त सचिव सुश्री लीना नंदन ने कहा कि तेज रफ्तार के कारण सर्वाधिक 23 फीसदी हादसे सामने आए हैं, जबकि शराब पीकर वाहन चलाने से 15 फीसदी, ओवरटेकिंग करने से 13 फीसदी, लापरवाही से वाहन चलाने से 9 फीसदी और सड़क की खराब हालत एवं गड्ढों के कारण 6 फीसदी सड़क हादसे होना पाया गया है। उन्होंने कहा कि हालांकि इसके अलावा  हुई हैं। रोड रेज, हिंसक व्यवाहर और चालक की थकान के कारण 3 फीसदी सड़क दुर्घटनाएं आंकी गई हैं। स्टंट करने, गलत साइड पर वाहन चलाने के अलावा वाहन चलाते समय मोबाइल फोन का इस्तेमाल करने से भी तीन-तीन फीसदी हादसे हुए हैं।
मंत्रालय की अतिरक्त सचिव सुश्री नंदन ने कहा कि सरकार के 2020 तक सड़क हादसों में 50 फीसदी कमी लाने के संयुक्त राष्ट्र के तहत लक्ष्य हासिल किया है, जिसके लिए जेनेवा स्थित ग्लोबल रोड सेफ्टी बॉडी और बेहतर और सुरक्षित सड़कों के लिए यह संगठन भी काम कर रहा है। सुश्री लीना नंदन ने कहा कि एनएचएआई सड़क निर्माण कंपनियों, राज्य परिवहन प्राधिकरण, सीपीडब्लयूडी, परिवहन विभागों, अस्पतालों, एम्बुलेंस सेवाओं, पुलिस, एनजीओ और नगर निकायों के साथ मिलकर सड़क सुरक्षा के बीच बेहतर समन्वय सुनिश्चित करने की दिशा में काम कर रहा है। वहीं केंद्रीय मंत्रालय के साथ स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय और विश्व स्वास्थ्य संगठन ने सड़क सुरक्षा इंजीनियरिंग को बढ़ावा देने पर बल दिया है।
हिमाचल में इस कारण हुए ज्यादा हादसे
सड़क परिवहन और और विश्व बैंक के एक अध्ययन और शोध में पाया गया है कि हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले में पिछले दो साल में अधिकतम सड़क दुर्घटनाओं का कारण दो पहिया सवार वाहनों को चलाने वालों के हेलमैट न पहनना बताया गया है। अंतर्राष्ट्रीय सड़क महासंघ के चेयरमैन केके कपिला ने कहा कि उचित वैज्ञानिक जाँच के बिना वर्तमान में हमें सटीक डेटा नहीं मिलता है जिसमें दुर्घटना का सही स्थान भी शामिल है। देश के विभिन्न हिस्सों में सड़कों पर। उचित जांच के बिना हम दुर्घटनाओं का सही कारण नहीं खोज सकते और कोई उपाय नहीं कर सकते। इस सेमीनार में विशेषज्ञों ने सड़क दुर्घटना पीड़ितों की जान बचाने के लिए भारत में ट्रामा केयर इनिशिएटिव्स, देशव्यापी कार्यान्वयन में चुनौतियां, ट्रॉमा केयर फॉरवर्डिंग- कॉरपोरेट्स और स्टार्ट अप्स की भूमिका और राष्ट्रीय आपातकालीन देखभाल जैसी योजनाओं पर भी चर्चा की।
10Feb-2019

देश में हर घंटे हो रही है एक बाल तस्करी!

सियासत के चक्रव्यूह में फंसा है राज्यसभा में संशोधित विधेयक
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली। 
केंद्र सरकार द्वारा मानव तस्करी पर शिकंजा कसने के लिए सख्त कानूनी प्रावधान वाला मानव तस्करी (रोकथाम, संरक्षण और पुनर्वास) विधेयक अभी तक सियासी चक्रव्यूह में फंसे होने के कारण राज्यसभा में लंबित है। जबकि दूसरी और खासकर बाल तस्करी के आंकड़ो का ग्राफ लगातार बढ़ रहा है। मसलन देश में हर घंटे एक या दो बालकों को तस्करी का शिकार बनाया जा रहा है।
एशियाई देशों में मानव तस्करी के गढ़ के रूप में कलंकित भारत में मानव तस्करी के गोरखधंधे पर लगाम कसने के लिए सख्त कानूनों को प्रावधान करते हुए केंद्र सरकार ने संसद के शीतकालीन सत्र में लोकसभा में मानव तस्करी (रोकथाम, संरक्षण और पुनर्वास) विधेयक-2018 पारित किया था, जो राज्यसभा में विपक्षी दलों की सियासत के कारण लंबित है। जबकि मानव तस्करी के बढ़ते ग्राफ में 60 फीसदी बच्चों को शिकार बनाया जा रहा है। गृह मंत्रालय के बुधवार को राज्यसभा में दिये गये मानव तस्करी के आंकड़े इस बात की गवाही दे रहे हैं कि देश में एक या दो बच्चों को हर घंटे तस्करी के जाल में फंसाया जा रहा है। हालांकि गृह मंत्रालय ने नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के 2016 व 2015 के आंकड़े देते हुए ताजा आंकड़ो संकलन से अनभिज्ञता जाहिर की, लेकिन वर्ष 2016 में देश के 29 राज्यों व सात केंद्र शासित प्रदेशों में बाल तस्करी में हो रही वृद्धि को स्वीकार करते हुए इस बात की पुष्टि की है कि वर्ष 2015 के मुकाबले 2016 में देश में मानव तस्करी के 20 फीसदी से ज्यादा मामले दर्ज किये गये हैं। मसलन वर्ष 2016 में मानव तस्करी के सामने आए 15,379 मामलों में 9034 मामले बाल तस्करी के हैं। जिनमें अभी तक इनमें जहां 4123 बालक हैं तो वहीं 4911 बालिकाएं शामिल हैं।
पश्चिम बंगाल टॉप पर
मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार बाल तस्करी के मामले में बालक-बालिकाओं के तस्करी के मामलों में सर्वाधिक 3113 मामले पश्चिम बंगाल के हैं। इसके बाद 2519 मामलों के साथ राजस्थान दूसरे पायदान पर है। उत्तर प्रदेश में वर्ष 2016 के दर्ज 822 मामलों में बालकों को तस्करी का शिकार बनाया गया। इसके बाद गुजरात में बाल तस्करी के 485, केरल में 332, तमिलनाडु में 317 और पंजाब में 206 मामले सामने आए हैं। केंद्र शासित प्रदेशों में राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली आबादी के हिसाब से सर्वाधिक 190 मामलों के साथ कम नहीं है। मंत्रालय के अनुसार बाल तस्करी के तहत नाबालिकों की खरीद-फरोख्त, बालिकाओं का आयात और खरीद तथा अनैतिक व्यापार के मामले सामने आए है। जबकि देश में मानव दुव्र्यापार, अनैतिक व्यपार अधिनियम, बंधुआ एवं बाल श्रम अधिनियम लागू हैं। इन अधिनियमों को सख्त करने की दिशा में एक विधेयक संसद में लंबित है।

पश्चिम बंगाल में सबसे खराब स्थिति
सरकारी आंकड़ों के अनुसार भारत में हर 8 मिनट में एक बच्चा लापता होता है। वर्ष 2011 में देश में लगभग 35,000 बच्चों की गुमशुदगी दर्ज हुई थी। इसमें से 11,000 से ज्यादा बच्चे सिर्फ पश्चिम बंगाल से लापता थे। इसके अलावा यह माना जाता है कि कुल मामलों में से केवल 30 फीसद मामलों में ही रिपार्ट दर्ज की गई और वास्तविक संख्या इससे कहीं अधिक है। वर्ष 2016 में भी मानव तस्करी के सबसे ज्यादा मामले पश्चिम बंगाल में दर्ज हुए थे। देश भर में एक साल में कुल 8,132 शिकायतों में से 3,576 केवल इसी राज्य से आईं। ये वो शिकायतें थीं जो दर्ज हुईं। जानकारों के मुताबिक, इससे कहीं ज्यादा मामले या तो दर्ज नहीं हुए या लोगों ने दर्ज ही नहीं कराए। ऐसे में वास्तविक आंकड़ा काफी बड़ा है।
07Feb-2019