रविवार, 27 जून 2021

विश्व पर्यावरण दिवस: भगवान को भूल रहे हैं हम

प्रकृति व संस्कृति के प्रति आस्था के बिना असंभव पर्यावरण संरक्षण -डॉ. राजेन्द्र सिंह, जल पुरुष विश्व पर्यावरण दिवस को मनाने की सच्चा सकंल्प और सार्थकता तभी पूरी हो सकती है, जब तक हम प्रकृति और संस्कृति का सम्मान करने वाली आस्था में विश्वास को मजबूत नहीं कर लेते। संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित पर्यावरण या अन्य घोषित दिवस मनाने की जरुरत इसलिए पड़ी, कि जब भी वैश्विक या राष्टीय संकट आए तो सरकारों का दायित्व और जिम्मेदारी है कि वे जनचेतना जगाने का काम करें। पर्यावरण दिवस पर्यावरण के संकट की तरफ लोगों का ध्यान खींचने और इस संकट के बारे में लोगों को याद दिलाने के लिए मनाया जाता है, लेकिन आज यह दिवस एक औपचारिकता महज बनकर रह गया है। हमारी सरकारें भी सिर्फ पर्यावरण जैसे दिवस मनाकर अपनी औपचारिकताएं पूरी कर रही हैं। हमें गंभीरता से सोचना होगा कि हम उस भगवान को भूल रहे हैं जिसने हमे निर्मित किया है। यदि हमें कोरोना जैसे वैश्विक संकट से निपटना है तो जलवायु परिवर्तन जैसे संकट को समझकर अपनी धरती, प्रकृति के प्रति जागरुक रहना जरुरी है। प्रकृति ही भारतीय आस्था का मान, सम्मान और व्यवहार ही हमारी संस्कृति थी, जिसे हमे बचाना होगा। यदि लोगों के भीतर पर्यावरण के प्रति आस्था नहीं है, तो एक दिन के लिए पर्यावरण दिवस मना लेने का कोई अर्थ नहीं है और इससे कुछ बदलाव नहीं होने वाला है। पर्यावरण की स्थिति विनाश की ओर बढ़ चली है और जन-जन के भीतर आस्था जगाए बगैर इस विनाश को रोक पाना कठिन है। देश में ही नहीं विश्वभर में पर्यावरण का संकट कोई मामूली संकट नहीं, बल्कि यह जीवन से जुड़ा हुआ संकट है। यह संकट इसलिए पैदा हुआ है, क्योंकि पर्यावरण के प्रति राज, समाज की आस्था खत्म हो गई है। कोरोना महामारी का संकट भी इस पर्यावरण संकट के साथ जुड़ गया है, जिसकी चुनौतियों से निपटने के लिए प्राकृति और संस्कृति के प्रति खत्म होती जा रही आस्था में फिर से विश्वास जगाने की जरुरत है। यह भी तय है कि जब तक यह आस्था फिर से पैदा नहीं होगी, तब तक हम पर्यावरण के संकट को दूर नहीं कर सकते। यह सभी को पता है कि हर जीव को जीवन देने के लिए बने पर्यावरण का क्या महत्व है। इसमें पेड़ जो कार्बन डाई ऑक्साइड ग्रहण करता है और ऑक्सिजन देता है तो सूर्य अपनी आभाओं से हर किसी को स्वस्थता का वरदान देता है। जल तथा वायु भी जीवन की समुन्नत के लिए महत्वपूर्ण है। लेकिन मानव अपनी लालसाओं के कारण पर्यावरण का दोहन कर रहा है, जिससे पर्यावरण पर बेहद नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। पर्यावरण अपने ऊपर के प्रदुषण रुपी दबाव को कम करने के लिए रौद्र रूप धारण कर लेता है, जिससे इंसानों तथा अन्य जीवों को जान-माल की हानि उठानी पड़ती है। हमें अपने पर्यावरण की पुकार समझनी पड़ेगी। कोरोना संकट भी हमारे जीवन संकट से जुड़ा हुआ है, जहां जल, जंगल, जमीन संरक्षित करने के लिए प्रकृति व संस्कृति में आस्था रखने पर संकट की चुनौतियों से निपटना संभव है। हम आज भगवान को भूल गये है यानि भू, गगन, वायु, अग्नि और नीर से मिलकर ही पर्यावरण का निर्माण हुआ है। इन्हीं पंच महाभूतों से हमारे शरीर का भी निर्माण होता है। पर्यावरण संकट में है तो समझो पंच महाभूत संकट में हैं। पर्यावरण का यह संकट हमने खुद ही से पैदा किया है। अब इसका एक मात्र उपाय यही है कि इन पंच महाभूतों के प्रति फिर से अपने भीतर आस्था पैदा करें, वरना विनाश दस्तक दे रहा है। इस विकसित भारतीय आस्था में प्रकृति थी, जिसके सम्मान के लिए जीना होगा। भारत की आस्था अंधविश्वास नहीं, बल्कि वैज्ञानिक आधार पर विकसित हुई थी, जिसमें जब तक प्रकृति व संस्कृति का सम्मान होता रहा तो हम विश्व गुरु थे। जैसे जैसे आस्थाएं खत्म हो गई, वैसे ही अनेक राष्ट्रीय व वैश्विक संकट के रूप में प्रदूषण और अनेक चुनौतियां सामने आ रही है। इस 21वीं शताब्दी में फिर से प्रकृति और संस्कृति में आस्था में विश्वास को पुनर्जीवित करके हम दुनिया को भारतीय संस्कृति की ओर आकर्षित कर सकते हैं। हमारी आस्था की इंजीनियरी प्रकृति और संस्कृति का दोहन करना नहीं सिखाती थी, लेकिन आज के आधुनिकी की तकनीक व इंजीनियरी में प्रकृति व संस्कृति का दोहन किया जा रहा है। इसी कारण से जलवायु परिवर्तन जैसी चुनौतियां सामने खड़ी है। इससे निपटने के लिए भी भौतिकवादी इंजीनियरी व तकनीक को अपनाया जा रहा है। ऐसे अब तो विनाश की तरफ ही बढ़ रहे हैं। सुधार की संभावना न के बराबर दिखाई देती है। लेकिन कोशिशें होती रहनी चाहिए, क्योंकि ये कोशिशें ही पुनर्निर्माण के बीज बनेंगी, और प्रकृति इन्हीं बीजों से एक बेहतर दुनिया का सृजन करेगी। विश्व पर्यावरण दिवस का संदेश देश के जन जन तक पहुंचाने की कौशिश होनी चाहिए, तभी पर्यावरण दिवस को सार्थक किया जा सकता है। कोरोना काल जैसे संकट के बीच विश्व पर्यावरण दिवस पर हमें और भी गंभीरता से सोचना होगा, कि प्रकृति के सम्मान के लिए एकजुटता के साथ सभी आगे आएं। -(ओ.पी. पाल से बातचीत पर आधारित) 06June-2021

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