रविवार, 6 जून 2021

साक्षात्कार:साहित्य के बिना संभव नहीं जीवन को समझना

चला रहे हैं युवा पीढ़ी को साहित्य के प्रति जागरूक करने का अभियान
साक्षात्कार: ओ.पी. पाल 
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व्यक्तिगत परिचय 
नाम: डॉ. सन्तराम देशवाल ‘सौम्य’ 
जन्म: 24 अप्रैल 1955 
जन्म स्थान: गांव खेड़का गुज्जर, जिला झज्जर (हरियाणा) 
शिक्षा: पीएचडी, एम.फिल, एमए (हिंदी), एमए (अंग्रेजी), एलएलबी, स्नातकोत्तर डिप्लोमा (पत्रकारिता एवं जनसंचार) 
अनुभव: छोटूराम कालेज सोनीपत में हिंदी के एसोशिएट प्रोफेसर के पद अध्यापन कार्य किया। 
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रियाणा साहित्य अकादमी द्वारा महाकवि सूरदास आजीवन साहित्य साधना पुरस्कार से सम्मानित प्रख्यात साहित्यकार डॉ. सन्तराम देशवाल 'सौम्य’ का मानना है कि जीवन को समझने के लिए साहित्य के मार्ग से जाना जरुरी है। यही कारण है कि साहित्य इस परिवर्तनशील युग और में भी साहित्य की महत्ता को कभी कम नहीं किया सकता। आज के इस आधुनिक युग में खासकर नई युवा पीढ़ी के बीच साहित्य सृजन की जरुरत को देखते हुए उन्हें प्रेरित किया जाना चाहिए। जो इंटरनेट को ही अपना सबसे बड़ा सहारा मानकर चल रहे हैं, इसी बदली सोच के कारण संवेदनशीलता कम हो रही है। इसी सोच को बदलने के प्रयास में साहित्य की प्रासांगिकता को बनाए रखने के लिए वे खुद सेवानिवृत्ति के बाद से देशभर में भ्रमण कर युवा पीढ़ी को साहित्य के प्रति जागरूक करने का अभियान चला रहे हैं। साहित्यकार डा. सन्तराम देशवाल ने हरिभूमि संवाददाता के साथ हुई बातचीत के दौरान साहित्य के क्षेत्र के ऐसे पहलुओं को साझा किया। 
प्रसिद्ध साहित्यकार एवं लेखक डा. सन्तराम देशवाल ने साहित्य के क्षेत्र में भारतीय संस्कृति के साथ हरियाणवी भाषा को भी सर्वोपरि रखते हुए अपनी लिखी दो दर्जन से ज्यादा पुस्तकों का लेखन करने के अलावा वे लंबे समय से पत्रकारिता के क्षेत्र में स्वतंत्र लेखन करते रहे। यही नहीं देश के विभिन्न समाचार पत्रों में उनके अलग से कॉलम भी प्रकाशित होते रहे और उन्होंने कई पत्रिकाओं का संपादन भी किया है। खासकर साहित्य अकादमी की हरिगंधा नामक प्रतिष्ठित पत्रिका का अतिथि संपादक रह चुके हैं। उन्होंने बताया कि वह इसके अलावा वे कई अन्य पत्र पत्रिकाओं का संपादन भी कर चुके हैं। दूरदर्शन और आकाशवाणी पर कई वार्ताएं प्रसारित हो चुकी है, तो वहीं विभिन्न संस्थाओं में शतश. व्याख्यान और संयोजन व संचालन भी करते रहे हैं। उन्होंने बताया कि वर्तमान में संपादन और विभिन्न संस्थाओं में हिंदी विशेषज्ञ तथा पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायाल में अधिवक्ता का दायित्व निभाने के साथे वे साहित्य सृजन के काम में जुटे हुए हैं। उनके निर्देशन में विभिन्न विश्वविद्यालयों के दर्जनों छात्र पीएचडी और एमफिल भी कर रहे हैं। प्रख्यात साहित्यकार एवं लेखक डॉ. सन्तराम देशवाल के 80 के दशक से विभिन्न समाचार पत्रों में अलग से कॉलम छपते रहे हैं। सोनीपत के छोटूराम सीआरए कॉलेज में उन्होंने हिंदी के सहायक प्रोफेसर के पद पर करीब 30 साल तक अध्यापन का कार्य किया। शिक्षक की भूमिका के साथ-साथ वे लेखन का कार्य भी करते रहे हैं। 2005 में आंगन में मोर नाचा, किसने देखा पुस्तक लिखी। वर्ष 2014 में वह सेवानिवृत हो गए। 
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पुरस्कार व सम्मान
हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा पत्रकारिता व लेखन के क्षेत्र में विशेष स्थान रखने वाले साहित्यकार डॉ. संतराम देशवाल को पांच लाख रुपये के महाकवि सूरदास आजीवन साहित्य साधना पुरस्कार-2018 से सम्मानित करने का फैसला किया गया। इससे पहले अकादमी ने डॉ. देशवाल को हरियाणवी भाषा में उकेरी गई कविता व गजल पर लिखी पुस्तक ‘अनकहे दर्द’ को वर्ष 2010 तथा 2004 लिखी गई उनकी पुस्तक ‘लोक-आलोक’ को सर्वश्रेष्ठ पुस्तक के रूप में पुरस्कृत करते हुए जनकवि मेहर सिंह सम्मान 2014 से नवाजा है। केंद्रीय साहित्य अकादमी दिल्ली भी डा. देशवाल को लोक साहित्य अनुवाद पुरस्कार से सम्मानित कर चुकी है। यही नहीं साहित्य जगत में योगदान को देखते हुए उन्हें बाल मुकुन्द साहित्य सम्मान, लोक साहित्य शिरोमणि सम्मान, पंचवटी सम्मान, काव्य कलश सम्मान, हिंदी सहस्त्राब्दी सम्मान, सर्वोत्तम शिक्षक सम्मान, सर्वोत्तम पत्रकारिता पुरस्कार, हादी-हरियाणा सम्मन, सोनीपत रत्न अवार्ड, शतश: सांस्कृतिक पुरस्कार के साथ कई निबंध और लेखन पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। इसके अलावा उन्हें समजा सेवा सम्मान पाने का भी सौभाग्य मिला है, जिनमें एमडीयू द्वारा तीन बार सर्वोत्तम कार्यक्रम अधिकारी सम्मान दिया गया। हरियाणा के राज्यपाल और उच्चतर शिक्षा विभाग द्वारा प्रशंसा पत्र के अलावा भारत सरकार से भी उन्हें प्रशंसा पत्र का सम्मान मिला है। 
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प्रमुख पुस्तकें
डा. सन्तराम देशवाल द्वारा लिखी गई प्रमुख पुस्तकों में हरियाणा: संस्कृति एवं कला, लोक आलोक, अनकहे दर्द, आंगन में मोर नाचा, किसने देखा, संस्कृति: स्वरुप एवं भूमंडलीकरण, संस्कृति दर्पण, लोक पथ, स्मृतियों के सोपान, लोक साहित्य में कड़का विधा, यायावरी की अनुभूतियां, हरियाणवी नवीत, बातं बातां म्हं के अलावा इक्कीसवीं सदी के ललित निबन्ध, फौजी मेहर सिंह ग्रंथावली, हिंदी ललित निबंध: स्वरुप एवं मूल्यांकन(समीक्षा) शामिल हैं। 
17May-2021

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