रविवार, 6 जून 2021

मंडे स्पेशल: कोरोना ने खत्म किये रिश्ते-नाते और आस्थाओं की परंपराएं

शमशान घाटों में अपनों का इंतजार कर रही हैं अस्थियां संक्रमण से मौत के बाद अपनों का कंधा तक भी नसीब नहीं ओ.पी.पाल.रोहतक।--- कोरोना ने रिश्तों और मानवता पर दोहरा प्रहार किया है। जिसकी टीस हमारे सामाजिक ताने बाने पर उभरी नजर आ रही है। अनेक पीडित परिवारों का दर्द है कि वो अंतिम समय में अपनों का चेहरा तक नहीं देख पाए। कोरोना प्रोटोकाल के चलते अंतिम संस्कार में उन्हें जाने तक की अनुमति दी गई। यह हमारे रिश्तों और संस्कारों का उजला आईना है जिसका दूसरा पक्ष अंधकार भरा है। इस महामारी में अनेक ऐसे भी रहे जो अपने परिवार में मौत होने पर उसे मुखाग्नि देने को श्मशान घाट तक ही नहीं पहुंच सके। ऐसे में उनका अंतिम संस्कार सरकारी कर्मचारियों ने कर दिया। अब उनकी अस्थियां लेने भी कोई नहीं आया। ऐसे अनेक मृतक हैं जिनकी अस्तियां हरिद्वार ले जाने को समाजिक संस्थाएं आगे आई हैं। हरियाणा के ज्यादातर जिलों में कोरोना की दूसरी लहर के कोहराम के बीच संक्रमण से मरने वालों का आंकड़ा आसमान छूता नजर आ रहा है। अब धीरे धीरे कोरोना संक्रमण के मामलों में तो कमी आ रही है, लेकिन उसके हिसाब से मौतों के आंकड़े में वो कमी आने का नाम नहीं ले रही है। मसलन कोरोना वायरस ने दुनिया ही नहीं बदली, बल्कि सामाजिक और धार्मिक परंपराएं तक बदलने को मजबूर कर दिया। कोरोना की वजह से लोगों में इतना भय बना हुआ है कि उसके कारण अपनो की मौत होने पर वह शमशान घाटों तक नहीं जा पा रहे। कोरोना संक्रमण से मरने वालों को अपनो का कंधा तक नसीब नहीं हो पा रहा है और दाह संस्कार भी स्थानीय निकायों के कर्मचारियों या विभिन सामाजिक संस्थाओं को करना पड़ रहा है। यही नहीं शमशान घाटों में अस्थियां रखने के लिए लॉकर तक बनाने पड़ रहे हैं, जहां अस्थियों को रखा जा रहा है। हालांकि देर से ही सही प्रदेश के ज्यादातर जिलों में परिजन अस्थियां अपना रहे हैं। बाकी जो अपनो का इंतजार करती अस्थियों को शमशान घाटों का संचालन करने वाली समितयां अथवा धार्मिक और सामाजिक संस्थाएं खुद विसर्जन करा रही हैं। सभी जगह ऐसा भी नहीं है, लॉकडाउन के कारण कुछ परिजन अपनों की अस्थियों को शमशान संचालकों के जरिए अस्थियों को शमशान घाट में ही सुरक्षित रखवा रहे, जिन्हें कुछ दिनों बाद उन्हें विसर्जन के लिए एकत्र करेंगे। ----प्रदेश में आठ हजार से ज्यादा मौतें---- प्रदेश में कोरोना संक्रमण की चपेट में आए आठ हजार से ज्यादा लोगों को मौत ने अपने आगोश में लिया है, लेकिन इनमें से पांच हजार से ज्यादा लोगों की मौत कोरोना की दूसरी लहर यानि अप्रैल व मई में हुई है। मौजूदा मई का महीना तो हरियाणा के लिए ज्यादा ही खौफजदा रहा है, जिसमें चार हजार लोगों को कोरोना संक्रमण ने लीला है। जाहिर सी बात है कि कोरोना संक्रमण से मरने वालों का अंतिम संस्कार भी कोरोना प्रोटोकॉल के तहत होता है। हालांकि हरियाणा में अकेले मई माह में अब तक चार हजार से ज्यादा लागों की संक्रमण से मौत हुई है, जिनमें कुछेक जिनकी अपने घर में ही मौत हुई है को छोड़कर ज्यादातर का अंतिम संस्कार कोरोना प्रोटोकॉल के हिसाब से हुआ है। ----ज्यादातर अपने कर रहे हैं अस्थियां विसर्जित---- हरियाणा में कोरोना के खौफ के बावजूद संक्रमण से मरे लोगों का भले ही अंतिम संस्कार नगर निगम, स्वास्थ्य विभाग की टीमों या सामाजिक संस्थाओं ने कराया हो, लेकिन अपनों की अस्थियां लेने के लिए ज्यादातर परिवारों ने दिलचस्पी दिखाई है। मसलन हिसार में करीब आठ सौ लोगों का दाह संस्कार नगर निगम की टीमों ने कहराया, लेकिन ज्यादातर लोगों ने अपनों की अस्थियों को ग्रहण किया। इसी प्रकार करनाल में चार सौ लोगों का दाह संस्कार हुआ, जहां अनेक लोगों की अस्थियां शमशान घाटों के लॉकरों में बंद है। महेन्द्रगढ़ जिलें में भी करीब डेढ सौं लोगों की कोरोना से मौत हुई और परंपराओं के विपरीत कोरोना नियम से दाह संस्कार हुआ, ज्यादातर परिजनों ने अपनों की अस्थियों को अपनाया है। यमुनानगर में संक्रमण से मरने वाले करीब 350 का दाह संस्कार हुआ, जिनमें से एक को छोड़कर सभी परिजनों ने अस्थियां चुनी। कुरुक्षेत्र में करीब पौने दो सौं लोगों के दाह संस्कार के बाद अपनों ने अस्थियां चुनकर विसर्जित की। इस जिले में 193 ऐसे लावारिश शवों को दाह संस्कार हुआ, जिनकी अस्थियों को सामाजिक संस्थाओं ने हिंदू रीति रिवाज के साथ हरिद्वारा में विसर्जित किया। रेवाडी में अभी भी 15 लोगों की अस्थियां शमशान घाट के लॉकरों में बंद हैं, जबकि 115 लोगों की अस्थियों को उनके परिजन लेकर गये हैं। जबकि सोनीपत में सामाजिक संस्थाओं द्वारा 420 शवों का दाह संस्कार कराया, जिनमें केवल 15 लोगों की अस्थियां अपनों का इंतजार कर रही हैं। ---क्या है दाह संस्कार का प्रोटोकॉल---- कोरोना प्रोटोकॉल के तहत जिस भी कोरोना संक्रमित मरीज की इलाज के दौरान मौत होती है, तो उसकी सूचना परिजन को तो दी जाती है, लेकिन शव को चिकित्सकों की देखरेख में एंबुलेंस के साथ सीधे शमशान घाट पहुंचा जा रहा है, जहां परिजनों को सीमित संख्या में कोरोना दिशानिर्देशों की पालन की शर्त पर अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए बुलाया जाता है। शमशान घाट पर नगर निगम और स्वास्थ्य कर्मियों द्वारा पीपीई किट के तहत दाह संस्कार कराया जाता है, जिसमें परिजनों को अपने के अंतिम दर्शन करने की भी इजाजत नहीं है। यदि अंतिम दर्शन कराने होते हैं तो परिवार के केवल दो लोगों को पीपीई किट के साथ कोरोना प्रोटोकोल के पालन के साथ केवल चेहरा दिखाया जा सकता है। इस प्रोटोकॉल के तहत दाह संस्कार से पहले की कोई रस्म तक नहीं हो पा रही है। दाह संस्कार के बाद परिजन अस्थियां ले सकते हैं और यदि समय रहते नहीं ले पाते, तो उन्हें शमशान घाट के लॉकर में रख दिया जाता है। ---क्या रही प्राचीन परंपराएं---- सामान्य या गैर कारोना बीमारी से मरने वाले लोगों का परिजन दाह संस्कार और तेरहवीं जैसी सभी अन्य रस्मे धार्मिक परंपराओं के तहत करते हैं, जिनके अंतिम दर्शन के साथ शव यात्रा में रिश्ते-नाते वालों के अलावा पडोसी और अन्य जानकार भी शामिल होकर परिजनों के साथ अर्थी को कंधा तक देते हैं। शमशान घाट पर वहां की संचालन समिति में शामिल पंडित द्वारा चिता लगाने से पहले की जाने वाली धार्मिक रस्म और नहलाने जैसी परंपरा पूरी की जाती है। इसके बाद तीजा की रस्म से पहले यानि दाह संस्कार के तीसरे दिन सुबह ही परिजन चिता से अपनों की अस्थियां चुनकर ले जाते हैं, जिन्हें गंगा या अन्य जल प्रवाह में रीति रिवाज के साथ विसर्जित करते हैं। इसी प्रकार की बहुत सी परंपराएं हैं जो तीजा और तेरहवीं तक होता है। वहीं देवी देवताओं में आस्था बनाए रखने के लिए पिंड दान की परंपरा भी है। लेकिन कोरोना संक्रमण के कारण पडोसी और रिश्तेदार का तो कोई सवाल ही नहीं, बल्कि परिजन भी अपनो की अस्थियां तक अपनाने से दूर भाग रहे हैं। 31May-2021

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