रविवार, 6 जून 2021

साक्षात्कार: ललिता चौधरी ने हरियाणवी रेजा को दी अंतर्राष्ट्रीय पहचान

सात समंदर पार तक होने लगी देशी खादी के परिधानों की मांग साक्षात्कार: ओ.पी. पाल हरियाणा के पारंपरिक रेजा से बने परिधान(कपड़े) को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान देने वाली हरियाणा की बेटी ललिता चौधरी एक ऐसी सुप्रसिद्ध फैशन डिजाइरों में शुमार हो चुकी है, जिनके हाथ से तैयार रेजा यानि देशी खादी के परिधानों की मांग सात समंदर पार तक होने लगी है। दरअसल एक तरह से विलुप्त होती हरियाणवी रेजा की कला को पुनर्जीवित करने के मकसद से ललिता चौधरी ने रिसर्च करने के बाद नेचुरल फैब्रिक रेजा पहचान दिलाना ही अपनी जिंदगी का बना लिया। हरियाणवी रेजा का भारतीय समाज में नई दिशा देने वाली अंतर्राष्ट्रीय फैशन डिजाइनर ललिता चौधरी ने हरिभूमि संवाददाता से विशेष बातचीत में प्राकृतिक रेजा के इतिहास और इससे बने परिधानों के फायदों को लेकर अनेक ऐसे पहलुओं को साझा किया, जो आज के इस आधुनिक युग में नई पीढ़ी को भी भारतीय संस्कृति और परंपराओं के लिए प्रेरित करती हैं। 
भारतीय संस्कृति में पाश्चत्य संस्कृति इस कदर प्रवेश कर चुकी है कि तमाम पारंपरिक रीति रिवाज हो या खानपान और यहां तक कि पहनावा भी विदेशी डिजाइन के कपड़ों ने पूरी तरह से बदल दिया है। ऐसे में हरियाणा के ग्रामीण परिवेश में पली और साधारण, मधुर व्यवहार वाली रोहतक के नदीकी गांव बोहर की रहने वाली ललिता चौधरी ने फैशन डिजाइनर की डिग्री लेने के बाद फैशन डिजाइनों के परिधानों की चकाचौंध में जाने के बजाए भारतीय संस्कृति को सर्वोपरि रखा और नेचुरल फैब्रिक रेजा यानि देशी खादी को बढ़ावा देने की ठान ली, जो खासकर हरियाणा का पारंपरिक रेजा एक ऐसा नेचुरल फाइबर है, जिससे बने कपड़े गर्मी, सर्दी या वर्षाऋतु जैसे मौसमों में भी इंसान के शरीर के तापमान को संतुलित रखने में सक्षम हैं। रेजा के इतिहास के बारे में ललिता चौधरी ने कहा कि रेजा हरियाणा की करीब तीन शताब्दी पुरानी कला है, जिसका जिक्र गरीबदास की पौथी में में भी मिलता है। लेकिन पाश्चत्य संस्कृति का दौर बढ़ने के साथ साथ धीरे धीरे इस कला को भुला दिया या विलुप्त कर दिया गया। उन्होंने बताया कि डेढ़ सौ साल पुराने रेजा से बने कपड़ों को एकत्र किया और कला पर को फिर से पहचान दिलाने के लिए रेजा पर दो-तीन तक साल रिसर्च किया। हरियाणा में कुछ साल पहले शायद ललिता चौधरी ही एक ऐसी अकेली महिला थी, जो रेजा से कपड़े तैयार कर रही थी, लेकिन बकौल ललिता 2016 से उन्होंने देश में महिला सशसक्तिकरण के सरकारी मंत्र को नई दिशा देते हुए सूबे की महिलाओं को रेजा के लिए प्ररित करना किया। वे आज भी महिलाओं, बेरोजगारों और यहां तक जेल में विचारधीन कैदियों को भी रेजा तैयार करने का प्रशिक्षण दे रही हैं। 
महिलाओं में बढ़ी आत्मनिर्भरता
हरियाणा में पुनर्जीवित होती रेजा कला की परंपरा साफतौर पर नजर आ रही है। ललिता चौधरी के खुद गांव में रेजा और रेजा से कपड़ा तैयार करने वाली अनेक हथकरघा यानि खड्डियां लगी है और महिलाएं घरों में चरखे से रेजा भी तैयार कर रही हैं। एक अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बना चुकी ललिता चौधरी हरियाणा में ही नहीं देश के अन्य राज्यों में भी रेजा कला को प्रोत्साहित करके खासकर महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने में लगी है। इसका नतीजा यह है कि अब रेजा से बनने वाले आधुनिक वस्त्रों की तकनीकी हासिल कर महिलाएं एक उद्यमी के रूप में काम करने लगी हैं। उनका मानना है कि इससे रोजगार सृजन को भी बढ़ावा मिल रहा है। मसलन वे रेजा को तैयार करने का जेलों में कैदियों और स्कूलों में विद्यार्थियों को भी कौशल प्रशिक्षण दे रही हैं। उनके खुद के गांव में खाकी कपास की खेती होने लगी है, जिससे सूती और नेचुरल फैब्रिक रेजा को नई तकनीक मिलेगी।
रेजा से जन्म का नाता
ललिता चौधरी ने रेजा कला की पंरपरा का जिक्र करते हुए कहा कि कई बार कुछ पुरानी परंपरा की बातें भले ही अजीब लगती हों, लेकिन इस सच्चाई से इंकार नहीं किया जा सकता कि इंसान के जन्म से रेजा कला का सीधा नाता जुड़ा है। यदि देखा जाए तो 50 साल पहले जन्में लोगों को इसकी परंपरा का स्मरण हो जाएगा। कहने का तात्पर्य है कि जब बच्चे का जन्म होता था तो रेजा से बने कपड़े के ही पौतड़े ही इस्तेमाल किये जाते थे और बच्चों को गर्मी या सर्दी से बचाए रखने के लिए रेजा यादी देशी सूत से बने कपड़े में ही रखा जाता था। मसलन इस आधुनिक युग में जिंदगी से जुड़े इस इतने गहरे विज्ञान को भी छुपाए रखा या उसे भुला दिया गया है। 
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर रेजा की पहचान
हरियाणवी रेजा की पंरपरा में रेजा कला को फिर से ललिता चौधरी ने जो पहचान दिलाई है, उसी का नतीजा है कि देश-विदेशों में आयोजित होने वाले फैशन वीक में रेजा से बने परिधान अलग-अलग डिजाइनों में लोगों को आकर्षित नजर आने लगे है। वर्ष 2016 से अंतरराष्ट्रीय हस्तशिल्प बाजार में विशिष्ट पहचान बनाने वाली ललिता के बनाए हुए हरियाणवी रेजा के परिधानों ने अमेरिका के शहर न्यूयार्क में आयोजित फैशन वीक जो धूम मचाई थी, उसने हरियाणवी रेजा को ही नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति को चार चांद लगा दिये। इसी प्रकार फरीदाबा के हरसाल लगने वाले सूरजकुंड मेले में रेजा के परिधान देश विदेश के आने वाले पर्यटकों को अपनी और आकर्षित करते हैं। करीब सात साल से रेजा को हाथ से तैयार करने के बाद हथकरघा(खड्डी) पर कपड़ा तैयार करके अलग अलग तरह के डिजाइनों में परिधान बनाये जा रहे हैं। रेजा की परंपरा को पुनर्जीवित करने के लिए वे महिलाओं का भी सशक्तिकरण कर उन्हें आत्मनिर्भर बनाने में जुटी है। उनकी यह मुहिम आज इस मुकाम तक पहुंच चुकी है कि रेजा फैब्रिक की मांग विदेशों में भी होने लगी है। 
ऐसे तैयार होता है रेजा
प्रसिद्ध फैशन डिजाइनर व समाजसेविका के रूप में ललिता चौधरी ने बताया कि पुराने जमाने में घरों में चरखे पर महिलाएं कपास यानि रुई को चरखे पर कातती थी, जो एक रेजा कला थी। धीरे धीरे भौतिकवाद की संस्कति में ढलते समाज में ये परंपराएं खत्म हो गई। इस परंपरा में चरखे पर कताई से तैयार धागे को रंगरेज के पास रंगाई और उसके बाद जुलाहे के पास भेजा जाता है, जहां हथकरघा(खड्डी) पर अलग-अलग रंगों व डिजाइनों में देकर कपड़ा तैयार कराया जाता है। 
रेजा से कई चीजें तैयार
ललिता ने बताया कि रेजा का धागा मोटा होता है,लेकिन उन्होंने रिचर्स के बाद पतला धागा तैयार कराना शुरू किया है। उन्होंने बताया कि अब घरों में ही रेजा से बने जूते,चप्पल, साड़ी, कुर्ता ,पजामा ,शाल,चादर, बैग, पर्स, परदे, जैकेट आदि सामान भी बना रही हैं और बनवा भी रही हैं। इस फैब्रिक यानि कपड़ा सर्दी और गर्मी के लिए आरामदायक होता है और शरीर के लिए भी अनुकूल है यानि एक तरह से यह एंटी वैक्टीरियाल और रसायनमुक्त है। 
सम्मान की हकदार ललिता
हरियाणा रेजा को नई पहचान देने वाली ललिता चौधरी को राज्यपाल कलाश्री पुरस्कार से सम्मानित कर चुके हैं। वहीं चंडीगढ़ विश्वविद्यालय ने समाज सेवा और उद्यम को प्रोत्साहित करने व उत्कृष्ट कार्य के लिए वीमैन आईकॉन ऑफ द ईयर सम्मान से भी नवाजा है। राज्य के महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा हरियाणा कला परिषद के अभियान ‘म्हारी बेटी, म्हारा अभिमान’के तहत भी सम्मान हासिल हुआ है। इसके अलावा इस कार्य और समाज को दिशा देने में योगदान करने वाली ललिता चौधरी को विभिन्न संस्थाएं सम्मान दे चुकी हैं। ---
कोरोनाकाल में योगदान
हरियाणवी रेजा कला का इस्तेमाल कोरोनाकाल के दौरान मास्क बनाने में भी किया गया। ललिता के अनुसार आयुष मंत्रालय के आर्डर पर बनाए गये रेजा के मास्क बेहद पसंद किये गये। यही नहीं फैशन डिजाइनर ललिता चौधरी का केरल सरकार के साथ एक अनुबंध हुआ है, जिसके तहत वे केरल में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की महिलाओं को रेजा तैयार करने का प्रशिक्षण देंगी। 24May-2021

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