सोमवार, 26 अप्रैल 2021

मंडे स्पेशल: हरियाणा में अजीबो गरीब तरीके से बढ़ रही हैं महिला हिंसा

कोरोना काल में लॉकडाउन के बाद बढ़ी घरेलू हिंसाएं हर दो घंटे मे दहेज प्रताड़ता की शिकार महिलाएं रोजाना सात महिलाओं का अपहरण और छह से छेड़खानी ओ.पी. पाल, रोहतक। हरियाणा में महिलाओं के खिलाफ अपराधों का रिकार्ड अच्छा नहीं कहा जा सकता, जहां अजीब तरह के मामलों यानि जरा सी बात पर महिलाओं को हिंसा और अपराधों को शिकार होना पड़ है। खासकर कोरोना काल में लॉकडाउन और उसके बाद महिलाओं के खिलाफ अपराधों ने ज्यादा गति पकड़ी है,उसकी गवाही आंकड़ दे रहे हैं। शायद यही वजह है कि प्रदेश में बढ़ते महिला हिंसा के मामलों में सबसे ज्यादा महिलाओं को दहेज की खातिर प्रताड़ना का शिकार बनाया गया है। मसलन यानि हर दो घंटे में एक महिला दहेज प्रताड़ना की शिकार हो रही है। यही नहीं राज्य में हर दिन सात महिलाओं का अपहरण और छह के साथ छेड़छाड़ की वारदात हो रही हैं। जबकि कम से कम हर दिन चार महिलाओं को बलात्कार का शिकार बनाया जा रहा है। महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराधों की वजह से न जाने राज्य में कितने रिश्ते बिखरकर तार तार हुए और और कितनों का विश्वास टूटा है? हरियाणा राज्य में किसी खास वजह से नहीं, बल्कि बिना किसी आधार के जरा सी बात पर कलह के चलते महिलाओं को हिंसा का शिकार बनाया जा रहा है। जैसे सब्जी में नमक मिर्च का कम या ज्यादा होना, बासमती चावल न बनाना, प्याज-लहुसन का सेवन न करना, ससुराल से शगुन में दस रुपये न मिलना, सास ससुर का कहना न मानना, मोबाइल पर बातें करना, पति का पत्नी और पत्नी का पति पर अन्य के साथ अवैध संबन्धों का शक करना, शराब या नशा करने का विरोध करना, प्रेम प्रसंग में धोखा देना, वीडियो बनाकर यौन शोषण करने जैसे अजीबो गरीब महिला अपराध दर्ज हो रहे हैं। राज्य में बलात्कार और यौन शोषण के मामलों में बच्चों से लेकर बुजुर्गो तक शिकार बनाया गया है। जबकि आंकड़ो के मुताबिक राज्य में ऐसे मामलों से बढ़ते गृह कलेस में दहेज उत्पीड़न के मामलों ने ज्यादा रफ्तार पकड़ी है। ------------------------------ लॉकडाउन बना मुसीबत का सबब देशभर में कोरोना महामारी के कारण लॉकडाउन के दौरान 'वर्क फ्राम होम' के तहत नौकरी पेशे वालों के घरों में कैद रहे, तो इस दौरान महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसाओं में हुई बढ़ोतरी की पुष्टि राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा ने शिकायतों के आधार पर की थी। मसलन वर्ष 2020 के पहले छह महीने में आयोग को महिालाओं के प्रति घरेलू हिंसा की 23,722 शिकायतों में हरियाणा भी अछूता नहीं रहा और महिलाओं के प्रति अपराधों के 10,978 मामलों के साथ हरियाणा देश में तीसरे स्थान पर नजर आया। हरियाणा पुलिस ने राज्य में महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराधों पर अंकुश लगाने का दावा किया और वर्ष 2020 में महिला अपराधों से संबंधित मामलों को सुलझाने सक्रीयता दिखाई है। पुलिस के जारी आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2020 में दुष्कर्म, छेड़छाड़ व दहेज हत्या के 96-96 प्रतिशत तो महिला अपहरण के 87 प्रतिशत केस सुलझाने का दावा किया है। हरियाण में वर्ष 2020 के दौरान महिलाओं के प्रति अपराधों के 10,978 मामले सामने आए हैं, जो अपराधों में गत वर्ष के मुकाबले बहुत कम हैं। ------------------ ऐसे मामलों ने चौंकाया हिसार जिले में दर्ज मामलों में ससुराल से शगुन के दस रुपये न देने और बासमती चावल नहीं बनाने पर तलाक मांगा गया। वहीं प्याज लहुसन खाने का एक मामला अदालत तक तक जा पहुंचा। वहीं पत्नी की हत्या में मासूम बच्चे ने सिपाही पिता के खिलाफ चश्मदीद गवाह बनने का मामला भी सामने आया। भिवानी जिले में एक घर में दोनों बहनों में एक से बिगड़ी, तो दूसरी से भी तलाक की नौबत आई, कांउसलिंग के बाद बाममुश्किल बसे दोनों घर। अंबाला जिले में तो हद हो गई, जहां एक मामला 85 साल की बुजुर्ग महिला से बलात्कार का दर्ज हुआ। ------------------------ दहेज उत्पीड़न के रिकार्ड मामले हरियाणा पुलिस के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2020 के दौरान महिलाओं के प्रति अपराध के दर्ज मामलो में बलात्कार के 1511, महिला अपहरण के 2697, छेड़छाड़ के 2396, दहेज हत्या के 252 और दहेज उत्पीड़न के 4122 सामने आए हैं। जबकि इससे पहले हरियाणा में वर्ष 2019 में महिलाओं के प्रति अपराध के 14683 मामले दर्ज हुए थे। इसके अलावा एक मामला अनुसूचित जाति के तहत दर्ज हुआ था। ---------------------- दलित महिलाओं के दुष्कर्म राज्य में वर्ष 2019 में 120 बलात्कार के दर्ज ऐसे मामले सामने आए, जो अनुसूचित जाति की महिलाओं से संबन्धित थे, जो वर्ष 2018 में 99 मामलों की तुलना में ज्यादा हैं। अनुसूचित जाति की नाबालिग लड़कियों यानि 18 साल से कम बच्चों के बलात्कार के मामले वर्ष 2019 में 101 और 2018 में 72 मामले सामने आए। इन मामलों को पॉस्को अधिनियम की धारा 4 व 6 की आईपीसी की धारा 376 के तहत दर्ज किया गया है। ---------------- महिला सुरक्षा के लिए केंद्रीय वित्तीय मदद केंद्रीय गृहमंत्रालय से महिलाओं की सुरक्षा संबन्धी परियोजनाओं के लिए लिए निर्भया कोष का इस्तेमाल करने के लिए हरियाणा के लिए वर्ष 2015-16 में 22.23 करोड़ रुपये की धनराशि का अनुमोदन किया गया था। इसमें वर्ष 2019-20 में 5.52 करोड़ दी गई। जबिक वर्ष 2018-19 में इस मद में कोई राशि नहीं दी गई। हालांकि इससे पहले राज्य को वर्ष 2017-18 में 2.53 करोड़ और वर्ष 2016-17 के दौरान 14.19 करोड़ रुपये की राशि जारी की गई है। इसी प्रकार महिला सशक्तिकरण के लिए चलाई जा रही प्रधानमंत्री महिला शक्ति केंद्र योजना के लिए भी राज्य सरकार को धनराशि का आवंटन किया गया है, जिसमें वर्ष 2020-21 में 13.39 लाख रुपये, वर्ष 2019-20 में 94.57 लाख रुपये तथा वर्ष 2018-19 में 6.91 लाख रुपये केंद्र सरकार से जारी किये गये। --------------------------------------------- हरियाणा में पिछले सात साल में महिला अपराध के मामले ----------------------------------------- वर्ष दर्ज मामले लंबित मामले दोषसिद्ध दर 2014 9010 ------ ------ 2015 9511 15197 18.1% 2016 9839 16440 13.4% 2017 11370 18148 15.4% 2018 14326 20580 17.1% 2019 14683 23456 16.1% 2020 10,978 ------ ------ ++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++ उपहास का शिकार को मजबूर बलात्कार पीडि़ताएं भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में ज्यादातर मामले ऐसे हैं जहां पीड़ितों ने किसी बड़ी घटना से पहले ही पुलिस से संपर्क किया जाता है और छेड़छाड़ या पीछा करने की शिकायत दर्ज कराई जाती है, लेकिन अक्सर इन शिकायतों को गंभीरता से नहीं लिया जाता है और फिर यही आगे चलकर किसी बड़े अपराध का रूप ले लेता है। बलात्कार के मामलों में तो ऐसी स्थिति बहुत ही ज्यादा खराब है। मसलन जब वे पहली सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) दर्ज करने के लिए पुलिस से संपर्क करते हैं, तो उन्हें उपहास और अपमान का सामना करना पड़ता है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के 2019 में आए आंकड़ों पर गौर किया जाए तो पता चलता है कि बलात्कार के मामलों के लिए सजा की दर 27.8 फीसदी है। दूसरे शब्दों में प्रत्येक 100 आरोपियों में से केवल 28 ही दोषी पाए जाते हैं। पुलिस द्वारा बलात्कार के मामलों में महत्वपूर्ण फोरेंसिक सबूतों का संग्रह, परिवहन और भंडारण अक्सर खराब तरीके से संचालित किया जाता है। इसके परिणामस्वरूप कुछ अपराधी भी बचकर निकल जाते हैं। ---------------------------- सुप्रीम कोर्ट के निर्देश नजरअंदाज राष्ट्रमंडल मानवाधिकार पहल 2020 की रिपोर्ट के अनुसार एक भी राज्य या केंद्रशासित प्रदेश ऐसा नहीं है, जो शीर्ष अदालत के निर्देशों का पूरी तरह से पालन कर रहा हो। यानी अधिकांश राज्य ऐसे हैं जो इनमें से ज्यादातर निर्देशों का पालन नहीं कर रहे हैं। विशेषज्ञों की माने तो ये सुधार बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि ये पुलिस की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करते हैं, बोर्ड को स्थानांतरण और पोस्टिंग तय करने का अधिकार देते हैं, और वहीं ये उचित प्रशिक्षण मॉड्यूल परिवर्तन को भी सुनिश्चित करते हैं। अगर हम वास्तविक बदलाव चाहते हैं तो हमें सुधारों के साथ-साथ मानसिकता को भी बदलना होगा। ----------------------------- पुलिस में पर्याप्त नहीं महिलाओं की भागीदारी स्टेटस ऑफ़ पोलिसिंग इन इंडिया रिपोर्ट-2019 के मुताबिक भारत के पुलिस बल में महिलाओं की भागीदारी केवल 7.28 प्रतिशत है। इन महिलाओं में से 90 फीसदी कांस्टेबल हैं, जबकि एक फीसदी से कम ही पर्यवेक्षी जैसे उच्च पदों पर हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक ज्यादातर महिला पुलिसकर्मी रजिस्टरों को मेंटेन करने, एफआईआर दर्ज करने और अन्य छोटे काम करते हैं, जबकि उनके समकक्ष के पुरुष पुलिसकर्मी इनवेस्टिगेशन करने, गश्त करने व वीआईपी सुरक्षा प्रदान करने जैसा कार्य करते हैं। इस प्रकार की कार्यप्रणाली खासतौर पर महिलाओं से संबंधित अपराधों के प्रति भी ऐसे अपराधों को नियंत्रित करने में उचित नहीं है। ----------------- पुलिस बल की कमी गृह मंत्रालय से संबद्ध ब्यूरो पुलिस अनुसंधान एवं विकास के अनुसार साल 2019 में देश में प्रति लाख आबादी पर 198 पुलिस अधिकारी हैं, जो संयुक्त राष्ट्र द्वारा अनुशंसित 222 पुलिस अधिकारी प्रति लाख जनसंख्या के पैमाने के मुकाबले काफी कम है। इसके परिणामस्वरूप पुलिस कर्मियों पर काम का बोझ बढ़ने के कारण उनकी दक्षता में कमी देखी गई है और इसका मनोवैज्ञानिक दबाव भी होता है। इसलिए पुलिस संगठन के प्रभावी कामकाज के लिए एक अच्छा विश्वसनीय संचार प्रणाली महत्वपूर्ण है। -------------------------- महिलाओं के खिलाफ साइबर अपराधों की रोकथाम केंद्रीय गृह मंत्रालय का महिलाओं और बच्चों के खिलाफ साइबर अपराध रोकथाम पर मुख्य जोर है। इस पहले के तहत हरियाणा समेत 14 राज्यों ने साइबर फॉरेंसिक ट्रेनिंग लैबोरेटरी की स्थापना कर ली है। इन राज्यों में 13295 पुलिस कर्मचारियों, अधिवक्ताओं और न्यायिक अधिकारियों को महिलाओं और बच्चों के खिलाफ साइबर अपराधों की पहचान, पता लगाने और समाधान में प्रशिक्षण दिया गया है। वहीं गृह मंत्रालय द्वारा शुरू किये गये पोर्टल www.cybercrime.gov.in पर नागरिक अश्लील कंटेंट की सूचना देने की सुविधा शुरू की गई है, जिसे 72 घंटों के भीतर ब्लॉक कराया जा सकता है। ------------------- बलात्कार के मामले में सख्त प्रावधान केंद्र सरकार ने बीते 7 साल के दौरान महिलाओं के सशक्तिकरण और उनकी सुरक्षा की दिशा में कई कदम उठाने का दावा किया है। यौन हमलों के घृणित मामलों के खिलाफ आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम-2018 के जरिए बलात्कार की सजा को ज्यादा कठोर बनाया गया है। कानून में संशोधन को प्रभावी रूप से जमीनी स्तर पर लागू करने के लिए राज्यों में यौन अपराधों के लिए जांच निगरानी प्रणाली, यौन अपराधियों का राष्ट्रीय डाटाबेस, सीआरआई-एमएसी (क्राइम मल्टी-एजेंसी केन्द्र) और नई नागरिक सेवाएं शुरू की गई हैं। आईटी से जुड़ी इन पहलों से समयबद्ध और प्रभावी जांच में सहायता मिलती है। केंद्र सरकार ने सभी राज्यों व संघ शासित क्षेत्रों से इन ऑनलाइन टूल्स के प्रभावी उपयोग के लिए बलपूर्वक सिफारिश की है। वहीं पुलिस थानों में महिला सहायता डेस्क की स्थापना और देश के सभी जिलों में मानव तस्करी रोधी इकाइयों की स्थापना के मजबूती के उद्देश्य से राज्यों के लिए 200 करोड़ रुपए की स्वीकृति दी है। ------------------------------- लंबित मामलों का ग्राफ बढ़ा हरियाणा में महिला अपराधों के निपटान न होने के कारण लंबित मामलों का अंबार खड़ा होता जा रहा है। वर्ष 2019 में प्रदेश में 23456 मामले लंबित थे, जबकि वर्ष 2018 में विचारण के लिए ऐसे लंबित मामलों की संख्या 20580 थी। इससे पहले 2017 में 11370, 2016 में 9839, 2015 में 9511 और 2014 में 9010 मामले लंबित थे। ------------------- आरोप सिद्ध की दर बेहद कम हरियाणा में महिला अपराधों के आरोपियों में 20 फीसदी से कम ही दोषी करार दिये जाते हैं। यानि पिछले पांच साल के आंकड़ों पर गौर की जाए तो वर्ष 2019 में 16.1 प्रतिशत, 2018 में 17.1 प्रतिशत, 2017 में 15.4 प्रतिशत, 2016 में 13.4 प्रतिशत और 2015 प्रतिशत 18.1 आरोपियों पर ही अपराध सिद्ध हुआ है। मसलन ज्यादात आरोपी साक्ष्य या अन्य सबूतों के अभाव मामलों से बाहर निकल जाते हैं। 22Mar-2021

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