सोमवार, 26 अप्रैल 2021

आजकल: पश्चिम बंगाल: ममता और मोदी के बीच वर्चस्व का संघर्ष

-धीरेन्द्र पुंडीर, राजनीतिक विश्लेषक पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव की शतरंज पर मुख्य मुकाबले में पीएम मोदी और राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी है, बाकी सियासी दल या नेता तो इस सियासी शतरंज की मोहरे हैं। मसलन बंगाल चुनाव में मां माटी मानुष के नारे के साथ बंगाली लोगों में लोकप्रिय रहीं मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अपने राजनीतिक वजूद को बचाने के लिए वर्चस्व के लिए संघर्ष कर रही है। जबकि पिछले लोकसभा चुनाव के नतीजों से भाजपा राज्य में सत्ता हासिल करने के इरादे से सभी दांवपेंच के साथ पूरी ताकत झोंकें हुए है। तृणमूल कांग्रेस के वे ज्यादातर नेता ममता को अकेले छोड़कर भाजपा के साथ चले गये हैं, जिन्हें ममता ने सियासी ताकत देने का काम किया। इससे ममता को अपना सियासी किला दरकता तो नजर आ रहा है, लेकिन वह भाजपा के हिंदुत्व की राजनीति का अनुसरण करने के साथ मंचों पर कलमा भी पढ़ने से पीछे नहीं है। इसका कारण यह भी है कि ममता बनर्जी पर मुस्लिम तुष्टिकरण जैसे आरोप भी लगते रहे हैं। बंगाल के चढ़ते चुनावी पारे में जिस प्रकार के आरोप प्रत्यारोपों का दौर चल रहा है उसमें ममता जिस प्रकार भाजपा के खिलाफ दंगा कराने, झूठे वायदे करने और महंगाई जैसे मुद्दों को जनता के सामने ले जा रही है। ममता बनर्जी ने अपने आपको बंगाल की बेटी बताते हुए भाजपा को बाहरी करार देकर भाषाई और हिंदुत्व के मुद्दे को भी छूने में कोई कसर नहीं छोड़ी। पश्चिम बंगाल के लिए इस समय ममता एक बड़ा चेहरा है, जिसने अपने सियासी संघर्ष के सहारे 34 साल के वाममोर्चा के शासन को ध्वस्त करके दस साल तक अपना शासन चलया, जो इस समय अपनी सत्ता की हैट्रिक बनाने के लिए हर सियासी मोहरे व रणनीति का सहारा ले रही हैं। लोकसभा में जिन नतीजों से भाजपा उत्साहित है उसमें कांग्रेस और वामदलों के हिंदुत्व वोट के सहारे भाजपा का ही नहीं, बल्कि तृणमूल कांग्रेस के वोट बैंक में अच्छा इजाफा हुआ था। हालांकि भाजपा ने भी बंगाल में जनमानस में तेजी से अपनी पैठ बनाई। इसी पैठ का नतीजा है कि सियासी हवा के रूख को देख तृणमूल कांग्रेस के ज्यादातर बड़े नेताओं ने पाला बदल कर भाजपा का दामन थामा है, जिसे ममता के लिए किसी झटकों से कम नहीं है। लेकिन ममता भी सियासत की बड़ी खिलाड़ी हैं, जिसके अनुभव से घायल होने के बावजूद चुनावी रण में पार्टी की कमजोर नब्ज को मजबूती देकर किसी तरह सत्ता में वापसी के लिए संघर्ष करने में धुंआधार तरीके से आगे बढ़ रही हैं। फिलहाल पश्चिम बंगाल के चुनावी सुर्खियों में ममता बनर्जी की तृणमूल और भाजपा ही केंद्र बिंदु हैं। बाकी कांग्रेस के आईएसएफ गठबंधन से हिंदुत्व वोट झिटक रहा है तो वहीं वामदलों की भी कमोबेस ऐसी ही स्थिति कही जा सकती है। इसलिए माना जा रहा है कि विधानसभा चुनाव में भाजपा और तृणमूल कांग्रेस के बीच ही चुनावी संघर्ष होने की संभावना है। राज्य में कांग्रेस या वामदलों के झंडे व बैनर और जनसभाओं में भीड़ का भी टोटा है। जहां तक पश्चिम बंगाल के चुनाव में किसान आंदोलन भाजपा के लिए कोई मुश्किल पैदा करेगा ऐसा कहीं दूर तक भी नहीं है। इस चुनाव में पीएम मोदी राज्य की महिलाओं को ज्यादा कनेक्ट कर रहे हैं जिस प्रकार से उनकी सभा में उमड़ी भीड़ में महिलाओं की तादाद नजर आई, उससे ममता बनर्जी के सामने अपने किले को बचाने की चुनौती जरुर होगी। हालांकि राज्य में ममता के वजूद के सामने भाजपा के सामने भी पश्चिम बंगाल को फतेह करना इतना आसान नहीं कहा जा सकता। --(ओ.पी. पाल से बातचीत पर आधारित) 21Mar-2021

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