सोमवार, 26 अप्रैल 2021

आजकल: ममता के सामने भाजपा की चुनौती

-नीरजा चौधरी, राजनीतिक विशेषज्ञ देश के पांच राज्यों असम, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल व पुडुचेरी में में विधानसभा चुनावों में तमाम सियासी दल रणभूमि में हैं। लेकिन पश्चिम बंगाल के चुनाव सबसे महत्वपूर्ण हैं, जहां तृणमूल कांग्रेस की मुखिया ममता बनर्जी ने लंबे सियासी संघर्ष करने के बाद 2011 में वाममोर्चा की 34 साल की सत्ता से बेदखल कर जनादेश हासिल किया। लगातार दस साल के शासन में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के सामने सत्ता की तिगड़ी बनाने की चुनौती है। इसलिए वह यहां वर्चस्व की लड़ाई में एक तरह से अकेली हैं, लेकिन लगातार दो बार से शासन करने वाली तृणमूल कांग्रेस की सत्ता परिवर्तन करने के इरादे को लेकर भाजपा की चुनावी जंग में जो चुनौती है उसे मामूली या सामान्य नहीं कहा जा सकता। इसका कारण साफ है कि ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल की राजनीतक में एक सबसे पुराना और संघर्षशील चेहरा है, जिसका बंगाल की मानष माटी से जो नाता है उसके सामने भाजपा की तुलना करना बेमाने होगा। वैसे भी कांग्रेस की नेता के रूप में अपना सियासी जीवन शुरू करने के बाद ममता बनर्जी से बहुत संघर्ष किये और कांग्रेस से अलग होने के अपनी अलग पार्टी बनाकर इस मुकाम तक पहुंची की आज पश्चिम बंगाल में शासक के रूप में काबिज है। ऐसे में तृणमूल कांग्रेस की सियासी जमीन पर किसी अन्य दल को काबिज होने से रोकने की ताकत भी ममता जैसी नेता में है। हालांकि पश्चिम बंगाल में ममता की इस सियासी ताकत और राजनीतिक समीकरण को ध्यान में रखते हुए ही भाजपा भी सभी संसाधनों के साथ चुनावी संग्राम में उतरी है। ममता को चुनौती देना भाजपा या अन्य किसी दल के लिए इतना आसान भी नहीं है। पश्चिम बंगाल के चुनाव में सत्ता परिवर्तन की लड़ाई में भारतीय जनता पार्टी ने तृणमूल कांग्रेस में सेधमारी करके ममता के बेहद विश्वसनीय और कदावर नेताओं को तोड़ा है और फिर चुनाव में पूरी ताकत झौंक रही भाजपा का मकसद है कि किसी तरह से पश्चिम बंगाल में भाजपा की सत्ता हासिल की जाए। इसी उम्मीद में राज्य के चुनाव में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की 20 और भाजपा के राजनीतिक व रणनीतिक चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह की 30 के अलावा पार्टी के तमाम बड़े नेताओं की रैलियां इस बात का संकेत है कि भाजपा पश्चिम बंगाल में सत्ता हासिल करने के लिए साम दंड रही हैं। भाजपा के खिलाफ समूचा विपक्ष हमेशा एकजुट होने का दम भरता रहा है और मौजूदा पश्चिम बंगाल के चुनाव में जब ममता के करीबी लोग उनका साथ छोड़ गये हों। भाजपा के सत्ता में आने के इरादों को रोकने के लिए वे सभी विपक्षी दल आप, सपा और अन्य राज्य में क्षेत्रीय दल ममता को ऐसे समय भी समर्थन दे रहे हैं, जिनकी पश्चिम बंगाल में कोई हैसियत नहीं है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि पांच चुनावी राज्यों में पश्चिम बंगाल के चुनाव में जिस प्रकार की सियासत चल रही है उससे पश्चिम बंगाल की सियासत में नया अध्याय की शुरूआत नजर आ रही है, जहां विपक्षीदलों की एकजुटता के बावजू बिखराव की राजनीति भी है। मसलन कांग्रेस, वामदल और अन्य छोटे दल अलग अलग चुनाव लड़ रहे हैं, लेकिन मुख्य चुनावी जंग में भाजपा और तृणमूल कांग्रेस की राजनीतिक तस्वीर सामने है। यदि ये कहा जाए कि इस चुनाव का केंद्र बिंदु ममता बनर्जी है तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। ममता ने अपने करीबियों का साथ छुटने के बावजूद हौंसला नहीं खोया और उसी तरह अपने प्रतिद्वंद्वियों पर गरजने की राजनीति कर रही है यानि अपने राजनीतिक वर्चस्व को बचाने का चुनाव मानकर धुआंधार तरीके से चुनाव लड़ रही हैं। हालांकि विभिन्न चुनावी सर्वेक्षणों में भी पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी व भाजपा के बीच ही चुनाव मुकाबला बताया जा रहा है। राज्य की सियासत का रुख भविष्य के गर्भ में हैं है जो चुनावी नतीजो के बाद सामने आए, लेकिन यदि तृणमूल कांग्रेस ने सत्ता में वापसी की तो वह उनकी भविष्य की राजनीति को तय करेगी। दूसरी ओर भाजपा सत्ता परिवर्तन कर सत्ता हासिल करती है तो भाजपा का मनोबल बढ़ेगा और उसकी राष्ट्रीय राजनीतिक वजूद बढ़ेगा। -(ओ.पी. पाल से बातचीत के आधार पर) 21Mar-2021

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