सोमवार, 26 अप्रैल 2021

आजकल: क्वाड के बाद ब्रिक्स सम्मेलन से नया अध्याय की उम्मीद

-डॉ. स्वर्ण सिंह, प्रोफेसर जेएनयू आज विश्व में भारत के लिए अमेरिका, रुस और चीन, तीनों से तालमेल बनाए रखने के लिए इनके त्रिकोणीय समीकरण को समझना होगा और उसे अपनी विदेश नीति में सर्वाच्च प्राथमिकता देनी होगी। चार देशों के क्वाड सुरक्षा सम्मेलन में इस समूह का हिस्सा न होते हुए भी, चीन का हिंद प्रशांत क्षेत्र में प्रभाव हमेशा चर्चा का विषय बना रहता है। गत शुक्रवार को हए पहले क्वाड शिखर सम्मेलन मैं भी चीन की चुनौती छायी नज़र आयी। हालाँकि क्वाड के चारों देशों को चीन की निरंकुश उत्थान को लेकर चिंता बनी रहती है लेकिन न रूस और न ही अमेरिका सीधा चीन से भीड़ना चाहते हैं। भारत की भी यही नीति होनी चाहिए कि उसका सब देशों से तालमेल बना रहे और उसे किसी एक शक्ति पर निर्भर न होना पड़े।ऐसा होने पर भारत को फ़ायदा कम और नुक़सान ज़्यादा हो सकता है। इसीलिए, क्वाड शिखर वार्ता के बाद अब ब्रिक्स शिखर सम्मेलन की मेजवानी में भारत को रूस और चीन के साथ तालमेल सुधारने का अबसर मिलने जा रहा हैं। भारत के लिए यह दोनों सम्मेलन विदेश नीति में पारम्परिक संतुलन बनाए रखने में सहायक होंगे। ख़ासकर, हाल ही में तनाव की शिकार भारत-चीन स्मवंधों में इसका अच्छा योंगदान हो सकता है ताकि भारत अपनी कूटनीति से अपने राष्ट्र हितों को साध सके। और शायद चीन भी भारत को अमेरिका की पाले में पूरा धकेलना नहीं चाहेगा। जहां तक चीन का सवाल है उसको लेकर अमेरिका के राष्ट्रपति बाइडन भले ही कड़ा संदेश देने का प्रयास किया हो, लेकिन अमेरिका के हिंद-प्रशांत क्षेत्र के सभी मित्र देश चीन से लगातार जज नज़र आते हैं। इसीलिए बाइडन बार बार सभी देशों को साथ लेकर चीन की चुनौती को सुलझाना चाहते हैं और क्वाड शिकार वार्ता में भी उन्होंने अपने सहयोगियों और साझेदारों के साथ मिलकर काम करने के लिए प्रतिबद्धता को दोहराया। इसलिए यह साफ है कि भारत के लिए अमेरिका कभी चीन से नहीं भिड़ेगा। इतिहास भी यही बताता है। भारत का नेतृत्व इन जटिल सामरिक समीकरणो को खूब अच्छे से समझता हैं। इसीलिए पिछले साल भारत और चीन के बीच बढ़े तनाव के कारण भारत ने जो कई कठोर फैसलों के साथ चीन से आयात पर प्रतिबंध लगाए थे और अमेरिका से सैन्य सहयोग भी बढ़ाया उनमें परिवर्तन होता नज़र आता है। पिछले साल यह भारत और चीन के रक्षा व विदेश मंत्रियों की वार्ता-जो रूस में हुईं थी- से आगे चलकर सीमा के तनाव में स्थिरता आने से चीन की राष्ट्रपति शी चिन्फ़िंग के ब्रिक शिखर सम्मेलन में भारत आने की उम्मीद हैं। सीमा को लेकर पिछले कुछ सालों में तनाव की बबजूद चीन लतगार भारत की आयात का सबसे बड़ा स्रोत बना रहा हैं। इंहिं सालों में जब भारत को ‘फ़र्मएसी ओफ द वर्ल्ड’ का ख़िताब मिला हैं तो भारत मैं बन्ने वाली दवायीयों में इस्तेमाल होने वाले कचे माल का चीन से आयात लगातार वड़ा है। आप चीन विश्व का सबसे वड़ा व्यापारी देश हैं लेकिन भारत की विदेश और रक्षा नीति स्पष्ट रही है और इसे चीन के साथ पिछली सभी शिखर वार्ताओं में भारत रेखांकित करता रहा है। यानि बेहतर संबंध कायम करने और भारत-चीन संबंधों की पूरी संभावनाओं को मूर्त रूप देने के लिए सीमा पर शांति बनाए रखना एक पूर्वापेक्षा है, जिसमें चीन की और से विश्वाास की कमी विवादों का प्रमुख कारण रहा है। उधर चीन की तरह रुस भी भले की क्वाड का हिस्सा न हो पर उसकी इस क्षेत्र के वड़ी शक्तियों-जैसे भारत, इंडोनेशिया, वियतनाम के साथ गहरी हिस्सेदारी रही है। तो रूस की चीन से बढ़ती दोस्ती के बबजूद उसको भी एशिया प्रशांत में बने रहने के लिए भारत की नजदीकी की ज़रूरत हैं। रूस ज़ाहिर हैं की चीन के छोटे भाई की भूमिका में रहने के पक्ष में कतई नहीं है। रुस एक हद तक चीन से दोस्ती जरुर बढ़ा रहा है, लेकिन भारत भी उसके लिए उससे ज्यादा महत्वपूर्ण है। लेकिन युद्ध जैसी स्थिति में रुस भी भारत के लिए चीन से भिड़ने वाला नहीं है। रुस हमेशा भारत और चीन के साथ बेहतर रिश्तों को दोहराता रहा है। ऐसे में भारत के लिए जरुरी है कि वह मौजूदा समय में अपनी शक्ति को बनाए रखने के लिए संयम और कूटनीतिक तरीके से संतुलन को कायम रखे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वर्ष 2018 में ही हिंद प्रशांत क्षेत्र को लेकर सिंगापुर में अपने भाषण में भारत के दृष्टिकोण स्पष्ट किया था, उसमें रुस के अलावा चीन हिंद प्रशांत के साथ जोड़ने की प्रतिबद्धता शामिल थी। और इसका महत्व आज भी बरकरार है। भारत के लिए सबसे बेहतर स्थिति यही होगी, कि वह इस अमेरिका-चीन-रूस के त्रिकोणीय सामरिक समीकरण में अपनी भूमिका को लगातार मजवूत कारक रहे। एक भारत ही है सो इन तीनो में स्थिरता बनाय रखने हेतु एक सेतु की भूमिका निभा सकता कि और यही भारत की संस्कृति भी है। आज ऐसा कर देखने में भारत की ‘वैक्सीन मैत्री’ उसकी सबसे बड़ी ताक़त होगी। पहले ही भारत विश्व के ६० प्रतिशत वैक्सीन बना रहा हैं और अब रूस के स्पुतनिक वैक्सीन का उत्पाद भी भारत करने जा रहा है। भारत को इस त्रिकोणिये सामरिक समीकरण में अपनी भूमिका बड़ी ही सावधानी से उसे गढनी होगी। मसलन बिना किसी आक्रोश के कूटनीति तरीके से चीन को साधना होगा। क्वाड सम्मेलन हो या प्रस्तावित व्रिक्स सम्मेलन इन सभी शिखर वार्ताओं में भारत को दुश्मनी के बजाए संतुलन बनाए रखने की जरुरत है और इसमें क्वाड शिखर वार्ता के बाद अब आने वाले ब्रिक्स सम्मेलन में चीन से भी आपसी संतुलन को सुधार जा सकता हैं। -(ओ.पी. पाल से बातचीत पर आधारित) 14Mar-2021

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