मंगलवार, 23 फ़रवरी 2021

साक्षात्कार: इंटरनेट के युग में भी कम नहीं होगा लोक साहित्य का महत्व

साहित्यक माहौल और लोक संस्कृति लुप्त होने के कगार पर
व्यक्तिगत परिचय
नाम: डॉ. पूर्णचन्द शर्मा
जन्म: एक दिसम्बर 1946
जन्म स्थान: गांव किरोड़ी, जिला हिसार
शिक्षा: बीए, एमए, पीएचडी
संप्रत्ति:सेवानिवृत्त प्रोफेसर (हिंदी विभाग), एमडीयू रोहतक
साक्षात्कार-ओ.पी. पाल 
हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा हाल ही में वर्ष 2017 के लिए महाकवि सूरदास आजीवन साहित्य साधना पुरस्कार के लिए चयनित रोहतक निवासी सेवानिवृत्त प्रोफेसर डा. पूर्ण चन्द शर्मा को इससे पहले अनेक सम्मान मिले, जिनमें पण्डित माधव प्रसाद मिश्र और पण्डित लखमीचंद प्रमुख बड़े पुरुस्करों में शामिल हैं। साहित्य के क्षेत्र में प्रख्यात डा. पूर्ण चन्द शर्मा ने हरियाणा की सभ्यता, संस्कृति, भाषा, सामाजिक रीति रिवाज और परंपराओं को लोकगीत, लोकनाट्य, काव्य, सांग, कथाओं, कहानियों तथा अन्य अध्ययनों के रुप में लोक साहित्य के माध्यम से हरियाणवी माला में पिरोया है। आज के इस आधुनिक वैज्ञानिक युग में लोक साहित्य को खासकर नई पीढ़ी में किस प्रकार से प्रासांगिक और प्रेरणा दायक बनाया जाए, ऐसे ही पहलुओं को लेकर हरिभूमि से खास बातचीत में डा. पूर्ण चन्द शर्मा ने बदलते युग और सामाजिक परिवेश में खत्म होते जा रहे साहित्यक माहौल को पुनर्जीवित करने के लिए 'जिंदगी के गद्य में कुछ छंद लाओ,भेजकर वायुयानों को गगन में शुष्क से इस पुष्प में मृकंद लाओ' के रूप में बल दिया, जिसका सार इस प्रकार है:- 
---
किसी पोष्टिक आहार से कम नहीं है लोक साहित्य 
डा. शर्मा ने कहा कि लोक साहित्य को कच्चे दूध की तरह पोष्टिक आहार करार देते हुए कहा कि शास्त्रीय साहित्य की उत्पत्ति भी लोक साहित्य से ही हुई है। उन्होंने इस वैज्ञानिक युग में बढ़ते भौतिकवाद के दौर में युवाओं को साहित्य के प्रति प्रेरित करने के लिए साहित्य और संस्कृति को पाठ्यक्रम में शामिल करने पर बल दिया। उनका मानना है कि विज्ञान और इंटरनेट भी इस आधुनिक युग में जरुरत है, लेकिन इसके इस्तेमाल करने का तरीका गलत रूप में ज्यादा किया जा रहा है, जिसके कारण विकृतियां ज्यादा पनप रही हैं और चरित्र का ह्रास हो रहा है। सबसे बडा बदलाव तो यह हुआ है कि पहले माहौल में साहित्य की शुरूआत बुजुर्गो से होती थी, जब वे लोरिया, कहानियां, चुटकले सुनाकर सामाजिक सभ्यता व संस्कृति की मिसाल थे। वहीं इस वैज्ञानिक युग के बढ़ते प्रभाव के साथ ही संयुक्त परिवार प्रथा खत्म होने कारण भी साहित्यक माहौल और लोक संस्कृति लुप्त होने का बड़ा कारण है। जब तक उच्च कोटि की शिक्षा और शिक्षकों को प्रोत्साहित नहीं किया जाता, तब तक देश के उत्थान और युवाओं को लोक ज्ञान के लिए साहित्य के प्रति विकसित करना संभव नहीं है। हरियाणा लोक साहित्य व भाषा के विकास के लिए भी सरकार के प्रयास चल रहे हैं, लेकिन हरियाणवी लोक साहित्य व लोक संस्कृति को बढ़ावा मिलना चाहिए उतना नहीं मिल पा रहा है। इसलिए हरियाणवी संस्कृति का ह्रास का कारण बढ़ती भौतिकवादिता ही है। 
----
पुस्तकों का महत्व कम नहीं होगा
वैश्विक इंटरनेट युग में मुद्रित पुस्तकों पर प्रभाव को लेकर साहित्यकार डा. पूर्ण चंद शर्मा कहते हैं कि इस कंप्यूटर युग में प्रमाणिक पुस्तकें और पुरानी किताबे नहीं मिलेगी, जिसकों अपलोड किया जाता है गूगल भी उसे ही प्रदर्शित करेगा। जबकि हमारे जीवन में पुस्तकों का बहुत महत्व है, पुस्तकें ज्ञान का भंडार हैं। वे हमारी सब से अच्छी मित्र हैं। मानव दुनिया में आते और जाते रहते हैं, लेकिन उनका कार्य, विचार, ज्ञान, संस्कृति पुस्तकों में हमेशा के लिए इतिहास के रूप में रहता है। यही कारण है कि पुस्तकों का महत्व कभी कम नहीं हुआ है। जहां तक ई-पुस्तक और और मुद्रित पुस्तक को लेकर चर्चा की जाए तो कुछ तो फर्क पड़ रहा है, लेकिन इससे मुद्रित पुस्तकों की महत्ता को कम नहीं आंका जा सकता और न ही प्रकाशित पुस्तकों के महत्व कम हुआ है। इसका कारण साफ है कि सदैव कालजयी रहने वाली पुस्तकों को यदि भाषा का लोप न हुआ हुआ हो, तो सैकड़ों वर्षो बाद भी पुस्तकों को सरलता से पढ़ा जा सकता है। जबकि ई-पुस्तकों के साथ अपनी अलग तकनीकी समस्या है। यह मूल रूप से डिजिटल फॉरमेट के कारण उस वक्त की तकनीक पर निर्भर करता है। आंकड़े कुछ भी कहते हों, पर प्रकाशित पुस्तकों का अस्तित्व और आकर्षण बढ़ा है और आने वाले दिनों में भी बना ही रहेगा। मेरा मानना है कि पुस्तकों का अपना एक अलग महत्व होता है। चाहे कितना भी इंटरनेट की बात कर ली जाए, पुस्तकों का महत्व कम नहीं होगा। हां यह जरूर है कि कंप्यूटर के युग में जहां हर कार्य इंटरनेट से सुलभ है। गूगल की मदद से आज कोई भी पुस्तक इंटरनेट पर पढ़ी जा सकती है, लेकिन वास्तविक रूप से पुस्तकों का क्रेज आज भी बरकरार है। यह बात जरूर है कि नई पीढ़ी इससे थोड़ी दूरी बना रही है। साहित्यकारों को साहित्य सृजन के साथ नई पीढ़ी को भी जोड़े रखना होगा, जो पुस्तकों को समझ लें, उनका जीवन संवर जाता है, इसलिए आधुनिक तकनीक के साथ हर वर्ग को पुस्तकें पढ़नी चाहिए। 
----
साहित्यक उपलब्धय
हरियाणा को साहित्य क्षेत्र में पांच प्रख्यात सम्मानित पुरस्कार लेकर हरियाणा को रोशन करने वाले प्रख्यात साहित्यकार डॉ. पूर्णचंद्र शर्मा का जन्म एक दिसम्बर 1946 को जिला हिसार के गांव किरोड़ी में एक साधारण किसान पण्डित चिरंजी लाल के घर में हुआ। आर्थिक तंगी में बीते बचपन में बाल विवाह होने के कारण ग्रहस्थी चलाने के लिए पढ़ाई छोडकर नौकरी करनी पड़ी, लेकिन परिश्रमी और मेधावी क्षमता पूर्ण चन्द शर्मा के शिक्षा और अध्ययन के जज्बे को नहीं डिगा सकी। नतीजन छात्र ने अपने पढ़ने की जिद को बनाए रखा और नौकरी करते-करते बीए, एमए और फिर पीएचडी करके वे प्रोफेसर के पद तक पहुंचे। उनकी साहित्य साधना तो छात्र जीवन में शुरू हो गई थी, जिनके लेख, कविताएं एवं कहानियां जैसी रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई। इसके बाद साहित्य के क्षेत्र में उनका यह सिलसिला निरन्तर चलता ही रहा और वे अब तक उनकी 27 पुस्तकों का प्रकाशन हो चुका है। उनकी पांच पुस्तकों को बड़े पुरस्कार मिले हें। डा. शर्मा का पहला शोध प्रबन्ध 1983 में हरियाणा की लोकधर्मी नाट्य-परम्परा हरियाणा साहित्य अकादमी ने प्रकाशित किया। इनकी तीन पुस्तकें लोक संस्कृति के क्षितिज, हरियाणा की बोलियों का अध्ययन तथा संस्कृति के स्तम्भ हरियाणा साहित्य अकादमी से प्रथम पुरस्कार प्राप्त कर चुकी हैं। इनके अलावा हरियाणवी साहित्य और संस्कृति, अनोखा स्वयंवर, माटी के स्वर, पंडित लक्ष्मीचंद ग्रंथावली, सांगाष्टक, माटी का सरगम, लोकगीतों की अस्मिता, लोकगीतों की गूंज, हरियाणा के लोक कलाकार, पंडित मांगे राम ग्रंथावली, लोक रंग मंच: एक परिशीलन इनकी अन्य बहु चर्चित पुस्तकें है। डा. शर्मा अब तक विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के तत्वावधन में तीन बृहत शोध परियोजनाएं पूरी कर चुके है, जिसके लिए उन्हें पर्याप्त ग्रांट दी जा रही है। एमडीयू के हिंदी विभाग से सेवानिवृत्त प्रोफेसर डॉ. पूर्ण चंद शर्मा अब तक 20 युवाओं को पीएचडी और 30 को एमफिल करवा चुके हैं। उन्होंने कहा कि यदि हम पक्के इरादे से अपने लक्ष्य को ठान लें और सही राह पर चल पड़ें तो हर सपना पूरा हो सकता है। सेवानिवृत्ति के बाद वे अपना पूरा समय लेखन और युवाओं में सांस्कृतिक मूल्यों के विकास को दे रहे हैं। --22Feb-2021

1 टिप्पणी:

  1. एक संतुलित साक्षात्कार, बहुत ज्ञानवर्धक और प्रेरित करने वाला। पूर्णचंद शर्मा के पास बहुत गहन अनुभव हैं युवा पीढ़ी को इसका लाभ लेना चाहिए।

    जवाब देंहटाएं