मंगलवार, 23 फ़रवरी 2021

एशिया की एकजुटता: चुनौतियों से निपटना जरुरी

एशियाई एकीकरण में चुनौतियों से निपटना जरुरी -वेद प्रताप वैदिक, विदेश मामलों के जानकार एशियाई देशों के एकीकरण यानि एकजुटता और इसके लिए आड़े आ रही चुनौतियों से निपटना पूरी तरह से संभव है। शायद इसी अरसे से चल रही इस मुहिम को तेज करने के लिए ही हाल ही में दस पड़ोसी देशों के साथ कोविड को लेकर कार्यशाला में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने यह संदेश दिया, कि 21वीं सदी एशिया की सदी होगी। इसमें पीएम ने कहा कि कोरोना महामारी के दौरान जिस प्रकार से एशियाई देशों ने एकजुटता दिखाई है वह इस बात को साबित करती है कि एशियाई एकीकरण संभव है। पीएम मोदी ने ही नहीं, बल्कि इससे पहले एशियाई देशों में सहभागिता और भरोसा रखने के उपायों पर 1999 में सदस्य बनते ही पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भी इस एकजुटता के लिए पहल शुरू की थी। एशियाई देशों की एकजुटता के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हम जैसे लोग भी लगातार एशियाई देशों के प्रधानमंत्रियों को पत्र या व्यक्तिगत मिलकर एकीकरण पर बल दे रहे हैं। ऐसा नहीं है कि एशियाई एकीकरण की मुहिम संभव नहीं है। एशियाई एकीकरण के लिए पहले भारत समेत आठ सार्क देशों को एक साझा दृष्टिकोण बनाना होगा, लेकिन इसमें रोड़ा बने पाकिस्तान सबसे बड़ी चुनौती है, हालांकि एशियाई देशों में सहभागिता और भरोसा रखने के उपायों पर अब तक जितने सीआईसीए शिखर सम्मेलन हुए हैं उनमें राजनीतिक, आर्थिक, मुक्त व्यापार के अलावा सुरक्षित और अधिक समृद्धि को लेकर आंतकवाद की चुनौती से निपटने पर ज्यादा जोर रहा है। कोरोना महामारी के बीच ही सीआईसीए शिखर सम्मेलन में एशिया में शांति, सुरक्षा और समृद्धि के लिए भारत की पहल के लिए समर्थन की पुष्टि हुई, लेकिन इसमें समर्थन की फिर से पुष्टि की। वहीं मध्य एशिया के के देशों साथ भारत के पारंपरिक संबंधों, आतंकवाद और अफगानिस्तान पर साझा दृष्टिकोणों को रेखांकित करना इस बात को बल दे रहा है कि पीएम मोदी की ओर से एकजुटता पर फोकस में एशियाई देश भी भारत के प्रस्तावों पर सहमत हैं। इस मुहिम को आसान बनाने के लिए एशियाई देशों को एक साझा दृष्टिकोण या एजेंडा पारित करके राजनीतिक,आर्थिक और सांस्कृतिक सहयोग की परंपरा को सुदृढ़ करने के साथ साझा बाजार, साझा संसदीय प्रक्रिया के अलावा संप्रभुता के बुनियादी सिद्धांतों, आतंकवाद के उन्मूलन हेतु सुरक्षा के खतरों के गैर-उपयोग, क्षेत्रीय अखंडता और सर्वांगीण विकास के लिए सहयोग के आधार पर क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ाने के प्रयासों में तेजी लानी होगी। एशियाई एकीकरण में आंतकवाद के सहारे पाकिस्तान और आर्थिक विस्तारीकरण में जुटे चीन जैसे देशों की चुनौतियों से भी निपटने के उपायों की संभानाएं तलाशने पर एकजुटता होगी, तो दुनिया में एशियाई देशों की राजनीतिक और आर्थिक ताकत में स्वत: इजाफा होगा, जिसमें पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था भी सुधर सकती है। खासकर पाकिस्तान के आर्थिक विकास का उन्नयन, समृद्धि, गरीबी और अशिक्षा का विलोपन, आतंकवाद और अतिवाद के प्रजनन क्षेत्र से भी छुटकारा मिल सकेगा। इक्कीसवीं सदी की तरफ कदम पुख्ता करने के लिए एशियाई राष्ट्रों द्वारा अपने विकास और अंतर्राष्ट्रीय वचनबद्धता के लिए अपनाए जाने वाले विकास की प्राथमिकताओं और दृष्टिकोण में अंतर को समझते हुए सीआईसीए की सूची में नई चुनौतियों और खतरों के खिलाफ लड़ाई, अर्थव्यवस्था, पर्यावरण, मानव क्षेत्र और सैन्य-राजनीतिक आयाम में नजदीक साझेदारी करना भी जरुरी होगा। हालांकि पहले से एशियन इन्फ्रास्ट्रक्चर एंड इंवेस्टमेंट बैंक (एआईआईबी) एक क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग के रूप में राजनीतिक और आर्थिक सहयोग की परंपरा एशियाई देशों के बीच चल रही है,लेकिन एशियाई राष्ट्रों को आतंकवाद के प्रसार के लिए अनुकूल परिस्थितियों को समाप्त करके, आतंकवादी उद्देश्य के लिए इंटरनेट के दुरुपयोग का मुकाबला करके और आतंकवादी आश्रय विघटित करके आतंकवाद से निपटने के लिए एक व्यापक रणनीति तैयार करने करने के लिए सीआईसीए के तंत्र को मजबूती से निर्णायक नतीजों पर पहुंचना होगा। -(ओ.पी. पाल से बातचीत पर आधारित) 21Feb-2021

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