हिंदी भाषा के लिए अनूठे हिंदी सेवा रचनाकार के रुप में बनाई पहचान
व्यक्तिगत परिचय
नाम: राजपाल यादव ‘राज’
जन्मतिथि: 19 फरवरी, 1960
जन्म स्थान: गांव जुड्डी, जिला रेवाड़ी(हरियाणा)
शिक्षा: स्नाकतोत्तर, एलएलबी
संप्रत्ति: लेखक, साहित्यकार, वरिष्ठ कवि एवं सेवानिवृत्त महाप्रबंधक(बीसीसीएल, धनबाद)
संपर्क: स्पेज प्रव्वी सोसायटी, सेक्टर-93, हयातपुर, गुरुग्राम (हरियाणा),मोबा.- 9717531426
BY---ओ.पी. पाल
साहित्य के क्षेत्र में लेखन करने वाले साहित्यकार विभिन्न विधाओं में साहित्य संवर्धन करके समाज, संस्कृति और सभ्यता को जीवंत रखने का प्रयास कर रहे हैं। ऐसे ही रचनाकारों में हरियाणा के राजपाल यादव ऐसे साहित्यकारों में शामिल हैं, जिन्होंने सरकार नौकरी के दौरान दूसरे प्रदेशों में रहते हुए अपनी काव्य साधना से देशभर में हरियाणा राज्य का नाम गौरवान्वित किया है। उन्होंने साहित्य साधना के दौरान हिंदी भाषा के प्रसार-प्रचार के लिए एक अनूठे हिंदी सेवा रचनाकार के रुप में पहचान बनाई है और सरकारी सेवा से निवृत्ति के बाद भी साहित्य सृजन में जुटे हुए हैं। हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत में उन्होंने अपने साहित्यक सफर के बारे में कई ऐसे अनछुए पहलुओं को उजागर किया है, जिसमें साहित्य सृजन के माध्यम से मातृभाषा की सच्ची सेवा करना संभव है।
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हरियाणा के वरिष्ठ कवि एवं साहित्यकार राजपाल यादव का जन्म 19 फरवरी 1960 को रेवाड़ी जिले के नाहड़ खण्ड क्षेत्र के गांव जुड्डी में एक किसान परिवार में श्रीमती प्रभाती देवी तथा पिता रिसाल सिंह के घर में हुआ। उनके परिवार में कोई साहित्यिक माहौल नहीं था और न ही परिवार में कोई साहित्यिक रुचि वाला सदस्य रहा, लेकिन उनके पिता गाँव के सबसे शिक्षित पुरुषों में शामिल थे, जिनके गुण उनमें आना स्वाभाविक था। उनके पिता भारतीय सेना की एजुकेशन कोर में अधिकारी रहे। उनका बचपन गांव में ही बीता और प्रारंभिक शिक्षा गाँव में ही हुई और बाद में वह पिता की पोस्टिंग स्थल नसीराबाद दिल्ली झाँसी और जोधपुर भी रहे और उनकी स्कूली शिक्षा नसीराबाद व झाँसी में हुई, फिर उन्होंने उच्च शिक्षा महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय रोहतक तथा कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से हासिल की। जबकि स्नातकोत्तर की डिग्री उदयपुर विश्वविद्यालय राजस्थान प्रथम श्रेणी में हासिल की और कॉलेज/यूनिवर्सिटी में द्वितीय स्थान पर रहे। पिता के शिक्षा विभाग में होने के नाते उन्हें परिवार में उच्च संस्कार मिले तथा गुरुजनों से मार्गदर्शन व प्रोत्साहन भी मिला, जिसकी बदौलत वह पढ़ाई की उत्कृष्टता के साथ ललित कलाओं में भी पारंगत रहे। बकौल राजपाल यादव राज, उनके साहित्यिक सफ़र की शुरुआत कॉलेज के ज़माने में ही हो गई थी, जब उन्होंने अपने खेत के शीशम के पेड़ के नीचे भरी दोपहरी में दो कहानियाँ ‘बड़ी बहू’ और ‘मंझली बहू’ शीर्षक से लिखी, जो कॉलेज की वार्षिक पत्रिका में प्रकाशित हुई। इससे उनका लेखन के प्रति आत्मविश्वास बढ़ना स्वाभाविक था। उस समय तक उनका यह अहसास नहीं था कि वह भविष्य में साहित्य संवर्धन के लिए वह कोई योगदान देंगे। लेकिन सरकारी सेवा में आने के बाद भी उनके साहित्य सफर में नया मोड उस समय आया, जबकि कारगिल युद्ध के दौरान उनकी पोस्टिंग धनबाद (झारखंड) में थी। उन्होंने उस समय ओज की रचनाएँ लिखीं, जो स्थानीय समाचार पत्रों में प्रमुखता से छपती थीं। उसके बाद ही वर्ष 2001 में उनका प्रथम काव्य संग्रह ‘आँच न आने देंगे’ प्रकाशित हुआ। वह धनबाद में सरकारी महारत्न संस्थान कोल इंडिया लि. की अनुसंगी कंपनी भारत कोकिंग कोल लि. के महाप्रबंधक (कार्मिक एवं राजभाषा) के पद पर रहते हुए उन्होंने सरकारी विभागों व कंपनी की सरकारी पत्रिकाओं के संपादन का दायित्व निभाया तथा हिंदी सप्ताह व पखवाड़े से जुड़े कार्यक्रमों का जीवंत संयोजन किया। वहीं उन्होंने सैंकड़ों सरकारी हिंदी कार्यशालाओं में व्याख्यान व प्रशिक्षण दिया है। वह कवि सम्मेलनों का संचालन व अध्यक्षता करते हुए अनेक साहित्यिक संस्थाओं से भी जुड़े हैं। वह गद्य और पद्य की सभी विधाओं में लेखन करते आ रहे हैं यानी गीत ग़ज़ल दोहे मुक्तक माहिया छंद हाइकु हास्य-व्यंग्य लघुकथा आदि विधाओं में साहित्य साधना करते आ रहे हैं। उनका वीर रस की रचनाओं पर अधिक फोकस रहता है। वहीं हरियाणवी भाषा में भी उन्होंने कई गीत, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं में रचनाएं लिखी हैं और हरियाणा सरकार की साहित्यिक पत्रिका हरिगंधा में उनके दोहे और हरियाणवी रचनाएं प्रकाशित हुई हैं। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उन्होंने हिंदी सचिवालय मारीशस, आबू धाबी दुबई तथा यूएसए में कई बार काव्य पाठ किया और सम्मान हासिल किया। वहीं वे विश्व पुस्तक मेला दिल्ली के सरकारी आयोजक नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा आयोजित वृहद् कवि सम्मेलन की अध्यक्षता और सरकार के आयोजित कवि सम्मेलनोकं में भी शिरकत कर चुके हैं। यही नहीं आज भी सरकारी विभागों और संस्थानों द्वारा राजभाषा नीति कार्यान्वयन एवं काव्य विधाओं पर कार्यशालाओं सम्मेलनों में अक्सर बतौर प्रशिक्षक हिस्सेदारी करते आ रहे हैं। यही नहीं, सेवानिवृत्ति के बाद से ही गुरुग्राम में रह रहे राजपाल यादव साहित्य साधना में लीन हैं और काव्य कार्नर प्रकल्प के हरियाणा के अध्यक्ष के नाते, हरियाणा प्रदेश के रचनाकारों को मंच प्रदान करने में जुटे हैं। हिंदी भाषा के प्रति उनका समर्पण एवं साधना को सर्वोपरि मानकर वह नई युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणापुंज के रुप में कार्य कर रहे हैं। इसी कारण वह काव्य पाठ के माध्यम से राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर अपनी विशिष्ट पहचान बना चुके हैं।
दोराहे पर खड़ा साहित्य
वरिष्ठ कवि एवं साहित्यकार राजपाल यादव ‘राज’ का आधुनिक युग में साहित्य के क्षेत्र में आ रही चुनौतियों को लेकर कहना है कि आज साहित्य दोराहे पर खड़ा है, जहाँ एक तरफ़ प्रिंट मीडिया, तो दूसरी ओर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया है। वहीं इस इंटरनेट व डिजिटल युग में पत्र-पत्रिकाओं को पढ़ने वाले पाठक कम हो रहे हैं, किंतु साहित्य आज भी सामाजिक जागरूकता पैदा करने कुरीतियां समाप्त करने और निरंकुश होती सत्ता को ललकारने, शोषक का विरोध करने और शोषित को सहारा देने का कार्य कर रहा है। ऐसे में आज के लेखकों को राष्ट्रवाद को मज़बूत करने, देश की अस्मिता व गौरव की क़ायम रखने के लिए निर्भीकतापूर्वक कलम चलानी होगी। इसके लिए आपसी ईर्ष्या द्वेष स्वार्थ लोलूपता, जातिवाद और भाई भतीजावाद को छोड़कर कंधे से कंधा मिलाकर देशहित में काम करने की आवश्यकता है। वहीं युवा पीढ़ी को साहित्य के प्रति प्रेरित करके उन्हें अपनी संस्कृति से जुड़े रहने का संदेश देना होगा, ताकि समाज को नई ऊर्जा और सकारात्मक संदेश दिया जा सके।
प्रकाशित पुस्तकें
वरिष्ठ कवि एवं साहित्यकार राजपाल यादव की प्रकाशित पुस्तकों में प्रमुख रुप से काव्य संग्रह-आँच न आने देंगे, आगत का स्वागत, कविताओं में कोल इंडिया और हम, एक और दस्तक, तथा अभी थका नहीं हूँ मैं शामिल हैं। इसके अलावा उनके 32 साझा काव्य संग्रह भी प्रकाशित हुए हैं। काव्य जगत की प्रथम कॉफ़ी टेबल बुक ‘शब्दों के सारथी’ एवं एक विश्व हाइकु कोश में भी उनकी सहभागिता रही। हरियाणा साहित्य अकादमी की पत्रिका हरिगंधा सहित अनेक पत्र-पत्रिकाओं में समय-समय पर रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। पुस्तक समीक्षक के रुप में उनकी अनेक काव्य ग़ज़ल कहानी संग्रहों की समीक्षा एवं भूमिका लेखन भी प्रकाशित हुए हैं।
पुरस्कार व सम्मान
हिंदी संवर्धन कर रहे साहित्यकार राजपाल यादव राज को अनेक पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है। इनमें प्रमुख रुप से हिंदी साहित्य शिखर मानद उपाधि सम्मान, भारतेंदु राजभाषा साहित्य शिरोमणि सम्मान, हिंदी साहित्य भूषण सम्मान, राष्ट्र गौरव साहित्य सम्मान, एकलव्यम साहित्य सम्मान, शान-ए-अदब सम्मान, काव्य श्री सम्मान, हिमालयन रत्न सृजन सम्मान, राष्ट्रीय एकलव्यम गौरव सम्मान, हिमालयन भाषा सारथी सम्मान, वात्सल्य गौरव सम्मान, शब्द सारथी सम्मान, देवप्रभा साहित्य सम्मान, संत तुलसीदास साहित्य सम्मान, संत कबीर सम्मान, डायल ए पोयम’ कोल इंडिया विडीओ काव्य प्रस्तुति सम्मान, शंकर दयाल सिंह प्रतिभा सम्मान एवं साहित्य शिल्पी सम्मान शामिल हैं। इसके अलावा उन्हें विभिन्न सरकारी एवं ग़ैर सरकारी संस्थाओं द्वारा जगीरा किंग, मुक्तक सम्राट और संत कबीर जैसे अनेक राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठित साहित्यिक पुरस्कार व सम्मानों से विभूषित किया जा चुका है।
01Sep-2025