बच्चों से लेकर बुजुर्गो तक की समस्याओं को बनाया रचनाओं का हिस्सा
व्यक्तिगत परिचय
नाम: डा. अशोक कुमार अत्री
जन्मतिथि: 09 जनवरी 1974
जन्म स्थान: गांव ऐंचरा खूर्द, जींद (हरियाणा)
शिक्षा: बी.ए, बी.एड. एमए, एम.फिल, पीएच.डी.
संप्रत्ति: असिस्टेंट प्रोफेसर(राजनीतिक शास्त्र), लेखक, साहित्यकार
सपंर्क: मकान न 704, सैक्टर 19, हुड्डा, कैथल, मोबा. 9416558150/7015589827
BY--ओ.पी. पाल
साहित्य के क्षेत्र में गद्य और पद्य दोनों विधाओं में साहित्य साधना करते आ रहे लेखकों ने समाज को नई दिशा देने के मकसद से अपने रचना संसार को दिशा दे रहे हैं। ऐसे ही साहित्यकारों में शिक्षाविद् डा. अशोक कुमार अत्री भी अपनी लेखनी से सामाजिक सरोकारों से जुड़े मुद्दों के अलावा प्रकृति, पर्यावरण और सभ्यता तथा रीति रिवाजों को लेकर बच्चों से लेकर बुजुर्गो तक की समस्याओं को अपनी रचनाओं में समाहित करके संस्कृति के संवर्धन करने में जुटे हुए हैं। एक शिक्षक के रुप में वे कालेज में सांस्कृतिक गतिविधियों की जिम्मेदारी का निर्वहन करते हुए युवा पीढ़ी को साहित्य से जुड़े रहने सीख देकर उन्हें विशेष रुप से हरियाणवी संस्कृति के देश विदेशों में बढते प्रचार एवं प्रभाव का मौका दे रहे हैं। हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत के दौरान शिक्षाविद् एवं साहित्यकार डा. अशोक कुमार अत्री ने अपने साहित्यिक सफर को लेकर कुछ ऐसे पहलुओं का जिक्र किया है, जिसमें साहित्य समाज को सकारात्मक संदेश देने में सक्षम है।
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हरियाणा के कैथल स्थित आरकेएसडी कॉलेज में सहायक प्रोफेसर के रुप में कार्यरत डा. अशोक कुमार अत्रि का जन्म 09 जनवरी 1974 को जींद जिले के गांव ऐचरा खुर्द में मामन राम व श्रीमती शांति देवी के घर में हुआ। उनका यह गांव साहित्यिक चेतना के स्थल के रूप में समृद्ध एवं प्रसिद्ध रहा है। यहां गांव की सबसे बड़ी हस्ती के रुप में पं जगदीश चन्द्र वत्स हरियाणवी कथा एवं सांग लेखन में शास्त्रीय स्वरुप के आधार माने जा सकते हैं। अशोक के दादा पं ज्ञानीराम हमारे क्षेत्र के प्रसिद्ध गायक रहे हैं, तो उनकी दादी भी लोक सत्संग में लीन रहती थी। उनके पिता पं मामनराम एवं चाचा पं राजेंद्र शास्त्री रामलीला के मंजे हुए कलाकार रहे हैं। मसलन उनके परिवार में साहित्य और सांस्कृतिक माहौल रहा है। लेकिन उनका साहित्यिक सफर बहुत बाद में शुरू हुआ यानी शिक्षण कार्य में आने के बाद ही उन्हें इस बात का अहसास हुआ कि उन्हें लेखन करना चाहिए। हालांकि वह तुकबंदी कर लेते थे अर्थात कोई शेर या कविता करता था तो वह उसी लहजे में कुछ लाईने जोड़ लेते थे। उन्होंने पहली बार अपनी भतीजी मन्नू के लिए पहली कविता लिखी थी। बकौल डा. अशोक अत्रि, उन्हें पढाई के दौरान से ही कविताएं पंसद रही हैं, जिसमें अयोध्या सिंह उपाध्याय की 'एक बूँद' उनकी पंसदीदा कविता रही। उसके बाद पढते हुए अंग्रेजी कविता रोड नोट टेकन, डेफोडिल्स एवं गो एंड कैच ए फालिंग स्टार उन्हें बहुत पसन्द आई। उनका पहला कविता संग्रह 'दिल चाहता कुछ बताना था' जिसमें उनके जीवन संघर्ष से जुडी यादें समाहित है और इसकी थीम कविता 'वो दिन' एक लम्बी कविता है। इस संग्रह में जीवन के विभिन्न आयामों से सम्बंधित कविताएं शामिल हैं। विशेषरूप से हरियाणावी संस्कृति एवं उसके विभिन्न पक्षों को भी इसमें समायोजित किया गया है। उन्होंने बताया कि जब उनके चचेरे भाई आनंद को उनके द्वारा लेखन करने का पता लगा, तो उन्होंने अपना पब्लिकेशन ही शुरू किया एवं उनके कविता संग्रह की हजारों प्रतियाँ छाप दी। उन्होंने विशेष रुप से गांव का तालाब कविता का जिक्र करते हुए बताया कि ग्रामीण समाज में तालाब गांव की जीवन रेखा होते थे, कपडे धोना, नहाना, पशुओं को नहलाना, महिलाओं के द्वारा रीति रिवाज़ सभी इससे जुड़े होते थे, लेकिन अब ये ऊझाड, बेजान पडे हैं, कब्जाग्रस्त हैं इसलिए यह मुद्दा भी सामाजिक सरोकार से जुड़ा है। इसी प्रकार बदलते परिवेश में सामाजिक और तीज त्यौहार व रीति रिवाज की चर्चा को लेकर भी उनके लेखन का फोकस रहा है, जिसके लिए उन्होंने उन्होंने ग्रामीण जीवन, सामूहिक परिवार, त्यौहारों का परम्परावादी रूप, हरियाणवी वेशभूषा, खानपान, उभरती समस्याओ पर फोकस करते हुए कविता एवं कहानी लिखने का प्रयास किया है। मसलन महात्मा गांधी के दर्शन पर आधारित कविता 'गांधी अकेला' एक और अन्य महत्वपूर्ण रचना में उन्होंने समकालीन समय में गांधी के आदर्शो के प्रति जनता की उदासीनता को उजागर किया है। इसके अलावा प्रकृति से जुड़ी कविताओं में पर्यावरण की समस्या को उठाया गया है। वहीं समाज की सजगता के लिए पति-पत्नी सम्बन्धों, नौजवानों और बच्चों पर भी उन्होंने कविताएं लिखी हैं। उन्होंने बताया कि जीवन में उतार चढ़ाव आना भी स्वाभाविक है और उनके सामने भी स्वास्थ्य सम्बंधित समस्याएं उभरी और घबराहट से बचने का अलग अलग तरीका ढूंढने लगा। इसके बाद उन्होंने कविता लेखन के साथ कहानी भी लिखना शुरू किया, तो उन्हें राहत व शांति मिली। इसके बाद उनका कहानी संग्रह 'फिर सुबह' और उसके बाद कविता संग्रह 'आ अब लौट चलें प्रकृति की ओर' प्रकाशित हुआ। उनके साहित्य में हरियाणवी संस्कृति के अनछुए पहलूओं को महत्व दिया गया है। उन्होंने अपने कश्मीर, गोवा, शिमला, नैनीताल, इंदौर, आईजोल, रांची, मनाली, पांडीचेरी, जयपुर, मुम्बई, भोपाल, कलकत्ता, लखनऊ, अमृतसर, वैष्णो देवी, रामेश्वरम एवं अजमेर आदि यानी भारत भ्रमण को भी हास्य प्रदान अनुभवों से जोड़कर यात्रा वर्तांत के रुप में पाठकों तक एक कृति को पहुंचाया है। वहीं एक शिक्षक के रूप में महाविद्यालय में आज भी उनके पास सास्कृतिक गतिविधियों की जिम्मेदारी हैं, जिसमें महाविद्यालय राज्यस्तरीय रत्नावली कार्यक्रम का विजेता होने के कारण वह हरियाणवी संस्कृति पर ज्यादा जोर देते आ रहे हैं। नई पीढ़ी को वे विशेषरूप से सांग, रिचवल, चौपाल, नृत्य को विशेष तव्वजो एवं फुलझड़ी एवं बिंदरवाल बनाना जैसी विधाएं सीखा रहें हैं। खासबात ये भी है कि डॉ. अशोक कुमार अत्री हरियाणा के एक मात्र ऐसे साहित्यकार एवं लेखक हैं, जिन्होंने तुर्की के एसआईआईआरटी विश्वविद्यालय सिरट में हुई अंतर्राष्ट्रीय कांफ्रेंस में अपना शोध-पत्र ‘ट्रैड रूट पालिटिक्स:द इंडियन व्यू’ प्रस्तुत किया था, जिसमें ग्रुप-20 सम्मेलन में भारत द्वारा प्रस्तावित ‘इंडिया मिडल ईस्ट यूरोप कोरिडोर’ पर सहमति एवं इससे संबंधित उभरी राजनीति को जानने की कोशिश शामिल है।
बदलाव के दौर मे हरियाणवी साहित्य
साहित्यकार एवं कवि डा. अशोक अत्री का इस आधुनिक युग में साहित्य के सामने चुनौती को लेकर कहना है कि आज खासतौर से हरियाणवी साहित्य बदलाव के दौर से गुजर रहा है। हालांकि इसके दोनों ही पक्ष हैं, जसमें हरियाणवी संस्कृति को बढावा भी मिला है, लेकिन वहीं कुछ अप्रासांगिक तथ्य शामिल होने से विशेष रुप से जातिय श्रेष्ठता, गन संस्कृति का समर्थन एवं लोक परम्परा का अभाव एक नकारात्मक पहलु के रूप कहे जा सकते हैं। ऐसे में इस बात की आवश्यकता है कि साहित्य में गहन अध्ययन मनन करने से ही समाज, खासतौर से युवा पीढ़ी को अपनी संस्कृति से जुड़े रहने के लिए प्रेरित करने पर फोकस होना चाहिए, ताकि समाज में तेजी से उभरती कुरीतियों को दूर करने में मदद मिल सके। इसके लिए हरियाणा के साहित्यकारों एवं कलाकारों को अपनी जड़ो को पहचानने एवं टिके रहने की आवश्यकता है।
प्रकाशित पुस्तकें
डा. अशोक कुमार अत्री की प्रकाशित प्रमुख पुस्तकों में कविता संग्रह 'दिल चाहता कुछ बताना था' और 'आ अब लौट चलें प्रकृति की ओर', कहानी संग्रह 'फिर सुबह' के अलावा पुस्तक 'भारत एवं मध्य एशिया के गणराज्य' हैं। जबकि उनकी दो कृति यानी रचना 'ये कौन छायाकार है' और एवं 'यात्रा वृत्तांत' प्रकाशनाधीन है। उनके साहित्य में हरियाणवी संस्कृति के अनछुए पहलूओं को महत्व दिया गया है। वहीं उनकी महात्मा गांधी के दर्शन पर आधारित कविता 'गांधी अकेला' भी सुर्खियों में रही है।
पुरस्कार एवं सम्मान
साहित्यकार डा. अशोक अत्री को साहित्य क्षेत्र में योगदान के लिए अनेक पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है। इनमें हरियाणा साहित्य अकादमी ने उनकी पुस्तक के लिए प्रकाशन प्रोत्साहन के लिए नकद राशि दी है, तो वहीं उन्हें साहित्य सभा कैथल से बीबी भारद्वाज समृति सम्मान, हरियाणा संस्कृत अकादमी से प्रशस्ति पत्र, जिला प्रशासन कैथल से जनगणना 2011 में उत्कृष्ट कार्य के लिए प्रशस्ति पत्र और कोरोना काल में उत्कृष्ट योगदान के लिए सम्मान, अग्रवाल सभा कैथल से साहित्य सम्मान, डीएवी महाविधालय करनाल से सांग विधा के प्रचार प्रसार के लिए सम्मान और एसडी महाविद्यालय पानीपत से विकसित भारत युवा संसद में योगदान के लिए सम्मान जैसे अनेक पुरस्कार व सम्मान से नवाजा गया है।
14Apr-2025