हिंदी व हरियाणवी कवि व गीतकार के रुप में बनाई पहचान
व्यक्तिगत परिचय
नाम: वीरेन्द्र 'मधुर'
पूरा नाम: वीरेन्द्र कुमार शर्मा
जन्मतिथि: 1 जनवरी 1958
जन्म स्थान: मुजफ्फरनगर (यूपी)
शिक्षा: एम.एस.सी. (रसायन)
संप्रत्ति: साहित्यकार, लेखक, कवि एवं गीतकार
संपर्क: 90-ए/22, किशनपुरा, लक्ष्मी नगर, रोहतक(हरियाणा), मोबा. 9253187577
BY--ओ.पी. पाल
भारतीय संस्कृति में सामाजिक उत्थान के लिए साहित्य संवर्धन की भी अहम भूमिका मानी जाती है। इसलिए साहित्य के क्षेत्र में लेखक और साहित्यकार अपनी अलग अलग विधाओं में साहित्य सृजन करके समाज को नई दिशा देने का प्रयास कर रहे हैं। ऐसे ही लेखकों में शामिल वरिष्ठ साहित्यकार वीरेन्द्र कुमार शर्मा भी सामायिक विषयों और सामाजिक सरोकार के मुद्दों पर कविताएं, गीत, गजल, मुक्तक और आलेख जैसी रचनाओं के संसार को दिशा देने में जुटे हैं। उन्होंने हिंदी और हरियाणवी भाषा में साहित्यिक साधना के साथ सामाजिक सेवा को भी सर्वोपरि रखा है। वरिष्ठ साहित्यकार, कवि एवं गीतकार वीरेन्द्र ‘मधुर’ ने हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत में कई ऐसे अनछुए पहलुओं को उजाकर किया है, जिनमें साहित्य संवर्धन में सभी भाषाओं के सम्मान के साथ मानवीय मूल्यों को जीवंत रखना संभव है।
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वरिष्ठ साहित्यकार एवं कवि वीरेन्द्र 'मधुर' का जन्म 1 जनवरी 1958 को यूपी के मुजफ्फरनगर में रामेश्वर प्रसाद शर्मा एवं श्रीमती सुशीला देवी के घर में हुआ। परिवार में हालांकि कोई साहित्यिक माहौल नहीं था, लेकिन उनके दादा मूल चंद शर्मा शिक्षक रहे। जबकि पिता रामेश्वर प्रसाद भी अंग्रेजी के प्रवक्ता रहे और रामलीला मंच के संरक्षक रहे। साथ ही वे गुड खांडसारी के अच्छे व्यापारी रहे। वीरेन्द्र की प्राथमिक शिक्षा शहर की प्राइमरी पाठशाला में हुई, जहां उनके प्रथम गुरु मोहम्मद इकबाल बने। उन्होंने पहली बार साल 1968 में कक्षा पांच के दौरान स्कूील में मंच मिला। स्कूल में स्कूल में वे साप्ताहिक सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भी मंचन के साथ ड्रामा, डांस और गाना बजाना भी भी करने लगे। उन्होंने कक्षा छह से आठ तक स्कूल में अंताक्षरी] वाद-विवाद और अभिनय में हमेशा प्रथम स्थान हासिल करके हैट्रिक अपने नाम की। वहीं स्कूी रसायन विषय से एमएससी की डिग्री के बाद उन्होंने सरकारी और गैर सरकारी केमिकल प्रतिष्ठानों 32 साल तक नौकरी और व्यवसाय किया। इसके बावजूद उन्होंने अपनी साहित्यिक और सांस्कृति अभिरुचि से नाता नहीं तोड़ा और हारमोनियम और तबला भी सीखकर अपनी विधा और लेकर को लगातार धार दी। बकौल वीरेन्द्र कुमार शर्मा, साल 1969 में रामलीला में विभिन्न किरदार के रुप में मंचन शुरु किया। उन्होंने साल 1974 में रचना गीत जब पीहू पीहू, इस रेत के शहर में, रिमझिम आया सावन, कहां से लाऊं बचपन अपना, जैसे गीत लिखना शुरु किया, जिन्हें सराहत हुए एक प्रख्यात कवि ने उन्हें मधुर नाम दिया। उनके ये गीत काफी प्रचलित भी हुए। साल 1985 में वह परिवार के साथ हरियाणा के रोहतक आए, जहां उन्होंने एक कैमिकल प्रतिष्ठान में नौकरी की और उसके बाद रोहतक में ही बस गये। उन्होंने बताया कि उन्होंने रोहतक में ही एक अपनी पेस्टिसाइड फैक्ट्री भी लगाई, लेकिन खास सफलता नहीं मिली। परिवार में बेटों के रोजगार लगने के बाद वे अपने साहित्यिक लेखन को आगे बढ़ाते रहे और हिरयाणवी संस्कृति में रमना शुरु कर दिया। हालांकि उन्हें हरियाणा में भाषा विशेष के कारण परेशानी का भी सामना किया, जहां अलग पड़े धड़ों में हिंदी गीत को रागिनी के प्रचलन में रखना एक कठिन डगर रही। मसलन सीमा और भाषा अड़चन तो पैदा करते ही हैं लेकिन उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और साहित्य सृजन में तपस्या, मेहनत और अभ्यास ने उनके साहित्यिक लक्ष्य को बुलंदियां दी। उन्होंने म्हारे गाम की छोरी, कदे कदे न्यू धड़के सै, जैसे अनेक हरियाणवी गीत व कविताएं भी लिखी हैं। उनकी रचनाओं का फोकस सामयिक और सामाजिक सरोकारों के मुद्दों, अंधविश्वास, मानव एकता, देशभक्ति जैसे विषयों पर रहा है। कोविड के दौरान उन्होंने मानवता के प्रति गीत लेखन, गायन, संगीतमय धार्मिक संवेदनाएं लिखे। साल 2017 से एक मुक्तक और नई पहल की एक रचना निरंतर फेसबुक जैसी सोशल मीडिया पर लिखने का सिलसिला अभी तक जारी है, जिसमें गीत, कहानी, ग़ज़ल और आलेख आदि शामिल हैं। अखिल भारतीय कवि सम्मेलन में सक्रीय भागीदारी और काव्य मंच के संयोजक व संचालन का दायित्व निभाना उनके लिए गर्व का विषय है। उन्होंने बताया कि हिंदी के साथ हरियाणवी गीतों व कविताओं के लेखन को आगे बढ़ाने का श्रेय वरिष्ठों लेखकों और साहित्यकारों के प्रोत्साहन को जाता है। उनका सौभाग्य रहा कि उन्हें देश के तमाम श्रेष्ठ कवियों नागार्जुन, काका हाथरसी, सत्यदेव शास्त्री भोंपू, गोपालदास नीरज, संतोषानंद, कैफ़ी आजमी, निदा फाजली, कुंअर बेचैन ,हरिओम पंवार,उदय भानु हंस, सुरेन्द्र शर्मा जैसे वरिष्ठ साहित्यकारों व कवियों के साथ मंच साझा करने और काव्य पाठ करने का मौका मिला। उन्होंने साल 2017 में दुबई(यूएई)की विदेश यात्रा के दौरान आयोजित कार्यक्रम में हरियाणवी संस्कृति से जुड़े गीत और काव्य पाठ किया है। जबकि उन्होंने देश के विभिन्न राज्यों के अनेक हिस्सों में काव्य पाठ करने का सौभाग्य मिला और आज वह देश के अच्छे गीतकारों में सम्मानित नाम के रुप से पहचाने जाने लगे हैं। साल 1999 में शोधग्रंथ वीरेन्द्र ‘मधुर’ की कृतित्व और व्यक्तित्व पर कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के कई छात्र एमफिल की उपाधि के लिए शोध भी कर चुके हैं। वह रोहतक की कला परिक्रमा, पंजाबी साहित्यकार मण्डल, विजन फाऊण्डेशन, टैगोर कॉसिल आफ आर्टस रोहतक जैसी कई साहित्यिक, सामाजिक से जुड़े हैं। वहीं वे संस्कार भारती रोहतक जिला ईकाई के साहित्य प्रमुख भी रह चुके हैं। आकशवाणी, डीडी न्यूज जयपुर और आकाशवाणी नई दिल्ली व हिसार से भी उनकी कविताओं और गीतों का प्रसारण हो चुका है। उनकी रचनाएं देश के प्रतिष्ठत पत्र पत्रिकाओं में उनकी रचनाए प्रकाशित हो रही है।
आधुनिक युग में साहित्य की स्थिति
वरिष्ठ साहित्यकार, कवि और गीतकार वीरेन्द्र कुमार शर्मा का आधुनिक युग में साहित्य की चुनौतियों को लेकर कहना है कि इस इंटरनेट युग में हर कोई सोशल मीडिया पर अपनी अभिरुचि की सामग्री तलाश कर ज्ञान प्राप्त करना चाहता है, लेकिन यह सत्य है कि गुरुओं के सानिध्य के बिना ज्ञान प्राप्त नहीं किया जा सकता। इसलिए इस बदलते परिवेश में वरिष्ठ साहित्यकारों और लेखकों की पुस्तकों का अध्ययन करने से लेखनी को यशस्वी किया जा सकता है। जीवन ही संग्राम है और इस बदलते युग में युवाओं को अपनी संस्कृति के ज्ञान के लिए साहित्य के लिए प्रेरित किया जाना आवश्यक है। मसलन भाषा है तो ज्ञान है और ज्ञान है तो भाषा है। ऐसे में लेखकों को भी भाषा विशेष पर अपनी पकड़ बनाकर सभी भाषाओं का सम्मान देकर समाज को नई दिशा देने की जरुरत है।
प्रकाशित पुस्तकें
साहित्यकार एवं गीतकार वीरेन्द मधुर की प्रकाशित एक दर्जन पुस्तकों में गीत संग्रह ‘गलता हुआ हिमानी’, ‘भ्रूण के पहरुए’, ‘कोहराम जिंदगी का’, कविता संग्रह आसमान लुटता है व साँझ मेरे आँगन आयी, गजल संग्रह आवाज़ का जंगल, कहानी संग्रह वापस गांव की ओर, भक्तिगीत काव्य संग्रह हरि मन मनके सुर्खियों में हैं। उन्होंने काव्य शास्त्र संग्रह के रुप में मुक्तक वाटिका और बच्चों के लिए हंसता बचपन शीर्षक से भी पुस्तक लिखी हैं। इसके अलावा कल्पना वार्षिकी 1977, वीणापाणी वार्षिकी 1979 में सम्पादन कला परिक्रमा सँग्रह रचनाएं भी लिखी है।
पुरस्कार व सम्मान
वरिष्ठ कवि एवं गीतकार वीरेन्द्र मधुर को साहित्यिक सेवाओं के लिए अनेक पुरस्कार मिले हैं। प्रमुख रुप से उन्हें हिन्दी साहित्य श्री सम्मान, हंस पुरस्कार, अजमेर मोर स्मृति साहित्य सम्मान, काव्य-भूषण सम्मान, साहित्य सम्मान, प्रज्ञा साहित्य मंच का 'साहित्य सोम' सम्मान मिले हैं। वहीं जयपुर, मेरठ, नांदूरा, हिंदी साहित्य अकादमी दिल्ली, कला संगम दिल्ली, भारतीय महोत्सव समिति श्रीगंगानगर जैसी सामाजिक एवं साहित्यिक संस्थाओं से सम्मान दिया जा चुका है।
23June-2025
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