वरिष्ठ रचनाकारों की साहित्य विधाओं को अपनी आवाज देकर बनाई पहचान
व्यक्तिगत परिचय
नाम: रविन्द्र कुमार 'रवि'
जन्मतिथि: 18 जुलाई 1978
जन्म स्थान: गांव सुरेहली, जिला रेवाडी (हरियाणा)
शिक्षा: स्नातकोत्तर आंग्ल भाषा
संप्रत्ति: अध्यापन, हिंदी व हरियाणवी लेखन
संपर्क: गांव सुरहेली तहसील कोसली,जिला रेवाड़ी, मोबा. 9991514244
-BY--ओ.पी. पाल
भारतीय संस्कृति एवं साहित्य को अपनी अलग अलग विधाओं के जरिए नई दिशा देने का प्रयास करते आ रहे लेखक एवं कलाकारों ने राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई है। ऐसे ही हरियाणवी संस्कृति में लोक साहित्य को अपनी आवाज के जादू से नया आयाम देते आ रहे रविन्द्र कुमार रवि अनूठी साधना में जुटे हैं। मसलन कवि सम्मेलन, काव्य मंच, आकाशवाणी व टीवी चैनलों के माध्यमों से साहित्य की विधाओं को स्थान मिलता रहा है, लेकिन वह सोशल मीडिया पर साहित्य की वाचन-परंपरा का नया चितेरा बनकर राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बना चुके हैं, जो पिछले करीब नौ वर्षो से हिंदी और हरियाणवी भाषा में अपनी कलम और आवाज के जादूगर के रूप में एक मजबूत व्यक्तित्व और बेहतरीन मंच संचालक के रुप में उभरे हैं। अंग्रेजी शिक्षक एवं साहित्य विद्, लेखक एवं आवाज के जादूगर रविन्द्र कुमार रवि ने हरिभूमि संवाददाता से बातचीत के दौरान कई ऐसे तथ्यों को उजागर किया है, जिसमें वह अपनी वाचन कला की प्रतिभा के बल पर हरियाणवी संस्कृति में लोक साहित्य की वाचन परंपरा को देश भर की रचनाधर्मिता से जोड़े हुए हैं।
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हरियाणवी संस्कृति में लोक साहित्य की वाचन परंपरा को अपनी जादुई आवाज से पहचान दे रहे रविन्द्र कुमार 'रवि' का जन्म 18 जुलाई 1978 को हरियाणा के रेवाड़ी जिले के गांव सुरेहली में फतेह सिंह और श्रीमती चंद्रकला के घर में हुआ। उनके पिता सेना में देश की सेवा में रहे तथा माता गृहणी में धार्मिक प्रवृत्ति के साथ परिवार को संस्कार देने में जुटी रही। परिवार में कोई साहित्यिक और सांस्कृतिक माहौल नहीं रहा, लेकिन बचपन से रेडियो सुनने के शौकीन रहे रविन्द्र रवि यादव लोक संस्कृति पर आधारित का काव्य सृजन यानी काव्य मंचों पर तरन्नुम में मधुरकंठी काव्यपाठ से छाप छोड़ने माहिर हैं। पठन पाठन, वाचन, संगीत सुनना, हिंदी हरियाणवी में लिखना उनकी अभिरुचित में समाया हुआ है। वह खेती-किसानी तथा ग्रामीण परिवेश के सभी कार्य करने में दक्ष रहे हैं। रवि ने नाहड़ के सरकारी कालेज से स्नातक मोरनी हिल्स से जेबीटी की पढ़ाई पूरी की, जिसके छह वर्ष तक एक प्राइवेट स्कूल में शिक्षक के रूप में कार्यरत रहे, जिनकी बाद में दिल्ली सरकार के स्कूल में अंग्रेजी के जेबीटी शिक्षक के तौर पर नियुक्ति हुई। इसके बावजूद वह अपनी लोक साहित्य को नया आयाम देते हुए रचनात्मक कार्य में जुटे रहे। उनकी काव्य सृजन, मंच संचालन, काव्य पाठ आदि अभिरुचि को लगातार मंच मिलता रहा है। इसी दौरान वर्ष 2016 में वे बोल हरियाणा के एक बड़े मंच से जुड़े और उनकी इस कला की प्रतिभा को ऐसे पंख लगे, कि उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। बकौल रवि उन्होंने बोल हरियाणा देश के विभिन्न कोनों के वरिष्ठ रचनाकारों की चार सौ से ज्यादा लघुकथाओं तथा ‘बोल किताबों ताई के’ नामक शीर्षक से अपनी हरियाणवी रचनाओं की एक लंबी श्रृंखला को स्वर देकर विशिष्ट पहचान बनाई। उनका कहना है कि वह हरियाणवी में तुकबंदी की छह पंक्तियों को ‘बोल किताबो ताई के’ लिखते हैं, जो तस्वीर पर आधारित होती हैं यानी जैसी तस्वीर वैसी ही छह हरियाणवी पंक्तियां होती हैं। अब तक वह करीब पांच सौ बोल किताबो ताई के लिख चुके हैं। फोटो आधारित इन छह पंक्तियों में हरियाणवी जीवन के हर पहलू को लिखने का प्रयास किया है। वहीं उन्होंने कोराना काल में अपने उक्त स्थायी स्तंभों के अलावा एक चिट्ठी अपनों के नाम, माई लाइफ ड्यूरिंग लॉकडाउन, आपके जज्बात-के साथ आदि समसामयिक स्तंभों का लेखन करके अपना रचनात्मक योगदान दिया है। उनका कहना है कि अंग्रेजी उनके कार्य क्षेत्र के लिए एक विषय है, लेकिन हिन्दी भाषा रगो में रची बसी है और हरियाणवी मां बोली है।
यहां से मिली मंजिल
आवाज के जादूगर रविन्द्र कुमार उर्फ रवि यादव ने बताया कि उनकी इस रचनात्मक यात्रा में जनवरी 2019 में एक नया पड़ाव उस समय आया, जब उन्होंने इसी परंपरा पर आधारित नवाचारी प्रकल्प प्रारंभ किया। बोलता साहित्य-विद रवि यादव नामक इस यूट्यूब चैनल के माध्यम से उन्होंने फिर नए प्रयोग करने शुरु किए। इसी माध्यम से वह अभी तक शताधिक लघुकथाएं, करीब एक दर्जन कहानियां, डेढ़ सौ से ज्यादा कविताएं, काफी ज्यादा संख्या में समीक्षाएं, संस्मरण, पत्र आदि रिकॉर्ड कर सोशल मीडिया पर प्रसारित कर चुके हैं। यही नहीं वह विभिन्न प्रतियोगिताओं का सफल आयोजन भी कर चुके हैं तथा प्रसारित संस्मरणों पर आधारित कुटुंब नामक एक ई-बुक भी लॉन्च कर चुके हैं। हरियाणवी संस्कृति से जुड़ी तस्वीरों पर आधारित वह 6 हरियाणवी पंक्तियों को लिखकर हरियाणवी रीति रिवाज, परंपराओं आदि से दूर जाते समाज और खासतौर से अनभिज्ञ नई पीढ़ी नई दिशा देने का प्रयास कर रहे हैं। ऑनलाइन रेडियो बोल हरियाणा ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न से चलता है और दुनिया भर के साथ देश में इसका प्रसारण होता है। उन्होंने बताया कि कथा कहानी कार्यक्रम में 400 से ज्यादा लघुकथाओं का प्रसारण हुआ इसके साथ-साथ बड़ी कहानियां एवं कविताओं का भी प्रसारण रेडियो बोल हरियाणा पर हुआ।
पुरस्कार व सम्मान
अपनी इस अनूठी साहित्यिक कला की साधना में जुटे रविन्द्र रवि को अनेक सम्मानों से नवाजा जा चुका है, जिनमें प्रमुख रुप से बोल हरियाणा गौरव सम्मान, लघुकथा हितैषी सम्मान, हिंदी गूंज पुरस्कार, हिन्दी भाषा के प्रचार प्रसार के लिए हिन्दी सेवी सम्मान, शिक्षा के क्षेत्र में आउट स्टैंडिंग टीचर ऑफ डेल्ही शिक्षक सम्मान, वेस्ट दिल्ली जोनल बेस्ट टीचर अवॉर्ड, यूनेस्को के वर्ल्ड वाइड न्यूज लेटर में सम्मान के अलावा अनेक सामाजिक,साहित्यिक और सांस्कृतिक संस्थाओं से भी अनेक पुरस्कार मिल चुके हैं।
युवाओं को संस्कृति से जोड़ना जरुरी
आधुनिक युग में लोक कला एवं संस्कृति को लेकर रविन्द्र कुमार रवि का कहना है कि हरियाणा की सांस्कृतिक विरासत सदियों पुरानी और समृद्ध रही है। हरियाणा की लोक संस्कृति, कला, रंगमंच और साहित्य ने सदा से समाज को दिशा दी है। इस आधुनिक युग में भी लोक कला और संस्कृति ने अपना विशिष्ट स्थान बए रखा है। हालांकि तकनीक और आधुनिकता के प्रभाव, व्यवसायिकता के कारण इन कलाओं में बदलाव नजर आने लगा है। ऐसे में खासतौर से युवाओं को अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जोड़ने के लिए उन्हें लोक कला, संगीत व अभिनय के प्रति प्रेरित करने की जरुरत है। जब तक युवा अपनी संस्कृति को नहीं अपनाएंगे, तब तक कोई भी कला जीवित नहीं रह सकती।
16June-2025
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