फिल्मी पटकथा लेखन के साथ अभिनय और निर्देशन में भी बनाई पहचान
व्यक्तिगत परिचय
नाम: संजय संजू सैनी
जन्मतिथि: 10 अक्टूबर 1990
जन्म स्थान: गाँव बिरौली, जिला जींद (हरियाणा)
शिक्षा: स्नातकोत्तर (वनस्पति विज्ञान और मनोविज्ञान), डीएवी कॉलेज चंडीगढ
संप्रत्ति: लेखक और निर्देशक
संपर्क: मोबाइल नंबर- 9996436999
By-ओ.पी. पाल
हरियाणवी लोक कलाकारों ने हरियाणवी संस्कृति, सभ्यता और परंपराओं की पहचान देश विदेश तक पहुंचाई है, जिसमें हरियाणवी फिल्मों, लोक संस्कृति से जुड़ी रागनी, सांग तथा लोक संगीत के क्षेत्र में अलग विधाओं में कलाकारों के हुनर अपनी अलग ही पहचान रखता है। ऐसे ही संजय संजू सैनी ऐसे कलाकार है, जिन्होंने एक छोटे से गांव से बॉलीवुड तक अपने अभिनय का सफर तय किया है। उन्होंने कई फिल्मों और वेबसीरीज की कहानियां लिखी और उन पर बनी फिल्मों का निर्देशन के अभिनय की भूमिका भी निभाई है। उन्होंने अपने लेखन, फिल्म अभिनय और निर्देशन के सफर को लेकर हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत में कई ऐसे पहलुओं का जिक्र किया, जिसमें कला की हर विधा समाजिक सरोकार के मुद्दों में सकारात्मक संदेशों का समावेश करने में सक्षम है।
---
हरियाणा संस्कृति संवर्धन में जुटे लेखक एवं निर्देशक संजय संजू सैनी का जन्म 10 अक्टूबर 1990 को जींद जिले के गांव बरौली में एक किसान परिवार में कंवर सिंह और इंदू देवी के घर हुआ। उनके पिता हरियाणा सरकार के शिक्षा विभाग में अध्यापक पद पर कार्यरत रहे, जबकि माता गृहणी हैं। उनका परिवार बड़ा है और दादा किसान थे और उनके पिता चार भाईयों के साथ नौकरी करने के अलवा खेती बाड़ी में भी हाथ बंटाते थे। परिवार में उनके चाचा पंजाबी भाषा के अध्यापक हैं, जो सुरजीत बिंदरखिया की कैसेजट से आते थे और एक लाल बैटरी, जिसमें म्यूज़िक की भी व्यवस्था थी उससे वह सुनता था। हरियाणवी में उन्होंने बचपन में ही सुनील दूजानिया और रामकेश जीवनपुरीया को भी सुना है। शायद उसी के कारण उन्हें बचपन में कला व संगीत में अभिरुचि होने लगी। उनके गांव की ही एक टोली रागनी गाने और गढवे बैंजो बजाकर गाती थी, तो वह भी चोरी छिपे उनके साथ रहता था। बकौल संजय सैनी, पहली बार उन्हें लिखने का एहसास उस समय हुआ था, जब उनके दोस्त के उपर प्रस्ताव लिखना था। संजू ने मॉय बेस्ट फ्रेंड को अलग अलग तरीक़े से चार बार लिख दिया था। इसमें एक बार हास्य, फिर दुखास, इसके बाद गंभीर और अंत में गुस्सैल तरीके से लिखा, तो उनके अध्यापक ने हंसते हुए उनकी पीठ थपथपाई थी। दरअसल यह लिखने का कारण था कि सबके दोस्त एक जैसे कैसे हो सकते है? सबके किरदार मिलते जुलते कैसे हो सकते हैं, लेकिन उनका दोस्त अलग है और वह दुनिया की भीड से अलग रहेगा। उन्होंने बताया कि एक बार वह अपने दोस्त के साथ गलती से 'चंडीगढ में पंजाब कला भवन सेक्टर 16 गया, जहां उन्होंने 'बिच्छू', 'सातवाँ घोड़ा' 'कोर्ट मार्शल' थिएटर देखा और फिर वहीं का होकर रह गया। यानी वहां एक्टरों को घंटो तैयारी करते देखा और एक्टरों को देखना उनकी एक आदत बन गई और आज वह भी बिना पहचान बताए यही कर रहे हैं और वहां बैठकर एक्टर और डायरेक्टर को काम करते देखता हैं। उनकी पहली कृति एक कविता थी, जो कि एक न्यूज़ चैनल की वेबसाइट पर प्रकाशित हुई थी। दरअसल वह कालेज के दिनों में पढ़ाई करते समय से ही फिल्म की कहानी लिखने लगे थे। उन्होंने एमएससी की पढ़ाई के दौरान रॉकी मेंटल की कहानी लिखी और सौभाग्यवश इसे चयनित कर लिया गया। इसके बाद मन में आया कि उन्हें लेखन कार्य को अपना करियर बनाना चाहिए और इसी फील्ड में अपने करियर को आगे बढ़ाने का फैसला किया। हाल ही में उनके कुछ प्रोजेक्ट बड़े प्रोडक्शन हाउस से आने वाले हैं। सैनी ने बताया कि उनके फ़िल्मों का सफ़र कुछ ऐसा रहा कि फ़िल्म की कहानी लिखने और अपनी लिखी फ़िल्म थिएटर में देखने का मौका मिल गया था, लेकिन तब भी उनका इधर काम करने का इरादा कम ही था। लेकिन उनकी लिखी हुई पहली दोनों कहानियों पर फ़िल्म बनी, तो उनका खुद पर भरोसे के साथ आत्मविश्वास बढ़ने लगा और उन्हें लगा कि जो वह करने आया था वह उसी राह पर हैं।
यहां से मिली मंजिल
लेखक एवं निर्देशक संजय सैनी ने बताया कि खेल में उन्होंने कबड्डी खेली है और राज्य स्तर के टूर्नामेंट तक खेला। जब भी कोई खेल प्रतियोगिता होती है, तो हरियाणा के पहलवानों का दबदबा हमेशा देखने को मिला है। उन्होंने जब कालेज की पढ़ाई के दौरान ही खेलों पर ही फिल्म 'रॉकी मेंटल' की कहानी लिखी और उसे फिल्म के लिए चुना गया। उन्होंने वेबसीरीज फिल्म अखाड़ा (एक और दो), स्कैम, पिंकी भाभी के किरदार की पटकथा भी लिखी और अभिनय भी किया। अखाड़ा के लिए उन्हें हिफ्फा से सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का अवार्ड भी मिल चुका है। पलवानो और उनके संघर्ष पर ही आधारित फिल्म 'अखाड़ा' वेबसीरीज को लेकर लेखक संजय सैनी काफी चर्चा में है। इसके निर्माण के लिए उन्होंने काफी समय तक हरियाणा के विभिन्न गांवों और छोटे कस्बों में शोध कार्य करके कुश्ती जैसे खेल पर यह वेब सिरीज लिखी है। वर्तमान में वह बॉलीवुड में दो हिंदी फ़िल्म, एक वेब सीरीज़ में बतौर लेखक और निर्देशक की भूमिका में कार्यरत हैं। गैंगस्टर और रियल लाइफ स्टोरी पर भी उन्होंने कार्य किया।
डाक्टर न बनने का मलाल
फिल्म निर्देशक संजय संजू सैनी का कहना है कि उन्हें इस बात का मलाल रहेगा कि वह डाक्टर नहीं बन पाए। मन में यह ऐसी पीड़ा बस गई कि नौकरी करना उनकी किस्मत में नहीं था, क्यों कि उनका लेखन की तरफ ज्यादा रूझान बढ़ता गया। घंटो बॉयलोजी की पढ़ाई करने के कारण किताबों के साथ समय बीताना अच्छा लगता था, जिसमें शरतचंद्र, धर्मवीर भारती, दिनकर और सुरेंद्र मोहन पाढक से लेकर समकालीन लेखक सत्य व्यास, प्रवीण झा प्रियकां ओम और मिनाक्षी सिंह सुनीत करोथवाल तक को पढता रहता था। इसके साथ वह असमंजस में रहे कि यदि फिल्म लाइन का कोई भरोसा नहीं, फ़िल्म बन भी गई तो चलेगी या नहीं इसका डर अलग रहा। इन सभी सवालों का जवाब उन्हें उनके स्वर्गीय दादा हवा सिंह ने देते हुए दिया कि बेटा खेती कौनसा सिक्योर है? लेकिन हमने भी तो जीवन निकाल लिया और उतार चढ़ाव आना जिंदगी का हिस्सा है। इसलिए जो कर रहे हो उस पर ध्यान रखते हुए शिद्दत से काम करो। उसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और नहीं सोचा। तब से वह लगातार कहानियों का लेखन करते आ रहे हैं और उन पर फिल्में भी बन रही हैं। आज के आधुनिक युग में साहित्य और संस्कृति के सामन चुनौतियों को लेकर संजय सैनी का कहना है कि ऐसे समय में खासतौर से युवाओं में रुचि बढ़ी है, बदलाव केवल इतना है कि इसके लिए आज कल इंटरनेट युग में सोशल मिडिया और ओटीटी ने उनके लिए नए रास्ते खोले। हालांकि समाज में संस्कृति से जोड़ने की दिशा में युवाओं को प्रेरित करने की जरूरत है। हालांकि युवा वर्ग स्वयं अपनी दिशा और प्रेरणा तलाश लेते है, जिन्हें केवल मार्गदर्शन की जरुरत है।
02June-2025
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें