कविता, गजल, लघुकथा, व्यंग्य जैसी विधाओं में लेखन से मिली पहचान
व्यक्तिगत परिचय
नाम: कृष्ण कुमार निर्माण
जन्म तिथि: 15 जून 1975
जन्म स्थान: गांव व पोस्ट बरोदा, गोहाना, जिला सोनीपत,(हरियाणा)
शिक्षा: एमए (हिंदी),बीएड,एलएलबी, पत्रकारिता डिप्लोमा
सम्प्रति:स्वतंत्र लेखन, कवि, एवं शिक्षा विभाग हरियाणा में अधिकारी
संपर्क:निर्माण सदन, शांति नगर,करनाल, मोबा-9034875740, ई मेल kknsec@gmail. com
--BY-ओ.पी. पाल
साहित्य जगत में लेखन केवल साहित्य संवर्धन ही नहीं है, बल्कि सामाजिक उत्थान में भी साहित्य की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। ऐसा साहित्य सृजन करते आ रहे मूर्धन्य विद्वानों का भी मत है कि साहित्य के बिना समाज की कल्पना करना असंभव है। समाज को नई दिशा देने के मकसद से ही साहित्यकार अपनी विभिन्न विधाओं में लेखन करने में जुटे हैं। ऐसे ही लेखकों में साहित्य साधाना में जुटे साहित्यकार कृष्ण कुमार निर्माण भी सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दों को उजागर करके आलेख, कविताओं और सामयिक विषयों पर अपने रचना संसार को दिशा देने में जुटे हुए हैं। हिंदी और हरियाणवी भाषा में साहित्य संवर्धन करते आ रहे साहित्यकार कृष्ण कुमार निर्माण ने हरिभूमि संवाददाता से बातचीत के दौरान कई ऐसे तथ्यों का जिक्र किया है, जिसमें वह कविता, ग़ज़ल, लघुकथा, व्यंग्य, समसामयिक विषयों पर लेखन करके समाज, खासतौर से युवा पीढ़ी को अपनी परंपराओं से जुड़े रहने का सकारात्मक संदेश दे रहे हैं।
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साहित्यकार एवं लेखक कृष्ण कुमार निर्माण का जन्म 15 जून 1975 को हरियाणा के सोनीपत जिले में गोहाना तहसील के गांव बरोदा में भूप सिंह निनानिया और श्रीमती रतनी देहड़ान के घर में हुआ। उनके परिवार में कोई साहित्यिक माहौल तो नहीं रहा, लेकिन उनके बड़े ताया लेखन करके रागनी का गायन करते थे। जबकि पिता को भी पढ़ने और रागनी गाया करते थे। उनके पिता और अक्सर उन्हें सांग दिखाने भी ले जाया करते थे, शायद इसी से प्रभावित होकर उनमें भी साहित्यिक व सांस्कृतिक के प्रति कब रुझान बढ़ने लगा और उन्हें ठीक से याद भी नहीं है कि कब उनमें यह लिखने का गुण आ गये। उन्हें ऐसा लगता है कि मेरे ताया रघबीर सिंह की ही प्रेरणा है कि उन्हें विरासत में साहित्यिक और सांस्कृतिक क्षेत्र में लेखन मिला, इसका जिक्र उन्होंने अपनी पुस्तक 'बखत-बखत के बोल' में भी किया है। वहीं स्कूली शिक्षकों ने भी उनकी इस प्रतिभा को निखारने में सहयोग दिया। वह स्कूली शिक्षा के दौरान स्कूल में होने वाले हर सांस्कृतिक कार्यक्रम में भाग लेकर भाषण प्रतियोगिता, काव्य पाठ और अभिनय करते थे और इन सभी विधाओं में उसने पहला स्थान हासिल किया। उन्हें राज्य स्तर पर श्रेष्ठ अभिनेता और सर्वश्रेष्ठ कमण्टेटर का खिताब भी हासिल हुआ है। बकौल कृष्ण कुमार, बचपन से ही सांग देखकर और ताऊ जी को सुन-सुनकर उन्होंने जिस माहौल को महसूस किया, उसी की वजह से साहित्य सृजन के लिए उनके लेखन की शुरुआत हुई। हालांकि सबसे पहले तो हरियाणवी में रागनी लिखना शुरू किया। जब वह आठवीं कक्षा में थे तो उन्होंने अपनी पहली रचना लिखी, जिसे उनके ने कई आध्यात्मिक कार्यक्रमों में भी गाया और उन्होंने उसे स्वयं भी सुना। इसी बीच निरंकारी मिशन द्वारा एक गीत संग्रह 'हर का भजन करया कर' प्रकाशित हुआ, जो कि पहली बार सार्वजनिक भी हुआ और फिर अखबारों में प्रकाशित हुआ। अखबारों में उनकी रचनाएं छपने के क्रम से उनका आत्मविश्वास बढ़ना स्वाभाविक भी था, जिसमें हिसार में उनके साहित्यिक गुरु मोहन स्नेही की प्रेरणा मिली। इसी प्रेरणा और बढ़ते रुझानों के चलते उन्हें राज्य कवि उदयभानु हंस के साथ भी मंच पर कविता पढ़ने का अवसर मिला और यहीं से हिंदी में भी साहितय लिखने का क्रम आगे बढ़ा ओर प्रकाशित भी हुआ। उन्होंने बताया कि उनके लेखन के क्रम ने गति पकड़ी और विभिन्न कवि सम्मेलनों में काव्य पाठ भी करते रहे। वहीं उनके कई साझा संग्रह भी आए, लेकिन एक मित्र ने कहा कि आप इतने दिनों से लिख रहे हो, अपना खुद का संग्रह लिखकर भ छपवाओं। इसके बाद उन्होंने हरियाणवी लघु कविताओं का संग्रह लिख, जिसकी भूमिका सुविख्यात साहित्यकार सत्यवीर नाहड़िया ने लिखी है। जहां तक साहित्यिक सफर में परेशानियों का सवाल है उसके लिखे साहित्य के लेखन में कई बार आई, लेकिन ऐसी समस्याएं जल्द हल हो गई। एक ऐसा दिलचस्प किस्सा भी उस समय सामने आया, जब रेवाड़ी में वह अपना कविता पाठ करके मंच से नीचे उतर रहे थे तो युगदृष्टा बाबा हरदेव सिंह जी ने उनकी लिखी रचना को लिखित में मुझे मांगा, जिससे उनका उत्साह बढ़ना भी स्वाभाविक था। आज वह कविता, ग़ज़ल, लघुकथा, व्यंग्य, समसामयिक विषयों पर लेख लिख रहे हैं और कुंडली, लघुकविता, लघुकथा भी उनके साहित्यक साधना की विधाओं में शुमार हैं। उनके उनके साहित्य लेखन का फोकस जनपक्ष की व्यथा, जातिगत भेदभाव, किसानों की दुर्दशा और नारी अधिकार जैसे सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दों पर ज्यादा रहा है। उनके आलेख, कविताएं और रचनाएं देश की विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में भी अनवरतप्रकाशित होती रही है। वहीं हिसार दूरदर्शन से उनके काव्य की अनेक बार प्रस्तुतियां प्रसारित हो चुकी है। उन्होंने हरियाणावी साहित्य अकादमी बनाने के लिए आंदोलन भी चलाए और इसके लिए सरकार को पत्र भी लिखे हैं।
सोशल मीडिया से बड़ी चुनौती
आधुनिक युग में भी निश्चित रूप से साहित्य की स्थिति सर्वोच्च बनी है, मगर सोशल मीडिया के दौर में थोड़ा चुनौती भी कहा जा सकता है। इस आभासी दुनिया में जहाँ सकारात्मकता है, वहीं काफी चीजें अनुचित भी हैं। ऐसा भी नहीं है कि साहित्य के पाठको में कमी आई है, बल्कि मुद्रित पुस्तकों के मुकाबले ऑनलाइन पाठ पठन कुछ ज्यादा हो गया है। वहीं इस बाजारीकरण के दौरे में अर व्यक्ति व्यस्त है और मोबाइल को ही अपने जीवन की प्रक्रियाओं का जरिया बना लिया है। साहित्य और संस्कृति से दूर होती युवा पीढ़ी को लेकर उनका कहना है 'भूखे पटे भजन होए न गोपाला' वाली कहावत ऐसे माहौल में सटीक भी है, जब युवाओं पर करियर को लेकर दबाब बढ़ रहा है। लेकिन ऐसे में युवाओं को साहित्य के लिए प्रेरित करने की ज्यादा आवश्यकता है, जो उन्हें नई राह देने के साथ उनके आत्मसम्बल भी बढ़ाने में सहायक सिद्ध हो सकता है। युवाओं को साहित्य के प्रति प्रेरित करने के लिए उनके स्तर और बदलते युग के साहित्य लेखन की जरुरत है। लेकिन लेखक और साहित्यकारों द्वारा साहित्य तो ज्यादा लिखा जा रहा है, लेकिन उसमें गिरावट नजर आने लगी है और यह बहुत ही तकलीफदेह है कि आज साहित्य भी दो खांचों में बांटा जा रहा है। असल में साहित्य वही है जो कालजयी हो और आम जनमानस की पीड़ा को प्रभावी तरीके से व्यक्त करता हो। इसके लिए खासतौर से युवाओं को साहित्य से जोड़ने के लिए स्कूल और कॉलेजों स्तर पर में सहित्यिक और सांस्कृतिक कार्यशालाओं को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।
प्रकाशित पुस्तकें
साहित्यकार कृष्ण कुमार निर्माण की प्रकाशित पुस्तकों में हरियाणवी लघुकविता संग्रह 'बखत बखत के बोल', हिंदी आलेख संग्रह 'प्रसंगवश', हिंदी काव्य संग्रह 'कविता के बहाने व शब्द बोलते हैं', हरियाणवी ग़ज़ल संग्रह 'बखत-बखत की बात', हरियाणवी लघुकविता संग्रह 'घणा बदलग्गा यार जमाना', व्यंग्य संग्रह 'हल्के-फुल्के व्यंग्य', हरियाणवी कुंडली संग्रह 'मन के जालै', आलेख संग्रह 'संयोगवश'(समय का दसतावेज) शामिल हैं। इसके आलवा उनके साझा संग्रह में हरयाणवी गीत संग्रह 'हर का भजन करया कर', करनाल के कवियों का संग्रह 'कविप्रिया', लघुकविता संग्रह 'हरियाणवी जिंदाबाद' हरियाणा के लघुकथाकार
'ख्यालों का चरागाँ' दूरदर्शन द्वारा प्रकाशित बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ-आवाज-ए हिंदुस्तान भी उनकी उपलब्धियां हैं।
पुरस्कार व सम्मान
हिंदी और हरियाणवी साहित्य में योगदान के लिए साहित्यकार कृष्ण कुमार को अनेक पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है। उन्हें 'हिंदी श्री' सम्मान, श्रेष्ठ साहित्यकार सम्मान, हरियाणवी साहित्य गौरव अवार्ड, श्रेष्ठ शिक्षक सम्मान, साहित्य सभा कैथल व नेपाल की संस्था द्वारा पुरस्कारों से नवाजा गया है। वहीं कवि सम्मेलनों के मंचों पर भी उन्हें अनेक पुरस्कार मिले हैं।
26May-2025
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