लोक नृत्य और शास्त्रीय नृत्य कथक से सांस्कृतिक का विकास करने में जुटी कलाकार
व्यक्तिगत परिचय
नाम: सोनिया
जन्मतिथि: 24 सितंबर 2001
जन्म स्थान: गांव ससोली, जिला यमुनानगर
शिक्षा: ग्रेज्युएट
संप्रत्ति: लोक नृत्य, लोक कलाकार
संपर्क: गांव ससोली, जिला यमुनानगर, मोबा: 8295083765
BY--ओ.पी. पाल
हरियाण की समृद्ध लोक संस्कृति के संवर्धन में जुटे लोक कलाकारों ने विभिन्न विधाओं के माध्यम से अपनी कला में नई दिशा देने का प्रयास ही नहीं किया, बल्कि हरियाणवी कला, संस्कृति और परंपराओं की देश-विदेशों तक अलख जगाई है। ऐसे ही कलाकारों में प्रतिभावान सोनिया अपने लोक नृत्य की कला को ऐसी धार देने में जुटी हैं, जिसमें उनका लोक नृत्य, केवल मनोरंजन ही नहीं, बल्कि संस्कृति का वाहक बनकर धर्म, संस्कार और आत्म-चिंतन को जोड़ने का सबब बनता जा रहा है। लोक नृत्य के साथ वह भारतीय शास्त्रीय नृत्य कथक की विधा में अपने कदम बढ़ा रही हैं। हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत के दौरान युवा लोक कलाकार सोनिया ने अपनी लोक कला के सफर को लेकर कुछ ऐसे पहलुओं को भी उजागर किया है, जिसमें वह अपनी कला लोक परंपरा और शास्त्रीय साधना से एक ऐसा सांस्कृतिक पुल बनाया जा सकता है, जो नई पीढ़ी अपनी जड़ों से जोड़कर समाज को सकारात्मक विचारधारा के साथ नई दिशा देने में सक्षम है।
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हरियाणा की प्रतिभाशाली लोक कलाकार सोनिया का जन्म जन्म 24 सितंबर 2001 को यमुनानगर जिले के ससोली गाँव के एक मध्यमवर्गीय परिवार में सुरेंद्र कुमार और श्रीमति करनैलो देवी के घर में हुआ। उनके परिवार में कोई सांस्कृतिक या कला का माहौल नहीं था। सोनिया की प्रारंभिक शिक्षा गांव के ही सरकारी स्कूल में हुई, उनके पिता कभी-कभी रिक्शा चलाकर भी परिवार का पालन पोषण करने का प्रयास करते थे, जबकि माता नगर पालिका में कच्ची कर्मचारी के रूप में कार्यरत हैं और आज भी उनका परिवार मां की आय पर आधारशिला हैं। इसका कारण यह था कि कोराना काल में घर में ब्रजपात हुआ और उनके पिता का दुर्भाग्यवश निधन हो गया, उस समय वह गुरु नानक गर्ल्स कॉलेज, यमुनानगर में स्नातक प्रथम वर्ष की पढ़ाई कर रही थी। पिताजी के निधन के बाद पारिवारिक जिम्मेदारियाँ बढ़ने के कारण उनकी पढ़ाई कुछ समय के लिए बाधित रही। लेकिन परिवार की जिम्मेदारी संभाल रही मां ने बेटे के अभाव में भी घर में तीन बेटियों का आत्मबल कभी कम नहीं होने दिया और आर्थिक चुनौतियों के बीच माँ के धैर्य और हमारी एकजुटता ने हमें आगे बढ़ने की शक्ति दी। बकौल सोनिया, उन्हें बचपन से ही नृत्य और अभिनय बेहद पसंद थे और खासतौर से नृत्य में अभिरुचि थी। जब भी कोई फिल्म देखती, तो उसके नृत्य को कॉपी करने की कोशिश करती और उसके संवादों की तरह अभिनय भी करती थी। कभी कमरे में अकेले, तो कभी किसी पारिवारिक आयोजन में जैसे ही संगीत बजता या कोई सीन मन को छूता, मेरा मन नृत्य और अभिनय की ओर खिंच जाता था। वह अभी अपने भविष्य से अनजान थी, लेकिन अहसास होता था कि उसकी राह राह कला की दुनिया से होकर ही जाती है और समय के साथ यह रुचि ही उनकी साधना बन गई और अब लोकनृत्य ही उसकी कला की पहचान बन चुकी है। उन्होंने बताया कि 12वीं की शिक्षा पूरी करने के बाद उसे गुरु नानक गर्ल्स कॉलेज में शिक्षा ग्रहण करते हुए कॉलेज के यूथ फेस्टिवल में उन्हें हरियाणवी लोक नृत्य के ग्रुप डांस में भाग लेने का अवसर मिला, जो दर्शकों के सामने उनकी पहली लोकनृत्य की प्रस्तुति थी, जहां उनकी कला को तालियों से मिली सराहना ने आत्मविश्वास को ऐसे बढ़ाया कि उनका मन पूरी तरह नृत्य में रच-बस गया। कॉलेज में ही उन्होंने हरियाणवी लोकनृत्य की बारीकियाँ सीखी थीं, जिसके बाद उन्होंने कई शूटिंग के दौरान बैकग्राउंड डांसर के रूप में काम करना शुरू किया। इसी दौरान उन्हें स्वर्गीय सिंगर राजू पंजाबी के साथ एक गाने में मुख्य भूमिका में भी काम करने का अवसर मिला। हालांकि इस क्षेत्र में मेहनत के मुकाबले पारिश्रमिक बहुत कम था और कार्यशैली असंगठित, विशेष रूप से बैकग्राउंड कलाकारों के लिए रही। इसलिए उन्होंने निश्चय किया कि अपनी कला को एक सृजनात्मक, सम्मानजनक और स्थायी मंच पर ले जाएं। उनका कहना है उनकी कला यात्रा आसान नहीं रही, लेकिन हर मोड़ उनके लिए एक नई सीख लेकर आया। जब उन्होंने हरियाणवी लोकनृत्य और भारतीय शास्त्रीय नृत्य की दुनिया में कदम रखा, तब यह सिर्फ एक शौक नहीं, बल्कि आत्मा की पुकार थी। गाँव की बेटी होने के नाते कई बार सामाजिक सीमाएं भी सामने आईं और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सवाल उठे, मंच पर खड़े होने को नजरों से तौला गया। परिवार और समाज के कुछ लोग शुरू में रोक-टोक करते थे, पर उन्होंने हार नहीं मानी। जब उनका नाम अखबारों में मंचों की तस्वीरें के साथ आने लगा तो धीरे-धीरे समाज की आवाजें खुद ही शांत होती चली गई और आज वही राह उसे पहचान और सम्मान दिला रही है। उनकी लोक कला की इस यात्रा में अभी मंज़िलें तो बहुत बाकी हैं।
हरियाणवी संस्कृति सर्वोपरि
हरियाणा की मिट्टी में जन्मी और उसी सांस्कृतिक धड़कनों में पली-बढ़ी सोनिया अपनी कला को केवल मंच की प्रस्तुति नहीं, बल्कि आत्मिक यात्रा मानती है। हरियाणवी लोक नृत्य में गांव की मिट्टी की सोंधी खुशबू, भाषा, लोकगीत, हंसी-मजाक और संघर्ष सब कुछ समाहित करते हुए हरियाणा संस्कृति को सर्वोपरि रखा है। अब सोनिया का झुकाव भारतीय शास्त्रीय नृत्य कथक की ओर भी है, जिसकी विद्या को पूरी श्रद्धा और लगन से सीख रही हैं, क्योंकि इसमें केवल ताल और गति नहीं, बल्कि गहराई से भाव, कथा और आत्मिक अनुशासन छिपा है। कथक की हर मुद्राएं, हर भाव-अभिनय मुझे भीतर तक छूते हैं और उनकी कला को एक नई दिशा प्रदान करते हैं। उनका कहना है कि अपनी कला में उनका लक्ष्य नई पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़ने का है, ताकि समाज को सकारात्मक विचारधारा के साथ नई दिशा मिल सके और उनकी कला मनोरंजन नहीं, बल्कि संस्कृति का वाहक बनकर धर्म, संस्कार और आत्म-चिंतन से जुड़ सके।
लोक कलाओं के सामने चुनौतियां
युवा लोक नृत्य कलाकार सोनिया का इस आधुनिक युग में लोक कला और संस्कृति की चुनौतियों को लेकर कहना है कि हमारी लोक नृत्य, संगीत, और रंगमंच जैसी पारंपरिक कलाओं को कहीं न कहीं संघर्ष करना पड़ रहा है, जिसका कारण डिजिटल माध्यमों ने मंचों को स्क्रीन में बदल दिया है। इसी कारण कभी समाज की आत्म रहीं लोक कलाएं अब सीमित मंचों और सीमित दर्शकों तक सिमटती जा रही हैं। हालांकि अभिनय और संगीत की विधाएं आज भी जीवित हैं, लेकिन व्यावसायिकता और दिखावे का प्रभाव पारंपरिकता, भावनात्मकता और सच्चे कलात्मक प्रयासों की पहचान को मुश्किल करता नजर आ रहा है। लेकिन आज समाज, खासतौर से युवा पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़ने की जरुरत है, ताकि इन कलाओं को केवल संग्रहालयों में ही नहीं, जीवंत मंचों पर भी जीवंत देखा जा सके। वहीं यह दुर्भाग्यपूर्ण सत्य है कि आज की युवा पीढ़ी की लोक कला, रंगमंच, अभिनय और साहित्य जैसी सांस्कृतिक विधाओं में रुचि कम होती जा रही है। इसका एक प्रमुख कारण है तेज़ी से बदलती जीवनशैली और सोशल मीडिया का प्रभुत्व, जिसने त्वरित मनोरंजन को प्राथमिकता बना दिया है। जबकि लोक कलाएं केवल प्रस्तुति नहीं होतीं, वह हमारे इतिहास, हमारी सभ्यता और हमारे मूल्य प्रणाली की जीवंत अभिव्यक्ति होती हैं। इसलिए हरियाणवी लोक नृत्य, रंगमंच और संगीत जैसे पाठ्यक्रमों को स्कूली स्तर पर लागू करके हर स्कूल में युवाओं को प्रेरित करने के लिए अनिवार्य करने की आवश्यकता है। इसके लिए सरकार को भी लोक कला और नृत्य को प्रोत्साहित करने के लिए विशेष योजनाएं बनानी चाहिए, ताकि कलाकारों को आर्थिक और सामाजिक सहायता मिल सके, जिससे वे अपनी कला को सशक्त रूप से प्रस्तुत कर सकें।
19May-2025
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