साहित्य संवर्धन के साथ लोक कला के क्षेत्र में भी बनाई बड़ी पहचान
व्यक्तिगत परिचय
नाम: डॉ.सत्यबीर सिंह ‘निराला’
जन्म तिथि: 24 अक्टूबर 1956
जन्म स्थान: गांव निगाना, जिला रोहतक(हरियाणा) शिक्षा: इंटरमिडिएट, पीएचडी उपाधि
संप्रत्ति: साहित्यकार, संगीतकार, गायक एवं समाजसेवी, जल आपूर्ति विभाग से सेवानिवृत्त।
संपर्क: गांव निगाना, जिला रोहतक(हरियाणा), मोबा. 9992570491
BY---ओ.पी. पाल
भारतीय संस्कृति में साहित्य को समाज का दर्पण माना जाता है। इसलिए सामाजिक सरोकार के मुद्दों पर लेखन के जरिए साहित्य साधना कर रहे साहित्यकार संस्कृति और परंपराओं और सभ्यता के प्रति समाज को नई दिशा देने का प्रयास कर रहे हैं। ऐसे लेखकों में डॉ.सत्यबीर सिंह ऐसे साहित्यकार हैं, जिन्होंने पद्य, दोहे, वर्णमाला, चौपाई, भजन, हरियाणवी भजन व बारह मास जैसी विधाओं में सामाजिक जीवन को सकारात्मक राह देने का प्रयास किया है। गद्य और पद्य दोनों प्रारुप को साहित्य संवर्धन का हिस्सा बनाकर उन्होंने हरियाणवी भाषा और संस्कृति को सर्वोपरि रखते हुए कला और संगीत की विधाओं में भी एक कलाकार व गायक और समाजसेवा की भाव के साथ सक्रीय होकर अपनी पहचान बनाई है। हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत में वरिष्ठ साहित्यकार डॉ.सत्यबीर सिंह ‘निराला’ ने समाज, खासतौर से युवा पीढ़ी को साहित्य और संस्कृति के प्रति प्रेरित करने पर बल दिया है।
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हरियाणा के साहित्कार डॉ.सत्यवीर सिंह ‘निराला’ का जन्म 24 अक्टूबर 1956 को रोहतक जिले के गाँव निगाना में एक सामान्य कृषक परिवार में बनारसी दास नम्बरदार व श्रीमती सरबती देवी के घर में हुआ। परिवार में पारिवारिक पृष्ठभूमि में कोई साहित्यिक या सांस्कतिक माहौल नहीं था, लेकिन उन्हें बचपन से ही भजन और गीत गाने का बहुत शौंक था। हालांकि होश संभालने के बाद मध्यम वर्ग के परिवार होने की वजह उनके जीवन में भी आर्थिक और सामाजिक लक्ष्यों को हासिल करने के लिए संघर्ष करना पड़ा। दरअसल संगीत में गायन और साहित्य में गीत, भजन, रागनी लिखने में उनकी रुचि 1975-76 से ही हो गई थी। बचपन में अभिरुचि के कारण ही उन्होंने अल्पायु यानी 14 या 15 वर्ष की उम्र में ही लिखना शुरु कर दिया था। वक्त के साथ जब वह बड़े हुए तो उन्होंने अपनी पढाई के साथ में संगीत की शिक्षा ग्रहण करनी भी जारी रखी और जल्द ही वह बड़ी बड़ी स्टेजों पर बतौर गायक तथा हारमोनियम वादक के तौर पर कार्य करने लगा। समय के साथ ख्याति बढ़ती गई और उन्हें फिल्मों में नाटकों में गीत लिखने के लिए तथा बतौर संगीतकार के तौर पर कार्य करने के अवसर मिलते रहे, लेकिन कहीं न कहीं मन मे एक टीस बाकी थी कि उनकी रचनाएं किस प्रकार आने वाली पीढी को जागरुक करे। इसलिए उन्होंने साहित्य लेखन की तरफ अपने कदम बढ़ाने शुरु कर दिये। साहित्य सृजन करते हुए वह अब तक करीब 78 से ज्यादा पुस्तकें लिख चुके हैं। हालांकि दस पुस्तकें की प्रकाशित हो चुकी है और बाकि पुस्तकें प्रकाशनाधीन है। कवि धर्म संसद में सद्गुरु बाबा हरदेव सिंह जी महाराज ने शुभ आशीष देते हुए उन्हें साल 1990 में ‘निराला’ उपाधि से नवाजा गया। हालांकि घर परिवार की जिम्मेदारियों को निभाने के लिए सरकारी नौकरी करने तथा साहित्य लेखन व संगीत के कार्य में सामंजस्य बैठाने में वास्तव मे उन्हें बेहद परेशानी का सामना करना पड़ा, लेकिन हरियाणा सरकार के जनस्वास्थ्य अभियांत्रिक, जल आपूर्ति विभाग से सेवानिवृत्ति के बाद खासतौर से साहित्यिक क्षेत्र की दृष्टि से उन्हें बड़ी राहत मिली। इसलिए अब वह लगातार दिन-रात साहित्य सृजन तथा साहित्यिक गतिविधियों में इतना व्यस्त रहने लगे और अब तक वह करीब 75 से ज्यादा पुस्तकें लिख चुके हैं। दस पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है और बाकि पुस्तकें प्रकाशनाधीन है। साहित्य और संगीत में पीएचडी की मानद उपाधि हासिल कर चुके डॉ.सत्यबीर सिंह, आमतौर पर उनके लेखन का फोकस हर विषय पर रहा है, लेकिन सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दो, आध्यात्म एवं जनजागृति पर आधारित रचनाओं पर ज्यादा कलम चलाई है। साहित्य सृजन के अलावा वह सामाजिक गतिविधियों में भी सक्रीय हैं और निराला चैरिटेबल ट्रस्ट के संस्थापक निदेशक के रुप में वह महिला सशक्तिकरण की दिशा में अब तक 150 महिलाओं एवं लड़कियों को निशुल्क रुप से एडवांस बेसिक कंप्यूटर कोर्स (6 महीने) और बेसिक कंप्यूटर कोर्स (3महीने) करवाया जा चुके है। वहीं वृक्षारोपण, रक्तदान आदि गतिविधियों तथा धर्म प्रचार-प्रसार कार्यों में अहम वह लगातार अपनी भूमिका निभा रहे हैं।
हरियाणवी भाषा को भी दी तरजीह
डॉ.सत्यबीर सिंह ‘निराला’ ने बताया कि उनका जन्म हरियाणा की माटी में हुआ है, यह स्वाभाविक रुप से उनका कर्तव्य भी है कि वह अपनी मां बोली हरियाणवी भाषा को आगे बढ़ाने के प्रयास करें। इसलिए साहित्यिक सफर के दौरान वह अब तक हरियाणवी भाषा में लगभग 250 से ज्यादा गीत, कविताएं लिख चुके हैं, जिसमें उनकी एक पुस्तक ‘टूटता तारा’ हरियाणा भाषा मे प्रकाशित हो चुकी है, जबकि हरियाणवी भाषा में ’प्यार बड़ा हथियार सै’ अभी प्रकाशनाधीन है। साहित्य के अलावा उन्होंने संस्कृति संवर्धन के लिए भी बतौर संगीतकार, गीतकार, गायक एवं अदाकार के रुप मे कई हरियाणवी फिल्मों, टेलीफल्मिों तथा नाटकों मे कार्य किया, जिनमे से मुख्यतः हरियाणवी फिल्म हरियाणवी फिल्म छोरयां तै कम छोरी होगी और क्यूँ भरग्या माँग पिया, हरियाणवी नाटक-भोलू चल्या स्कूल, हरियाणवी एलबम बोरला, भोले तेरे भक्त निराले, गुरु महिमा, काँवड़िया, लव हरियाणे का, हरियाणे पै खतरा, हाय पड़ोसन, बाबा मोहनदास के अलावा उन्होंने टेलीफिल्म उपहार, अहसास और उज्ज्वला तथा प्राईवेट एलबम ’तनै जग सुखी बणाया सै, बोरला, नीली छतरी आलै, तेरा रूप गजब का, प्यारी-प्यारी बेटियों, तने कर दिया इसा कमाल, हक पै डाका और कुर्बानी नै याद करो आदि में भी कार्य किया है। इसके अलावा उनके यू-टयूब चैनल ’निराला डिवोशनल’ पर बहुत से हरियाणवी गीत उपलब्ध है, जिनमें उन्होंने गीतकार, संगीतकार तथा गायक के साथ अदाकार के तौर पर कार्य किया है। ।
प्रकाशित पुस्तकें
प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ.सत्यबीर सिंह ‘निराला’ ने अब तक आध्यात्म,सामाजिक,पारिवारिक,राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय समस्या व समाधान पर आधारित हिंदी व हरियाणवी भाषा में 75 से ज्यादा पुस्तकें लिखी हैं। इनमें गद्य में और पद्य प्रारुप में 50 पुस्तकें और गद्य में 25 पुस्तकें शामिल हैं। प्रमुख रुप से प्रकाशित पुस्तकों में आइना-ए-निराला, सत्य की ओर, दरकते-रिश्ते, अदालत, प्यार का पैगाम,घटता आँचल, टूटता तारा (हरियाणवी), संत बाबा मेहरशाह (ग्रंथावली) शामिल हैं। इनके अलावा उनकी प्रकाशित साझा संग्रह पुस्तकों में ‘पौत्र प्रभाविकरण’, ‘तनै कर दिया इसा कमाल’, ‘गुरु कृपा’, ‘संस्कारों की क्यारी’, ‘प्यारा नंद लाला’, ‘भारत माता की जय’, ‘मेघा पुष्प’, ‘कविता कौमुदी’ के अलावा प्रकाशनाधीन साझा संग्रह पुस्तक ‘एकता’, ‘बेरहम’ और ‘महिलाओं की प्रधानता और नेतृत्व’ शामिल हैं। वहीं उन्होंने धराधाम इंटरनेशनल गोरखपुर (उत्तर प्रदेश) के पीठाधीश्वर सौहार्द शिरोमणि प्रो.डा. सौरभ पाण्डेय के जीवन दर्शन पर लिखित पुस्तक ‘सौहार्द शिखर’ के अलावा डा. मधुकांत बंसल द्वारा लिखी हिंदी पुस्तक 'रक्तशाला' का हरियाणवी पुस्तक ‘खून खजाना’ का अनुवाद किया।
पुरस्कार व सम्मान
उनके साहित्य सवंर्धन में उत्कृष्ट योगदान के लिए हरियाणा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी से ‘हरियाणवी भाषा के विकास की संभावनाए’ विषय पर प्रमाण पत्र से सम्मानित साहित्यकार डॉ.सत्यबीर सिंह ‘निराला’ को अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय और प्रांतीय स्तर पर सैकड़ो पुरस्कार एवं प्रशस्ति पत्रों से नवाजा जा चुका है। उनके प्रमुख रुप से राष्ट्रीय साहित्य रत्न सम्मान, राष्ट्रीय कबीर कोहिनूर सम्मान, 'बाल अधिकार साहित्य सम्मान, अटलश्री सम्मान, विधा भास्कर निराला सम्मान, कवि महेन्द्र सिंह नंबरदार स्मृति सम्मान, मिसरी-जुगलाल स्मृति साहित्य श्री सम्मान, निर्मला स्मृति हरियाणा गौरव साहित्य सम्मान, समाज सेवा सम्मान, प्रकृति गौरव सम्मान, संस्कृति प्रेमी सम्मान, सनातन धर्म और साहित्य सम्मान शामिल हैं। इसके अलावा उन्हें लाइफ टाइम एचीवमेंट पुरस्कार के साथ ही नेपाल के काठमांडू और लुंबनी में अंतरराष्ट्रीय भारत-नेपाल मैत्री सम्मान से भी अलंकृत किया जा चुका है।
ये भी रही उपलब्धियां
वरिष्ठ साहित्यकार डॉ.सत्यबीर सिंह ‘निराला’ ने साहित्य साधना के साथ संगीत के क्षेत्र में गायन, वादन, गीतकार, म्यूजिक कंपोजर एवं अभिनय के माध्यम से संस्कृति संवर्धन में भी अहम भूमिका निभाई है। उन्होंने भोजपुरी फिल्म माँ सी भौजाई, हरियाणवी फिल्म छोरयां तै कम छोरी होगी और क्यूँ भरग्या माँग पिया, हिंदी धारावाहिक जमाना दौड़ता है, टेलीफिल्म उपहार, अहसास, भोलू चला स्कूल और उज्ज्वला के अलावा हरियाणवी एलबम बोरला, भोले तेरे भक्त निराले, गुरु महिमा, काँवड़िया, लव हरियाणे का, हरियाणे पै खतरा, हाय पड़ोसन, बाबा मोहनदास के साथ प्राइवेट एलबम तेरा रूप गजब का, प्यारी-प्यारी बेटियों, तने कर दिया इसा कमाल, हक पै डाका और कुर्बानी नै याद करो आदि में भी कार्य किया है।
साहित्य की जटिल व रोचक हुई स्थिति
डॉ.सत्यबीर सिंह ‘निराला’ ने आधुनिक युग में साहित्य की स्थिति को जटिल,लेकिन अत्यंत रोचक करार देते हुए कहा कि इस तकनीकी, सोशल मीडिया और डिजिटल माध्यमों के विस्तार ने साहित्य की प्रकृति, पहुंच और अभिव्यक्ति के तरीकों को पूरी तरह से बदल दिया है। पहले साहित्य मुख्यतः पुस्तकों, पत्रिकाओं और अखबारों तक सीमित था, लेकिन अब ब्लाग्स, ई-बुक्स, ऑडियोबुक्स, पॉस्टकास्ट और सोशल मीडिया के माध्यम से साहित्य का प्रसार हो रहा है। साहित्य अब केवल शब्दों का खेल नहीं रहा, वह मल्टीमीडिया अनुभव बनता जा रहा है। साहित्य पर अब पाठक टिप्पणियों, प्रतिक्रियाओं और विमर्श के माध्यम से लेखक से संवाद कर सकते हैं। इससे साहित्य अधिक जीवंत और सामाजिक रुप से उत्तरदायी बना है। यही कारण है कि विशेषकर उपन्यास, कविताएं, नाटक, आलोचना आदि जैसे साहित्य के पारंपरिक पाठक निश्चित रुप से कम हो रहे हैं। अब लोग बदलती जीवनशैली के कारण लंबे समय तक किसी गहरी रचना को पढ़ने की बजाए इंस्टाग्राम रील्स, यूटयूब र्शाटस और टवीट्स में ज्यादा समय बिता रहे हैं, जिसका समाज में संवेदनशीलता की कमी के कारण सामाजिक तानाबाना टूटता जा रहा है और युवा पीढ़ी अपनी साहित्य, संस्कृति और परंपराओं से दूर होकर पाश्चत्य संस्कृति का अनुसरण कर रहे हैं। इसलिए युवाओं को साहित्य पढ़ने के लिए प्रेरित करना आज के समय की मांग है, क्योंकि साहित्य केवल शब्दों का संग्र्रह नहीं है, बल्कि संवदेनाओं, सोच, भाषा, संस्कृति और चरित्र निमार्ण का साधन है। वहीं साहित्यकारों को भी अपनी रचनाओं और लेखों को रोचक व प्रासंगिक बनाने के लिए विज्ञान, राजनीति, समाजशास्त्र के साथ साहित्य का संवाद स्थापित करना होगा।
18Aug-2025
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