अभिनय के साथ गायन शैली में लेड़ी लखमीचंद के नाम से बनी पहचान
व्यक्तिगत परिचय
नाम: केलापति राहिवाल (हरियाणवी कलाकार )
जन्मतिथि: 1 फरवरी 1962
जन्म स्थान: सरसौद, जिला हिसार(हरियाणा)
शिक्षा: एमए (हिंदी), डीएड, प्रभाकर, पीआरईपी (एन.एम.)
संप्रत्ति: सेवानिवृत्त शिक्षक, रागनी गायक, अभिनय,
संपर्क: आजाद नगर, राजगढ रोड, गली नं.-1, हिसार(हरियाणा), मोबा.9896254803
By- ओ.पी. पाल
हरियाणवी लेखक, कलाकार अपनी अलग अलग विधाओं में राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी कलाओं के हुनर बिखेरकर हरियाणवी संस्कृति को पहचान देते आ रहे हैं। ऐसी ही हरियाणवी कलाकार ने अपने हिंदी और हरियाणवी भाषा में गीतों, कविताओं और भजनों का लेखन करने के साथ अपनी गायन कला और अभिनय के माध्यम से बड़ी पहचान बनाई है। हरियाणा में उनकी गायन शैली की तुलना सूर्य कवि दादा लखमीचंद से की जा रही है। इसलिए उन्हें लेडी लखमीचंद के नाम से पहचाना जा रहा है। एक शिक्षका, समाजसेवी, अभिनेत्री और गायक कलाकार केलापति राहीवाल ने हरिभूमि संवाददाता से अपनी लोक कला के सफर को लेकर कई ऐसे पहलुओं को सामने रखा, जिसमें लोक कला का समाज को अपनी संस्कृति से जुड़े रहने के प्रति नई दिशा देने में अहम योगदान है।
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हरियाणवी लोक कलाकार केलापति राहीवाल का जन्म 01 फरवरी 1962 को हिसार जिले के गांव सरसौद में एक छोटे से किसान परिवार में फकर सिंह व श्रीमती रूकमण देवी के यहां हुआ। उनके पिता खेती-बाड़ी व पशुपालन का काम करते थे। उनके माता -पिता दोनों ही अथक जी-तोड़ मेहनत करने वाले थे। उनकी माता को संगीत व नृत्य के प्रति बहुत लगाव था। हमेशा वह सुबह जब सुबह हाथ वाली चक्की से आटा पीसती थी, तो सुंदर गीत और भजन गाती रहती थी। वहीं उस जमाने में गांवों में सभी मौहल्ले और आस पड़ोस की औरतें कुंए से पानी भरने के लिए जाती थी, तब भी उनकी माता गीत गाते हुए चलती थी और वह भी उनके पीछे कुएं पर पहुंच जाती थी, जिसका असर पड़ना स्वाभाविक था। मसलन उन्हें गीत संगीत की कला मां से विरासत में मिली, तो इसी कारण बचपन से ही उन्हें भी कला संगीत में अभिरुचि पैदा हुई और बचपन से ही उनकी कविता, गीत और भजन सुनने में अभिरुचि रही। यही कारण था कि उसने स्कूली शिक्षा के दौरान चौथी कक्षा से ही शनिवार की होने वाली बालसभा में कविता, गीत और भजन सुनाना भी शुरु कर दिया था। पढ़ाई में भी वह अव्वल रही हैं जिसके कारण शिक्षकगणों का आशीर्वाद मिला और वह भी अपने मन में अध्यापकों के प्रति बहुत मान सम्मान रखती थी। उनके परिवारिक पृष्ठभूमि में उस समय माली हालत ठीक नहीं थी और पिता ऐसे संकट और आर्थिक तंगी के बावजूद बच्चों की पढ़ाई लिखाई में बहुत ध्यान दे रहे थे, इसलिए उनकी पढ़ाई में कभी कोई बाधा नहीं आई। पिता ने दो बेटियों व एक भाई को शिक्षित करने में कभी कोई कसर नहीं छोड़ी और तीनो भाई बहन पढ़ लिखकर सरकारी नौकरी पाने में सफल रहे और परिवार व रहन सहन में सुधार भी हुआ। बकौल केलापति, उन्होंने एमए(हिंदी) स्नातकोत्तर की उच्च शिक्षा हासिल करने के साथ डीएड, प्रभाकर और स्नातकोत्तर शिक्षा कार्यक्रम(पीआरईपी-एनएम) भी किया है। इसके बाद उनकी छह अप्रैल 1988 को हरयिाणा शिक्षा विभाग में एक शिक्षक के रुप में नौकरी शुरु की और करीब 32 साल तक अध्यापन कार्य करने के बाद 31 जनवरी 2020 में सेवानिवृत्त हुई। शिक्षिका की नौकरी करने के दौरान उन्होंने जहां अध्यापन प्रशिक्षण में मास्टर ट्रेनिंग जैसे शिक्षण कार्य की हरेक गतिविधि में बढ़चढ़कर अपने कर्तव्य का निर्वहन किया, वहीं उन्होंने जनहित और समाजहित के कार्यक्रमों पोलियो अभियान, जनगणना जैसे अभियानों में भी अपना योगदान दिया है। शिक्षा विभाग से सेवानिवृत्ति के बाद उन्होंने लोक कला के क्षेत्र में विभिन्न विधाओं के साथ सक्रीय होकर अपनी भूमिका को आगे बढ़ाने का सिलसिला जारी रखा हुआ है। दूसरी ओर परिवार में केलापति की जिम्मेदारी बेहद अहम रही, क्योंकि वह अविवाहित हैं और अपने परिवार के साथ ही रहती हैं। उनका परिवार वर्तमान में आजाद नगर राजगढ रोड हिसार में रहता है। शहर में सबकुछ करने के बाद अभी उनके ऊपर अपने भतीजे व भतीजी को उच्च शिक्षा दिलाना, उनकी शादी करना, गांव में मकान बनाने की जिम्मेदारी भी है। उनकी कला का फोकस सामाजिक मुद्दों पर है और न्यायोचित दृष्टिकोण से तर्क संगत बात करने का रहा है। उनके कला क्षेत्र में भी रागनी, गीत या भजन के अलावा अभिनय के किरदार में भी अन्याय के खिलाफ समाजिक सरोकार के मुद्दे सर्वोपरि रहे हैं। उनका कला के माध्यम से समाज को सकारात्मक संदेश देने का प्रयास रहा है, ताकि समाज अपनी सभ्यता, परांपराओं, रीति रिवाज और अपनी संस्कृति से जुड़ा रहे। वह सामाजिक कार्यो खासतौर से नारी विमर्श और महिलाओं के हित में भी सक्रीय रहती हैं और महिला संगठन में भी बहुत काम किया है। उनका कहना है कि जीवन में उतार चढ़ाव का दौर हर इंसान के सामने आता है, लेकिन जहां तक उनकी कला के क्षेत्र में अभिनय में कोई खास परेशानी नहीं हुई और इस क्षेत्र से जुड़े लोगों से प्रोत्साहन व सम्मान मिलता रहा है।
अभिनय के रुप में भी छोड़ी छाप
हरियाणवी महिला लोक कलाकार केलापति राहीवाल ने स्कूल और कालेज में शैक्षिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, राजनीतिक मंचों पर भी गीत और भाषण तथा अभिनय के रुप में अपनी कला का प्रदर्शन किया, उन्होंने अधिकांश फिल्मों व वेबसीरीज में दादी का किरदार निभाया है। उनकी विभिन्न विधाओं में कला को हरियाणवी फिल्मों और वेबसीरीज में भी बेहद पसंद किया जाता है। उन्होंने हरियाणवी फिल्म घूंघट, हरियाणा, हरियाणा की बेटी, मां, हरियाणा केसरी, मुआवजा, काला कौन है जैसी फिल्मों में अभिनय के साथ गायन का किरदार भी निभाया। खुशमिजाज मजाकिया स्वाभाव की कलाकार होने के नाते शूटिंग और सैट पर पूरी टीम उन्हें भरपूर मान सम्मान देती है। वहीं उनके यूट्यूब चैनल पर खुद के लिखे और गाये गये गीत और भजन भी प्रचलित हैं, जिन्हें खूब पसंद किया जा रहा है।
पुरस्कार व सम्मान
महिला लोक कलाकार केलापति को हाइफा की प्रतियोगिताओं के गीत कॉम्पिटिशन में दो बार प्रथम, एक बार द्वितीय और हाल ही सात्वनां पुरस्कार हासिल किया है। फिल्म अभिनेता और निर्देशक यशपाल शर्मा ने उनकी गायन शैली से प्रभावित होकर उन्हें बहुत मान सम्मान के साथ लेडी लख्मीचंद के नाम दिया है। केलापति को अध्यापन कार्य के दौरान भी राज्य, जिला और खंड स्तर पर अनेक पुरस्कार व सम्मान मिले हैं।
आधुनिक युग में चुनौती
आज के आधुनिक युग में कला और संस्कृति को लेकर लोक कलाकार केलापति राहीवाल का कहना है कि आजकल पैसा प्रधान हो गया है और इंस्ट्रा व फेसबुक आदि सोशल मिडिया पर भौंडा अश्लील प्रदर्शन शर्मसार होने को मजबूर कर रहा है, जिस पर प्रतिबंध होना जरुरी है। वहीं आजकल की युवा पीढ़ी को हरियाणवी संस्कृति के प्रति प्रोत्साहन देने की जरूरत है, क्योंकि पाश्चात्य संस्कृति का दुष्प्रभाव हमारी भारतीय संस्कृति को दूषित कर रहा है। युवा पीढ़ी को सरकारी स्तर और स्कूल व कालेज में सांस्कृतिक रुप से प्रोत्साहन देने की जरूरत है, ताकि उनके भविष्य को सुधारकर उन्हें अपनी संस्कृति और सभ्यता और परंपरा से जोड़ा जा सके।
09Aug-2025
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