सोमवार, 21 जुलाई 2025

साक्षात्कार: साहित्य संवर्धन में नैतिकता और आध्यात्मिकता भी अहम: ओपी चौहान

हास्य-व्यंग्य से हरियाणवी जीवन, संस्कृति और सामाजिक मुद्दों पर दी समाज को नई दिशा 
                     व्यक्तिगत परिचय 
नाम: ओम प्रकाश चौहान 
जन्मतिथि: 6 मार्च, 1954 
जन्म स्थान: गांव मोठ करनैल, जिला हिसार (हरियाणा)
शिक्षा: एम.ए.(हिंदी), एम.फिल., प्रभाकर, संगीत भूषण 
सम्प्रति: सेवानित्त शिक्षक, कवि, रचनाकार, साहित्यकार, समाजसेवी 
संपर्क: दीप निवास, गुरुद्वारा कॉलोनी, गली नं. 5, रोहतक रोड़, जींद-126102 (हरियाणा), मो. नं. 9466552377 
By-ओ.पी. पाल 
साहित्य जगत में लेखक एवं साहित्यकार विभिन्न विधाओं में सामाजिक सरोकार के मुद्दों पर साहित्य संवर्धन करके समाज को सकारात्मक संदेश देते आ रहे हैं। ऐसे ही हिंदी एवं हरियाणवी भाषा के मूर्धन्य विद्वान एवं प्रबुद्ध साहित्यकार ओम प्रकाश चौहान ने विभिन्न विधाओं में साहित्य सृजन करते हुए समाज में बाल मनुहार से बुजुर्गो तक के मनो को छूते हुए हरियाणा के ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय-साहित्यिक-क्षितिज को अपने साहित्यिक सेवा से आलोकित किया है। गद्य और पद्य दोनों प्रारुपों मे उन्होंने काव्य के विविध रूपों यथा-यात्रा-वृत्तान्त, जीवनी, हास्य-व्यंग्य, पुस्तक-समीक्षा, तथा रिपोर्ताज आदि साहित्यिक विधाओं पर लेखन में एक हास्य कलाकार और बहुमुखी साहित्यिक प्रतिभा के रुप में पहचान बनाई है। हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत के दौरान वरिष्ठ एवं सुविख्यात साहित्यकार ओ.पी. चौहान ने अपने साहित्यिक सफर को लेकर कई ऐसे अनुछुए पहलुओं को उजागर किया है, जिसमें सामाजिक सरोकारों के मुद्दों के साथ नैतिकता और आध्यात्मिकता भी साहित्य संवर्धन में महत्वपूर्ण है, ताकि भारतीय संस्कृति को जीवंत रखा जा सके। 
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रियाणा के वरिष्ठ साहित्यकार एवं हास्य कवि ओम प्रकाश चौहान का जन्म 6 मार्च, 1954 को हिसार जिले के गांव मोठ करनैल में जुगलाल चौहान और श्रीमती मिसरी देवी के घर में हुआ था। आर्थिक दृष्टि से निर्धन होते हुए भी उनका पारिवारिक परिवेश सुसंस्कारी एवं संवेदनशील रहा। उनके माता-पिता धार्मिक प्रवृत्ति के सद्गृहस्थ थे, इसी का ही परिणाम है कि उदात्त मानवीय गुण आए, जो उन्हें साहित्य पढ़ने और रचने की अभिरुचि की ओर अग्रसर करते चले गए। दूसरी तरफ उनके पिता महाकवि सूरदास, संत कबीर दास, संत शिरोमणि रविदास आदि की वाणियाँ सुनते सुनाते थे, तो इसके प्रभाव के कारण बचपन में ही उन्हें लेखन करने की प्रेरणा मिलने लगी। राजपूत लखेरा समाज से संबंध रखने वाले ओम प्रकाश चौहान का बचपन भले ही निर्धनता भरे माहौल में गुजरा हो, लेकिन उनके पिता का अपने परिवार के प्रति समर्पण सदैव सुखद रहा है। जुलाना कस्वे में पले-बढ़े-पढ़े और प्रारंभिक शिक्षा राजकीय उच्च विद्यालय जुलाना मंडी जींद में हुई। उन्होंने दसवीं की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद प्रभाकर और ओ.टी. की परीक्षा पास की। उसके बाद वह जींद में जुलाना के संस्कृत महाविद्यालय में प्रभाकर की कक्षा पढ़ाने लगा। इसी दौरान उन्होंने महाकवि सूरदास, तुलसीदास, कबीरदास, जायसी आदि कवियों के काव्य का अध्ययन किया। इन सभी के श्रेष्ठ काव्यांशों से वह ऐसे प्रभावित होते चले गये कि उन्हें सभी काव्यांश कंठस्थ हो गए। हालाकिं तत्कालीन प्रभाकर का पाठ्यक्रम विशाल था, जिसमें मैथिलीशरण गुप्त, सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला, रामधारी सिंह 'दिनकर, महादेवी वर्मा, जयशंकर प्रसाद, हरिवंशराय बच्चन, अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ आदि की शामिल कविताएँ विशेष प्रभाव डालने वाली थीं। उन्होंने सनातन धर्म उच्च विद्यालय जींद में हिंदी अध्यापक के पद पर करीब 12 वर्ष तक कार्य किया। इसके बाद उन्होंने पारिवारिक परिस्थितियों के कारण सरकारी सेवा में आने का निर्णय लिया और वह नवम्बर 1991 में सरकारी सेवा में आ गये। साहित्य के क्षेत्र में उन्होंने आरंभ में अनेक हरियाणवी भजन लिखे, जो जो विशेष स्तरीय न होने पर भी संख्या में अधिक थीं, कीर्तन के रूप में स्थानीय लोगों द्वारा गाई जाने लगी थीं। व्याकरण सम्मत परिमार्जित भाषा के अध्ययन के कारण मुझे हिन्दी लेखन अधिक रुचिकर लगने लगा और उन्होंने हिन्दी में अपनी प्रथम कहानी ‘दूसरा पत्र’ लिखी, जिसे पाठकों ने खूब सराहा। 
गद्य व पद्य में किया साहित्य सृजन 
बकौल ओपी चौहान, उन्होंने अपने साहित्य सृजन में गद्य और पद्य दोनों प्रारुप को समान स्थान दिया। गद्य विधा में उन्होंने निबंध, लघुकथाएं, कहानियां, यात्रा कृतांत और विनोद वार्त्ताएँ लिखीं, तो वहीं पद्य में कविता, गजल, दोहे, रागनियां और भजन लिखे हैं। साल 1971 के भारत-पाक युद्ध के बाद उनके भीतर अलग तरह की प्रेरणा समा गई थी। जिसके फलस्वरूप उन्होंने हिन्दी में देशभक्तिपूर्ण रचनाएं लिखना आरम्भ किया और यहीं से हिन्दी कविता लेखन में पर्दापण किया। उनकी साहित्यिक साधना में आत्मानंद की अनुभूति, कर्त्तव्यपरायणता का जज्बा, राष्ट्रीय चेतना और पूर्वजों द्वारा धर्मपरायणता की सिद्धि मूल में रही हैं। इसलिए वह निराशा के पलों में भी प्रफुल्लित रहते हुए अपनी कविताओं में रस, छंद, अलंकार, शब्दशक्ति, शब्दरीति, काव्यगुण आदि को सदैव महत्व देते रहे हैं। ओपी चौहान के साहित्यिक बोध के ‘विविध आयाम’ विषय पर बाबा मस्तनाथ यूनिवर्सिटी में पीएचडी की उपाधि के लिए शोध हो रहा है, वहीं हरियाणा बाल साहित्य को ओपी चौहान का योगदान विषय पर कुरुक्षेत्र विवि में एमफिल की जा चुकी है। पिछले 43 साल यानी 1981 से निरंतर जुडाव, शिक्षा, संस्कृति, समाज सुधार और युवाओं को दिशादान, नशामुक्ति व राष्ट्रीयता आदि विषयों पर वक्तव्य, संगीत रुपक और गीत आदि का निरंतर प्रसारण होता आ रहा है और उनकी कविताएं, आलेख और रचनाएं देश के प्रतिष्ठ पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हो रहे हैं। हरियाणवी में लिखे उनके आध्यात्मिक एवं देशभक्ति गीतों की टी-सीरीज सहित विभिन्न कंपनियों से अनेक ऑडियो कैसेट्स प्रसारित हो चुकी हैं। ओम प्रकाश चौहान हिन्दी साहित्य प्रेरक संस्था जीन्द के पूर्व अध्यक्ष, हिन्दी भाषा प्रचार-प्रसार मंच हरियाणा के अध्यक्ष और लोक-सेवा परिषद् जीन्द के वरिष्ठ उपाध्यक्ष तथा अखिल भारतीय साहित्य परिषद् जीन्द इकाई के उपाध्यक्ष रहे हैं। वहीं वे संस्कार भारती जीन्द इकाई के साहित्य विधा प्रमुख और अनेक साहित्यिक और सामाजिक संस्थाओं के आजीवन सदस्य भी है। 
प्रकाशित पुस्तकें 
हिंदी व हरियाणवी साहित्यकार ओपी चौहान अभी तक तीन दर्जन पुस्तकें लिख चुके हैं, जिनमें प्रकाशित 15 पुस्तकों में हिंदी भाषा की कृतियों में कविता संग्रह-प्रथम प्रपात, अमृत प्याला जिन्दगी, प्रबन्ध काव्य-जिन्दगी, विनोद वार्ताएं-श्रीमती ने पत्र लिखा, बाल साहित्य में बाल गीत माला गर्वित, अर्पिता, हर्ष बाल गीत के अलावा नानी की कहानियां और बाल निबन्ध-वाटिका सुर्खियों में हैं। उनके हरियाणवी भाषा की रचनाओं में वीराख्यान प्रबन्ध काव्य-मेवाड़ का शेर: महाराणा प्रताप, भजन संग्रह-आराधना के गीत और गजल संग्रह-ऐसे मन बहलाया जाए पाठकों के बीच हैं। उन्होंने पाठ्यक्रम पुस्तक के रुप में पांच भागों में अमर संदेश भी लिखी है। इसके अलावा उनकी संपादित पुस्तक के रुप ज्ञान-गीतांजलि और सह संपादन की जयन्ती के आराधक भी शामिल है। जबकि हिंदी और हरियाणवी भाषा में उनकी डेढ़ दर्जन से ज्यादा विभिन्न विधाओं में लिखी गई पुस्तकें अप्रकाशित हैं। 
पुरस्कार व सम्मान 
हरियाणा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी द्वारा साहित्य अभिनंदन योजना 2022 के पं. माधव प्रसाद मिश्र सम्मान से अलंकृत वरिष्ठ साहित्यकार ओम प्रकाश चौहान को अब तक अनेकों पुरस्कार मिल चुके हैं। इसके अलावा उन्हें साहित्य सारथी सम्मान, इन्दिरा-स्वरुप स्मृति साहित्य श्री सम्मान, उत्कृष्ट शिक्षक सम्मान के अलावा शैक्षणिक, समाजिक एवं सांस्कृति क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए अनेक पुरस्कार व सम्मान के अलावा प्रशस्ति पत्र, प्रशंसा पत्र और अन्य प्रमाण पत्रों से भी नवाजा जा चुका है। 
आधुनिक युग में साहित्य 
वरिष्ठ रचनाकार एवं कवि ओम प्रकाश चौहान का आधुनिक युग में साहित्य के सामने चुनौतियों को लेकर मानना है कि पिछले कुछ वर्षों से मानवीय जीवन मूल्यों में बदलाव हुए हैं और गिरावट भी आई है। इसलिए इस बदलते परिवेश में साहित्यिक साधना हो या सुरुचिपूर्ण जीवनशैली इस बदलते परिवेश में प्रभावित हुई है। उन्होंने कहा कि आज का युवा स्वाध्याय छोड़कर मोबाइल पकड़ बैठा है इसीलिए वह ज्ञानी होने के दंभ में अज्ञानी होता जा रहा है। जबकि स्वाध्याय मानव को संस्कृति और संस्कारों से जोड़ता है समुचित दिशा देता है अतः युवाओं को स्वाध्याय अपनाना चाहिए। उनका कहना है कि एक सच्चा साहित्यकार संत प्रवृत्ति का धनी होता है, इसलिए सभी को सदैव अपने समुचित लोकव्यवहार के अनुरूप जीवन व्यतीत करना चाहिए। समाज और संस्कृति को जीवंत रखने के लिए साहित्यकारों व लेखकों को भी इसी आधार पर श्रेष्ठ साहित्य सृजन करना आवश्यक है, जो मानव जीवन का मूल उद्देश्य भी है। उनका यह भी मत है कि साहित्य की प्रत्येक रचना कालजयी नहीं होती। कुछ रचनाएँ साहित्य में स्थान पाती हैं और कुछ अल्पकालीन जीवन के साथ प्रभावहीन होकर तिरोहित हो जाती हैं। केवल वे रचनाएँ ही शाश्वत होने का गुण ग्रहण करती हैं, जो मानवीय जीवन मूल्यों पर खरी उतरती हई अनुभूति की संजीवनी पीये हए हों। 
21July-2025

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