सोमवार, 17 जून 2024

साक्षात्कार: समाज को सकारात्मक दिशा देने में साहित्य की अहम भूमिका: मधु वशिष्ठ

सामयिक लेखन और रचनाओं से मिली साहित्यिक पहचान 
व्यक्तिगत परिचय 
नाम: मधु वशिष्ठ 
जन्मतिथि: 10 सितंबर 1959 
जन्म स्थान: राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली 
शिक्षा: बीए, बीएड़ (मिरांडा हाउस दिल्ली) 
सम्प्रति: सेवानिवृत्त अधिकारी, स्वतंत्र लेखन 
संपर्क:19/8,फरीदाबाद (हरियाणा), मोबा. 8851674387 
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BY-ओ.पी. पाल
हिंदी साहित्य के क्षेत्र में समाज को नई दिशा देते हरियाणा के लेखकों, साहित्यकारों, कवियों और रचनाकारों में महिलाओं की भी अहम भूमिका रही है। ऐसी ही महिला साहित्यकारों में शुमार मधु वशिष्ठ भी साहित्य की विभिन्न विधाओं के जरिए सामाजिक सरोकार के फोकस में सकारात्मक विचारधाराओं से समाज को नई दिशा देने में जुटी हुई हैं। दिल्ली सरकार से सेवानिवृत्त अधिकारी के पद से सेवानिवृत्ति के बाद स्वतंत्र लेखन से रचना संसार को आगे बढ़ाते हुए साहित्य सृजन में जुटी मधु वशिष्ठ कई प्लेटफार्मों से भी अपने लेखन को सुगम और सरल बना रही हैं। अपने मनोभावों को कहानी या कविता के रुप में साहित्य को समर्पित लेखिका, रचनाकार, कवियत्रि और कहानीकार मधु वशिष्ठ ने हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत में अपने साहित्यिक सफर के बारे में विस्तृत उल्लेख करते हुए कई ऐसे पहलुओं को उजागर किया, जिसमें समाज को सकारात्मक रुप से जागृत करने की दिशा में साहित्य की अहम भूमिका हो सकती है। 
हिंदी साहित्य के क्षेत्र में लोकप्रिय महिला रचनाकार मधु वशिष्ठ का जन्म 10 सितंबर 1959 को दिल्ली में सोमदत्त शर्मा और तारा रानी शर्मा के घर मंे हुआ। उनके पिता नई दिल्ली नगर पालिका परिषद में अधिकारी थे, इसलि मधु का बचपन दिल्ली के सरकारी मकान में ही बीता है। उनकी प्रारंभिक शिक्षा दिल्ली गोल मार्केट के नगर पालिका के स्कूल में हुई। उनका परिवार नगर पालिका के पुस्तकालय के नजदीक ही रहता था और परिवार के सदस्य उसके सदस्य भी थे, तो साहित्य के प्रति रुझान स्वत: ही होना तय था। वहीं दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी और रामकृष्ण मिशन की भी लाइब्रेरी भी उनके घर के पास ही थी, जहां परिवार के सभी लोग पुस्तको को पढ़ते थे। बकौल मधु वशिष्ठ उस जमाने में प्रकाशित होने वली चंपक ,नंदन और बहुत सी कॉमिक्स जैसी पुस्तकें पढ़ने का शौंक बढ़ने के साथ लेखन के प्रति भी अभिरुचित जागृत होने लगी थी। उनकी लिखी हुई पहली कविता और कहानी 70 के दशक में कॉलेज की मैगजीन में प्रकाशित हुई तो लेखन के प्रति आत्मविश्वास बढ़ना भी स्वाभाविक ही था। उस जमाने में साहित्यिक सफर इतना आसान नहीं था कि वे अपनी कहानी या कोई भी रचना को प्रकाशित कराने के लिए दिल्ली प्रेस या धर्मयुग मैगजीन के लिए उनका पता ढूंढना पड़ता था और फिर लिफाफे में डालकर अपनी रचनाओं को वहां भेजना होता था, तो अधिकतर डाक वापस आ जाती थी यानी रचनाएं प्रकाशित होने की संभावनाएं भी नगण्य ही थी। लेकिन उनकी एक कविता को एक हिंदी मैगजीन में प्रकाशित हुई। जबकि आजकल बहुत से साहित्यिक मंच है और सोशल मीडिया के माध्यम से लेखन और प्रकाशत बेहद आसान हो गया है। रचनाका मधु वशिष्ठ ने बताया कि साल 1974 से 77 के बीच भी उन्होंने कुछं रचनाएं लिखी थीं, लेकिन विवाहोपरांत और 80 के दशक के बाद उनकी व्यस्तताएं बहुत बढ़ गई, जिसका कारण साल 1982 में उनकी दिल्ली सरकार में नौकरी लग गई, जहां से 2018 में सेक्शन ऑफिसर के पद से सेवानिवृत हुई है। उनके पति एम.डी. वशिष्ठ हरियाणा सरकार में अधिकारी रहे। फरीदाबाद से दिल्ली सरकारी सेवा करने आना जाना और फिर परिवार की जिम्मेदारी के कारण साहित्य लेखन का प्रभावित होना भी स्वाभाविक था। कभी कभी समय मिलने पर पठन पाठन तो हो जाता था, लेकिन 2018 में सेवानिवृत होने और बच्चों के भी कार्यरत होने के उपरांत उन्हें साहित्य सृजन के लिए लंबे अंतराल के बाद समय मिलने लगा तो वह अपने आपको साहित्य के प्रति समर्पित होकर कहानियां, कविताएं और मंचों पर काव्यपाठ का शौंक पुर्नजागृत हुआ। साहित्य को समर्पित मधु वशिष्ठ साधना टीवी, एवं टैन टीवी के अतिरिक्त भी बहुत से समाचार चैनलों में अपना साक्षात्कार एवं कविता पाठ करती आ रही हैं। वहीं कहानियां यादों की उनका अपना एक यूट्यूब चैनल भी है, जिसमें कि वह स्वरचित कविताएं और कहानियां प्रस्तुत करती आ रही हैं। अपने साहित्य सृजन में उनके लेखन का यही मकसद है कि वह अब तक की अपनी जीवन यात्रा के अनुभवों को साझा कर सके, ताकि समाज के समक्ष सकारात्मक साहित्य परोसा जा सके। 
आधुनिक युग में साहित्य का ह्रास 
प्रसिद्ध रचनाकार मधु वशिष्ठ की नजर में इस आधुनिक युग में साहित्य की स्थिति बहुत अच्छी तो नहीं है, क्योंकि अधिकतर लोग सोशल साइट में उलझे हुए हैं और लेखन से ज्यादा दृश्य उन्हें आकर्षित कर रहे हैं। इसलिए साहित्य के पाठकों में रुझान कम देखने को मिल रहा है। जहां तक युवा पीढ़ी की साहित्य में रुचि का सवाल है उनके ऊपर पाठ्यक्रम का बोझ ज्यादा है और जानकारी के लिए उनके पास इंटरनेट का सरल विकल्प भी है। इसलिए वे कल्पना की बजाए अपनी पढ़ाई पर या मोबाइल में किसी भी विषय पर जानकारियां लेना ज्यादा पसंद करते हैं। हालात यहां तक पहुंच गये कि 1913 में रविंद्र नाथ ठाकुर को उनकी काव्य रचना गीतांजलि के लिए साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला था, लेकिन उसके बाद कोई भी कृति ऐसी नहीं हुई, जो की साहित्यिक पुरस्कार के योग्य समझी जा सके। लेकिन साहित्य समाज को जोड़ने का काम करता है, इसलिए अपनी संस्कृति और संस्कार के लिए खासतौर से युवाओं को साहित्य के प्रति जागृत करना आवश्यक है, ताकि समाजिक सृजन में आ रही विसंगतियों को मिटाया जा सके। यह जिम्मेदारी लेखकों और साहित्यकारों की भी है कि वे अच्छे साहित्य का सृजन करके सामाजिक निर्माण में योगदान दें। 
प्रकाशित पुस्तकें 
महिला साहित्यकार की विभिन्न विधाओं में अभी तक छह एकल पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। इनमें कहानियां यादों की, कहानी संग्रह कथा कुंज, कविता संग्रह जीवन और मन तथा भक्ति सागर प्रमुख रुप से शामिल हैँ। इनके अलावा उनकी कविताओं के संकलन के रुप में अनुभव नामक पुस्तक भी उनकी उपलब्धियों में शामिल है। रचनाकार मधु की 80 से अधिक साझा संकलनों में रचनाएं प्रकाशित हो चुकी है। इसके अलावा राष्ट्रीय पत्र व पत्रिकिाओं में उनके लेख, कहानियां औरकविताएं भी प्रकाशित होती आ रही हैं। 
पुरस्कार व सम्मान 
महिला रचनाकार एवं कवियत्रि मधु वशिष्ठ को साहित्य जगत की विभिन्न विधाओं में सैकड़ो पुरस्कार और सम्मान मिले हैं। इसमें प्रतिलिपि में उन्हें गोल्ड बैज के साथ प्रमाणपत्र का सम्मान भी मिला है। धारावाहिक लेखन में उन्हें फेलोशिप का सम्मान भी मिला है। स्टोरी मिरर में लिटरेरी जनरल की उपाधि से सम्मानित मधु वशिष्ठ ऑथर ऑफ द ईयर अवार्ड से भी सम्मानित है। इसके अलावा उन्हें काव्य विभूति सम्मान, काव्यश्री सम्मान, साहित्य रत्न सम्मान, शांतिप्रिय व्यक्तित्व सम्मान, श्रेष्ठ कहानीकार सम्मान जैसे सैकड़ो सम्मानों से नवाजा जा चुका है। 
17June-2024

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