सोमवार, 24 जून 2024

चौपाल: सामाजिक सरोकार से जुड़ी रागनी गायक सुमित सातरोड की कला

इंजीनियरिंग की नौकरी छोड़ लोक कला के क्षेत्र में बनाई पहचान 
      व्यक्तिगत परिचय 
नाम: सुमित सातरोड 
जन्मतिथि: 01 जनवरी 1974 
जन्म स्थान: गांव सात रोड, हिसार 
शिक्षा:जू. इंजीनियर इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन 
संप्रत्ति: ‍लोक गायक 
संपर्क: गांव सातरोड, हिसार, मोबा. 9812459261 
By--ओ.पी. पाल 
रियाणवी लोक कला एवं संस्कृति में रसी बसी सांग और रागनियों की गूंज सात समंदर पार तक सुनाई देती है। इसका श्रेय सूबे के लोक कलाकारों को है, जिसमें हरियाणवी लोक संस्कृति की अलख जगाने के लिए अलग विधाओं में हरियाणा को पहचान दी है। ऐसे ही लोक कलाकारों में हिसार के सुमित सातरोड ऐसे रागनी गायक हैं, जिन्होंने सामाजिक, आध्यात्मिक, वीर रस की गाथाओं की विधाओं में अपनी अलग पहचान बनाई है। वहीं सामाजिक सरोकारों से जुड़े मुद्दों को रागनी गायन के जरिए समाज के सामने परोसते हैं। सुमित ने समाज को सकारात्मक दिशा देने के लिए इंजीनियर की नौकरी को त्यागकर रागनी गायन शैली को अपनाया है। लोक कला के क्षेत्र में गायन शैली के दो दशक से ज्यादा के सफर को लेकर बुलंदिया छूते सुमित सातरोड ने हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत में कई ऐसे अनुछुए पहलुओं को उजागर किया है, कि लोक कला के जरिए समाज में फैली कुरितियों को दूर करके सामाजिक समरसता की अलख जगाई जा सकती है। 
रियाणा की गायन शैली की परंपरा को आगे बढ़ाते आ रहे लोक गायक सुमित सातरोड का जन्म 01 जनवरी 1974 को हिसार में गांव सातरोड में एक सामान्य परिवार में शिवकुमार शर्मा व संतोष देवी के घर में हुआ। जब वह तेरह साल के थे तो 1987 में उनके पिता का निधन हो गया था, जो एक सरकारी नौकरी में थे। पिता के निधन से पूर्व हमारी माता जी को नौकरी मिली, जिन्होंने हमारे लालन पालन और पढ़ाई का पूरा ध्यान रखा और इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन में इंजीनियरिंग भी कराई। बकौल सुमित उन्हें बचपन से ही संगीत का बहुत शौंक था, परंतु परिवार में किसी प्रकार का कोई संगीत या कला का माहौल नहीं था और परिवार में उनके अलावा किसी अन्य सदस्य की इस क्षेत्र रुचि थी। सुमित को बचपन से नृत्य का अधिक शौंक रहा। उनके गांव में हर छह महीने में गायन के लिए हरियाणा के सुप्रसिद्ध लोकगायक मास्टर सतबीर सिंह भैंसवाल आते थे। उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद जब अपने गांव में मास्टर सतबीर सिंह भैंसवाल का गाना सुना, तो उन्हें पहली बार यह अहसास हुआ कि इस लोक गायकी से अच्छा कुछ नहीं है और तभी से उन्होंने भी अपना सारा ध्यान इसी लोक गायन संस्कृति पर केंद्रित करना शुरु कर दिया। उनके गायन शैली की शुरुआत साल 2000 भजन से की, जिसके बाद इतिहास और गाथाओं से जुड़े किस्सों पर रागनी गायन शुरु किया। हालांकि इसके लिए उन्हें घर परिवार और अपने संघी साथियों के विरोध का भी सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने सब बातों को नजरअंदाज करते हुए अपने लक्ष्य की तरफ ध्यान केंद्रित रखा और अपनी राह पर आगे बढ़ता रहा। वैसे भी हरियाणवी कवियों में से पंडित लखमी चंद मुख्य रुप से उनका आदर्श रहे, वहीं लोक गायन शैली में पं. लखमी के शिष्य पंडित मांगेराम और शहीद कवि जाट मेहर सिंह की गायन शैली से भी वह बहुत प्रभावित हैं। हरियाणा की लोक संस्कृति और समाजिक सरोकारों के मुद्दों पर उनकी रागनी गायकी का फोकस रहा है। सुमित सातरोड की गायन शैली में आध्यात्मिक व सामाजिक शास्त्र और श्रृंगार रस का समावेश भी रहा है। 
सम्मान व पुरस्कार 
रागनी गायक शैली के लोक कलाकार सुमित सातरोड ने विभिन्न विधाओं में अपनी कला के हुनर से हरियाणा ही नहीं, देश के कई राज्यों में सांस्कृतिक मंचों पर सम्मान पाया है। इसमें बाबा रामदेव की बायोपिक में गौ माता के भजन के ही करीब 15 सांस्कृतिक रत्न के रुप में पतंजलि योगपीठ से सांस्कृतिक अवार्ड शामिल हैं। इसके अलावा रागनी प्रतियोगिताओं और गांवों के मंच पर सैकड़ो पुरस्कार सम्मान उनके नाम दर्ज हैं।
संस्कृति की खातिर छोड़ी नौकरी 
लोक गायक सुमित सातरोड ने सामाजिक, अध्यात्म और लोक संस्कृति को अपनी कला से आगे बढ़ाने के लिए दस साल की इंजीनियरिंग की नौकरी को छोड़ दिया था। उनका कहना है कि नौकरी से ज्यादा अच्छा लोक गायकी के क्षेत्र में बेहतर करियर दिखा और उन्होंने अपनी कला के माध्यम से समाज और संस्कृति को सामयिक मुद्दों पर आधारित गायन शैली में उजागर करके सम्मान पाया है, उससे उनकी लोक गायक के रुप में बढ़ती मांग से लोकप्रियता भी बढ़ी है। सुमित का कहना है कि हरियाणा में पहले पहले नाट्य स्वांग का प्रचलन शुरू हुआ था, इसके बाद फिर सन 1920 के आसपास पंडित लखमी चंद ने रागनी गायन के दौर की शुरुआत की, जिसमें इसमें मटका, बेंजो, हारमोनियम सब बजाए जाते हैं। जो आज हम जैसे लोक गायक भी गाते हैं, उसमें पैसा भले ही कम हो। पर इज्जत बहुत है। 
सोशल मीडिया का प्रभाव चिंतनीय 
आज के इस आधुनिक युग में साहित्य, लोककला और लोक गीतों की स्थिति बहुत ही दयनीय है। आज के इस सोशल मीडिया युग में हमारे मूल गीतों को दबाया जा रहा है, क्योंकि नाबालिग बच्चों के हाथों में मोबाइल फोन है और वह इस आकर्षण में फंसते जा रहे हैं। यही कारण है कि हमारे बच्चों का हमारी मूल संस्कृति के प्रति कम रुझान है और इससे समाज पर दृष्ट प्रभाव पड़ रहा है। उदाहरण के तौर पर शादी विवाह के अवसर पर पिता पुत्र भाई बहन और परिवार के सभी सदस्य ऐसे गीतों पर नृत्य करते हैं, जिनका कोई ओचित्य नहीं है। हमें अपनी मूल संस्कृति की तरह आकर्षित करें, इसके लिए सोशल मीडिया बहुत बड़ा प्लेटफार्म है, जो हमारे पुराने कवियों ने हर संदर्भ में जो कविताएं लिखी हैं उनको आज के दौर के द्विअर्थी गीतों के साथ काई तुलना नहीं हो सकती। इसलिए हम सबको मिलकर अपना ध्यान सकारात्मक और सामाजिक रिति रिवाज तथा संस्कृति पर भी केंद्रित करने की ज्यादा जरुरत है। 
24June-2024

सोमवार, 17 जून 2024

साक्षात्कार: समाज को सकारात्मक दिशा देने में साहित्य की अहम भूमिका: मधु वशिष्ठ

सामयिक लेखन और रचनाओं से मिली साहित्यिक पहचान 
व्यक्तिगत परिचय 
नाम: मधु वशिष्ठ 
जन्मतिथि: 10 सितंबर 1959 
जन्म स्थान: राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली 
शिक्षा: बीए, बीएड़ (मिरांडा हाउस दिल्ली) 
सम्प्रति: सेवानिवृत्त अधिकारी, स्वतंत्र लेखन 
संपर्क:19/8,फरीदाबाद (हरियाणा), मोबा. 8851674387 
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BY-ओ.पी. पाल
हिंदी साहित्य के क्षेत्र में समाज को नई दिशा देते हरियाणा के लेखकों, साहित्यकारों, कवियों और रचनाकारों में महिलाओं की भी अहम भूमिका रही है। ऐसी ही महिला साहित्यकारों में शुमार मधु वशिष्ठ भी साहित्य की विभिन्न विधाओं के जरिए सामाजिक सरोकार के फोकस में सकारात्मक विचारधाराओं से समाज को नई दिशा देने में जुटी हुई हैं। दिल्ली सरकार से सेवानिवृत्त अधिकारी के पद से सेवानिवृत्ति के बाद स्वतंत्र लेखन से रचना संसार को आगे बढ़ाते हुए साहित्य सृजन में जुटी मधु वशिष्ठ कई प्लेटफार्मों से भी अपने लेखन को सुगम और सरल बना रही हैं। अपने मनोभावों को कहानी या कविता के रुप में साहित्य को समर्पित लेखिका, रचनाकार, कवियत्रि और कहानीकार मधु वशिष्ठ ने हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत में अपने साहित्यिक सफर के बारे में विस्तृत उल्लेख करते हुए कई ऐसे पहलुओं को उजागर किया, जिसमें समाज को सकारात्मक रुप से जागृत करने की दिशा में साहित्य की अहम भूमिका हो सकती है। 
हिंदी साहित्य के क्षेत्र में लोकप्रिय महिला रचनाकार मधु वशिष्ठ का जन्म 10 सितंबर 1959 को दिल्ली में सोमदत्त शर्मा और तारा रानी शर्मा के घर मंे हुआ। उनके पिता नई दिल्ली नगर पालिका परिषद में अधिकारी थे, इसलि मधु का बचपन दिल्ली के सरकारी मकान में ही बीता है। उनकी प्रारंभिक शिक्षा दिल्ली गोल मार्केट के नगर पालिका के स्कूल में हुई। उनका परिवार नगर पालिका के पुस्तकालय के नजदीक ही रहता था और परिवार के सदस्य उसके सदस्य भी थे, तो साहित्य के प्रति रुझान स्वत: ही होना तय था। वहीं दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी और रामकृष्ण मिशन की भी लाइब्रेरी भी उनके घर के पास ही थी, जहां परिवार के सभी लोग पुस्तको को पढ़ते थे। बकौल मधु वशिष्ठ उस जमाने में प्रकाशित होने वली चंपक ,नंदन और बहुत सी कॉमिक्स जैसी पुस्तकें पढ़ने का शौंक बढ़ने के साथ लेखन के प्रति भी अभिरुचित जागृत होने लगी थी। उनकी लिखी हुई पहली कविता और कहानी 70 के दशक में कॉलेज की मैगजीन में प्रकाशित हुई तो लेखन के प्रति आत्मविश्वास बढ़ना भी स्वाभाविक ही था। उस जमाने में साहित्यिक सफर इतना आसान नहीं था कि वे अपनी कहानी या कोई भी रचना को प्रकाशित कराने के लिए दिल्ली प्रेस या धर्मयुग मैगजीन के लिए उनका पता ढूंढना पड़ता था और फिर लिफाफे में डालकर अपनी रचनाओं को वहां भेजना होता था, तो अधिकतर डाक वापस आ जाती थी यानी रचनाएं प्रकाशित होने की संभावनाएं भी नगण्य ही थी। लेकिन उनकी एक कविता को एक हिंदी मैगजीन में प्रकाशित हुई। जबकि आजकल बहुत से साहित्यिक मंच है और सोशल मीडिया के माध्यम से लेखन और प्रकाशत बेहद आसान हो गया है। रचनाका मधु वशिष्ठ ने बताया कि साल 1974 से 77 के बीच भी उन्होंने कुछं रचनाएं लिखी थीं, लेकिन विवाहोपरांत और 80 के दशक के बाद उनकी व्यस्तताएं बहुत बढ़ गई, जिसका कारण साल 1982 में उनकी दिल्ली सरकार में नौकरी लग गई, जहां से 2018 में सेक्शन ऑफिसर के पद से सेवानिवृत हुई है। उनके पति एम.डी. वशिष्ठ हरियाणा सरकार में अधिकारी रहे। फरीदाबाद से दिल्ली सरकारी सेवा करने आना जाना और फिर परिवार की जिम्मेदारी के कारण साहित्य लेखन का प्रभावित होना भी स्वाभाविक था। कभी कभी समय मिलने पर पठन पाठन तो हो जाता था, लेकिन 2018 में सेवानिवृत होने और बच्चों के भी कार्यरत होने के उपरांत उन्हें साहित्य सृजन के लिए लंबे अंतराल के बाद समय मिलने लगा तो वह अपने आपको साहित्य के प्रति समर्पित होकर कहानियां, कविताएं और मंचों पर काव्यपाठ का शौंक पुर्नजागृत हुआ। साहित्य को समर्पित मधु वशिष्ठ साधना टीवी, एवं टैन टीवी के अतिरिक्त भी बहुत से समाचार चैनलों में अपना साक्षात्कार एवं कविता पाठ करती आ रही हैं। वहीं कहानियां यादों की उनका अपना एक यूट्यूब चैनल भी है, जिसमें कि वह स्वरचित कविताएं और कहानियां प्रस्तुत करती आ रही हैं। अपने साहित्य सृजन में उनके लेखन का यही मकसद है कि वह अब तक की अपनी जीवन यात्रा के अनुभवों को साझा कर सके, ताकि समाज के समक्ष सकारात्मक साहित्य परोसा जा सके। 
आधुनिक युग में साहित्य का ह्रास 
प्रसिद्ध रचनाकार मधु वशिष्ठ की नजर में इस आधुनिक युग में साहित्य की स्थिति बहुत अच्छी तो नहीं है, क्योंकि अधिकतर लोग सोशल साइट में उलझे हुए हैं और लेखन से ज्यादा दृश्य उन्हें आकर्षित कर रहे हैं। इसलिए साहित्य के पाठकों में रुझान कम देखने को मिल रहा है। जहां तक युवा पीढ़ी की साहित्य में रुचि का सवाल है उनके ऊपर पाठ्यक्रम का बोझ ज्यादा है और जानकारी के लिए उनके पास इंटरनेट का सरल विकल्प भी है। इसलिए वे कल्पना की बजाए अपनी पढ़ाई पर या मोबाइल में किसी भी विषय पर जानकारियां लेना ज्यादा पसंद करते हैं। हालात यहां तक पहुंच गये कि 1913 में रविंद्र नाथ ठाकुर को उनकी काव्य रचना गीतांजलि के लिए साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला था, लेकिन उसके बाद कोई भी कृति ऐसी नहीं हुई, जो की साहित्यिक पुरस्कार के योग्य समझी जा सके। लेकिन साहित्य समाज को जोड़ने का काम करता है, इसलिए अपनी संस्कृति और संस्कार के लिए खासतौर से युवाओं को साहित्य के प्रति जागृत करना आवश्यक है, ताकि समाजिक सृजन में आ रही विसंगतियों को मिटाया जा सके। यह जिम्मेदारी लेखकों और साहित्यकारों की भी है कि वे अच्छे साहित्य का सृजन करके सामाजिक निर्माण में योगदान दें। 
प्रकाशित पुस्तकें 
महिला साहित्यकार की विभिन्न विधाओं में अभी तक छह एकल पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। इनमें कहानियां यादों की, कहानी संग्रह कथा कुंज, कविता संग्रह जीवन और मन तथा भक्ति सागर प्रमुख रुप से शामिल हैँ। इनके अलावा उनकी कविताओं के संकलन के रुप में अनुभव नामक पुस्तक भी उनकी उपलब्धियों में शामिल है। रचनाकार मधु की 80 से अधिक साझा संकलनों में रचनाएं प्रकाशित हो चुकी है। इसके अलावा राष्ट्रीय पत्र व पत्रिकिाओं में उनके लेख, कहानियां औरकविताएं भी प्रकाशित होती आ रही हैं। 
पुरस्कार व सम्मान 
महिला रचनाकार एवं कवियत्रि मधु वशिष्ठ को साहित्य जगत की विभिन्न विधाओं में सैकड़ो पुरस्कार और सम्मान मिले हैं। इसमें प्रतिलिपि में उन्हें गोल्ड बैज के साथ प्रमाणपत्र का सम्मान भी मिला है। धारावाहिक लेखन में उन्हें फेलोशिप का सम्मान भी मिला है। स्टोरी मिरर में लिटरेरी जनरल की उपाधि से सम्मानित मधु वशिष्ठ ऑथर ऑफ द ईयर अवार्ड से भी सम्मानित है। इसके अलावा उन्हें काव्य विभूति सम्मान, काव्यश्री सम्मान, साहित्य रत्न सम्मान, शांतिप्रिय व्यक्तित्व सम्मान, श्रेष्ठ कहानीकार सम्मान जैसे सैकड़ो सम्मानों से नवाजा जा चुका है। 
17June-2024

शुक्रवार, 14 जून 2024

चौपाल: छोटे पर्दे पर लोकप्रियता के बाद फिल्मों का रुख करते अभिनेता अंकुर वर्मा

हरियाणा को फिल्म संगीत के क्षेत्र में दिलाई अलग पहचान 
BY-ओ.पी. पाल 
रियाणा की संस्कृति में पले बढ़े अनेक कलाकारों ने कला के विभिन्न क्षेत्रों में दुनियाभर में अपने सूबे को पहचान दी है। ऐसे रोहतक के युवा अभिनेता अंकुर वर्मा टीवी फिल्मों व सीरियलों में अपने अभिनय की कला का ऐसा जादू बिखेर रहे हैं, जिसने फिल्म इंडस्ट्री के फिल्म निर्माताओं और निर्देशकों को अपनी ओर आकर्षित किया। अंकुर की अभिनय कला किसी परिचय की मोहताज नहीं रही, जिसे सीधे अभिनय के लिए बुलावा मिलना इस बात की गवाही देता है कि उसे एक्टिंग के डेढ़ दशक के सफर में ओडिशन देने की जरुरत तक नहीं पड़ी है। मसलन पटकथा के मुताबिक वे सीधे फिल्मों व सीरियलों की शूटिंग में अपने किरदार का अभिनय करने में माहिर हैं। हरियाणा को फिल्म-संगीत के क्षेत्र में नई पहचान देते अभिनेता अंकुर वर्मा ने हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत में अपनी कला के सफर को लेकर कई ऐसे अनुछुए पहलुओं को उजागर किया है, जिससे कहा जा सकता है कि यदि किसी भी कला क्षेत्र में जज्बा और जुनून हो, तो खुली आंखो से सपने देखे जा सकते हैं?
रियाणा के रोहतक से निकलकर एक भारतीय मॉडल और एक प्रतिभाशाली अभिनेता अंकुर वर्मा का जन्म 13 दिसंबर 1990 को रोहतक निवासी महेश वर्मा और निर्मल वर्मा के घर में हुआ। परिवार में कोई फिल्म या संगीत कला जैसा माहौल नहीं था और उन्होंने परिवार को अपनी कला के हुनर को साबित करके सभी को आश्चर्यचकित किया। यानी बिना किसी पृष्ठभूमि के अभिनय के क्षेत्र में अपनी पहचान को निखारते ही नजर आए। अंकुर की स्कूली शिक्षा देहली पब्लिक स्कूल और आईबी स्कूल रोहतक से हुई। जबकि महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय रोहतक से उन्होंने बीबीए व एमबीए किया। बकौल अंकुर वर्मा जब वह पांचवी कक्षा में थे, तो स्कूल में उन्होंने एक छोटा प्ले किया, जिसमें उन्होंने शिक्षक का किरदार निभाया और उनके इस किरदार को सभी ने सराहा। उसी समय से उनके मन में एक्टिंग करने का ऐसा जूनुन चढ़ा कि दसवीं कक्षा के दौरान उन्होंने अपनी फिटनेस पर ऐसा फोकस किया कि मॉडलिंग से अभिनय की शुरुआत करने वाले अंकुर ने रिम्पी प्रिंस के निर्देशन में पंजाबी संगीत वीडियो से अपने करियर की शुरुआत की, जिन्होंने साल 2010 में उनकी फेसबुक पर फोटो देखकर उन्हें एक्टिंग के लिए बुलाया लिया यानी वर्मा उनकी एलबम के दूजा सां गाने की ऐसी एक्टिंग की, जिसके बाद साल 2012 में मुंबई में डायरेक्टर राजेन्द्र शाह ने उन्हें अभिनय के लिए बुलाया और इमेजिन टीवी सीरियल जमुना पार(प्राइम शो) के लिए साइन कर लिया। साल 2014 में उन्होंने स्टार प्लस के लिए टीवी फिल्म ‘सुहानी सी एक लड़की’ में अभिनेता की भूमिका निभाई। स्टार प्लस पर उन्होंने चार सीरियल में अभिनय किया। मंबई से वापस आने के बाद उन्होंने साल 2023 में रिलीज हुई पंजाबी फिल्म ‘काली जोट्टा’ में प्रमुख अभिनेता का किरदार किया, जो दर्शकों को इतनी पसंद आई कि इसका बिजनेस 100 करोड़ रुपये से अधिक जा पहुंचा। इसका प्रसारण कई टीवी चैनलों पर हुआ। अपने डेढ़ दशक के फिल्म में अभिनय और मॉडलिंग के करियर में वह 50 से अधिक गानों में अभिनय करके दर्शकों के दिलों में जगह बना चुके हैं और उनका अब पंजाबी फिल्मो में अभिनय करने पर फोकस होगा, इसका कारण है कि इस पंजाबी फिल्म इंडस्ट्री में ज्यादा प्यार मिला और उनकी कला का गहरा रिश्ता जुड़ा है। खास बात ये है कि उनके अभिनय की अभी तक सारी ट्रेनिंग शूटिंग सेट पर ही हुई यानी उन्हें ज्यादातर ओडिशन देने की जरुरत नहीं पड़ी। जहां तक परिजनों के सहयोग का सवाल है उन्होंने अंकुर के अभिनय के शौंक पर पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि वह अपनी कला को साबित करके दिखाए और उन्होंने ऐसे समय में फिल्म और मनोरंजन के क्षेत्र मं अपनी कला का जादू बिखेरना शुरु कर दिया था, जब इंटरनेट या सोशल मीडिया का भी प्रचलन नहीं था। ऐसे में परिजनो का अपने अंकुर की कामयाबी और लोकप्रियता पर गर्व होना स्वाभाविक ही है। 
जमुना पार धारावाहिक से मिली बड़ी पहचान 
टीवी सीरियल के प्रसिद्ध अभिनेता अंकुर वर्मा ने टीवी फिल्मों या सीरियलों में ही नहीं, बल्कि पंजाबी गानों और रैंप शो में भी अपनी कला का जादू बिखेरा है, कि देशभर में उसे पसंद किया जाता रहा। उनकी इसी कला के हुनर के कारण फिल्म उद्योग और टीवी सीरियल के निर्देशकों की नजरें उस पर टिकीं रहती हैं। साल 2012 में इमेजिंग टीवी के प्राइम शो के प्रेम कथा पर आधारित टीवी सीरियल ‘जमुना पार’ में प्रमुख अभिनेता के रुप में उन्होंने बिज्जू के किरदार से सुर्खियां बटोरी, जिनके साथ विधि मल्होत्रा के किरदार में नवोदित अभिनेत्री विधि पारेख की भूमिका भी अहम रही। यहीं से उन्हें देशभर में एक अभिनेता के रुप में बड़ी पहचान मिली। हालांकि इससे पहले अंकुर पंजाबी गानों के बादशाह जज्जी-बी के साथ महाराजा नामक एलबम में काम कर चुके है। वहीं पंजाबी एलबम दुजा-सां में उन्होंने गायक नछतर गिल के साथ काम किया, जिसका गीत वर्ष 2011 में सुपर हिट रहा है। इसी गाने की कामयाबी के चलते अंकुर वर्मा को पंजाब में एक बड़ी पहचान मिली। उन्होंने टीवी फिल्म 'सुहानी सी एक लड़की' में 'कृष्ण' का किरदार निभाया। 
बॉलीवुड में मॉडलिंग का बने बड़ा चेहरा 
हरियाणा के इस युवा कलाकार अंकुर वर्मा को बॉलीवुड इंडस्ट्री के हिसाब से एक आकर्षक मॉडल माना गया, जहां से उन्हें टेलीविजन में अभिनय करने के लिए एक बड़ा और व्यापक द्वार दिया। सुसंगत और अनुकरणीय कला के जादू की बदौलत वह सोनी टीवी सीरियल रामायण में लक्ष्मण की भूमिका निभा चुके हैं। पंजाबी फिल्म काली जाट्टो में उन्होंने नीरू बाजवा और सतिन्दर सरताज, के साथ शानदार अभिनय किया। टीवी सीरियलों और गानों में अंकुर वर्मा ने सुनंदा शर्मा, नूरा सिस्टर, नीति मोहन जैसे नामचीन कलाकारों के साथ काम किया है। उन्होंने एक बोलने वाले मॉडल से लेकर पंजाब आधारित कुछ वीडियो में अभिनय करने तक अपनी कला के हुनर का लगातार विस्तार किया है, जो अब पंजाबी फिल्मों की तरफ रुख करने की तैयारी में हैं। 
10JUne-2024

गुरुवार, 6 जून 2024

विश्लेषण: दागियो व करोड़पतियों से सराबोर नजर आएगी 18वीं लोकसभा

लोकसभा में इस बार सबसे ज्यादा बढ़े आपराधिक पृष्ठभूमि और करोड़पति सांसद 
महिलाओं की संख्या निचले सदन में फिर हुई कम, 214 दोबारा चुनकर आए सांसद 
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली। देश में 18वीं लोकसभा के गठन की तैयारियां तेज हो गई है। इस बार लोकसभा के निर्वाचित 543 सदस्यों में पिछली लोकसभा चुनाव की तुलना में आपराधिक पृष्ठभूमि से जुड़े और धनकुबेर सांसदों की संख्या में ज्यादा इजाफा दर्ज किया गया है। वहीं संसद में महिला आरक्षण संबन्धी विधेयक पारित होने के बावजूद इस बार महिला सांसदों की संख्या में भी कमी आई है। चुनाव में किसी भी दल को पूर्ण बहुमत न मिलने की वजह से एक दशक बाद फिर गठबंधन सरकार बनने जा रही है। भाजपानीत राजग सरकार में नरेन्द्र मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री की शपथ लेंगे। 
लोकसभा चुनाव के नतीजों ने इस बार सबको चौंकाया है। भाजपा के 240 सदस्यों समेत राजग गठबंधन के 293 और कांग्रेस के 99 सदस्यों समेत विपक्षी इंडिया गठबंधन के 234 सदस्य ही लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए हैं। राजग गठबंधन में भाजपा के अलावा तेदेपा के 16, जदूय के 12, शिवसेना(शिंदे) के 07, लोजपा के 5, रालोद, जनसेना पार्टी और जद-एस के 2-2 के अलावा असम गण परिषद, हम, राकांपा, अपना दल(एस), सिक्किम क्रांति पार्टी, अजसू और यूपपीपीएल के एक 1-1 सदस्य निर्वाचित हुआ है। जबकि इंडिया गठबंधन में कांग्रेस के अलावा सपा के 37, तृणमूल कांग्रेस 29, डीएमके के 22, शिवसेना(उद्धव) के 9, राकांपा(शरद पवार)के 8, सीपीआईएम और राजद के 4-4,आईयूएमएल, आप और झामुमो के 3-3, जेकेएनसी, सीपीआई(एमएल), सीपीआई और वीकेओ के 2-2, केरल कांग्रेस, आरएलटीपी, एमडीएमके, आरएसपी और बीएपी के 1-1 सदस्य को जीत हासिल हुई है। 
महिला सांसदों में आई कमी 
संसद में महिला आरक्षण संबन्धी नारी शक्ति वंदन विधेयक पारित होने के बावजूद इस बार लोकसभा में महिला सांसदों में गिरावट दर्ज की गई। चुनाव मैदान में उतरी 801 महिला उम्मीदवारों में से केवल 74 महिलाएं ही निर्वाचित हुई है, जिनकी संख्या साल 2019 के चुनाव में 78 थी, जो भारतीय लोकसभा के अभी तक हुए चुनाव में सबसे ज्यादा थी। यदि सभी लोकसभा चुनाव का विश्लेषण किया जाए तो आजादी के बाद पहले चुनाव में किसी महिला ने चुनाव नहीं लड़ा। दूसरी लोकसभा में 22, तीसरी में 31, चौथी में 29, पांचवी में 21, छठी में 19, सातवीं में 28, आठवीं में 43, नौवीं मे 29, दसवीं मे 38, ग्यारहवीं में 40, बारहवीं मे 43, तेरहवीं में 49, चौदहवीं में 45, पन्द्रहवीं मे 59, सोलवीं में 64 महिला सांसद निचले सदन में पहुंची हैं। 
दागियों की संख्या में इजाफा 
लोकसभा के नवनिर्वाचित 543 सदस्यों में से 251 यानी 46 प्रतिशत के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं। राजनीति और चुनाव का विश्लेषण करने वाली गैरसरकारी संस्था एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स यानी (एडीआर) के अनुसार लोकसभा में इस बार आपराधिक पृष्ठभूमि वाले सदस्यों की संख्या पिछले कई दशकों में सबसे ज्यादा है। इनमें 27 विजयी उम्मीदवारों ने अपने नामांकन के समय दोषसिद्ध होने की घोषणा की थी, वहीं चुनाव आयोग में दाखिल शपथपत्रों के अनुसार निर्वाचित चार सदस्यों के खिलाफ हत्या, 27 के खिलाफ हत्या के प्रयास, 15 सदस्यों के खिलाफ बलात्कार और महिलाओं के प्रति अत्याचार के अलावा चार के खिलाफ अपहरण जैसे संगीन मामले भी लंबित चल रहे हैं, जिनमें जिनमें दो सदस्यों के खिलाफ आईपीसी की धारा 376 के तहत बलात्कार का आरोप है। गौरतलब है कि साल 2019 के चुनाव 233 यानी 43 फिसदी नवनिर्वाचित सांसदों ने अपने खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज होने की घोषणा की थी। जबकि साल2014 में यह संख्या 185 यानी 34 प्रतिशत, 2009 में 162 यानी 30 प्रतिशत तथा 2004 में 125 यानी 23 प्रतिशत सदस्य दागियों की सूची में शामिल थे। इस विश्लेषण के तहत 2009 के बाद से आपराधिक मामले दर्ज होने की घोषणा करने वाले सांसदों की संख्या में 55 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। इन नवनिर्वाचित हुए 251 दागी सदस्यों में से 170 यानी 31 प्रतिशत के खिलाफ दुष्कर्म, हत्या, हत्या का प्रयास, अपहरण और महिलाओं के खिलाफ अपराध जैसे संगीन आपराधिक मामले लंबित है, जिनमें इस बार 2009 के बाद 124 फीसदी की बढ़ोतरी देखी गई है। 
किस दल के सबसे ज्यादा दागी 
लोकसभा में निर्वाचित दागी सदस्यों में सबसे ज्यादा 94 सांसद भाजपा के हैं, जबकि कांग्रेस के 49, सपा के 21, तृणमूल कांग्रेस और डीएमके 13-13, जदयू के 12, तेदेपा के 8, शिवसेना के 5, राजद के 4, शिवसेना (उद्धव) और आईयूएमएल, 3-3, राकांपा(शरद पवार), रालोद, लोजपा, सीपीआईएम, जनसेना पार्टी, सीपीआई(एमएल), जद-एस, सीपीआई, 2-2 के अलवा वाईएसआर, आप, झामुमो,वीसीके, यूपीपीएल, एजीपी, हम, केरल कांग्रेस, आरएसपी, आरएलटीपी, बीएपी, अपनादल (कमेरावादी), अपना दल (सोनेवाल), अजसू और एआईएमआईएम 1-1 सदस्य आपराधिक पृष्ठभूमि वाले सदस्यों की फेहरिस्त में शामिल हैं। वहीं सात निर्दलीय सांसदों में पांच के खिलाफ आपराधिक दाग है। 
सबसे ज्यादा करोड़पति सांसद निर्वाचित 
लोकसभा में इस बार करोड़पति सांसदों की संख्या में भी बढ़ोतरी दर्ज की गई है। यानी कुल 543में से 504 यानी 93 फीसदी विजेता उम्मीदवार करोड़पतियों की फेहरिस्त में शामिल हैं। ऐसे सांसदों में भी सबसे ज्यादा भाजपा के 240 में से 227 सांसद करोड़पति हैं। करोड़पति सांसदों के मामले कांग्रेस दूसरे पायदान पर है, जिसके 92 सदस्य करोड़पतियों की श्रेणी में हैं। करोड़पति विजेता प्रत्याशियों ने एक करोड़ से ज्यादा की संपत्ति घोषित की है। लोकसभा चुनाव 2024 के हर विजेता उम्मीदवार के पास औसतन 46.34 करोड़ रुपये की संपत्ति है। दलवार आंकड़ों पर गौर करें तो भाजपा के 240 विजेता उम्मीदवारों की औसतन संपत्ति 50.04 करोड़ की है। 
तेदेपा का सांसद सबसे अमीर 
लोकसभा चुनाव में निर्वाचित होने वाले करोड़पति सांसदों में सबसे अमीर 5705 करोड़ की संपत्ति के साथ आंध्र प्रदेश की गंटूर लोकसभा से चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे तेदेपा के डा. चन्द्रशेखर पेम्मासानी शामिल हैं। जबकि तेलंगाना की चेवेल्ला सीट से भाजपा के कोंडा विश्वेश्वर रेड्डी निर्वाचित होने वाले अमीर सांसदों में दूसरे पायदान पर हैं। हरियाणा के कुरुक्षेत्र सीट से सांसद निर्वाचित हुए भाजपा के नवीन जिंदल 1241 करोड़ की संपत्ति घोषित करके तीसरे पायदान पर हैं। वहीं सबसे गरीब सांसदों में पश्चिम बंगाल की पुरुलिया सीट से जीते भाजपा के सांसद ज्योतिर्मय सिंह महतो के पास केवल पांच लाख की संपत्ति है। जबकि पश्चिम बंगाल की आरामबाग सीट से निर्वाचित 7.84 लाख की संपत्ति के साथ दूसरे स्थान पर है। तीसरे स्थान पर उत्तर प्रदेश की मछलीशहर सीट से विजेता उम्मीदवार प्रिया सरोज ने अपनी संपत्ति 11.25 लाख रुपये घोषित की है। 
सबसे ज्यादा शिक्षित सांसद 
अठारहवीं लोकसभा के चुनाव में स्नातक या उससे ज्यादा शैक्षिक योग्यता वाले सांसदों की संख्या 420 यानी 77 प्रतिशत दर्ज की गई है, जिनमें 17 सांसद डिप्लोमाधारी और 28 डाक्टर हैं। जबकि 105 यानी 19 प्रतिशत निर्वाचित सांसदों की शैक्षिक योग्यता 5वीं और 12वीं के बीच है। निर्वाचित हुए सांसद ने अपनी शैक्षिक योग्यता साक्षर बताई है।
सबसे युवा सात सांसद 
लोकसभा चुनाव में निर्वाचित 543 सांसदों की आयु का विश्लेषण किया जाए तो, इसमें 25-30 आयु वर्ग के सात, 31-40 के 51, 41 50 के 114, 51-60 के 166, 61-70 के 161, 71-80 के 43 तथा 81-90 आयु वर्ग का केवल एक सदस्य ही निर्वाचित होकर लोकसभा पहुंचा है। मसलन इस बार 25 से 40 साल की आयु वर्ग के 58 यानी 11 प्रतिशत सदस्य निचले सदन में नजर आएंगे। 
06May-2024

बुधवार, 5 जून 2024

लोकसभा चुनाव: मतगणना आज, खुलेगा दिग्गजों की सियासत का राज

पीएम मोदी और उसके 50 से ज्यादा केंद्रीय मंत्रियों का सियासत में कद होगा तय 
लोकसभा की 542 सीटों के लिए हुए चुनाव में ईवीएम में कैद है 8363 प्रत्याशियों का भविष्य 
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली। अठारहवीं लोकसभा के लिए 542 सीटों पर सात चरणों में हुए चुनाव की मतगणना कल मंगलवार को होगी। इसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी समेत 50 से ज्यादा केंद्रीय मंत्रियों की सियासी किस्मत का फैसला होना है। वहीं चुनावी नतीजों के बाद चुनाव मैदान में उतरे डेढ़ दर्जन से ज्यादा पूर्व मुख्यमंत्रियों की सियासी साख की भी परख हो जाएगी। एग्जिट पोल के बाद सभी राजनीतिक दलों की धड़कने बढ़ी हुई है और उनकी नजरें मंगलवार को होने वाली मतगणना पर टिकी हुई है। 
देश की 18वीं लोकसभा की 543 सीटों के लिए सात चरणों में चले विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के पर्व में 801 महिलाओं और दो थर्डजेंडर समेत 8363 प्रत्याशी चुनाव मैदान थे, जिनकी किस्मत ईवीएम में कैद मतगणना के बाद खुलेगी। इनमें से गुजरात की सूरत लोकसभा सीट से भाजपा के मुकेश दलाल निर्विरोध निर्वाचित हो गये थे। इस चुनावी महासमर में सात राष्ट्रीय दलों के 1334, क्षेत्रीय दलों के 533, पंजीकृत गैरमान्यता प्राप्त पार्टियों के 2580 के अलावा 3916 निर्दलीय प्रत्याशियों ने अपनी किस्मत आजमाई है। चुनाव आयोग के अनुसार इस बार रिकार्ड 31.2 करोड़ महिलाओं समेत 64.2 करोड़ मतदाताओं ने वोटिंग करके विश्व रिकार्ड कायम किया है। 
किस दल के कितने प्रत्याशी 
लोकसभा के चुनाव में प्रमुख दलों के राजनैतिक दलों में सबसे ज्यादा बसपा के 487 प्रत्याशियों ने चुनावी जंग लड़ी। जबकि भाजपा के 442, कांग्रेस के 328, तृणमूल कांग्रेस के 48,सपा के 71, एडीएमके के 36, सीपीआई के 30, वाईएसआर कांग्रेस के 25, राजद के 24, डीएमके और आप के 22-22, बीजद और शिवसेना(यूटीबी) के 21-21, तेदेपा और बीआरएस के 17-17, जदयू व एआईएमआईएम के 16-16, शिवसेना(शिंदे) के 15, शिरोमणि अकाली दल के 13, राकांपा(शरद पवार) के 12, पीएमके के 10, अपना दल(कमेरावादी) के 11, झारखंड मुक्ति मोचा के 6, राकांपा(अजित), लोजपा व पीएमडीके के 5-5, भारतीय धर्मसेना के 4, जद(एस), अजसू और पीडीपी के 3-3, रालोद, अपना दल(सोनेवाल), जनसेना पार्टी, पीपुल्स कांफ्रेंस और एजीपी के 2-2 प्रत्याशियों ने चुनावी जंग में हिस्सेदारी की है। 
इन दिग्गजों की किस्मत का खुलेगा ताला 
यूपी की वाराणसी लोकसभा सीट से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गुजरात की गांधीनगर सीट से केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, लखनऊ सीट से रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह महाराष्ट्र की नागपुर सीट से केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गड़करी, अमेठी सीट से केंद्रीय अल्पसंख्यक तथा महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी, अरुणाचल से केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्री किरण रिजिजू, महाराष्ट्र की मुंबई नॉर्थ सीट से केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग पीयूष गोयल, हिमाचल की हमीरपुर सीट से केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर, ओडिशा से शिक्षामंत्री धर्मेन्द्र प्रधान के अलावा फग्गन सिंह कुलस्ते, डा. राजकुमार रंजन, भूपेन्द्र यादव, अर्जुन सिंह मेघवाल, कैलाश चौधरी, डा. संजीव बालियान, अजय भट्ट, निसिथ प्रमाणिक, जॉन बारला, डा. जितेन्द्र सिंह, डा. एल मरुगन, शोभा करंदलरजे, वी. मुरलीधरन, राजीव चन्द्रशेखर, वीरेन्द्र कुमार खटीक, गजेन्द्र सिंह शेखावत, कैलाश चौधरी, जी. किशन रेड्डी, गिरीराज सिंह, नित्यानंद राय, अर्जुन मुंडा, अजय मिश्रा टेनी, साध्वी निरंजन ज्योति, कौशल किशोर, पंकज चौधरी, महेंद्रनाथ पांडेय, अनुप्रिया पटेल, नारायण राणे, ज्योतिरादित्य सिंधिया, आरके सिंह, डा. मनसुख मांडविया, पुरुषोत्तम रुपाला, राव इंद्रजीत सिंह, कृष्णपाल गुर्जर, श्रीपद यसो नाइक, एसपी सिंह बघेल, भानुप्रताप सिंह, अन्नापूर्णा देवी, डा. सुभाष सरकार, डा. भारती प्रवीण पवार, शांतानु ठाकुर आदि केंद्रीय मंत्रियों की प्रतिष्ठा इस मतगणना में तय होगी। वहीं योगी सरकार के भी कई जतिन प्रसाद समेत केई मंत्री चुनाव मैदान में हैं। इसी प्रकार राजस्थान की कोटा सीट से लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला और पूर्व राज्यपाल तमिलिसाई सुंदरराजन चेन्नई दक्षिण से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रही हैं। 
डेढ़ दर्जन पूर्व मुख्यमंत्रियों का फैसला 
लोकसभा चुनाव में इस बार डेढ़ दर्जन से ज्यादा पूर्व मुख्यमंत्रयों की किस्मत का भी मंगलवार हो होने वाली मतगणना के दौरान फैसला होगा। इनमें अरुणाचल से नबाम तुकी, उत्तराखंड की हरिद्वार से त्रिवेन्द्र सिंह रावत, त्रिपुरा से बिप्लव कुमार देब, असम की डिब्रूगढ़ सीट से सर्वानंद सोनेवाल(केंद्रीय मंत्री) तथा बिहार की गया सीट से जीतनराम मांझी, छत्तीसगढ़ की राजनांदगांव सीट पर राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, मध्य प्रदेश की विदिशा सीट से शिवराज सिंह और राजगढ़ से दिग्विजय सिंह, हरियाणा की करनाल सीट से पूर्व सीएम मनोहरलाल खट्टर, उत्तर प्रदेश की लखनऊ सीट से राजनाथ सिंह (रक्षामंत्री), कन्नौज लोकसभा सीट से यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के अलावा कर्नाटक की मॉंडया लोकसभा सीट पर कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एचडी कुमार स्वामी, हावेरी से बसवाराज बोम्मई और बेलागाम से जगदीश शेट्टार, झारखंड की खूंटी सीट पर पूर्व मुख्यमंत्री एवं केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा खूंटी तथा जम्मू कश्मीर की बारामूला लोकसभा सीट से पूर्व मुख्यमंत्री एवं नेशनल कांफ्रेंस के नेता उमर अब्दुला, राजौरी अनंतनाग से पूर्व सीएम महबूबा मुफ्ती प्रमुख रुप से चुनावी जंग में रही। 
04May-2024

सोमवार, 3 जून 2024

18वीं लोकसभा के नवनिर्वाचित सांसदों के स्वागत को तैयार संसद

सांसदों को पंजीकरण कराने के लिए मिलेगी डिजिटल डेस्क 
एयरपोर्ट और रेलवे स्टेशनों पर स्थापित की गई गाइड पोस्ट 
नवनिर्वाचित सांसदों के अस्थायी आवासीय सुविधा का खाका तैयार 
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव की मतगणना से पहले ही लोकसभा सचिवालय ने नवनिर्वाचित सांसदों के स्वागत और उन्हें राष्ट्रीय राजधानी में हर संभव सुविधाएं देने के लिए सभी तैयारियां पूरी कर ली थी। सांसदों के स्वागत और उनके निर्बाध पंजीकरण, अस्थायी आवासीय, चिकत्सा व्यवस्थाओं के अलावा उनके लिए एयरपोर्ट और रेलवे स्टेशनों पर गाइड पोस्ट स्थापित की गई हैं। लोकसभा सचिवालय के प्रवक्ता के अनुसार अठारहवीं लोकसभा के लिए नवनिर्वाचित सांसदों के पंजीकरण के साथ उन्हें सभी संभव सहायता और सुविधाएं देने के लिए तैयार किये गये आउटरीच प्लान के तहत संसदीय क्षेत्रों के अनुसार नियुक्त किये गये नोडल अधिकारी संसद भवन पहुंचने वाले नवनिर्वाचित सांसदों से संपर्क करके उनका मार्गदर्शन करने के साथ उनका स्वागत करंगे, जहां नवनिर्वाचित सदस्यों का पंजीकरण ऑनलाइन एकीकृत सॉफ्टवेयर एप्लीकेशन के माध्यम से किया जाएगा। इस एकीकृत सॉफ्टवेयर एप्लीकेशन में न केवल सांसद के बायो प्रोफाइल डेटा की प्रविष्टि की जाएगी, बल्कि इसमें प्रविष्ट की गई फेशियल और बायोमेट्रिक जानकारी के आधार पर पहचान पत्र जारी करने के साथ ही लोक सभा सदस्यों और उनकी पत्नी/पति को सीजीएचएस कार्ड जारी किए जाने की व्यवस्था भी की गई है। मसलन इस बार सांसदों सुविधा और सुगमता के लिए पंजीकरण, नामांकन, अस्थायी आवास, चिकित्सा और कई अन्य मामलों से संबंधित सभी औपचारिकताओं को ऑनलाइन आधार पर पूरा करने का प्रस्ताव है। 
संसदीय सौध में मंगलवार से शुरु होगा पंजीकरण 
लोकसभा सचिवालय के प्रवक्ता के अनुसार इस बार 04 जून को दोपहर 2 बजे से पंजीकरण शुरू करने की व्यवस्था की है और यह प्रक्रिया 5 से 14 जून 2024 को सुबह 8 बजे से रात 8 बजे तक जारी रहेगी, जिसमें शनिवार और रविवार भी शामिल हैं। पंजीकरण के लिए संसदीय सौध में बैंक्वेट हॉल और प्राइवेट डाइनिंग रूम (पीडीआर) में 10-10 कंप्यूटरों के साथ कुल 20 डिजिटल पंजीकरण काउंटर स्थापित किए गए हैं। ये काउंटर एंड-टू-एंड पंजीकरण प्रक्रिया के लिए स्थापित किए गए हैं। प्रत्येक काउंटर पर डबल साइडेड स्क्रीन वाला डेस्कटॉप, प्रिंटर कम स्कैनर, बायोमेट्रिक और हस्ताक्षर प्राप्त करने के लिए एक टैब लगा हुआ है। फोटो खींचने और फेशियल रिकोगनिशन के लिए अलग-अलग काउंटर हैं। वहीं नवनिर्वाचित सदस्यों के लिए एसबीआई बैंक खाता खोलने, स्थायी पहचान पत्र, केंद्र सरकार स्वास्थ्य योजना कार्ड जारी करने की व्यवस्था भी की गई है। पंजीकरण काउंटरों पर तैनाती प्रशिक्षित 70 अधिकारियों व कर्मचारियों को तैनात किया गया है। 
चुनाव नतीजों पर नजर रखेगी एक टीम 
चुनाव परिणामों की घोषणा के दिन चुनाव आयोग की वेबसाइट पर नजर रखने और सफल उम्मीदवारों के संपर्क विवरण तुरंत दर्ज करने के लिए एक टीम गठित की गई है ताकि यह पता लगाया जा सके कि निर्वाचित उम्मीदवार नया सांसद है या फिर पुनःनिर्वाचित सांसद है। इसी आधार पर संपर्क अधिकाकारी विशेष रुप से नवनिर्वाचित सदस्यों से शीघ्र संपर्क करंगे, ताकि उन्हें आवश्यक दस्तावेजों लाने के बारे में जानकारी उपलब्ध करा सके। 
यह होगी अस्थायी आवास के इंतजाम 
लोकसभा चुनाव में 18वीं लोकसभा के लिए ऐसे नवनिर्वाचित सदस्यों जिनके पास दिल्ली या नई दिल्ली में पहले से सरकारी आवास नहीं है, को वेस्टर्न कोर्ट एनेक्सी, हॉस्टल या विभिन्न राजयों भवनों और अतिथि गृहों में तब तक अस्थायी आवास आवंटित किया जाएगा, जब तक उन्हें लोक सभा की आवासीय समिति द्वारा नियमित आवास प्रदान नहीं किया जाता। इस बार सदस्यों को अस्थायी आवास के आवंटन के लिए सॉफ्टवेयर आधारित कम्प्यूटरीकृत प्रणाली लागू की गई है। नवनिर्वाचित सदस्यों को अस्थायी आवास आवंटित करने या इसमें बदलाव करने के लिए संसद भवन परिसर में एक आवास डेस्क भी 24X7 सुविधा उपलब्ध कराएगी। 
एयरपोर्ट व रेलवे स्टेशनों पर गाइड पोस्ट 
लोकसभा सचिवालय के अनुसार 4 जून से 9 जून 2024 तक देशभर से अपने अपने निर्वाचन क्षेत्रों से नई दिल्ली आने वाले नव-निर्वाचित सांसदों के स्वागत के लिए जहां इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर व्यवस्था की गई है। वहीं नई दिल्ली रेलवे स्टेशन, पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन, हज़रत निज़ामुद्दीन रेलवे स्टेशन और आनंद विहार रेलवे स्टेशन पर भी स्वागत केंद्र के रूप में 'गाइड पोस्ट' स्थापित किये गये हैं, जहां लोकसभा सचिवालय के अधिकारियों व कर्मचारियों को तैनात किया गया है, जो उनका संसद भवन परिसर, राज्य भवन या अतिथि गृहों तक ले जाने के लिए हवाई अड्डों और रेलवे स्टेशनों पर परिवहन सुविधाएं उपलब्ध कराने में मदद करेंगे। हवाई अड्डों व रेलवे स्टेशनों पर गाइड पोस्ट चार जून की शाम 06.00 बजे से रात 11.00 बजे तक और 05 जून से 09 जून सुबह 05.00 बजे से दोपहर 02.00 बजे तक और दोपहर 02.00 बजे से रात 11.00 बजे तक (दो शिफ्टों में) काम करेंगी। 
चिकित्सा व्यवस्था 
नवनिर्वाचित सदस्यों को चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए सीजीएचएस चिकित्सा पोस्ट नॉर्थ एवेन्यू और साउथ एवेन्यू में और टेलीग्राफ लेन में वेस्टर्न कोर्ट एनेक्सी और उसके हॉस्टल के पास 24X7 आधार पर काम करेंगी, जहां एम्बुलेंस सेवाएं भी चौबीसों घंटे उपलब्ध रहेंगी। 
03JUne-2024

शनिवार, 1 जून 2024

हॉट सीट केंद्रपाड़ा: भाजपा व बीजद बीच वर्चस्व की सियासी जंग

भाजपा के बैजयंत पांडा के सामने पिछली हार का बदला चुकता करने का मौका 
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली। ओडिशा की केंद्रपाड़ा लोकसभा सीट पर एक जून शनिवार को दिलचस्प चुनाव होने के आसार है, जहां सत्तारुढ़ बीजद और भाजपा अकेले दम पर चुनाव मैदान में है। बीजद ने यहां से मौजूदा सांसद एवं ओडिया फिल्म अभिनेता अनुभव मोहंती का टिकट काटकर कांग्रेस छोड़कर आए अंशुमन मोहंती को नए चेहरे के रुप में चुनावी जंग में उतारा है। जबकि भाजपा ने इस सीट से दो बार सांसद रह चुके बैजयंत जय पांडा को एक बार फिर से प्रत्याशी बनाकर चुनावी जंग में उतारा है। इस सीट पर पिछले छह दशकों से जीत का इंतार करने वाली कांग्रेस ने यहां एक बार फिर से सिद्धार्थ स्वरुप दास को प्रत्याशी बनाकर किस्मत आजमाई है। हालांकि इस सीट पर मुख्य मुकाबला भाजपा और बीजद प्रत्याशी के बीच ही माना जा रहा है, लेकिन बसपा ने इस चुनाव को त्रिकोणीय जंग बनाने के मकसद से अपना मजबूत प्रत्याशी उतारा है। इस बार के चुनाव में भाजपा के बैजयंत पांडा के लिए पिछले चुनाव की हार का बदला चुकता करने का मौका है। यह तो चुनावी नतीजों से ही तय होगा कि इस सीट पर किस दल का प्रत्याशी बाजी मारेगा? 
ओडिशा में भाजपा और सत्तारुढ़ बीजद मिलकर चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन बीजद ने ऐनवक्त पर अकेले दम पर चुनाव लड़ने का फैसला किया। इस पर भाजपा ने भी अकेले दम पर बीजद की रणनीति को चुनौती देने के लिए तमाम ताकत झोंक दी। लोकसभा के साथ यहां विधानसभा सीटों के लिए भी हो रहे चुनाव में भी भाजपा ने राज्य की सत्ता परिवर्तन के लक्ष्य से अपने उम्मीदवारों को चुनावी मैदान में उतारा है। इसलिए ओडिशा में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव बेहद दिलचस्प और रोमांचक समीकरण में बदल गये। भाजपा के लिए केंद्रपाड़ा लोकसभा की सीट अत्यंत महत्वपूर्ण है, जहां बीजद के टिकट पर लगातार दो बार सांसद रह चुके बैजयंत जय पांडा पर दूसरी बार भरोसा जताया है, जो पिछला चुनाव हार गये थे। केंद्रपाड़ा लोकसभा क्षेत्र के दायरे में आने वाली सात विधानसभा क्षेत्रों में कटक जिले के सालीपुर, महांगा और केंद्रपाड़ा जिले की पटकुरा, केंद्रपाड़ा, औल, राजनगर, महाकालपाड़ा विधानसभा सीट आती हैं, जिन पर फिलहाल बीजद के विधायक काबिज हैं। चूंकि लोकसभा के साथ इन सातों सीटों पर भी एक जून को मतदान होना है, तो भाजपा इन दानों स्तर के चुनावों में बीजद को कड़ी चुनौती दे रही है। इस सीट पर भाजपा, बीजद, कांग्रेस और बसपा के अलावा कई छोटे दलों और तीन निर्दलीयों समेत कुल दस प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं। गौरतलब है कि केंद्रपाड़ा लोकसभा सीट पर आजादी के बाद पहले चुनाव की जीत के बाद कांग्रेस आज तक जीत दर्ज नहीं कर पाई है। 
चुनावी इतिहास 
ओडिशा की केंद्रपाडा लोकसभा सीट पर आजादी के बाद पहले चुनाव 1952 से लेकर 2014 के बीच 18 चुनाव हो चुके हैं, जिसमें से छह बार बीजू जनता दल के सांसद निर्वाचित हुए हैं, जबकि चार बार जनता पार्टी, तीन-तीन बार जनता दल और प्रजा सोशलिस्ट पार्टी जीत हासिल कर चुकी है। पहले चुनाव में यहां कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी, लेकिन उसके बाद इस सीट पर कांग्रेस एक भी चुनाव नहीं जीत सकी है। इसके बाद यहां लगातार तीन बार प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के सुरेन्द्रनाथ द्विवेदी सांसद रहे। 1971 में यहां उत्कल कांग्रेस के सुरेन्द्र मोहंती ने बाजी मारी। जबकि 1977 से 1984 तक इस सीट पर बीजू पटनायक लगातार तीन बार जनता पार्टी के सांसद रहे। साल 1985 में यहां उपचुनाव में जनता पार्टी के सरत कुमार देब निर्वाचित हुए। जबकि 1989 और 1991 का चुनाव जनता दल के प्रत्याशी रबी रे तथा 1996 का चुनाव जीतकर श्रीकांत जेना ने जनता दल को जीत दिलाई। इसके बाद इस सीट पर बीजू जनता दल का युग शुरु हुआ और लगातार छह चुनाव इसी दल के प्रत्याशी जीतकर लोकसभा पहुंचे हैं। उनमें बीजद से दो बार सांसद रहे बैजयंत पांडा ने साल 2019 का चुनाव लड़ा, लेकिन वे बीजद के अनुभव मोहंती से पराजित हो गये थे। इस बार भजपा के टिकट से दूसरी बार इस सीट पर बैजयंत पांडा पिछली हार का बदला चुकता करने के मकसद से चुनावी जंग में हैं। 
मतदाताओं का चक्रव्यूह 
ओडिशा की केंद्रपाडा लोकसभा सीट पर दस प्रत्याशियों के सामने 17,92,723 मतदाताओं के चक्रव्यूह को भेदने की दरकार होगी। इसमें 9,27,182 पुरुष मतदाता और 8,65,541 महिला मतदाता हैं। संसदीय क्षेत्र में 18-19 आयुवर्ग के 42,189 नए युवा मतदाता पहली बार मतदान करेंगे। 
क्या है जातीय समीकरण 
केंद्रपाड़ा लोकसभा सीट पर सबसे ज्यादा करीब 50 फीसदी ओबीसी मतदाता हैं, जबकि 20.7 अनुसूचित जाति, 1.54 अनुसूचित जनजाति के अलावा मुस्लिम 6 फीसदी के अलावा बाकी अन्य जातियों के मतदाता हैं। खासबात ये है कि ओडिशा में करण जाति में पटनायक और मोहंती आते हैं, जिनकी आबादी करीब दस प्रतिशत होने के बावजूद ओडिशा की राजनीति में पिछले साढ़े चार दशक से इन्हीं का दबदबा है। 
01June-2024