सोमवार, 24 जनवरी 2022

चौपाल: गरीबी भी नहीं डिगा सकी कलाकार का हौंसला

हरियाणवी संस्कृति को आगे बढ़ाने में जुटे छाजू राम 
-ओ.पी. पाल 
हरियाणवी संस्कृति और सभ्यता को अपने गीतों और भजन गायकी के जरिए आगे बढ़ा रहे ग्रामीण परिवेश में रहने वाले साधारण व्यक्तित्व वाले लोक गायक छाजूराम जमालपुरिया की कला पर भले ही गरीबी भारी पड़ रही है। इसके बावजूद यह कलाकार अपनी कला के बीच गरीबी को आड़े नहीं आने दे रहा है और गांव-गांव जाकर आमजन को अपने गीतो, कविता, भजनो और रागणियों के जरिए हरियाणवी संस्कृति को पुनर्जीवित करने और साक्षारता अभियान को आगे बढ़ाने में जुटा हुआ है। पिछले करीब पांच दशक से अपनी कला का जो प्रदर्शन किया है उसके सफर को लेकर लोक कलाकार छाजूराम जमालपुरिया ने हरिभूमि संवाददाता से बातचीत में अपने गरीबी के मर्म और कला की विधाओं को विस्तार से साझा किया। 
प्रदेश के फतेहाबाद जिले की तहसील टोहाना के जमालपुर शेखा गांव में दस दिसंबर 1939 में जन्में छाजूराम जमालपुरिया ने बताया कि उसकी शिक्षा भले ही आठवीं तक हो पाई हो, लेकिन व अपने भजन, कविताओं और गीतों से प्रदेश के गांव गांव जाकर साक्षरता मिशन अभियान में प्रचार कर रहे हैं। इसके लिए उन्होंने शिक्षा आधारित नाटक भी वह खुद तैयार करता है, जिसमें शिक्षा, संस्कृति, अध्यात्मिकता, रीति रिवाज और सामाजिक सभ्यता की अलख जगाने के मकसद से वह नाटकों के मंचन में खुद भी हिस्सेदारी करता है। उन्होंने बताया कि भजन लाल, हरपाल सिंह, हनुमान सिंह, सुभाष बराला और मंगतराम खबड़ा जैसे सूबे के कई कद्दावर नेताओं और मंत्रियों ने चुनाव के लिए लिखे और गाये जाने वाले गीतों को सराहा और तारीफ भी की। बकौल कलाकार विविध कलाओं में अपनी गायकी से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध करने वाले इस लोक गायक का कद चुनावी मौसम में जरुर बढ़ जाता है, जब सूबे में लोकसभा और विधानसभा के प्रत्याशियों के लिए नेताओं के चुनाव प्रचार के लिए उसके गीतों की कैसेट चलाते हैं। मसलन कद्दावर नेता उसके गीत सुनने के बाद उसकी सराहना तो करते हैं, लेकिन उसकी कला को मान्यता देने के लिए आश्वासन के अलावा कुछ और नहीं मिला है। यही कारण है कि उसकी कला पर भारी पड़ती गरीबी का साया उसे अन्य कलाकारों की तरह सुर्खियों में लाने से रोक रहा है या कुछ यूं कह सकते हैं कि उसकी कला लुप्त होने के कगार पर है और वह उसे जबरन जीवंत रखने के लिए हौंसला खोना नहीं चाहता। वर्तमान में हालात ये हैं कि अपने परिवार की आजीविका चलाने के लिए यह कलाकार गांव में ही एक कापी किताबों की दुकान चलाकर अपने परिवार में आठ सदस्यों का पालन पोषण कर रहा है। छाजूराम को इस बात का मलाल है कि चुनावों के समय जिन मंत्रियों और नेताओं के लिए उसने गीत लिखे और अपनी कला में गाये हैं और उन्होंने उसकी कला को सराहते हुए अनेकों आश्वासन भी दिये, लेकिन आज तक उसकी कला को मान्यता देना तो दूर की बात रही, बल्कि राज्य के कला संस्कृति मंत्रालय से कोई आर्थिक मदद तक नहीं मिल सकी है। 
  लेखन व गायकी की कला 
छाजूराम की गायकी एवं लेखन की शुरूआत साल 1972 में हुई। इसके बाद उन्होंने राजकला नामक हरियाणवी किताब लिखी, जबकि उनकी दूसरी किताब ‘मॉं की महिमा’ प्रकाशित हुई। इसके अलावा उन्होंने कलिया सरपंच और अनपढ़ मानस पशु बराबर जैसे नाटक भी लिखे हैं। साल 1994 के बाद छाजू राम के गीतों और भजनों की कैसेट भी जारी हुई, जिनमें कॉलेज रॉंडा का, नजरा साड़ी का, बॉर्डर पर पीली दारू, जय बाबा जगन्नाथ, प्रणाम शहीदा नु, साइबर दर्शन पाऊं पंजाबी और चलो डांगरा धाम शामिल हैं। यही नहीं साक्षरता अभियान में गांव गांव में शिक्षा का प्रचार करने के अलावा उन्होंने जमालपुर शेखा गांव में ही आयोजित नाटकों महाराजा हरिचन्द्र, अमर सिंह राठौर, पूर्ण भगत, शाही लकड़हारा, सत्यवान सावित्री जैसे नाटकों में अभिनय भी किया। छाजूराम को उसके नाटकों के मंचन में सहरानीय भूमिका को देखते हुए रामलीलाओं के मंचन में राम का अभिनय करने का भी मौका मिला है, जिसको लोगों ने सराहा भी और उसे प्रोत्साहन व सहयोग भी दिया। उन्होंने बताया कि बॉर्डर पर पीली शराब पर गीत की कैसेट उन्होंने शराबबंदी पर निकाली, जबकि जय बाबा जगन्नाथ गीत की कैसेट भक्ति रस रोहतक में जारी हुई। 
24Jan-2022

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