सोमवार, 25 सितंबर 2023

साक्षात्कार:समाज को इतिहास से प्रेरित करते साहित्यकार कमलेश शर्मा

काव्य संग्रह के साथ कैथल के इतिहास पर किया शोध
                    व्यक्तिगत परिचय 
नाम: कमलेश शर्मा 
जन्मतिथि: 23 अगस्त 1947 
जन्म स्थान: जलालपुर जट्टां जिला गुज़रांवाला (पाकिस्तान) 
शिक्षा:‍ बीएससी(एजुकेशन), एमए(इतिहास) 
संप्रत्ति:‍ सेवानिवृत्त प्राध्यापक(इतिहास), शिक्षा विभाग हरियाणा 
संपर्क: 308, सेक्टर-20, हुड्डा कैथल(हरियाणा), मोबाइल: 94162 53051,ई मेल kamleshsharma2315@gmail.com 
BY--ओ.पी. पाल 
साहित्य के क्षेत्र में हरियाणवी संस्कृति, सभ्यता एवं परंपराओं के प्रति समाज को प्रेरित करने की दिशा में अनेक विद्वानों, लेखकों व साहित्यकारों ने साहित्य साधना की जा रही है। ऐसे ही लेखकों में कमलेश शर्मा ऐसे साहित्यकारों में शुमार है, जिन्होंने समाज के सामने ऐतिहासिक शोध कार्य किया और खासतौर से कैथल के इतिहास को समाज के सामने उजागर किया है। उन्होंने पौराणिक नगर कपिस्थल से कैथल बनने तक के अपने शोध कार्य का उल्लेख उस इतिहास को पेश किया, जिसमें महाभारत, वामन पुराण, पाणिनी की अष्ठाध्यायी, बराह मिहिर की बृहत् संहिता जैसे प्राचीन ग्रन्थों में कपिस्थल यानी कैथल धर्मिक दृष्टि से तो महत्वपूर्ण है, वहीं यह शिक्षा के केन्द्र के रूप में प्रसिद्ध महत्वपूर्ण नगर रहा है। अपने साहित्यिक और कपि स्थल:अतीत के झरोखे से वर्तमान की दहलीज तक शोध तक के सफर को लेकर हरिभूमि संवाददाता से बातचीत के दौरान वरिष्ठ साहित्यकार एवं इतिहासकार कमलेश शर्मा ने कई ऐसे ऐतिहासिक तथ्यों का भी जिक्र किया है, जिसमें इतिहास के प्रति भी समाज प्रेरणा मिलती है। 
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रियाणा के वरिष्ठ साहित्यकार और इतिहासकार कमलेश शर्मा का जन्म 23 अगस्त 1947 को कस्बा जलालपुर जट्टां, जिला गुज़रांवाला (अब पाकिस्तान) में हुआ। गुज़रांवाला को साहित्यकारों और कलाकारों की धरती कहा जाता है। यहां जन्मी और पली कई विभूतियों ने यहां की मिट्टी की खुशबू को दूर दूर तक फैलाया है, जिनमें पंजाब की चर्चित विश्वप्रसिद्ध लेखिका अमृता प्रीतम भी गुज़रांवाला की ही रही। उनके पिता देशराज शर्मा अपने जमाने के मशहूर शायर जनाब सीमाब अकबरावादी के शागिर्द थे। पिता द्वारा लिखत काव्य संग्रह ‘हदीसे नातमाम’ साल 1940 में आगरा से प्रकाशित हुआ था। माता शाम प्यारी शर्मा धार्मिक संस्कारों वाली एक गृहणी थी। परिवार में साहित्यिक पढ़ने लिखने का माहौल था। बकौल कमलेश शर्मा, बचपन में उनके लिए घर में 'चंदामामा' नामक पत्रिका आती थी, माता जी के लिए गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित 'कल्याण' पत्रिका और पिता के उर्दू की एक दो पत्रिकाएं आती थी। इसलिए कहा जा सकता है कि उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में ही मिली। मैट्रिक पास करने के बाद उन्हें अगस्त 1962 में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में बीएससी(एजुकेशन) में दाखिला मिल गया, जहां सहपाठी नरेन्द्र मोहन मल्होत्रा से उनकी गहरी दोस्ती हो गई, जो कविताएं लिखते थे। उन्होंने ही मल्होत्रा से नरेन्द्र निर्मोही नाम से लिखने के लिए सुझाव दिया था, जो उसे अच्छा लगा। संगत का असर उनके ऊपर पड़ना स्वाभाविक था और वह भी अपने भावों को शब्द देने लगे। उन्होंने बताया कि साल 1982 में जब हरियाणा फक्रे शायर डा. राणा प्रताप गन्नौरी ने मेरे स्वर के खुले दरवाजे पर दस्तक दी। वह हरियाणा अब्र सीमाब साहब के बारे में जानने के लिए आये थे। उस्ताद शायर डा. राणा गन्नौरी साहित्य सभा कैथल के सचिव थे। उन्होंने मुझे साहित्य सभा की गोष्ठियों में आने के लिए कहा और इन्हीं गोष्ठियों से उन्हें उचित माहौल मिला और मेरी नज्म को रफ्तार मिली। कमलेश अपनी अपनी कविताएं पत्रिकाओं में भेजने में संकोच करते रहे। जब उनका पहला काव्य संग्रह ‘सहमा हुआ समय’ वर्ष 2000 में प्रकाशित हुआ, जिसे हरियाणा साहित्य अकादमी ने श्रेष्ठ कृति पुरस्कार से नवाजा। उन्होंने यात्रा शब्दों की (पहले भाग से पांचवें भाग तक) का सह-सम्पादन तथा प्राध्यापक संवाद पत्रिका का सम्पादन भी किया है। कमलेश शर्मा आकाशवाणी, दूरदर्शन, जनता टीवी से काव्य-पाठऔर जी न्यूज टोटल टी वी आदि से बतौर इतिहासकार वार्ताओं के अलावा साहित्यिक कार्यक्रमों में भाग ले चुके हैं । वह भारतीय इतिहास संकलन समिति के प्रांतीय अध्यक्ष भी रहे हैं। साहित्यिक समीक्षक का अनुभव रखने वाले शर्मा अनेक समाचार-पत्रों में पुस्तकों के लिए समीक्षाएं भी लिख चुके हैं और पिछले कईं वर्षों से साहित्य सभा कैथल के उप प्रधान पद की जिम्मेदारी भी संभाल रहे हैं। 
सामाजिक व राष्ट्रीय परिवेश पर फोकस 
प्रसिद्ध साहित्यकार कमलेश शर्मा ने बताया कि उनकी साहित्यिक रचनाओं का फोकस समाज, सामाजिक और राष्ट्रीय परिवेश रहा है। लेकिन कोई घटना जब उन्हें अधिक कचोटती है, तो उनका मन मस्तिष्क उसे शब्द देने के लिए विशव करता है और वह कलम उठा कर लिखने में संकोच नहीं करते। उनका कहना है कि यह उनकी कमजोरी हो सकती है कि वह किसी के कहने पर किसी विषय विशेष पर वह कविता नहीं लिख पाते। उन्होंने अपने दिलचस्प किस्से साझा करते हुए बताया कि जब वर्ष 2000 में उनकी कृति ‘सहमा हुआ समय’ प्रकाशित होकर आई तो कुछ मित्रों के उसे कृति पुरस्कार के लिए हरियाणा साहित्य अकादमी को जरुर भेने के सुझाव टालते रहे। संयोग से वह एक दिन किसी शिक्षा विभाग कार्यालय में किसी कार्य से चंडीगढ़ जाने लगे, तो मित्रों के कहने से पांच पुस्तकें अपने साथ ले गया और अकादमी पहुंच गया, जहां अकादमी के अधीक्षक चौहान साहित्य सभा कैथल के सचिव होने के नाते उन्हें जानते भी थे। उन्होंने अपनी पांच पुस्तकें उन्हें दी और इसके लिए उन्होंने कृति पुरस्कार के लिए फार्म भरवा लिया। तभी उन्होंने देखा कि उनकी पुस्तक के कवर पेज और कुछ पेज फाड़कर डस्टबिन में डाले जा रहे थे। इस पर उन्होंने चौहान साहब से पूछा कि पुस्तक अच्छी नहीं लगी? तो मेरे सामने तो इसे ऐसे मत फाड़कर फेंको। वह हंसकर कहने लगे कि शर्मा जी यह पुस्तकें मूल्यांकन के लिए चार साहित्यकारों के पास भेजनी है। इसमें आपका नाम या कोई और पहचान नहीं होनी चाहिए, ताकि मूल्यांकन निष्पक्ष हो सके। इसलिए इसका मुख्य पृष्ठ और आरंभ के पेज फाड़े गये हैं। इस पर उन्हें अपनी अनभिज्ञता पर शर्मिंदगी हुई और क्षमा याचना की। उन्होंने बताया कि एक और बात, जब पिता जी का देहांत अगस्त 1967 में हो चुका था, लेकिन उन्हें 1982 में डा. राणा गन्नौरी से मिलने पर पता चला कि उनके पिता भी एक शायर थे, जो अब्र सोमाब के नाम से लिखते थे। हालांकि सीमाब अकबरावादी साहब को उनके लैटर पैड पर उर्दू में लिखा एक खत भी हदीसे नातमाम से मिला था। दरअसल राणा साहब को यह सब मुझे उर्दू का ज्ञान न होने के कारण हुआ। 
साहित्य का बदला मापदंड 
आज के आधुनिक युग में साहित्य के बारे में कमलेश शर्मा का कहना है कि वर्तमान में साहित्य की स्थिति अधिक अच्छी नहीं है, साहित्य लिखा तो बहुत जा रहा है, लेकिन स्तरीय नहीं है। मन मस्तिष्क को झकझोरता नहीं है। कालजयी रचनाएं बहुत कम लिखी जा रही है और छपने का शौक है। श्रेष्ठ साहित्यकार होने का मापदंड केवल प्रकाशित कृतियों की संख्या हो गया है। वर्तमान में साहित्य लेखन में भी मौलिकता कम होती जा रही है। किसी प्रतिष्ठित चर्चित साहित्यकार के शब्दों को मिलते जुलते शब्दों में लिखकर किसी विचार को कुछ कोई सुझाव या तर्कपूर्ण आलोचना सहने को तैयार नहीं है। उन्हें बस किसी न किसी संस्था से सम्मान चाहिए। आज ऐसी कई संस्थाएं हैं जो पैसा लेकर साहित्य गौरव, साहित्य सम्राट या साहित्य रत्न जैसे सम्मान दे रही हैं और रचनाकार ले रहे हैं। उनका कहना है कि सत्तर व अस्सी के दशक तक साहित्य खूब पढ़ा जाता था। कई साहित्यिक पत्र पत्रिकाएं प्रकाशित होती थी, परंतु टीवी ने इस पर नकारात्मक प्रभाव डाला और अब मोबाइल व इंटरनेट के युग में युवा वर्ग गूगल और यूट्यूब की दुनियां में गुम होकर रह गया है। इससे समाज पर बहुत बुरा असर पड़ रहा है। हर आदमी आत्मकेंद्रित और अकेला होता जा रहा है। इसी प्रकार उन्हें याद है कि पचास-साठ के दशक में छुट्टियों में स्कूल के सभी छात्रों को दो दो पुस्तकें पढ़ने के लिए दी जाती थी और शिक्षक कहता था कि छुट्टियों के बाद इन पुस्तकों में से तुमसे प्रश्न पूछे जाएंगे। परंतु आजकल विद्यालयों, महाविद्यालयों में शिक्षा का लक्ष्य ही बदल गया है। छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए पढ़ने और इसकी तैयारी करने के लिए कहा जाता है। आजकल कोई विरला छात्र ही पुस्तकालय से कोई साहित्यिक पुस्तक पढ़ने के लिए लाता होगा। 
प्रकाशित पुस्तकें 
वरिष्ठ साहित्यकार और इतिहासकार की प्रकाशित पुस्तकों में काव्य संग्रह ‘बेटियां बेहतर समझती हैं’ व ‘सहमा हुआ समय’ के अलावा कपि स्थल: अतीत के झरोखे से वर्तमान की दहलीज तक (इतिहास) आदि कृतियां प्रकाशित हो चुकी हैं। जबकि मुगलकाल का कैथल, 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में हरियाणा का योगदान नामक पुस्तक भी जल्द पाठकों के हाथों में होगी। 
पुरस्कार व सम्मान हरियाणा साहित्य अकादमी से वर्ष 2000 में श्रेष्ठ कृति पुरस्कार से सम्मानित हो चुके कमलेश शर्मा को हरियाणा प्रादेशिक हिंदी साहित्य सम्मेलन का पुरस्कार भी मिल चुका है। हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड भिवानी ने भी उन्हें शिक्षा के क्षेत्र में सम्मानित किया है। जबकि साहित्य सभा कैथल से बीएन गुप्ता अवार्ड के सम्मान के अलावा उन्हें मानव भारतीय शिक्षा समिति हिसार, अखिल भारतीय साहित्य परिषद् करनाल, पंजाबी साहित्य सभा सिरसा, समता मंच हरियाणा, हिरयाणा प्रादेशिक हिंदी साहित्य सम्मेलन सिरसा, जिला प्रशासन कैथल, श्रीदुर्गा सेवा समिति कैथल, आर्य युवक परिषद कैथल से भी पुरस्कार व सम्मान मिल चुके हैं। 
 25Sep-2023

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