सोमवार, 11 सितंबर 2023

साक्षात्कार: साहित्य में समाज को नई दिशा देने में जुटे शायर विश्वेश्वर

देशभर के नामचीन शायरों के संयुक्त गजल संग्रहों का हिस्सा बने श्योकंद 
                व्यक्तिगत परिचय 
नाम: विश्वेश्वर श्योकंद 
जन्मतिथि: 04 नवंबर 1982 
जन्म स्थान: गाँव सुदकैन कलाँ जींद(हरियाणा)। 
शिक्षा: एमएमसी(माँस कम्युनिकेशन), एमए (हिन्दी), बीएड., डीएड.। 
संप्रत्ति: हिन्दी प्राध्यापक, आर्य वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय नरवाना(जींद)। 
संपर्क: सुदकैन कलाँ, तहसील, उचाना, जींद। मो.-9812967159 
BY--ओ.पी. पाल 
साहित्य जगत में संस्कृति और परंपराओं का समावेश करने की दिशा में लेखक एवं साहित्यकार अपने अंदाज में विभिन्न विधाओं के माध्यम से सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दे को उजागर करता है। ऐसे ही साहित्यकारों में हरियाणा के युवा गजलकार विश्वेश्वर श्योकंद अपने शायरानी अंदाज में समाज की जर्जर व्यवस्थाओं के प्रति आक्रोश, सामंती मानसिकता के खिलाफ़ बगावती तेवर, गरीबों व मजलूमों के प्रति हमदर्दी की भावना को बयां करके समाज में सकारात्मक विचारधारा का संचार करके नई दिशा देने में जुटे हुए हैं। खासतौर से हर किस्म की शायरी के फन में माहिर इस युवा गजलकार की गजलें हरियाणा में ही नहीं, बल्कि देशभर के नामचीन शायरों के संयुक्त गजल संग्रहों का हिस्सा बन चुकी है। देशभर में आयोजित मुशायरों और कवि सम्मेलनों के मंच पर उनकी शान उनकी लोकप्रियता को भी बयां करती है। एक गजलकार के रुप में साहित्य साधना कर रहे युवा शायद विश्वेश्वर श्योकंद ने हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत में अपने साहित्यिक सफर के अनुभव को साझा करते हुए जिन अनछुए पहलुओं को उजागर किया है, जिससे जाहिर होता है कि उनकी गजलों का मूल भाव दार्शनिक और एक परिपक्व रचनाकार के रुप में समाज को नई ऊर्जा दे रहा है। 
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रियाणा के प्रसिद्ध गजलकार विश्वेश्वर श्योकंद का जन्म 04 नवंबर 1982 को हरियाणा के जींद जिले की तहसील उचाना के गांव सुदकैन कलाँ में महावीर सिंह के घर में हुआ। विश्वेश्वर को शायरी और गजल लेखन विरासत में मिली है। उनके पिता महावीर सिंह उर्दू के प्रख्यात गज़लकार और शायरी लेखक रहें हैं, जिन्होंने 'दुखी' उपनाम से गज़लों का एक अनोखा संसार रचा है। बचपन में परिवार में साहित्यिक माहौल मिलने के कारण भी उनकी इस क्षेत्र में रुचि बढ़ना स्वाभाविक था। पिता से ही शायरी लिखने और सुनाने की बारीकियों की सीख लेकर उन्होंने कविताएं और गजलें लिखना शुरु किया। उन्होंने बताया कि विद्यालय के दिनों में तुकबंदी कविताओं से लिखने की शुरुआत हुई। साहित्य के प्रति अभिरुचि उस दौरान ज्यादा गहरा गई, जब वह नौवीं कक्षा में पढ़ते थे और उन्होंने पहली रचना वतन की राह लिखी, जो अखबार में भी प्रकाशित हुई। इससे उनका आत्मविश्वास बढ़ा और उन्हें अपने अनुभवों को एक सांचे में ढ़ालने की प्रेरणा मिली। हालांकि उनके इस साहित्यिक सफर में कुछ परेशानियां भी सामने आई। क्योंकि नए लोगों को मंच पर आयोजक मौका नहीं देते थे और साहित्य के क्षेत्र में चुनिंदा लोगों को मंच पर बुलाया जा रहा था। लेकिन उन्होंने हौंसला डिगाए बिना गजले लिखना जारी रखा, जिसकी वजह से उनके लेखन में सुधार आया तो अच्छे साहित्य को समझने वाले लोग भी उनके संपर्क में और और उन्हें धीरे धीरे मंच भी मिलने लगा। इसके इस सफर को रफ्तार देने में प्रसिद्ध कवि कृष्ण गोपाल विद्यार्थी के अलावा उनकी पत्नी सुदेश देवी एक महत्वपूर्ण प्रेरक की भूमिका निभाई, जो आज भी उन्हें हमेशा अच्छा और सार्थक लिखने के लिए प्रेरित करती आ रही है। गजल विधा को लेकर उनका मानना है कि शायरी का हुनर हर किसी को बख्शा नहीं जाता, इसलिए शायर स्वभाव से खुद्दार और स्वाभिमानी होता है, जो कभी ज़मीर का सौदा नहीं करते, बल्कि आने वाली पीढ़ी के भविष्य की बेहतरी उनका भाव होता है। उनकी साहित्यिक रचनाओं का ज्यादातर फोकस सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दे रहे, जिनकों उन्होंने गजल के रुप में शायरी के माध्यम से उजागर करने में कोई संकोच नहीं किया। इसका मकसद समाज को सकारात्मक विचारधारा के प्रति दिशा देना रहा। उन्होंने अपनी कविताओं में सामाजिक समस्याओं को उठाते हुए पीड़ित और दुखी व्यक्ति की भावनाओं को व्यक्त किया है। वहीं अपनी गजलों में शोषक वर्ग के प्रति आक्रोश की भावना को भी प्रकट किया, तो उनकी कुछ गजलों और कविताओं में प्रेम और विरह का समावेश भी शामिल है। मसलन वह वह रूमानी गज़लों के साथ इंकलाबी गजले भी लिखते आ रहे हैं। उनकी रचनाओं को सुख़नवर, अर्बाबे कलम, अभिनव प्रयास और हरिगंधा जैसी प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में भी स्थान मिल चुका है, वहीं राष्ट्रीय स्तर के अखबारों में साक्षात्कार प्रकाशित हुए हैं। उनकी गजलों के कई कार्यक्रम आकाशवाणी और टीवी चैनलों पर भी प्रसारित हो चुके हैं। यही नहीं विद्यालय व कॉलेज स्तर पर विभिन्न साहित्यिक प्रतियोगिताओं में उनकी निर्णायक की भूमिका भी रही है। वह जींद जिले के नरवाना में आर्य वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में हिन्दी प्राध्यापक के पद पर कार्यरत हैं। 
साहित्य लेखन में कमी चिंतनीय 
आज के आधुनिक और तकनीकी युग में साहित्य के सामने आ रही चुनौतियों को लेकर शायर विश्वेश्वर का कहना है कि साहित्य लेखन का कार्य आज धीमा पड़ गया है। साहित्य का प्रचार प्रसार इतना कम हो रहा है, कि पहले की तरह अब दुकानों पर साहित्यिक पुस्तकें या पत्रिकाएं नजर नहीं आती। यही कारण पाठकों की कमी का कारण भी बन रहा है, जिसमें सबसे बड़ा कारक इंटरनेट, सोशल मीडिया का बढ़ता प्रभाव भी है। जहां तक युवा पीढ़ी से दूर होते साहित्य का सवाल है, उसका सीधा प्रभाव समाज पर पड़ रहा है। इंटरनेट व टीवी चैनलों पर पाश्चत्य संस्कृति ने युवा पीढ़ी को साहित्य से कहीं ज्यादा विमुख किया है, जो सामाजिक गतिविधियों के बजाए असामाजिक गतिविधियों की राह पर है। इसलिए युवाओं को साहित्य के प्रति प्रेरित करने के लिए सरकार स्तर के अलावा महाविद्यालय व स्कूल स्तर पर साहित्यिक गतिविधियों से जुड़े कार्यक्रम व कार्याशालाएं आयोजित कराना आवश्यक है। वहीं साहित्यकारों और लेखकों को भी अच्छे साहित्य की रचना करके लगातार लेखन में आ रही गिरावट को रोकना होगा। 
प्रकाशित पुस्तकें 
हरियाणा के प्रसिद्ध गजलकार विश्वेश्वर श्योकंद की लिखित पुस्तकों में प्रमुख रुप से गजल दुष्यंत के बाद, हरियाणा के लोक प्रिय ग़ज़लकार, सांझी सोच, ग़ज़ल का व्याकरण- आओ ग़ज़ल कहें' में ग़ज़ल शामिल, गजल संग्रह हरियाणा के युवा गजलकार, हमसफर, काव्य संग्रह कोई तो हो प्रकाशाधीन शामिल हैं। इसके अलावा उनका एक गजल संग्रह प्रकाशाधीन है। 
पुरस्कार व सम्मान 
हरियाणा साहित्य अकादमी के विभिन्न कार्यक्रमों में सम्मानित गजलों के फनकार विश्वेश्वर श्योकंद श्रेष्ठ शिक्षक का सम्मान भी हासिल कर चुके हैं। वहीं हरियाणा गौररव सम्मान से अलंकृत शायर को हिन्दी भवन दिल्ली में नूर-ए-गजल सम्मान, संस्कार भारती सम्मान, 'परवाज़-ए-गजल, हिमालयन अपडेट के अलावा उन्हें हरियाणा राज्य स्तरीय शैक्षणिक संस्थानों और साहित्यिक संस्थाओं द्वारा भी अनेक पुरस्कार देकर सम्मानित किया जा रहा है। इसके अलावा जनता टीवी के आयोजित 'जनता कवि दरबार' में भी उन्हें सम्मानित किया जा चुका है। 
11Sep-2023

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