सोमवार, 24 मार्च 2025

चौपाल: सामाजिक और संस्कृतिक विरासत को संजोने में फिल्मों की अहम भूमिका: विजय तंवर

फिल्मों, धारावाहिक और वेबसीरिज के निर्देशक के रुप में बनाई पहचान 
       व्यक्तिगत परिचय 
नाम: विजय तंवर 
जन्मतिथि: 15 दिसंबर 1965 
जन्म स्थान: गांव करोला, जिला गुरुग्राम(हरियाणा)
शिक्षा: पोस्ट ग्रेजुएट, फिल्म मेकिंग कोर्स 
संप्रत्ति: फिल्म सहायक निर्देश, कलाकार 
संपर्क: गुडगांव (हरियाणा), मोबा: 9873915125 
BY-ओ.पी. पाल 
भारत एक संस्कृतिक देश है, जिसमें हरियाणा की समृद्ध संस्कृति का अपना अलग महत्व है, जिसकी राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अलख जगाने में कलाकार, गीतकार, साहित्यकार और लेखक अपनी अपनी विधाओं में साधना करते आ रहे हैं। ऐसे ही फिल्म जगत में अपनी कला के माध्यम से समाज को अपनी संस्कृति को सर्वोपरि रखने का संदेश देते आ रहे कलाकार विजय तंवर ने अभिनेता के साथ फिल्म निर्देशक की भूमिका में लोकप्रियता हासिल की है। हिंदी, हरियाणवी और क्षेत्रीय फिल्मों के अलावा धारावाहिक व वेबसीरिज के निर्माण में जुटे फिल्म निर्देशक विजय तंवर ने हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत में कुछ ऐसे तथ्यों को भी उजागर किया है, जिसमें फिल्मों के क्षेत्र में कला और संस्कृति के आधार पर निर्मित फिल्मों से सामाजिक विरासत को संजोना संभव है। --
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रियाणा की लोक कला और संस्कृति को नया आयाम देने में जुटे कलाकार विजय तंवर का जन्म 15 दिसंबर 1965 को गुरुग्राम जिले के गाँव करोला में जगदीश सिंह तंवर और श्रीमती भगवती देवी के घर में हुआ। उनका परिवार की पृष्ठभूमि डिफेंस से संबन्धित है, जिनके पिता भारतीय नौसेना में थे। पिता के साथ रहते हुए ही उन्होंने अपनी स्कूली और कालेज की शिक्षा मुंबई में ही ग्रहण की। उनके परिवार में उन्हें अभिनय, रंगमंच या संगीत का माहौल तो कतई नहीं मिला, लेकिन वह स्कूल में अपनी म्यूजिक क्लास के दौरान थोड़ा गाना बजाना कर लिया करते थे। इसी कारण स्कूल के वार्षिकोत्सव में सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भागीदारी करने लगे। स्कूल मे कविता लेखन, निबंध लेखन, ड्रामा क्लास के माध्यम से उनमें लोक कला के प्रति रुझान सामने आया। बकौल विजय तंवर, जब वह कक्षा सात में थे, तो उन्होंने युगल गीत प्रतियोगिता मे भाग लिया और जबकि उसका साथ समारोह के दिन गायब रहा, जिसके कारण सबकुछ गाना और अभिनय उन्हें ही करना पड़ा। हालांकि इस गाने में उनकी भूमिका केवल इंजन की सिटी बजाने की थी, लेकिन 'गाड़ी बुला रही है सीटी बजा रही है' को उसने जैसे तैसे पूरा किया, लेकिन तालियों की गड़-गडगडाहट ने उन्हें गाने की बीच हुई गलतियों को भी भुला दिया। इसके लिए उनकी सराहना हुई, जिससे उनका आत्मविश्वास बढ़ना स्वाभाविक था और उसके बाद उन्होंने धीरे धीरे स्कूल की सभी सांस्कृतिक गतिविधियों में भागीदारी करके कुछ न कुछ कला का प्रदर्शन करना शुरु कर दिया। भले ही वह कविता लेखन हो या निबंध अथवा फिर डांस या नाटक सभी में वह बढ़चढ़कर हिस्सा लेते रहे। इसी उत्साह और कला के बढ़ते प्रभाव के कारण उन्होंने सड़क सुरक्षा, पेट्रोल टीम, एनसीसी टीम, तैराकी आदि क्षेत्र में स्कूल स्तर से कालेज स्तर तक अपने हुनर से अव्वल रहकर सभी के दिलों में जगह बनाई। उन्होंने बताया कि दसवी कक्षा के दौरान मुंबई में उन्होंने तीन फिल्मों त्रिशूल, नास्तिक, रॉकी इत्यादि की शूटिंग को देखा तो उनके मन में काम करने का जज्बा पैदा हुआ। खासकर शूटिंग के दौरान सभी प्रमुख अभिनेता समेत सभी कलाकार निर्देशक से लेकर तकनीकी टीम को सम्मान देते हैं और निर्देशक के इशारे पर काम करते हैं। उन्होंने सम्मान की खातिर फिल्म जगत में किसी भी ऐसी भूमिका के लिए उत्सुकता महसूस की। इसलिए वह फिल्म निर्देशकों और प्रोड्यृशरों के दफ्तरों के चक्कर काटकर उनसे मेलजोल बढ़ाने लगा। फिल्म क्षेत्र में काम करने के लिए ही विजय तंवर ने सामाजिक कार्य में प्रोफेशनल मास्टर डिग्री, फिल्मोग्राफी, फिल्म मेकिंग में कोर्स भी किये हैं। 
ऐसे मिली मंजिल 
फिल्म निर्देशक विजय तंवर ने बताया कि उनके ग्रेज्युएशन के दौरान कुछ प्रोड्यूशर डायरेक्टरों से संबन्ध मजबूत हुए, तो उन्हें सहायक निर्देशक के रुप में काम मिल गया। हालांकि उन्होंने ऐसा कोई कोर्स तो नहीं किया था, इसलिए भरोसा जमाने के लिए चार पांच साल लग गये। जैसे तैसे उन्हें पहली फिल्म मिली तो उनका आत्मविश्वास बढ़ा और उसके बाद पांच फिल्मों में काम किया, जिनमें दो रिलीज हो पाई। उनके सहायक निर्देशन में पहली रिलीज होने वाली फिल्म 'अधूरी सुहाग रात' थी, जिसके मुख्य किरदार मोनेश बहल, अमिता नाजिया और भारत भूषण थे। जबकि उनकी दूसरी फिल्म मोहब्बत मेरा नसीब थी, जिसमें अनुपम खेर, सुरेश ओबरॉय, मोनेश बहल, पुनीत इसार आदि रहे। इसके बाद बागी औरत फिल्म में उन्होंने काम किया। ग्रेज्युएशन के बाद उन्होंने दूरदर्शन पर 52 एपिसोड का सीरियल 'दास्ताने हातिम ताई' किया, जिसमें प्रेम चोपड़ा, शमी कपूर, सुजीत, परीक्षित साहनी, विश्वजीत आदि दिग्गज कलाकार शामिल रहे। उन्होंने इसके बाद एसोसिएट डायरेक्टर के रुप में तीन और सीरियल किये, जिनमें द ग्रेट मौघाल्स में इजहार अहमद, 'स्पेशल टास्क फोर्स' में शहबाज खान ने मुख्य किरदार की भूमिका निभाई। इसके अलावा उन्हें एक हरियाणवी फिल्म चोरी नट की में काम करने का मौका मिला, जिसमें अर्जुन, जैक गौड आदि थे। तंवर ने हिंदी फिल्म गुड्डू में भी विजय तंवर को निर्देशन के रुप में काम करने का मौका मिला, जिसमें उनके साथ मुख्य किरदार निभाने वाले कलाकार शाहरुख खान, मनीषा कोइराला, नवीन निश्चल, मुकेश खन्ना जैसे दिग्गज कलाकारो शामिल रहे। फिल्मों में वॉलीवुड कलाकारों के साथ काम करने का मौका देने वाले निर्देशक कमल साहनी, राजन जौहरी, राकेश कश्यप और नरेश गुप्ता आदि के सहयोग व उनके प्रोत्साहन को वह कभी नहीं भूल सकते। 
पुरस्कार व सम्मान 
कलाकार विजय तंवर के निर्देशन में समाज में बालिकाओं की स्वीकार्यता पर आधारित निर्मित लघु फिल्म 'दिशा' को 25 से भी ज्यादा फिल्म फेस्टिवल में पुरस्कार मिल चुके हैं। फिल्म निर्देशक की भूमिका निभाने वाले विजय तंवर को मिले प्रमुख पुरस्कारों में दादा साहब फाल्के अवार्ड के अलावा मराठवाडा इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल मुंबई, काशी इंडियन इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल, गंगटोक इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल, एशियन टेलेंट इंटरनेशन फिल्म फेस्टिवल, रील्स इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल, सेवन सिस्टर नॉर्थईस्ट इंटर नेशनल फिल्म फेस्टिवल, उमरेड इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल, जलगांव इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल तथा रोशनी इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल आदि में पुरस्कार मिले हैं। 
संस्कृति में विद्यमान है कला की अभिव्यक्ति 
फिल्म कलाकार विजय तंवर का आधुनिक युग में कला और संस्कृति पर पड़ते प्रभाव को लेकर कहना है कि भारत देश एक बहुत विविध और उन्नत संस्कृति के साथ आधुनिक तकनीक विकास के साथ एक सयुंक्त राज्य है। युवाओ को लोक कला संगीत, अभिनय संस्कृति के प्रेरित करना चाहिए, जिसके लिए वह भी करते आ रहे हैं। कला के माध्यम से ही संस्कृति हमारे जीवन में संगीत, नृत्य, नाटक, चित्रकला, सिनेमा, फोटोग्राफी रुप में अभिव्यक्ति पाती है और भारत संस्कृति में सत्य शिव सुन्दरम की भावना विद्यमान है। इस युग में युवाओ को लोक कला, संगीत, अभिनय, रंगमंच जैसी संस्कृति के लिए प्रेरित करना आवश्यक है, जो समाजिक परिदृश्य को संरक्षित या मजबूत करने के लिए महत्वपूर्ण है। यही नहीं किसी भी देश के विकास के लिए भी कला का एक अलग महत्व है, जो एक साझा दृष्टिकोण और एक निश्चित लक्ष्य का दर्शाता है। उनका कहना है कि इस आधुनिक युग में सोशल मीडिया के जरिए भी युवाओं को अपनी संस्किृति से जुड़े रहना चाहिए, इसके लिए लेखकों, कलाकारों, गीतकारों और साहित्यकारों को बदलते परिवेश के आधार पर अपनी विद्याओं को प्रस्तुत करने की जरुरत है। भले ही नए तकनीक संचार के उपयोग के कारण युवा अधिक ध्यान दे रहे हों, लेकिन अपनी संस्कृति के मान सम्मान से ही वे अपनी सामाजिक विरासत को संजोए रख सकते हैं। 
24Mar-2025

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