साहित्य और संस्कृति क्षेत्र में हासिल की लोकप्रियता
व्यक्तिगत परिचय
नाम: डा. कंवल नयन कपूर
जन्मतिथि: 09 अगस्त 1944
जन्म स्थान: रावलपिंडी (पश्चिम पाकिस्तान)
शिक्षा: बी.ए(ऑनर्स व संस्कृत), एमए(हिन्दी), पीएच.डी.
संप्रत्ति: सेवानिवृत्त विभागाध्यक्ष, एमएलएन महाविद्यालय यमुनानगर, लेखक, साहित्यकार
सपंर्क/पता: 6, प्रोफेसर कालोनी, यमुनानगर, मोबा. 9896033903/01732-226333
BY-ओ.पी. पाल
साहित्य और संस्कृति में सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दों पर बेबाक लेखन करने के मकसद से साहित्यकार अपनी विभिन्न विधाओं में साधना करके समाज में व्याप्त विसंगतियों को पाटने का प्रयास कर रहे हैं। ऐसे ही लेखकों में शुमार वरिष्ठ साहित्यकार डा. कंवल नयन कपूर अपने रचना संसार में साहित्य के साथ सांसकृतिक क्षेत्र में भी अपनी लेखनी चलाते आ रहे हैं। खासबात है कि शिक्षाविद् होने के बावजूद उन्होंने साहित्यिक कृति के शोध से ही पीएचडी की उपाधि हासिल की। उन्होंने गद्य और पद्य दोनों विधाओं में बाल मन से लेकर महिलाओं और बुजर्गो को अपने रचनाओं में समाहित करके कहानी, लघुकथा, नाटक, कविता और आध्यात्मिक कृतियों के साथ चित्रकारी को अंजाम देकर लोकप्रियता हासिल की है। अपने साहित्यिक और सांस्कृति क्षेत्र के सफर को लेकर वरिष्ठ साहित्यकार डा. कंवल नयन कपूर ने हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत में ऐसे अनछुए पहलुओं का जिक्र किया है, जिसमें समाज साहित्य और संस्कृति से समाज को नई दिशा देना संभव है।
हरियाणा के साहित्य एवं सांस्कृतिक जगत में लोकप्रिय हुए वरिष्ठ साहित्यकार डा. कंवल नयन कपूर का जन्म 9 अगस्त 1944 को रावल पिंडी (पश्चिमी पाकिसतान) के गांव जंड में नाथूराम व श्रीमती मीराबाई के घर में हुआ। भारत विभाजन के बाद उनका पूरा परिवार संभवत: दिल्ली स्थांनांतरित हो गया था। विभाजन के दौरान हिंसाओं की त्रासदी की कहानियों की गूंज में उनका बचपन बीता और अमृतसर, लुधियाना, कुरुक्षेत्र के विस्थापित कैम्पों की हाय-तौबा की काली छाया ने उनके शिशु-मन को ऐसे छुआ कि अन्तर्मुखता, अकेलापन और एकान्त से स्थायी मित्रता हो गई। इसके बाद उनका पूरा परिवार संभवत: 1949 में दिल्ली स्थांनांतरित हो गया था, जहां उनके परिवार को स्थायी निवास मिला। दिल्ली में उन्होंने आई.ए.आर.आई. पूसा के सरकारी स्कूल से हायर सैकेण्डरी तक की शिक्षा ग्रहण की, गुरु तेग बहादुर खालसा कॉलेज देवनगर और इवनिंग इन्स्टीट्यूट ऑफ हायर स्टज़िज, दिल्ली विश्व विद्यालय से हिन्दी में एम.ए. की शिक्षा ग्रहण की, लेकिन परिवार में आर्थिक अभाव निरंतर चलती रही। उन्होंने आगे की शिक्षा छोड़ यमुनानगर (हरियाणा) के एम.एल.एन. महाविद्यालय में प्राध्यापन कार्य आरंभ किया। उन्होंने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से 'नई कहानी' विषय में शोध स्वरूप पी.एच.डी. उपाधि प्राप्त की। अगस्त 2004 में इसी महाविद्यालय से विभागाध्यक्ष पद से सेवानिवृत्ति हुई। परिवारिक और शैक्षणिक संस्थाओं के माहौल ने उनमें साहित्यिक संस्कारों का बीजारोपण किया। जबकि घर में माता भगवान कृष्ण की भक्त होने के कारण भजन और गीत गुनगुनाती रहती थी, तो वहीं उनके बड़े भाई उन दिनों भजन और देवी की भेंटे लिखकर गाते थे। मसलन साहित्यिक रुझान उनका अपने घर परिवार से ही हुआ ओर वह भी बचपन से ही तुकबंदी करने लगे थे। उनका साहित्य एवं चित्र कला के प्रति शुरु से ही विशेष झुकाव रहा है। इसी कारण वह स्कूल-कॉलेज में मंचित कार्यक्रमों में गायन, नाटक आदि में निरन्तर प्रतिभागिता करते रहे। उच्च शिक्षा के दौरान वह पंजाबी के प्रख्यात कवि-चिन्तक डॉ. हरिभजन सिंह और डॉ. लक्ष्मीनारायण लाल, डॉ. महीप सिंह, डॉ. दशरथ ओझा, डॉ. नरेन्द्र मोहन आदि विद्वान साहित्यकारों के संसर्ग से साहित्य लेखन करने लगे, जिनकी कविताएं-लेख आदि स्कूल कॉलेज पत्रिकाओं के अलावा बड़ी पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ छपती रही। बकौल डा. कमल नयन, वह अपने आप को कवि और नाटककार मानते हैं, यद्यपि मूर्तिकला, स्थापत्य कला, पेंटिंग, वुडकार्विंग व क्ले माडलिंग, इंटीरियर डेकोरेशन जैसी विधाओं में भी उन्होंने काम किया है।
लोक कला क्षेत्र का भी हुनर
डा. कपूर जब वह आठवीं कक्षा में थे तो उन्होंने अंग्रेजी ग्रामर की पुस्तक पर पहली कविता लिखी। सन् 1965 से 1967 तक संचेतन कहानी की ध्वज वाहक पत्रिका 'संचेतना' से सहायक सम्पादक के रूप में काम किया और दिल्ली से प्रकाशित होने वाली पत्रिका 'जाह्नवी' में उनका किशोर उपन्यास 'भारत सम्राट' धारावाहिक रूप से प्रकाशित हुआ। सन् 1976 में पहला कविता संग्रह और 1978 में पहला 'लघु नाटक' संग्रह प्रकाशित हुआ। खासबात है कि इसी दौरान नाट्य मंचन, पेंटिंग, क्ले मॉडलिंग, स्थापत्य कला आदि में भी उन्होंने बहुत काम किया गया, जिसमें मंच संचालन, संगीत आदि में उनकी विशेष रुचि रही। नाटक, कहानी, कविता, समीक्षा, निबन्ध लेखन में निरन्तर प्रवृत रहे। उन्होंने बताया कि उनके द्वारा लिखित छोटे-बड़े नाटकों के चार सौ से अधिक मंचन हो चुके हैं, जिनमें पंजाबी, उर्दू आदि का अनुवादित रूप भी शामिल है। सन् 1994 से डॉ. कपूर हिन्दी की लम्बी कविताओं के मंचन में लगे हैं और लगभग बीस लम्बी कविताओं का 'रंगपाठ' मंचित कर चुके हैं। उनकी लम्बी कविता 'शिशु होकर' एवं 'धन्यवाद कान्हा' का मंचन साहित्य-जगत में विशेष चर्चित विषय रहा है। डा. कपूर विभिन्न शैक्षणिक, साहित्यिक, कला और सांस्कृतिक संस्थाओं में अलग अलग पदों पर रहे हैं। वे हरियाणा के अलावा अन्य राज्यों में विभिन्न साहित्यिक और सांस्कृतिक सम्मेलनों में भी भागीदारी करते रहे हैं।
आधुनिक युग में साहित्य
आज के आधुनिक युग में साहित्य की स्थिति पर डा. कंवल नयन कपूर का कहना है कि यह सत्य है कि हर रचनाकार अपने रचनाकर्म में आजीवन संलग्न रहते हुए भी अपनी श्रेष्ठ रचना की प्रतीक्षा में ही प्रस्थान पा जाता है। लेकिन इस सोशल मीडिया और इंटरनेट के युग में बढ़ते बाजारीकरण ने हर क्षेत्र को प्रभावित किया है। लेखक भी बदलते परिवेश में अपनी रचनाओं में बदलाव करके लोकप्रियता हासिल करने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन साहित्य और संस्कृति जगत में यह अच्छा संकेत नहीं है। खासकर आज की युवा पीढ़ी के साहित्य और संस्कृति के प्रति कम होती रुचि सामाजिक दृष्टि से चिंताजनक है, जिसका समाज पर प्रभाव पड़ रहा है। इसलिए युवा पीढ़ी को साहित्य और संस्कृति से जोड़े रखने के लिए लेखकों, साहित्यकारों, कवियों और लोक कलाकारों को अपनी संस्कृति और सभ्यता को सर्वोपरि रखते हुए अपनी कलम चलाना आवश्यक है।
प्रकाशित पुस्तकें
वरिष्ठ साहित्यकार एवं लेखक डा. कंवल नयन कपूर की प्रकाशित पुस्तकों में प्रमुख रुप से नाटक: यात्रा और यात्रा, कथा लंका दहन की, कथा लंका दहन की, जल घर, रक्त जीवी, आओ मेरे साथ,पंछी तीर्थम, शव पूजा, प्रकृति पर्व और छाया पुरुष जैसी कृतियां सुर्खियों में हैं। जबकि उपन्यास: भारत सम्राट, ठहरी हुई नदी, कविता संग्रह: बौणियां किरणां और उदास गुलमोहर, एक समन्दर मेरे अन्दर, किस्सा कमली दा,मूर्ख होने का सुख, शब्दों के पार, अजब कालखंड, संपत्ति और गीत-अगीत प्रकाशित हुई है। उनके अध्यात्मिक पुस्तकों में इदं शरीरं, श्री दुर्गा, उपनिषद् श्री भी शामिल है, जिनका काव्य रुपांतरण, संपादन के साथ हिंदी, अंग्रेजी और पंजाबी में अनुवाद भी किया है। इसके अलावा एकांकी यात्रा-दो, हम (पंजाबी के प्रतिनिधि) एकांकी तथा हम (उड़िया के प्रतिनिधि) एकांकी के अलावा दर्शन चला हंस शून्य की ओर भी उनकी कृतियों का हिस्सा है।
पुरस्कार व सम्मान
साहित्यिक, सांस्कृतिक और सामाजिक क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए डा. कंवल नयन कपूर को उनकी कृति 'जल घर' के लिए हरियाणा साहित्य अकादमी का सम्मान भी मिला है। वहीं उन्हें राष्ट्रीय हिंदी सेवी सहस्त्राब्दी सम्मान से भी नवाजा जा चुका है। वहीं साल 1995 में तत्कालीन राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने भी सम्मान से अलंकृत किया। इसके अलावा हरियाणा के भाषा विभाग, हिंदी साहित्य सम्मेलन, इंडियन ऑर्टस चंडीगढ़ तथा अनेक साहित्यिक और सांस्कृतिक संस्थाओं से अनेक सम्मान व पुरस्कार मिले हैं।
03Mar-2025
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