मिमिक्री कलाकार ने एंकरिंग, कविता लेखन और रागनी गायन गायन में भी बनाई पहचान
व्यक्तिगत परिचय
नाम: प्रदीप जेलपुरिया
जन्मतिथि: 29 दिसंबर 1983
जन्म स्थान: बहादुरगढ़, जिला झज्जर(हरियाणा)
शिक्षा: एम हिंदी, बीकॉम
संप्रत्ति: मिमिक्री, रागनी गायन, एंकरिंग, कविता लेखन एवं सिपाही (जेल)
संपर्क: शक्तिनगर, झज्जर रोड, बहादुरगढ़ (हरियाणा) मोबा.9467687200
By--ओ.पी. पाल
हरियाणा की समृद्ध संस्कृति को संजोए रखने के लिए लोक कलाकार अलग अलग विधाओं में अलख जगाते आ रहे सूबे के लोक कलाकारों और गीतकारों ने देश में ही नहीं, वरन् विदेशों में भी अपनी छाप छोड़ी है। ऐसे ही विख्यात कलाकर प्रदीप जेलपुरिया ने मिमिक्री और मंच संचालन के साथ अपने गीतों की बेहतरीन प्रस्तुतियों से लोकप्रियता हासिल की है, वहीं वह जेल विभाग में सेवा देते हुए कैदियों को भी संस्कृति और संस्कारों की सखी दे रहे हैं। मिमिक्री के साथ रागनी गायन, एंकरिंग, कविता लेखन के माध्यम से सांस्कृतिक, आध्यात्मिक, सामाजिक और खेल जैसे समारोह में एंकरिंग की भूमिका में बुलंदियां छू रहे कलाकार प्रदीप जेलपुरिया ने हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत के दौरान अपनी कला के सफर में कई ऐसे अनछुए पहलुओं को उजागर किया है, जिसमें अपनी संस्कृति का संवर्धन करना उनकी कला की प्राथमिकता है।
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हरियाणा के विख्यात मिमिक्री कलाकार प्रदीप जेलपुरिया का जन्म जिला झज्जर के शहर बहादुरगढ़ में 29 दिसंबर 1983 को दलीप सिंह और श्रीमती कृष्णा देवी के घर में हुआ। उनके पिता एक सरकारी स्कूल में अध्यापक और माता गृहणी के रुप में परिवार की जिम्मेदारी संभालते रहे हैं। परिवार में भले ही साहित्यिक या सांस्कृतिक माहौल न हो, लेकिन उनकी माता पड़ोसियों की जिस अंदाज में मिमिक्री करती थी, उसका प्रभाव बचपन में ही प्रदीप पर पड़ने लगा। इसी कारण उन्हें बचपन में ही अभिनय जैसी कला में अभिरुचि हो गई थी और वह एक्टरों की मिमिक्री करने लगे। प्रदीप की प्राथमिक शिक्षा सरकारी स्कूल एवं माध्यमिक शिक्षा जवाहर नवोदय विद्यालय रेवाडी से हुई। जबकि बीए दिल्ली विश्वविद्यालय के अंबेडकर कालेज और एमए महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय रोहतक से उत्तीर्ण की। बकौल प्रदीप जेलपुरिया, वह स्कूली शिक्षा के दौरान नाटकों में मंचन और मिमिक्री करने लगे। कक्षा पांच में उनका चयन जवाहर नवोदय विद्यालय रेवाड़ी में हो गया। जब वह सातवीं कक्षा में थे तो उन्होंने पहली बार अपने प्रिंसिपल की मिमिक्री की, इस पर प्रिंसिपल ने उसे डांटने या पीटने के बजाय इस कला के लिए प्रोत्साहित किया। एक तरह से उनकी मिमिक्री कला की शुरुआत भी स्कूली शिक्षा के दौरान ही शुरु हुई। वह स्कूल के कार्यक्रमों में नाटकों में भी अभिनय मंचन और मिमिक्री करने लगे। उन्होंने बताया कि एमडीयू में एमए करने के दौरान एक आईपीएस अधिकारी ओपी नरवाल का सानिध्य मिला, जिनके प्रोत्साहन से पुलिस प्रशिक्षण केंद्र में आयोजित आल इंडिया पुलिस गेम(घुडसवारी) में उन्होंने बतौर एंकर की भूमिका निभाई। उनकी उपलब्धियों को देखकर ग्रैपलिंग गेम में कल्चरल अफेयर्स का निदेशक बनाया गया, जिसके तहत उन्होंने ग्रैपलिंग गेमों में कई वर्ष एंकरिंग की। इसके अलावा उन्होंने झज्जर बहादुरगढ़, रोहतक, रेवाडी, फरीदाबाद एवं नूहं के गीता महोत्सव में भी एंकरिंग की। वहीं 2019 में वह जैनेन्द्र जी के संपर्क में आया, जिन्होंने मंच पर बोलने का सलीके का ज्ञान दिया, जिन्हें उन्होंने अपना गुरु मानकर नए आयाम स्थापित किये। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। वहीं डीआईपीआरओ दिनेश शर्मा ने पहली बार गीता महोत्सव झज्जर में एंकरिंग करने का अवसर दिया। रागनी के लोक कलाकार विकास पासोरिया से प्रभावित होकर उन्होंने विभिन्न मंचों पर एंकरिंग के साथ हरियाणवी संस्कृति संजोए रखने के लिए मुहिम छेड़ी और हरियाणा रागनी का मंचन भी किया और हरियाणवी गाने '70 का हरयिाणा' में भी भूमिका निभाई। गत वर्ष 2024 में विशाखापटनम, राजीवगांधी स्टेडियम दिल्ली, छत्रसाल स्टेडियम दिल्ली, एवं तालकटोरा स्टेडियम दिल्ली में राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर एंकरिंग एवं हरियाणवी गानों से उन्होंने सबका मन मोहा है। हरियाणवी बोली और संस्कृति का राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नाम रोशन करना उनकी प्राथमिकता है। जीवन में उतार चढ़ाव आते हैं, लेकिन उन्होंने उस हालातों में भी हौंसला नहीं खोया, जब कुछ साल पहले पैरालिसिस के कारण उनका चेहरा खराब होने लगा था। उनकी विभिन्न कलाओं का फोकस हरियाणवी संस्कृति और संस्कारों पर रहता है। उनकी पहली कविता बाबू मेरा भगवान है यू ट्यूब पर एक चैनल पर लोकप्रिय हुई। सरकार की तरफ से सुरजकुंड मेले आयोजित छोटी चौपाल में भी उन्होंने एंकरिंग की है।
आज के आधुनिक युग में लोक कला और संस्कृति में गिरावट को लेकर प्रदीप जेलपुरिया का कहना है कि हरियाणवी कला और मां बोली का अपना अलग ही महत्व है। लेकिन आज की युवा पीढ़ी मोबाइल की वजह से भड़काऊ चलचित्रों की वजह से अपनी हरियाणवी संस्कृति से दूर होते जा रहे हैं, जिसका समाज पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। समाज और अपनी संस्कृति की भलाई के लिए कलाकारों और लेखकों को अपने गानों या लेखन में फूहड़ता परोसने के बजाय शिक्षाप्रद और ज्ञानवर्धक सामग्री प्रस्तुत करने की आवश्यकता है। युवा पीढ़ी को अपनी संस्कृति से जोड़े रखने के लिए स्कूल व कालेज स्तर पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों के जरिए प्रेरित करने की आवश्यकता है। वहीं म्हारी संस्कृति महारा स्वाभिमान जैसी संस्थाओं तथा नए कलाकारों को संस्कृति के प्रति सरकार को भी प्रेरित करके प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है, ताकि समाज को सकारात्मक संदेश देकर संस्कृति का संवर्धन किया जा सके।
कैदियों को दे रहे हैं संस्कृति की सीख
कलाकार प्रदीप जेलपुरिया का साल 2003 में जेल विभाग में सिपाही के पद पर चयन हुआ। जेल वार्डर (सिपाही) के पद पर नौकरी के बावजूद उनकी कलाकारी का जज्बा जीवित रहा। जेल के माहौल में रहकर उन्होंने कविता लिखना शुरू किया और जेल में कैदियों को संस्कृति और संस्कार देने का काम शुरु कर दिया। विभाग ने भी उनकी कला को देखते हुए उनकी ड्यूटी बतौर म्यूजिक इंचार्ज जेल रोहतक में कर दी। फिलहाल उनकी ड्यूटी मेवात म्यूजिक इंचार्ज जेल है। उन्होंने ड्यूटी के साथ अवकाश वाले दिन बहुत से कैदियों के अपने स्टूडियो में कार्यक्रम भी शुरु किये। वहीं विभाग के अधिकारियों की अनुमति से वह समाज को नई दिशा देने के मकसद से संस्कृति के लिए हरियाणवी में कार्यक्रम भी करते आ रहे हैं। पुलिस विभाग द्वारा 'शान मेवात प्रोग्राम' के तहत 5 जिलों में तिरंगा यात्रा आयोजित की गई, झज्जर, रेवाड़ी, रोहतक, भिवानी और नूह सभी जिलों के उपायुक्तों ने एप्रिसिएशन लेटर दिए, जिसके बाद आकाशवाणी हिसार में उनका साक्षात्कार प्रसारित किया गया।
पुरस्कार व सम्मान
अभिनय, गीतों और लेखन के साथ मिमिक्री की कला में विख्यात होते कलाकार प्रदीप जेलपुरिया को कालेज शिक्षा के दौरान दिल्ली यूनिवर्सिटी आंबेडकर कॉलेज से सर्वश्रेष्ठ मिमिक्री अवार्ड से सम्मानित किया गया था। वहीं उन्हें हरियाणा गौरव पुरस्कार, झज्जर गौरव पुरस्कार के अलावा गृह विभाग के एसीएस विजय वर्धन और जेल महानिदेशक भी पुरस्कार से नवाज चुके हैं। इसके अलावा उन्हें विभिन्न मंचों से अनेक पुरस्कार व सम्मान मिले हैं।
-10Mar-2025
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