साहित्य और समाज में अपने ऐतिहासिक योगदान से मिली पहचान
व्यक्तिगत परिचय
नाम: श्रीमती संतोष गर्ग
जन्मतिथि: 12 नवंबर 1960
जन्म स्थान: बुढ़लाड़ा (पंजाब)
शिक्षा: बीए, योगा व नेच्युरोपैथी डिप्लोमा, फैशन डिजाइन
संप्रत्ति: कवयित्री, लघुकथाकार, बाल उपन्यासकार, कहानीकार, मैनेजिंग डायरेक्टर(एनजी डायग्नोस्टिकस, पंचकूला)
संपर्क: एससीएफ-59, सेक्टर-6. पंचकूला (हरियाणा),मो:9356532838, 7986432838,
ईमेल: santoshgarg1211@gmail.com
BY-ओ.पी. पाल
सामाजिक और संस्कृतिक प्रासांगिकता के हित में साहित्य जगत में अहम माना गया है। मूर्धन्य विद्वान भी साहित्य की समाज का दर्पण के रुप में व्याख्या करते रहे हैं। ऐसी एक प्रख्यात कवयित्री, लघुकथाकार, बाल उपन्यासकार और कहानीकार के रुप में डा. संतोष गर्ग ने अपनी लेखनी से हिंदी साहित्य को एक नया आयाम देकर साहित्य जगत में लोकप्रियता हासिल की है। उनकी साहित्यिक रचनाओं में नारी सशक्तिकरण, आध्यात्म, समाज सुधार और बाल साहित्य जैसे विषयों का समावेश शामिल है। उन्होंने हिंदी, पंजाबी, हरियाणवी और अंग्रेज़ी भाषाओं की ज्ञाता संतोष गर्ग ने सामाजिक क्षेत्र में अपनी सक्रीयता से समाज को एक सकारात्मक संदेश पहुंचाने का प्रयास किया। साहित्य और समाज में अपने ऐतिहासिक रुप से योगदान दे रही महिला साहित्यकार डा. संतोष गर्ग ने अपने साहित्यिक और सामाजिक सफर को लेकर हरिभूमि संवाददाता से बातचीत में कई ऐसे पहुलुओं को उजागर किया है, जिसमें उनका मानना है कि साहित्य संवर्धन समाज सेवा के भाव से हो तो उसका संस्कृति और संस्कारों को जीवंत रखने के लिए ज्यादा महत्व है।
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हिंदी साहित्य के क्षेत्र में कवयित्री, लघुकथाकार, बाल उपन्यासकार, कहानीकार के रुप में लोकप्रिय डा. संतोष गर्ग जन्म 12 नवंबर 1960 को पंजाब के बुढ़लाड़ा के एक संयुक्त परिवार में रूलदू राम सिंगला और श्रीमती देवकी देवी के घर में हुआ। परिवार में पिताजी की चाची श्रीमती वीरो देवी और उनकी सगी दादी श्रीमती लक्ष्मी देवी और दादा इन्द्र मल के अलावा पिताजी के साथ बचपन बीता। संतोष की पढ़ाई लिखाई वहीं पर हुई। एक संयुक्तत परवार में उन्होंने अपनी मां व दादी को चरखे पर सूत कातना, उसको रंग देना और फिर दरी बनाना, चारपाइयां बनाना, दूध बिलोना और फिर उसका घी बनाने जैसे काम करते देखा, जिन्हें देखकर वह भी ऐसे कामों में माहिर हो गई। परिवार में किसी तरह का साहित्य या सांस्कृतिक माहौल नहीं था। बकौल संतोष गर्ग, उनकी शादी 17 साल की उम्र में 23 अप्रैल 1978 को हरियाणा के कलायत गांव में उनकी शादी हुई हो गई थी। शादी से पहले वह सिर्फ 11वीं कक्षा पास की थी और बाकी उच्च शिक्षा शादी के बाद ग्रहण की। उनका बचपन ठाट-बाट से बीता। बचपन में उन्हें कोई साहित्यिक माहौल तो नहीं मिला, लेकिन वह स्कूल के मंचों पर 15 अगस्त और 26 जनवरी जैसे बड़े कार्यक्रमों में गीत बोलती थी। आचार्य जूनापीठाधीश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरी जी की शिष्या एवं महिला साहित्यकार संतोष ने बताया कि शादी के बाद कलायत गांव से वह अपने पति के साथ हिसार आकर रहने लगी, जहां उनके पति की हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार में प्रोफेसर के रुप में नई नई नौकरी लगी थी, वहीं से वे अब प्रोफेसर एंड हैड पद से सेवानिवृत्त हो चुके हैं। उनके दोनों बच्चों का जन्म भी हिसार में ही हुआ। बाद में उन्होंने एम.सी कॉलोनी में अपना घर खरीदा और किन्हीं कारणों से अढ़ाई साल बाद अर्बन एस्टेट टू में नया घर लिया और वह साल 2012 से अपने बच्चों के साथ मोहाली में रहने रह रही हैं। हरेक क्षेत्र की तरह साहित्यिक सफर में उतार चढ़ाव सभी के सामने आते हैं। उनके सामने भी बच्चों के भविष्य को लेकर चुनौतियां थी और परिवार की जिम्मेदारियां थी। इसके बावजूद साहित्यिक कार्यक्रमों में भाग लेती रही। हिंदी व पंजाबी के अलावा हरियाणवी भाषा में भी उन्होंने कुछ रचनाएं लिखी हैं। अपने साहित्यिक सफर में अब तक हिंदी भाषा में निरन्तर कवि गोष्ठियों, कवि सम्मेलनों का आयोजन भी कराती आ कर रही हैं। वह अखिल भारतीय साहित्य परिषद में हरियाणा प्रांत की उपाध्यक्ष, और राष्ट्रीय कवि संगम में 2016 से ट्राई सिटी चंडीगढ़ के अध्यक्ष पद पर लगातार सक्रिय हैं। वहीं एसएस फाउंडेशन द्वारा संचालित, राष्ट्रीय संवेदनाओं को समर्पित मनांजलि मंच संस्था की संस्थापक अध्यक्ष के रुप में बच्चों की पढ़ाई-लिखाई, उनकी किताबें, कपड़े, त्यौहार मनाना, खाने- पीने का सामान बांटना और कोराना काल में मानव सेवा जैसी सामाजिक और रचनात्मक गतिविधियों में भी सक्रीय हैं। वे एक व्यवसायिक कंपनी में प्रबंध निदेशक हैं, जो फैशन डिजाइनर होने के साथ योगा व नेच्युरोपैथी चिकित्सक भी हैं। वे ऐसी साहित्यकार और समाजसेवी हैं जिन्होंने चारों कुंभ, चारों धाम, कन्याकुमारी, गंगा सागर, कैलाश मानसरोवर, यूरोप, स्विट्जरलैंड आदि देश विदेश की यात्रा की और उनकी आकाशवाणी और दूरदर्शन पर सरकारी कवि सम्मेलनों में भी सक्रीय भागीदारी रही है।
यहां से शुरु हुआ साहित्यिक सफर
हिसार में रहते हुए वह अमृता प्रीतम, शिव कुमार बटालवी और ओशो की पुस्तकें पढ़ा करती थी। कई बार अपने मन के भाव भी डायरी में उतार लेती। पहली बार चोरी से लिखें भावों की डायरी फाड़ दी थी उसका मुझे बहुत अफसोस है। एक तरह से उनकी मेरी साहित्यिक यात्रा 1988 में आरंभ हुई, जब उनकी लिखी हुई दो कविताएं एक समाचार पत्र में पहली बार प्रकाशित हुई। इससे उनका आत्मविश्वास बढ़ना स्वाभाविक था। चूंकि पंजाब में शुद्ध पंजाबी बोली जाती है, जिसके कारण उनकी बोलने की भाषा में कुछ पंजाबी के तो कुछ हिंदी के और कुछ शब्द हरियाणवी के भी आते हैं। रही बात हिंदी लिखने की, तो इसका श्रेय हिसार के साहित्यकारों को है। यह उनका सौभाग्य रहा कि उन्हें सर्वोदय भवन में हिसार के राज्यकवि प्रोफेसर उदयभानु हंस, डॉ राधेश्याम शुक्ल, सतीश कौशिक, राजेंद्र प्रसाद जैन, मदन गोपाल शास्त्री, प्रदीप नील जैसे विद्वानों को सुनने का अवसर मिलता रहा। इस बात का अहसान उन्हें भी नहीं हुआ कि कब हिंदी उनकी प्रिय भाषा बन गई। साहित्य जगत में उनकी सभी प्रकाशित पुस्तकें हिंदी भाषा में ही हैं और बहुत से सांझा संकलनों में भी रचनाएं प्रकाशित हैं। साल 1995 में उनकी पहली कृति के रुप में काव्य संग्रह 'दिल मुट्ठी में' प्रकाशित हुआ। फिर उन्होंने लघु कथा संग्रह और अन्य विधाओं में पुस्तकें लिखना शुरु किया। उन्होंने बताया कि उनका काव्य संग्रह सूख गए नैनन के आँसू’ और डायरी के पन्ने ‘मनांजलि’ हरियाणा साहित्य अकादमी सौजन्य से प्रकाशित हुआ। साहित्य के क्षेत्र में उन्होंने गद्य व पद्य दोनों विधाओं में ही रचनाएं लिखी हैं। मसलन कविताओं के अलावा लघु कथाए, कहानी, उपन्यास और बाल साहित्य भी लिखा है। उनके लेखन का फोकस ज्यादातर प्रेम, प्यार, विरहा, अध्यात्म, सेवा, संस्कारों पर रहा है। हालाकिं समाजिक सरोकार के मुद्दों पर भी कलम चलाई है, लेकिन राजनीति पर बहुत कम लिखा है।
साहित्य की स्थिति बेहतर
आधुनिक युग में साहित्य के सामने चुनौतियों को लेकर डा. संतोष गर्ग का कहना है कि वर्तमान में साहित्य की स्थिति बहुत अच्छी है। लिखना, पढ़ना, प्रकाशित होना और मीडिया द्वारा, गूगल पर सब काम अच्छा हो रहा है। हालांकि मोबाइल और इंटरनेट का इस्तेमाल ज्यादा हो रहा है। यदि हम पुरातन साहित्य से तुलना करेंगे, तो आज के दौरे में समय का अभाव है, इसलिए पहले की तरह मोटे ग्रंथ पढ़ना आसान नहीं, आज पाठक लघुता तलाश करते हैं। उनका कहना है कि साहित्य के पाठक कम नहीं, बल्कि ज्यादा बढ़ रहे हैं। सोशल मीडिया पर बहुत साहित्य लिखा जा रहा है, जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता। उनका सवालिया निशान यहां भी कि यदि हम साहित्य के पाठकों को कम आंकते हैं, पुस्तक मेलों में पहले की अपेक्षा भीड़ क्यों बढ़ रही है? लेकिन यह भी भूल जाते हैं कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक की सारी पुस्तकें आपकी जेब के मोबाइल में कैद हैं। जहां तक युवा पीढ़ी में साहित्य के प्रति रुचि कम होने का सवाल है, ऐसा उन्हें नहीं लगता। बदलते परिवेश में परिवर्तन को देखते हुए रचनाओं को साहित्य के स्वरुप को भी बदलना जरुरी है। मसलन युवा पीढ़ी को साहित्य के प्रति आकर्षित करने के लिए लंबी रचनाओं के बजाए लघु और उनके अर्थ को समझने वाली सामग्री का इस्तेमाल करना चाहिए। जहां तक संस्कृति और संस्कार का सवाल है वह बचपन में बच्चों को मोबाइल पकड़ाने से नहीं आएंगे, उसके लिए शिक्षा संस्कार के लिए समय देना आवश्यक है।
प्रकाशित पुस्तकें
वरिष्ठ महिला साहित्यकार संतोष गर्ग की प्रकाशित 19 पुस्तकों में चार काव्य संग्रह-दिल मुट्ठी में, सूख गए नैनन के आँसू, शब्दों को विश्राम कहाँ और बाल काव्य संग्रह 'कागज़ की नाव', एक बाल उपन्यास नानी, निक्की और कुंभ’ व बाल काव्य संकलन काव्य संकलन ' दुनिया गोल मटोल' के अलावा 'हर मन तिरंगा, पिता होते हैं पर्वत से, कोरोना काल कवियों के झरोखे, लघुकथाएं अपनी-अपनी सोच, लघुकथा संग्रह 'लघुता कुछ कहती है' सुर्खिंयों में हैं। वहीं उन्होंने अध्यात्म साहित्य पर 'यात्रा गुरू के गाँव की’, ‘मानस मोती’, ‘पंचामृत’, 'सहस्त्रमानक’, 'संवाद' और सनातन-वार्ता नामक पुस्तकें भी पाठकों के सामने दी हैं और पांच काव्य संकलनों का लेखन संपादन कार्य स्वयं किया है।
सम्मान व पुरस्कार
हरियाणा साहित्य अकादमी से आध्यात्म पुस्तक सनातन-वार्ता के लिए श्रेष्ठ कृति पुरस्कार के अलावा संतोष गर्ग 'तोषी' को महादेवी वर्मा कविता गौरव सम्मान, साहित्य सम्मेलन शताब्दी सम्मान, गुरु रविंद्र नाथ टैगोर सम्मान, लघुकथा स्वर्ण सम्मान, पावरफुल वूमेन आफ हरियाणा अवार्ड, वूमैन एम्पावरमैंटअवार्ड, कोरोना योद्धा सम्मान से भी नवाजा जा चुका है। वहीं उन्हें जर्मनी में भारतीय प्रधान कौंसुलेट ऑफ फ्रैंकफर्ट और दुबई में भारतीय प्रधान कौंसुलेट जनरल द्वारा भी सम्मान पाने का गौरव हासिल हुआ है। इसके अलावा उन्हें विभिन्न साहित्यिक, सांस्कृतिक और विभिन्न समारोह में भी सम्मान मिला है। हरियाणा राज्य परिवहन की बसों में राज्य तथा राज्य से बाहर जीवन पर्यंत निःशुल्क यात्रा सुविधा (लाइफ टाइम फ्री ट्रैबलिंग) की सुविधा भी उन्हें दी गई है।
17Mar-2025
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय ओ पी पाल जी, आपने मुझे हरि भूमि समाचार पत्र में स्थान दिया। सादर नमस्कार 🙏😊
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