सोमवार, 26 अगस्त 2024

साक्षात्कार: साहित्य सृजन के बिना समाज की कल्पना असंभव: संगीता बैनीवाल

बाल साहित्य, कविता, कहानी, लघुकथा, हाईकू तथा लेख जैसी विधाओं में साहित्य सृजन
         व्यक्तिगत परिचय 
नाम: संगीता बैनीवाल 
जन्मतिथि: 16 अक्टूबर 1966 
जन्म स्थान: गांव पारता जिला फतेहाबाद (हरियाणा)
शिक्षा: बी.ए., बी.एड, एम.ए.(हिंदी, अंग्रेजी व एजुकेशन)
संप्रत्ति: अध्यापिका एवं लेखिका 
संपर्क:1721, सेक्टर-21, पंचकूला(हरियाणा)। मोबा. 9417011424 
By- ओ.पी. पाल
भारतीय संस्कृति में समाजिक दृष्टि से घटित विषयों को लेकर लेखक एवं साहित्यकार विभिन्न विधाओं के माध्यम से सकारात्मक भूमिका निभाते आ रहे हैं, ताकि समाज अपनी संस्कृति, सभ्यता और रीति रिवाज की मूल जड़ो से जुड़ा रहे। हरियाणा की समृद्ध संस्कृति के संवर्धन की दिशा में महिला लेखकों और साहित्यकारों के योगदान को भी नजर अंदाज नहीं किया जा सकता, जिन्होंने समाज को नई दिशा देने खासकर नारी विमर्श के विभिन्न पहलुओं को अपने लेखन के जरिए अपने साहित्य सृजन में उकेरा है। ऐसी ही महिला साहित्यकार संगीता बैनीवाल अपने रचना संसार में बाल मन से लेकर सामाजिक विषय, विचार, सोच, हर्ष तथा पीड़ा भाव को निहित करते हुए साहित्य साधना करने में जुटी हुई हैं। हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत के दौरान शिक्षिका और लेखिका संगीता बैनीवाल ने अपने साहित्यिक एवं लेखन के सफर को लेकर कई ऐसे अनछुए पहलुओं को उजागर किया है, जिसमें समाज में सकारात्मक विचारधाराओं का संचार करने में साहित्य की अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
रियाणा की महिला साहित्यकार संगीता बैनीवाल का जन्म 16 अक्टूबर 1966 को जिला फतेहाबाद (हरियाणा) के गांव पारता में एक जमींदार परिवार में सज्जन सिंह नम्बरदार और श्रीमती चन्द्रो देवी के घर में हुआ। पिता सज्जन सिंह नम्बरदार ,माता श्रीमती चन्द्रो देवी हैं। परिवार में उनके माता पिता दोनों की शिक्षित थे। संगीता की प्राइमरी शिक्षा गांव के पांचवी कक्षा तक के स्कूल में हुई। इसलिए आगे की शिक्षा ग्रहण करने के लिए शहर में भेजा गया। उस समय गांव में वह पहली लड़की थी, जिसने ग्रेजुएशन तक की शिक्षा हासिल की। दरअसल उस समय आसपास के गांव में लड़कियों की शिक्षा पर अधिक ध्यान नहीं दिया जाता था और लड़कियों की छोटी उम्र में ही शादी कर दी जाती थी। उनके गांव और आसपास के गांव की उनके साथ पढ़ने वाली लड़कियों की पांचवीं पास करते ही शादियां हो चुकी थी। लेकिन उनका परिवार शिक्षित था इसलिए उसकी शादी 23 वर्ष की उम्र में कर दी गई। उनके पति धर्मपाल सिंह बैनीवाल रिटायर्ड चीफ इंजीनियर हैं। उनके दोनों बेटे दिव्यांक बैनीवाल और ध्वनित बैनीवाल भी इंजीनियर हैं। बकौल संगीता बैनीवाल शिक्षा अर्जित करने के लिए उन्हें परिवार से दूर रहना पड़ा उन्हें डायरी लिखने का शौक था। उनके लेखन कार्य की शुरुआत कालेज की वार्षिक पत्रिका से हुई, जिससे उनकी लेखनी को आत्मबल मिला। चूंकि उस समय फोन नहीं थे और अपने मन के भाव, सुख-दुख परिवार के साथ सांझा करने के लिए केवल पत्र ही एकमात्र जरिया था। यानी बाल मन में ही भावनाओं को शब्दों में पिरोने की कला के अंकुर पनपने लगे, जो उनके साहित्य सृजन की शुरुआत समझी जा सकती है। एक सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि जिंदगी में उतार चढ़ाव का होना भी स्वाभाविक है। इसलिए जब उनके पति का बहादुरगढ़ से सिरसा तबादला हुआ, तो घर का सामान पैक करने के दौरान उनकी दैनिक लेखन की डायरियां सामने आ गई। उन्हें एक शहर से दूसरे शहर में ढ़ोने के बजाए उन्होंने उन डायरियों को पुराने अखबार, पत्रिकाओं की रद्दी के सामान में रख दिया। उसी समय उनके पति की नजर उन डायरियों पर पड़ी तो वो उन डायरियों को अंदर उठा लाए और कहने लगे ये फेंकने की चीज नहीं है, इन्हें ले चलो सिरसा जा कर देखते हैं। सिरसा कुछ महीनों बाद पति ने साहित्यकारों से संपर्क किया कि उनकी पत्नी लेखन करती हैं। इन्हें पढ़कर बताएं पुस्तक छपवाने की विषयवस्तु है क्या?। इसके बाद मेरी रचनाएं पत्र पत्रिकाओं में छपने लगी और यहां उनकी दो पुस्तकें भी प्रकाशित हुई। इससे लेखन के प्रति बढ़े आत्मविश्वास के साथ उन्होंने अपनी रचनाओं में सामाजिक विषयक सामग्री पर ज्यादा फोकस किया, लेकिन उनके बाल साहित्य में बाल मन व प्रकृति प्रेम की झलक भी उकेरी, तो हरियाणवी साहित्य में ग्रामीण आंचलिकता व मौलिकता पर जोर रहा। जबकि उन्होंने हिंदी कविताओं में नारी विमर्श के विभिन्न पहलुओं को छूआ है, तो वहीं कहानियों में सामाज में घटित विषय, विचार, सोच, हर्ष -पीड़ा भाव निहित करते हुए लेखन किया। उनके साहित्य सृजन को इतना प्रोत्साहन मिला कि साहित्यिक गतिविधियों में सक्रीय होने के कारण वे हिन्दी साहित्य प्रेरक संस्था जीन्द की अध्यक्ष भी रहते हुए संस्था के लिए जमीन उपलब्ध कराकर संस्था के भवन निर्माण में अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन किया। इसके अलावा वह हरियाणा लेखिका मंच सिरसा की उपाध्यक्ष और नवजागरण साहित्य संस्था नारनौंद में महासचिव के रूप में अपनी सेवा दे चुकी हैं। 
आधुनिक युग में बदली साहित्य की स्थिति 
आज के आधुनिक युग में साहित्य की स्थिति को लेकर संगीता बैनीवाल का मानना है कि साहित्य की स्थिति पहले जैसी नहीं रही। नये युग में नए प्रयोग और निरंतरता के साथ परिवर्तित रुप भी नजर आता है। साहित्य समाज का नवसृजन करता है, समाज को नई दशा व दिशा देने वाला है इसलिए थोड़ा चिंता का भाव भी है कि कुछ विषयवस्तु में गिरावट भी देखने को मिलती है। यह भी कटु सत्य है कि साहित्य के पाठक कम हो रहे हैं। इसका कारण रातोरात लोकप्रिय होने के लिए साहित्यकार भी पढ़ते कम और लिखते ज्यादा हैं। वहीं युवा पीढ़ी की साहित्य पढ़ने में रुचि बिल्कुल नहीं है, जिसका कारण इंटरनेट पर शोर्ट विडियो,रील के जरिए मिलने वाला लुभाना खतरनाक ज्ञान है, जो आज के युवा की तेजी से बदलती मानसिक प्रवृत्ति चिंता का विषय भी है। इसलिए सामाजिक ढांचा और संस्कृति को संजोए रखने के लिए युवाओं को साहित्य पढ़ने के लिए प्रेरित करने की आवश्यकता है। इस दिशा में माता-पिता ही नहीं, बल्कि लेखकों और साहित्यकारों को भी चाहिए कि वे युवाओं के लिए अच्छे साहित्य का लेखन कर उन्हें प्रोत्साहित करें। साहित्यिक संस्थाओं को समय समय पर कार्यशाला आयोजित कर युवा लेखकों को साहित्य की विभिन्न विधाओं से विषय वस्तुओं के प्रति सकारात्मक संदेश दें। 
साहित्य पर शोध कार्य 
प्रसिद्ध महिला साहित्यकार संगीता बैनीवाल की कृतियों पर शोध कार्य भी हो चुके हैं और ‘देखी तेरी गली बाबुल’ में लोक संस्कृति विषय पर (कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय विद्यालय में एमफिल के लिए विभिन्न युनिवर्सिटी से थिसिस लिखी जा चुकी हैं। वहीं संगीता बैनीवाल एवं उनका साहित्य कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय विद्यालय में पीएचडी के विषय में भी स्थान बना चुका है। इसके अलावा विनायका मिशन विश्वविद्यालय सेलम ,तामिलनाडु में शीर्षक ‘संगीता बैनीवाल: ‘व्यक्तित्व एवं कृतित्व’ पर थिसिस लिखी जा चुकी है। 
प्रकाशित पुस्तकें 
महिला साहित्यकार संगीता बैनीवाल हिंदी व हरयिाणवी लेखन में बाल साहित्य, कविता, कहानी, लघुकथा, हाईकू तथा लेख जैसी विधाओं में साहित्य सृजन कर रही है। उनकी अब तक कविता संग्रह ‘मेरे गाँव की लड़की’, ‘चक्षूफूल बिछाए हैं’, ‘स्मृति का धागा’ और ‘शब्दों की तलाश’ के अलावा बाल साहित्य ‘चॉकलेट का पेड़’, हरियाणवी काव्य संग्रह ‘देखी तेरी गली बाबुल’, हाईकू संग्रह ‘अहसास’ तथा लेख ‘सृष्टि अनुपम धरोहर’ जैसी पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। अभी उनका एक कविता संग्रह और कहानी संग्रह ‘मेरु की बहू’ प्रकाशाधीन है।
पुरस्कार व सम्मान 
साहित्य सृजन में उत्कृष्ट योगदान देने के लिए प्रसिद्ध साहित्यकार संगीता बैनीवाल को अखिल भारतीय साहित्य परिषद् हरियाणा व अन्य साहित्यिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया जा चुका है। इनमें प्रमुख रुप से साहित्य सभा कैथल के श्री दयालचंद मदान स्मृति सम्मान, जागृति प्रकाश मलाड मुंबई से पूर्व पश्चिम काव्य गौरव सम्मान, हिंदी साहित्य प्रेरक संस्था जींद के शकुंतला देवी साहित्य-रत्न सम्मान शामिल हैं। हालांकि संगीता साहित्य क्षेत्र से जुड़ी हस्तियों को सम्मानित करने जैसी गतिविधियों में ज्यादा हिस्सेदार रही हैं। 26Aug-2024

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