शुक्रवार, 16 अगस्त 2024

साक्षात्कार: काव्यात्क शैली के अनूठे साहित्यकार त्रिलोक चंद फतेहपुरी

सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दों पर साहित्य सृजन कर बनाई पहचान 
व्यक्तिगत परिचय 
नाम: त्रिलोक चंद फतेहपुरी 
जन्म तिथि: 04 अक्टूबर 1959 
जन्म स्थान: गांव फतेहपुर, जिला महेंद्रगढ़ (हरियाणा)
शिक्षा: एम.ए., बी.एड., पीएचडी 
संप्रत्ति: सेवानिवृता हिंदी प्रवक्ता, शिक्षा विभाग हरियाणा 
संपर्क: वार्ड नं.-29, गली -2 ,म. नं.- 1913 राव चिरंजी लाल कालोनी, हजारीवास, रेवाड़ी , हरियाणा। मोबा.-9992381001, ईमेल-sentrilokchand@gmail.com
 BY--ओ.पी. पाल 
साहित्यिक क्षेत्र के मूर्घन्य विद्वानों की नजर में साहित्य जगत में साहित्यकारों की हरेक विधा किसी कला से कम नहीं है। खासतौर से काव्यात्मक शैली में समाज के समक्ष अभिव्यक्ति को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। ऐसी ही अनूठी कला में माहिर वरिष्ठ साहित्यकार त्रिलोक चंद फतेहपुरी ने अपनी कविताओं में सामाजिक बुराइयों और विसंगतियों पर करारा प्रहार करते हुए समाज को सकारात्मक संदेश देने का प्रयास किया है। ऐसा उनके रचना संसार में सामाजिक सरोकार और सामयिक मुद्दों का समावेश में साफतौर से देखा जा सकता है। हिंदी और हरियाणवी बोली में गद्य और पद्य शैलियों में साहित्य सृजन करते आ रहे साहित्यकार एवं कवि त्रिलोक चंद फतेहपुरी ने हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत के दौरान अपने साहित्यिक सफर को लेकर कई ऐसे पहलुओं को भी उजागर किया है, जिसमें उनकी काव्यात्मक शैली समाज को समर्पित रही हैं। 
रियाणा के वरिष्ठ साहित्यकार त्रिलोक चंद का जन्म 04 अक्टूबर 1959 को महेन्द्रगढ़ जिले के गांव फतेहपुर में नंद राम और श्रीमती केशर देवी के घर में हुआ। उनके परिवार में कोई साहित्यिक माहौल तो नहीं था, लेकिन उनके पिता महाशय जी को गाने बजाने का शौक था। पिता का उन्हें हमेशा आशीर्वाद मिलता रहा। साल 1991 में वे रा.क.उ.वि. बाछौद में शिक्षक के पद पर कार्यरत थे, तो उन्होंने गुड़गांव ग्रामीण बैंक के ‘वृक्षारोपण कार्यक्रम’ में स्वयं की लिखी एक 16 पंक्तियों की बाल कविता पहली बार सुनाई। इस कविता की चर्चा उन्होंन अपनी पहली पुस्तक ‘ऐसी बेटी बण जाऊं’ में भी की है। उसके बाद उनका लेखन कार्य जारी रहा और अपनी लिखी कविताएं स्कूल में बच्चों के कार्यक्रम में ही पढ़ने लगे। जब उन्होंने 200 से अधिक कविताएं लिख ली, तो वह उन्हें छपवाना चाहता था, लेकिन एक शिक्षा अधिकारी ने उन्हें यह कहकर मना कर दिया कि विभाग की अनुमति के बिना वह पुस्तक नहीं छपवा सकते। इसलिए वह सेवानिवृत्त होने तक कोई पुस्तक नहीं छपवा सका और न ही कविता सुनाने के लिए उन्हें कोई मंच नहीं मिला। इसके बाद उन्होंने ‘मुझे मंच पर आने दो’ शिर्षक से भी एक कविता लिख डाली। साल 2014 में इस कविता को उन्होंने अपने गुरुजी हास्य कवि हलचल हरियाणवी को सुनाई, जिससे वह प्रभावित हुए और उन्हें अपने साथ काव्य मंचों पर ले जाने लगे। उन्हीं के मार्ग दर्शन की वजह से वह एक मंचीय कवि बन गये। मसलन यहीं से उनका मंचों पर काव्य पाठ करने का सिलसिला आरंभ हुआ। इसके बाद अब तक देश के विभिन्न राज्यों व शहरों के अलावा उन्हें नेपाल के काठमांडू, विराटनगर और पोखरा में भी काव्य पाठ करने का मौका मिला है। उनके कविता लेखन और काव्य पाठ का फोकस बाल चरित्र निर्माण, सामाजिक समस्याएं, समाज सुधार, देशभक्ति, राष्ट्र प्रेम, महान व्यक्तित्व, प्रकृति चित्रण,तीज-त्यौहार और हास्य व्यंग्य पर रहा है। वहीं गुरु हलचल हरियाणवी के ही मार्ग दर्शन से उनकी पुस्तकें भी प्रकाशित होने लगी और अब तक उनकी पाठकों के समक्ष 16 पुस्तकें आ चुकी हैं। उनकी कविताएं देश के पत्र पत्रिकाओं में भी प्रकाशित हो रही हैं। उन्हें आकाशवाणी व दूरदर्शन से काव्य पाठ तथा लघु कथा वाचन करने के भी मौके मिल रहे हैं। 
आधुनिक युग में साहित्य की स्थिति चिंताजनक
आधुनिक युग में साहित्य सृजन की स्थिति को लेकर त्रिलोक चंद फतेहपुरी का कहना है कि अनेक विषयों को लेकर गद्य व पद्य दोनों विधाओं में खूब साहित्य लिखा जा रहा है और साहित्य सृजन आज उच्च पराकाष्ठा पर है। उनका कहना है कि कोरोना काल के बाद तो लेखकों और कवियों की बाढ़ सी आ गई। गद्य लेखन की बजाय पद्य विद्या में ज्यादा लेखन हो रहा है। इसके चलते नाटक, उपन्यास, निबंध, कहानी, संस्मरण, यात्रा वृत्तांत आदि के लेखन की गति कम नजर आ रही है। उनके विचार से साहित्य के पाठक बहुत कम हो हुए हैं, खासकर युवा पीढ़ी पुस्तक पढ़ने में रुचि नहीं रही। इसका कारण अधिकतर लेखक युवाओं के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण अपना रहे हैं यानी ऐसे लेखक दोषों और कमियों को तो उजागर कर रहे हैं, लेकिन उनके गुणों का बखान करना भूलते जा रहे हैं। इस नकारात्मक लेखनी का असर युवाओं पर पड़ना स्वाभाविक है। आज के इस इंटरनेट युग में युवा पीढ़ी साहित्य पढ़ने की बजाय कंप्यूटर इंटरनेट व सोशल मीडिया पर व्यस्त रहने लगे हैं। इसी वजह से युवा पीढ़ी के निर्लज्ज, बेलगाम, अकर्मण्य, कर्तव्य पथ से विचलित और संस्कारहीन और दिशाहीन होने का समाज पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। जबकि समाज और अपनी संस्कृति को जीवंत रखने के लिए युवाओं को साहित्य पढ़ने के लिए प्रेरित करने की ज्यादा जरुरत है। इसके लिए पुस्तकालय खोले जाएं जहां अच्छा साहित्य पढ़ने के लिए होना चाहिए। 
प्रकाशित पुस्तकें 
हरियाणा के साहित्यकार एवं कवि त्रिलोक चंद सेन की अभी तक 16 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। इनमें प्रमुख रुप से हरियाणवी बाल कविता संग्रह ऐसी बेटी बण जाऊं, बाल कविता संग्रह वाह! भारत की बेटियां, हरिवाणवी कविता संग्रह मुझे मंच पर आने दो, यो सै म्हारा हरियाणा, झलक हरियाणे की, डंडे की फटकार, दोहा संग्रह त्रिलोकी सतसई, हरियाणवी कहानी-किस्से घंटू के कारनामें व बदलू का ब्याह, कुंडलियां संग्रह खुली ढोल की पोल, यात्रा संस्मरण काठमांडू का आनंद तथा उत्कल दर्शन, चंपू संग्रह मांडू का सफ़र व कयामत का दौर, गद्य और पद्य महिमा लालदास की तथा हरियाणवी अनुवाद आधुनिक भारत निर्माण म्हॅं सतगुरु कबीर का योगदान शामिल हैं। इसके अलावा ये हीरे हिंदुस्तान के, गीत वतन के गाएं, रतनपुर की महामाया, घनाक्षरी छंद की छटा, मेरे मुक्तक, सैर सपाटा नेपाल का, महकता बचपन, हरियाणा के ठाठ बाट, अभागा घंटू और पड़ोसी नामा शीघ्र ही पाठकों के समक्ष आने को तैयार हैं। हरियाणा साहित्य अकादमी पंचकूला से कोई पुरस्कार नहीं मिला है।
पुरस्कार एवं सम्मान 
साहित्यकार एवं कवि त्रिलोक चन्द फतेहपुरी को साहित्य सृजन में उत्कृष्ट योगदान के लिए अब तक सैकड़ो पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है। उन्हें नेपाल भारत साहित्य महोत्सव काठमांडू के अंतर्राष्ट्रीय साहित्य सम्मान, राष्ट्रीय शिक्षा गौरव शिखर सम्मान, आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी सम्मान, लता मंगेशकर स्मृति सम्मान, स्वर साधना साहित्य सम्मान, हिंदी गौरव सम्मान, काव्य गौरव सम्मान, निराला सम्मान, हरियाणा स्मृति सम्मान, हरियाणवी काव्य साधक सम्मान, साहित्य सुमन एवं साहित्यश्री सम्मान, शब्द श्री सम्मान, कलमवीर सम्मान, निराला सम्मान, हस्तलिपि लिखावट सम्मान, राष्ट्र प्रेमी सम्मान, काव्य सुमन सम्मान, काव्य मेधा सम्मान, सूर्य साहित्य रत्न सम्मान, पर्यावरण संरक्षक सम्मान, ऋचा स्मृति सम्मान, भारत माता अभिनंदन सम्मान, शौर्य सम्मान, साहित्य गौरव सम्मान, भारतीय श्री सम्मान, हिंदी साहित्य शिरोमणि सम्मान प्रमुख रुप से शामिल हैं। इसके अलावा उन्हें साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं द्वारा मंचों पर सम्मानित किया जा चुका है। 
12Aug-2024

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